“आर्यभट्ट”

“आर्यभट्ट”

अन्तरिक्ष अनुसन्धान में भारत की प्रथम महान् उपलब्धि
          १८ मई, १९७४ की प्रातः बेला में अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन रूपी पंच परमेश्वरों के दम्भ को दमन करते हुये भारत ने सफल प्रथम अणु-विस्फोट कर अपने को छठा अणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र सिद्ध कर दिया था। हमारे मित्र कहलाने वाले राष्ट्रों ने तब अपना असली रूप हमारे सामने प्रस्तुत किया था – भर पेट आलोचनायें की थीं, कीचड़ उछाली थी और वे भारत के वृद्धिशील ऐश्वर्य को न देख सके थे परन्तु श्वानों का प्रलाप गजराज की नदोन्मत्त गति में कोई अन्तर न ला सका, वह अपने गौरवपूर्ण गन्तव्य की ओर बढ़ता गया और वे यथास्थान, यथास्थिति में ही रहे । तब भी भारत की प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने २५ मई, १९७४ को अफ्रीका एकता संगठन के ग्यारहवें स्थापना दिवस पर आयोजन समारोह में जिसमें अनेक : देशों के राजदूत उपस्थित थे, कहा था- “शान्तिपूर्ण उद्देश्यों के लिये भारत के अणु परीक्षण पर नाक-भौं सिकोड़ने वाले क्या यह मानते हैं कि बड़े देशों को विध्वंस के लिये अणु-बम बनाने का अधिकार है और भारत जैसे विकासोन्मुख देश अपनी जनता की गरीबी तथा दूसरी मुश्किलों को हल करने के लिये भी अणुशक्ति का विकास नहीं  कर सकते।”
          इस स्थिति की पुनरावृत्ति तब हुई जब १९ · अप्रैल, १९७५ को मध्यान्ह १ बजे भारत ने अपना पहला उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ अन्तरिक्ष कक्षा में स्थापित करके अन्तरिक्ष युग में प्रवेश किया। अणु विस्फोट के पश्चात् विज्ञान के क्षेत्र में भारत की यह दूसरी महान् सफलता थी । अन्तरिक्ष में सफलता से कृत्रिम उपग्रह छोड़ने वाला भारतवर्ष ग्यारहवाँ देश है। अब तक अमेरिका, रूस, पश्चिमी जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, कनाडा, जापान और इटली इस विषय में सफलता प्राप्त कर चुके हैं, परन्तु विकासशील देशों में चीन के बाद भारत का दूसरा स्थान है ।
          भारतवर्ष में ‘भारतीय अन्तरिक्ष खोज संगठन के अधीन अन्तरिक्ष अनुसंधान का कार्य सम्पन्न हो रहा है। जून, १९७२ में देश में अन्तरिक्ष आयोजन की स्थापना की गई थी। अब तक ‘थुम्बा (केरल में एक स्थान का नाम) ईक्वेटोरियल राकेट लॉचिंग’ स्टेशन से अनेक राकेट छोड़े भी जा चुके हैं। इस केन्द्र का १९६८ में अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग के लिये राष्ट्रसंघ को समर्पित कर लिया गया था। आन्ध्र प्रदेश में ‘श्री हरिकोटा’ नामक स्थान पर “सैटेलाइट लॉचिंग स्टेशन” स्थापित किया गया है। ‘आर्यभट्ट’ उपग्रह का नियन्त्रण भी श्री हरिकोटा के भारतीय अन्तरिक्ष केन्द्र से ही किया जा रहा है। अन्तरिक्ष अनुसंधान क्षेत्र में तमिलनाडू के ‘ऊटी’ स्थान में संसार की सबसे लम्बी बेलनाकार रेडियो दूरबीन लगाई गई है।
          उपग्रह संचार के लिये १८ फरवरी, १९७१ को पूना से लगभग ८० किलोमीटर दूर ‘आव में एक व्यापारिक उपग्रह भू-संचार केन्द्र स्थापित किया गया जिसका इन्टालेस्ट III उपग्रह द्वारा इंगलैंड के ‘गुनाहिली’ केन्द्र से सम्पर्क जोड़ दिया गया। इस केन्द्र की प्रथम वर्षगाँठ के अवसर पर २६ जनवरी, १९७२ को इस केन्द्र का नाम ‘विक्रम भू-केन्द्र’ रख दिया गया। देश का भू-उपग्रह संचार केन्द्र देहरादून से २० किलोमीटर दूर ‘डोईवाला’ में है।
          “आर्यभट्ट” उपग्रह का नामकरण सुप्रसिद्ध भारतीय खगोलशास्त्री और गणितज्ञ के नाम पर किया गया है। आर्यभट्ट का जन्म पाँचवीं शताब्दी में पाटलिपुत्र (पटना) के निकट कुसुमपुर में सन् ४७६ में हुआ था। इन्होंने २३ वर्ष की अवस्था में अपना पहला ग्रन्थ “आर्यभट्टीय” लिखा था । आर्यभट्ट ने पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमण, पृथ्वी, चन्द्रमा आदि के व्यास के सम्बन्ध में गम्भीर अनुसन्धान किये थे और इन तथ्यों का महत्व सिद्ध किया था। इसके अतिरिक्त आर्यभट्ट ने आधुनिक बीजगणित (एलजबरा) की भी आधारशिला रखी थी तथा गणित के अनेक विषयों पर कार्य किया था। आर्यभट्ट ने ही सर्वप्रथम शून्य के महत्व पर बल दिया था। श्री आर्यभट्ट के विषय में तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती गाँधी ने उनकी १५००वीं जयन्ती पर भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान एकेडेमी नई दिल्ली में आयोजित समारोह में २ नवम्बर, १९७६ को उद्घाटन भाषण करते हुए कहा था कि – “आर्यभट्ट की प्रतिभा इतनी व्यापक थी कि हम पाँचवीं शताब्दी के इस खगोलशास्त्री को बीसवीं सदी का अर्थशास्त्री कह सकते हैं। आर्यभट्ट भारतीय इतिहास में एक महान् व्यक्तित्व के रूप में उभरे और उनके वैज्ञानिक कार्यों का प्रसार चारों ओर हुआ। हमें इस बात की प्रसन्नता है कि भारत के प्रथम उपग्रह का नाम आर्यभट्ट ही रखा गया, हमारा यह उपग्रह भारतीय वैज्ञानिकों की योग्यता तथा परिश्रम का प्रतीक था ।” उसी महान् खगोलशास्त्री की स्मृति को हरा-भरा रखने के लिये इस भारतीय प्रथम उपग्रह का नाम वैज्ञानिकों ने आर्यभट्ट रक्खा है। आर्यभट्ट का निर्माण बंगलौर के पास ‘पीन्या’ नामक स्थान पर भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है। पूर्णरूप से स्वदेशी सामग्री से विनिर्मित यह उपग्रह रूसी राकेट के आगे लगाकर रूस की भूमि से ही छोड़ा गया था क्योंकि हमारे देश में अभी ऐसे शक्तिशाली राकेट का निर्माण नहीं हुआ है जो इस उपग्रह को अन्तरिक्ष में स्थापित कर सकता। इस उपग्रह का वजन ३६० किलोग्राम है तथा इसका रंग नीला बैंगनी है। इसके निर्माण में २६ महीने तक पाँच करोड़ रुपये व्यय हुए हैं। ११६ सेन्टीमीटर ऊँचे इस उपग्रह के तीन मुख्य कार्य हैं – १ . हल्की शक्ति की एक्स-रे का अध्ययन करना, २. न्यूट्रोंस तथा गामा किरणों की जाँच करना, तथा ३. इलेक्ट्रोंस और अल्ट्रावायलेट किरणों का पता लगाना और उनका अध्ययन करना ।
          उपग्रह योजना के निदेशक प्रो० यू० आर० राव के अनुसार ‘आर्यभट्ट’ में बिजली की सप्लाई गड़बड़ी हो जाने से उपग्रह के जरिए किये जाने वाले, कई तरह के परीक्षण बीच में ही बन्द कर दिये गये ! इस गड़बड़ी का पता उपग्रह छोड़ने के पाँचवें दिन ही चल गया था। उपग्रह को पृथ्वी का चक्कर लगाते हुए २४ मई, ७५ तक ३५ दिन हो चुके थे। प्रो० राव ने बताया कि बिजली की सप्लाई की गड़बड़ी से उपग्रह के कार्य में कोई दोष पैदा नहीं हुआ। उपग्रह के अन्य अनेक कार्यों के लिये उसे बिजली मिल रही है। केवल परीक्षण करने वाली तीन कोठरियाँ बंद पड़ी हैं। उपग्रह से सूर्य के प्रकाश से बिजली बनाने की व्यवस्था की गई थी और बिजली को जमा करने के लिये बैटरी सैल भी लगाये गये थे। ये सैल विदेशों से मंगवाये गये थे और उनकी पूरी जाँच करके ही उनको उपग्रह में रक्खा गया था। प्रो० राव ने कहा कि अभी यह नहीं बताया जा सकता है कि बिजजी की सप्लाई का पता कब तक लगा लिया जाएगा, अभी यह भी पता नहीं लग सका कि बिजली की गड़बड़ी को जमीन से भी ठीक किया जा सकेगा या नहीं। परन्तु इस छोटी सी कठिनाई के अतिरिक्त उपग्रह काफी सफल रहा है और छः महीने तक कार्य करता रहेगा।
          ६ जौलाई,७५ को इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियर्स में भाषण करते हुए उपग्रह योजना के निदेशक डॉ० राव ने बताया कि उपग्रह की १४ बिजली लाइनों में से १३ लाइनें बहुत अच्छी तरह काम कर रही हैं। बिजीर की एक लाइन में खराबी पैदा हो गई है फलतः एक्स-रे खगोल और सौर भौतिकी के तीनों वैज्ञानिक परीक्षण बन्द कर दिये गये थे । २२ जौलाई, ७५ के बाद वे पुनः शुरू हो सके। प्रो० राव ने आशा व्यक्त की कि अयण बदल जाने पर उपग्रह को अधिक बिजली सुलभ होने की सम्भावना है। एक टेपरिकार्डर जो बराबर बिजली प्राप्त कर रहा है ठीक कर दिया गया है। उपग्रह के सम्बन्ध में अनेक भ्रांतियों को दूर करते हुए प्रो० राव ने कहा कि वह बहुत संतोषजनक ढंग से कार्य कर रहा है। अब तक भेजे गये २५० आदेशों का पालन कर चुका है। संचार परीक्षण के तौर पर कुछ आवाजें श्री हरिकोटा से उपग्रह को भेजी गई थीं और बंगलौर में वापिस रिकार्ड की गई। प्रो॰ राव ने कहा कि अब तक जितने भी उपग्रह छोड़े गये हैं उनमें आर्यभट्ट सबसे अधिक शक्तिशाली है। उपग्रह १०२० परिक्रमा कर चुका है और आशा है कि ६ माह के लक्ष्य से अधिक समय तक कार्य करता रहेगा। उन्होंने आशा व्यक्त की कि १९७७-७८ तक दूसरा उपग्रह तैयार हो जायेगा ।
          ११ सितम्बर,१९७५ को प्रातः परमाणु ऊर्जा, इलेक्ट्रोनिक और अंतरिक्ष विभागों से सम्बन्धित संसदीय सलाहकार समिति जिसकी अध्यक्षता श्रीमती गाँधी कर रही थीं को सूचित किया गया कि भारतीय उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ के संकेतों को अब तत्काल श्री हरिकोटा से बंगलौर और बंगलौर से श्री हरिकोटा भेजने में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के वैज्ञानिकों ने सफलता प्राप्त कर ली है। यह सफलता अपने में एक महान् उपलब्धि है जिसका लाभ दूर-दूर बसे ग्रामीणों को चिकित्सा सहायता पहुँचाने में मिलेगा । आर्यभट्ट ई० सी० जी० संकेतों को श्री हरिकोटा ने बंगलौर तत्काल भेजने का प्रयोग ९ और १० सितम्बर को सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ, लगभग १०० संकेत भेजे गए थे । सूचना में यह भी बताया गया है कि ईंधन की खपत को देखते हुए यह विश्वास है कि. “आर्यभट्ट” एक दो वर्ष तक कार्य करता रहेगा ।
          भारत के लिये शिक्षात्मक कार्यक्रम प्रसारित करने के उद्देश्य से ३० मई, १९७४ को कैप केनेवरल से २०.५ करोड़ डालर का एक अमरीकी उपग्रह छोड़ा गया था जो अब तक का सबसे बड़ा तथा शक्तिशाली उपग्रह है। भारत एक वर्ष तक टेलीविजन पर शिक्षा कार्यक्रमों के लिये इसका उपयोग करेगा। इसके द्वारा मौसम तथा मानसून के पूर्वानुमान भी लगाए जायेंगे । इस उपग्रह को “उपग्रह शिक्षात्मक टेलीविजन प्रयोग” कहा गया है। इसमें आकाशवाणी भारतीय अंतरिक्ष संगठन, संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम, यूनेस्को तथा अन्तर्राष्ट्रीय दूर संचार संघ सहयोग कर रहे हैं। भारत पहला एशियाई राष्ट्र है । १९७५ के अन्त तक भारत के गाँवों में २४०० टेलीविजन सैटों की व्यवस्था की जा रही है जो सीधे उपग्रह से कार्यक्रम ग्रहण करेंगे। ये कार्यक्रम अहमदाबाद स्थित भू-स्टेशन से उपग्रह भेजे जायेंगे ।
          १७ अगस्त, ७५ में पत्रकारों का एक दल उपग्रहीय दूरदर्शन की वास्तविक जानकारी प्राप्त करने राजस्थान के जयपुर जिले में गया था। पत्रकारों का मत है कि जयपुर जिले के गाँवों में उपग्रहीय दूरदर्शन ने वास्तव में एक सच्चे शिक्षक का काम किया है। जयपुर से २० किलोमीटर दूर श्योपुर गाँव के प्राथमिक स्कूल में दूरदर्शन सैट के साथ गोल एन्टीना लगा था। पत्रकार ने गाँव वाले से पूछा कि इसे क्या बोलते हो ? उसने कहा—छाता और टेलीविजन को रेडियो मशीन। उपग्रह से सीधे संकेत छाते पर आकर टेलीविजन पर पहुँचते हैं, इसीलिये बहुत साफ आते हैं। ग्रामीणों के स्वास्थ्य, बीमारी से बचाव, कृषि कार्यक्रम तथा परिवार नियोजन के शिक्षात्मक कार्यक्रमों में उपग्रहीय दूरदर्शन लाभकारी सिद्ध हो रहे हैं।
          भारत के भाल को ऊँचा उठाने में अहर्निश संलग्न भारत माता के लाल ये भारतीय वैज्ञानिक निश्चित ही एक दिन देश की दीन-हीन, निर्धन जनता को सुख-शान्ति, स्वास्थ्य और समृद्धि के मंगलमय द्वार के दर्शन करा सकेंगे, ऐसा कुछ विश्वास जमता जा रहा है। एक ओर परमाणु अनुसन्धान चल रहा है तो दूसरी ओर अन्तरिक्ष अनुसन्धान । देश इन सभी अनुसन्धानों का उपयोग शान्तिपूर्ण कार्यों के लिये ही करने को संकल्पबद्ध है। प्रसिद्ध ज्योतिषी तथा गणितज्ञ आर्यभट्ट प्रथम की १५०० वीं जयन्ती पर २ नवम्बर, १९७२ को भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान एकेडेमी, नई दिल्ली में उद्घाटन भाषण करते हुए भारत की तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने भारतीय वैज्ञानिकों को यही परामर्श दिया। उन्होंने कहा – “भारतीय वैज्ञानिकों को आर्यभट्ट से प्रेरणा लेनी चाहिये जिससे ये बड़ी बातें सोच सकें और विज्ञान की सेवा के लिये काम कर सकें।” श्रीमती गाँधी ने कहा – “हमें ऐसे नये वैज्ञानिकों व दार्शनिकों की जरूरत है, जो नैतिकता के विकास में मानव की मदद कर सकें, जिससे मानव की विस्मयकारी शक्तियों का प्रयोग उन चीजों के नाश में न हो, जिसके निर्माण में हजारों साल लग गए हैं। “
          सरकार अन्तरिक्ष अनुसन्धान क्षेत्र में प्रगति और प्रौढ़ता लाने के लिये सतत् प्रयत्नशील है। ७८ में रूस के सहयोग से भारत ने एक उपग्रह आकाश में छोड़ा है जो निरन्तर आकाश में भ्रमण करते हुए वहाँ की जानकारी दे रहा है। भारत की भूमि से छोड़ा गया रोहिणी उपग्रह १९८० की भारत की अन्तरिक्ष विज्ञान में महान् उपलब्धि है। आशा है सन् ८२ तक भारत को अन्तरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में और भी अधिक आशातीत सफलता प्राप्त हो सकेगी।
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