“आन्तरिक अनुसंधान में एक नये युग का प्रारम्भ ” १९९२ “इन्सेट २- ए”

“आन्तरिक अनुसंधान में एक नये युग का प्रारम्भ ” १९९२ “इन्सेट २- ए”

          अपने पैरों पर खड़ा होना, परमुखापेक्षी न होना क्या बुरी बात है। यदि भारत शान्तिपूर्ण कार्यों के लिये अपनी प्राकृतिक, बौद्धिक एवं वैज्ञानिक ऊर्जा का प्रयोग कर रहा है तो किसी देश को क्या आपत्ति ? यह नई उपलब्धि, तीन दशकों में स्वावलम्बी एवं आत्मनिर्भर बनने का प्रथम अवसर, हर्ष का विषय है भारतवासियों के लिये और विश्ववासियों के लिये । पर नहीं, ईर्ष्यालु देश अपने स्वभाव से विवश हैं। इसी सन्दर्भ में इन्दिरा जी ने एक बार बड़े-बड़े देशों को २५ मई, १९७४ को निर्भीकता से फटकार बताते हुए कहा था – “शान्तिपूर्ण उद्देश्यों के लिये भारत के अणु परीक्षण पर नाक-भौं सिकोड़ने वाले क्या यह मानते हैं कि बड़े देशों को विध्वंस के लिये अणु-बम बनाने का अधिकार है और भारत जैसे विकासोन्मुख देश अपनी जनता की गरीबी तथा दूसरी मुश्किलों को हल करने के लिये भी अणु-शक्ति का विकास नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि यह बात समझ में नहीं आती कि जिस चीज के लिये हम पिछले २५ साल से प्रयास कर रहे थे उस पर अब इतना शोर क्यों किया जा रहा है। हमने चोरी-छिपे कुछ नहीं किया है, जो कुछ किया है उसकी घोषणा बहुत पहिले कर दी थी। हम अब भी अपनी पुरानी बात पर अटल हैं कि अणु शक्ति का प्रयोग, कृषि विकास, बिजली उत्पादन तथा चिकित्सा के क्षेत्र में ही किया जायेगा, विध्वंश के लिये नहीं।”
          अन्तरिक्ष में अनुसंधान कार्य प्रारम्भ करने का श्रेय भारत के प्रधानमन्त्री पं० जवाहर लाल नेहरू जी को है। उन्होंने कहा था कि- “प्राचीन भारतीय ज्ञान को आधुनिक विज्ञान और तकनीकी के साथ समावेशित किया जाना चाहिये । सन् १९६२ में पं० नेहरू ने “आन्तरिक अनुसंधान परिषद्” की स्थापना की परन्तु भारत पर चीन का आक्रमण हो जाने से इस परिषद् की गतिविधियाँ अवरुद्ध हो गईं। सन् १९६७ में परमाणु ऊर्जा विभाग के अन्तर्गत अन्तरिक्ष अनुसंधान परिषद् का पुनर्गठन किया गया । सन् १९७२ में अन्तरिक्ष आयोग और अन्तरिक्ष विभाग अलग-अलग स्थापित किये गये और श्री हरिकोटा द्वीप में एक राकेट प्रक्षेपण स्थापित किया गया। वर्तमान में अन्तरिक्ष अमुसंधान कार्यक्रम के अन्तर्गत निम्न संस्थान कार्यरत हैं –
          १. विक्रम सारा भाई केन्द्र (बी० एस० एस० सी०, थुम्बा केरल)
          २. इण्डियन साइन्टीफिक सेटेलाइट प्री जेक्स (आई० एस० एस० पी०’ पी० प० बंगलौर)
          ३. इण्डियन एप्लीकेशन सेन्टर (अहमदाबाद, गुजसत)
          ४. एक्सपेरीमेन्ट कम्यूनिकेशन अर्थ स्टेशन (आर्वी तथा देहरादून)
          ५. फिजीकल रिसर्च लेबोरेटरी (अहमदाबाद, गुजरात)
          भारतीय अन्तरिक्ष विज्ञान तथा अन्तरिक्ष आयोग का मुख्यालय बंगलौर में स्थित है। भारत का अन्तरिक्ष अभियान सन् १९६३ में श्री विक्रम सारा भाई के नेतृत्व में प्रारम्भ हुआ। भारतीय वैज्ञानिकों और इन्जीनियरों के अथक परिश्रम और विलक्षण कार्यकुशलता के कारण भारत अन्तरिक्ष क्षेत्र में निरन्तर महत्वपूर्ण एवं अद्वितीय उपलब्धियाँ प्राप्त करता रहा है। भारत में अब तक आर्यभट्ट १८ अप्रैल, १९७५, भास्कर प्रथम (७ जून, १९७९), रोहिणी आर० एस० – ११ (१९ जुलाई, १९८०), एम्पल (जून १९८१), भास्कर द्वितीय (२० नवम्बर, १९८१), इन्सेट प्रथम-ए (१० अप्रैल, १९८२), इन्सेट प्रथम-बी (३० अगस्त, १९८३), भारत- सोवियत संयुक्त अन्तरिक्ष उड़ान (३ अप्रैल, १९८४), रोहिणी डी-२ (१७ अप्रैल, १९८३) नामक उपग्रह अन्तरिक्ष में भेजकर अन्तर्राष्ट्रीय सम्मान और उच्चकोटी का गौरव प्राप्त किया है। वास्तव में यदि निष्पक्ष आलोचक की दृष्टि से विवेचना की जाये तो प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी का युग गगनचुम्बी कीर्तिमानों का युग था। भारतीय वैज्ञानिकों ने श्रीमती गाँधी की सत्प्रेरणाओं, प्रशंसा और पुरस्कारों से अनेकानेक महत्त्वपूर्ण कीर्तिमान स्थापित किये चाहे वे विज्ञान के क्षेत्र में हों या युद्ध के क्षेत्र में, या साम्प्रदायिक एकता के क्षेत्र में या विश्व कूट-नीति के क्षेत्र में ।
          अन्तरिक्ष अनुसन्धान की इन्हीं सफलताओं की शृंखलाओं में १० जौलाई, १९९२ को भारतीय वैज्ञानिकों ने एक और महत्त्वपूर्ण कड़ी जोड़ दी जबकि भारत में निर्मित पहिले बहुउद्देशीय उपग्रह एन्सेट- २ ए को भारतीय समय के अनुसार प्रातः चार बजकर दस मिनट पर यूरोप के सबसे शक्तिशाली राकेट एरियन-४ के द्वारा गयाना अन्तरिक्ष केन्द्र से सफलतापूर्वक अन्तरिक्ष में छोड़ा गया । कर्नाटक में बेंगलूर और हसन स्थित अन्तरिक्ष केन्द्रों को उसी दिन उपग्रह के संकेत मिलने लगे। भारतीय अन्तरिक्ष आयोग के अध्यक्ष यू० आर० राव का कहना था कि उपग्रह बड़ी अच्छी त” तरह से काम कर रहा है ।
          उन्होंने प्रक्षेपण के लिये एरियन स्पेस कम्पनी के योगदान की सराहना की और प्रक्षेपण को बेहद सफल बताया। मिशन नियन्त्रण कक्ष में उपस्थित व्यक्तियों ने हर्ष ध्वनि के साथ प्रो० राव की घोषणा का स्वागत किया। एरियन स्पेस के अध्यक्ष चार्ल्स बिगोट से अभियान पूरा होने की सूचना के बाद प्रो. राव ने बताया कि भारत में निर्मित यह पहला उपग्रह है और इसका सफल प्रक्षेपण निश्चित रूप से एक महान् उपलब्धि है। उन्होंने बताया कि उपग्रह को भू-स्थिर कक्ष में स्थापित करने और उसे चालू हालत में लाने का महत्वपूर्ण काम शुरू हो चुका है जो अगले १५ दिन में पूरा हो जायेगा ।
          १९०६ किलोग्राम वजन का उपग्रह ‘इन्सेट-दो ए’ भारतीय अनुसन्धान केन्द्र (इसरो) द्वारा अब तक बनाये गये १४ उपग्रहों में सबसे अधिक वजनी है। उपग्रह को जिस दीर्घ वृत्ताकार कक्ष में स्थापित किया गया है उसकी पृथ्वी से न्यूनतम दूरी १९८ किलोमीटर और अधिकतम दूरी ३५८१२ किलोमीटर होगी। यह प्रक्षेपण ‘इसरो’ के तीन दशक के अन्तरिक्ष कार्यक्रम में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर सिद्ध होगा क्योंकि उपग्रह के सफल प्रक्षेपण के साथ ही आयातित उपग्रहों पर भारत की निर्भरता समाप्त हो गई और स्वदेशी संचार उपग्रहों के निर्माण के एक नये युग का सूत्रपात हुआ है ।
          ‘इन्सेट एक श्रृंखला के सभी चार उपग्रह अमेरिका से खरीदे गये थे। इस अभियान की तैयारी में एक महीने का समय लगा और अभियान पूरा होने में २६ मिनट लगे। राकेट की तेज गड़गड़ाहट से गूंजते कमरों में कुछ ही देर बाद शैम्पेन की बोतलें खुलने और एक-दूसरे को बधाइयाँ देने का सिलसिला शुरू हो गया ।
          एरियन स्पेस का अभियान पूरा होते ही ‘इसरो’ का काम शुरू हो गया। ‘इसरो’ इन्सेट दो-ए को भू-स्थिर कक्ष में संचालित करने और ७४ डिग्री (पूर्व) देशान्तर में स्थापित करने का कार्य करेगा। उपग्रह को कक्ष में भेजने का काम जिस खूबी से पूरा हुआ है उससे यह आशा बलवती हो गई है कि ‘इसरो’ बिना अधिक परेशानी के अपने काम पूरे कर लेगा ।
          राकेट से अलग होने के बाद सबसे पहले सी० एस० जी० रेडारों ने उपग्रह के संकेत ग्रहण किये उसके बाद वह कर्नाटक में हासन स्थित ‘इसरो’ के मुख्य नियन्त्रण केन्द्र की रेडियो परिधि में आया। हासन केन्द्र ने प्रक्षेपण के २८ मिनट ४५ सैकिण्ड बाद संकेत ग्रहण किये जबकि बैंगलूर केन्द्र को इसके एक मिनट बाद संकेत मिले ।
          प्रो० राव ने बताया कि उपग्रह पर चार करोड़ डालर की लागत आई जो विश्व बाजार में इसी तरह के उपग्रहों की कीमत का लगभग एक तिहाई है। इन्सेट-दो ए नौ वर्ष तक काम कर सकेगा। इस दौरान यह पहले से कक्ष में स्थापित इन्सेट एक-डी और अगले वर्ष छोड़े जाने वाले इन्सेट दो-बी के साथ मिलकर काम करेगा ।
          प्रक्षेपण के कुछ घण्टे पहिले तूफान आने की आशंका थी लेकिन प्रक्षेपण के समय हवा शान्त और आसमान साफ था। राकेट हजारों जेट इंजनों की गड़गड़ाहट के साथ शानदार ढंग से रवाना हुआ और देखते ही देखते आकाश में गुम हो गया । ४८० टन के विशाल राकेट को चार द्रव ब्यूस्टरों ने सुचारू ढंग से रवाना किया। उड़ान के साढ़े चार सैकिण्ड बाद अभियान के निदेशक पवेश गुएरिन ने सफल प्रक्षेपण का ऐलान किया तो नियन्त्रण कक्ष में मौजूद लोगों और पत्रकारों में खुशी की लहर दौड़ गई ।
          ५८ मीटर ऊँचा चाँदी-सा चमकता एरियन राकेट दूर से नीले अटलांटिक से निकलती एक विशाल पेंखिक-सा दिखाई देता था। ध्वनि और प्रकाश को चौंधिया देने वाला नजारा पेश करते हुए राकेट पीली और नारंगी रंग की लपेटों के रूप में हजारों सूर्यों के बराबर उजाला छोड़ते हुए आकाश की ओर रवाना हो गया ।
          इन्सेट-२ ए के सफल प्रक्षेपण पर १० जौलाई, ९२ ( उसी दिन) लोक सभा में वैज्ञानिकों तथा इस कार्यक्रम से सम्बद्ध अन्य लोगों को बधाई दी गई । अध्यक्ष शिवराज पाटिल ने सदन को सूचित किया कि उपग्रह इन्सेट-२ ए का आज कोडरो (फ्रांस) से सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया गया। लोक सभा सदस्यों ने इस घोषण का मेजें थपथपाकर स्वागत किया।
          भारत के प्रधानमन्त्री श्री पी० वी० नरसिंहाराव ने इन्सेट-दो ए और सम्बन्धित उपग्रह प्रक्षेपण यान ए० एस० एल० वी० के सफल प्रक्षेपण को भारत के शान्तिपूर्ण अन्तरिक्ष कार्यक्रम के इतिहास में मील का पत्थर बताया । प्रधानमंत्री ने अपने सन्देश में भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन “एवं अन्तरिक्ष विभाग के सभी वैज्ञानिकों और इन्जीनियरों को इस सफलता पर हार्दिक बधाई दी।
          १२ अगस्त, १९९२ को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मन्त्री श्री पी० आर० कुमार मंगलम ने संसद में बताया कि पूरी तरह देश में निर्मित इन्सेट-दो ए उपग्रह की सभी प्रणालियों ने दोष रहित ढंग से कार्य करना शुरू कर दिया है। उन्होंने बताया कि इसके प्रसारण चैनलों को चालू करने का काम ६ अगस्त, ९२ को शुरू किया गया था और धीरे-धीरे ५ दिनों में इसके सभी सेवाओं को भी इसे स्थानान्तरित कर दिया गया है। लोक सभा सदस्यों ने मेजें थपथपाकर भारतीय वैज्ञानिकों की इस सफलता का स्वागत किया।
          हमें आशा करनी चाहिए कि भविष्य में भारत के वैज्ञानिक अन्तरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्रों में इस उपलब्धि से भी अधिक महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ प्राप्त कर देश को गौरव के शिखर पर आसीन करने में कोई कोर-कसर उठाकर नहीं रखेंगे जिससे भारत की जनता का कल्याण होगा, विकास होगा।
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