आनुवंशिकता एवं जैव विकास
आनुवंशिकता एवं जैव विकास
Science ( विज्ञान ) लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. समजात अंग को परिभाषित कीजिए।
उत्तर⇒ जीव-जंतुओं के वे अंग, जिनकी उत्पत्ति और मूल संरचना में समानता होती है पर समय, परिस्थिति और कार्य के कारण उनकी बाहरी रचना में अंतर आ जाता है, उन्हें समजात अंग कहते हैं।
उदाहरण- पक्षी के पंख, मेढ़क की टाँगें, सील के फ्लीपर, चमगादड़ के पंख, घोड़े की अगली टाँगें और मनुष्य की बाजू की उत्पत्ति और संरचना समान है पर इनके कार्यों में अंतर है। ये इस बात को प्रमाणित करते हैं कि कभी सभी के पूर्वज , एक जैसे ही थे। परिस्थितियों और समय ने उनमें परिवर्तन किए हैं।
चित्र : समजात अंग
प्रश्न 2. हम यह कैसे जान पाते हैं कि जीवाश्म कितने पुराने हैं?
उत्तर⇒ जीवाश्म की प्राचीनता ज्ञात करने के दो सामान्य तरीके हैं। अगर हम जीवाश्म प्राप्त करने हेतु पृथ्वी की चटानों की खुदाई करे तो जो जीवाश्म हमें सतह से कम गहराई पर स्थित मिलेंगे, वे निश्चित तौर पर अधिक गहराई प्राप्त जीवाश्म से नूतन होंगे। एक जीवाश्म की आयु ज्ञात करने का वैज्ञानिक तरीका रेडियो कार्बन काल-निर्धारण है। समस्थानिक अनुपात के अध्ययन द्वारा भी जीवाश्म की आयु की गणना की जा सकती है।
प्रश्न 3. मनुष्य/मानव में लिंग-निर्धारण कैसे होता है ?
उत्तर⇒ मनुष्य में लिंग-निर्धारण गुणसूत्रों द्वारा होता है। मानव में कोशिकाओं के केन्द्रक में 46 गुणसूत्र होते हैं जिनमें 44 ओटोसोम्स तथा दो लिंग गुणसूत्र होते हैं। पुरुष विषमयुग्मजी होता है तथा मादा समयुग्मजी होती है। गुणसूत्र दो प्रकार. के होते हैं—दैहिक गुणसूत्र तथा लैंगिक गुणसूत्र । मनुष्य में X तथा Y लिंग गुणसूत्र होते हैं जबकि स्त्री में दो X लिंग गुणसूत्र होते हैं। शेष सभी गुणसूत्र दैहिक गुणसूत्र होते हैं। ड्रोसोफिला तथा मनुष्य में लिंग निर्धारण गुणसूत्र के आधार पर होता है। मनुष्य में Y गुणसूत्र का होना नर की उत्पत्ति के लिए आवश्यक है, चाहे X गुणसूत्रों की संख्या कितनी भी हो ।
प्रश्न 4. विभिन्नताओं के उत्पन्न होने से किसी स्पीशीज का अस्तित्व किस प्रकार बढ़ जाता है?
उत्तर⇒ विभिन्नताओं के उत्पन्न होने से किसी स्पीशीज की उत्तरजीविता की संभावना बढ़ जाती है। प्राकृतिक चयन ही किसी स्पीशीज की उत्तरजीविता का आधार बनता है जो वातावरण में घटित होता है। समय के साथ उनमें जो प्रगति की प्रवृत्ति दिखाई देती है उसके साथ ही साथ उनके शारीरिक अधिकल्प में जटिलता की वृद्धि हो जाती है। ऊष्णता को सहन करने की क्षमता वाले जीवाणुओं में अधिक गर्मी से बचने की संभावना अधिक होती है। पर्यावरण द्वारा उत्तम परिवर्तन का चयन जैव विकास प्रक्रम का आधार बनता है।।
प्रश्न 5. जीवाश्म क्या हैं ? यह जैव विकास प्रक्रम के विषय में क्या दर्शाते हैं ?
उत्तर⇒ जीवाश्म प्राचीन समय में मृत जीवों के सम्पूर्ण, अपूर्ण, अंग आदि के अवशेष तथा उन अंगों के ठोस मिट्टी, शैल तथा चट्टानों पर बने चिह्न होते हैं जिन्हें पृथ्वी को खोदने से प्राप्त किया गया है। ये चिह्न इस बात का प्रतीक हैं कि ये जीव करोड़ों वर्ष पूर्व जीवित थे लेकिन वर्तमान काल में लुप्त हो चुके हैं।
(i) जीवाश्म उन जीवों के पृथ्वी पर अस्तित्व की पुष्टि करते हैं।
(ii) इन जीवाश्मों की तुलना वर्तमान काल में उपस्थित समतुल्य जीवों से कर सकते हैं। इनकी तुलना से अनुमान लगाया जा सकता है कि वर्तमान में उन जीवाश्मों के जीवित स्थिति के काल के सम्बन्ध में क्या विशेष परिवर्तन हुए हैं जो जीवधारियों को जीवित रहने के प्रतिकूल हो गए हैं।
प्रश्न 6. जीवाश्म क्या हैं ? उदाहरण दें।
उत्तर⇒ लाखों वर्ष पूर्व जीवित जीवों के अवशेष चिह्नों के रूप में मिलते हैं, जिन्हें जीवाश्म कहते हैं। ये जीवाश्म स्तरीकृत चट्टानों में पाए जाते हैं।
उदाहरण – आर्किओप्टेरिक्स- यह विलुप्त जीव सरीसृपों व पक्षियों के बीच की कड़ी है। इसके लक्षण पक्षियों तथा सरीसृपों से मिलते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि पक्षियों का विकास सरीसृपों से हुआ है । आर्किओप्टेरिक्स एक संयोजक कड़ी है।
प्रश्न 7. यदि एक लक्षण (trait) A अलैंगिक प्रजनन वाली समष्टि के 10% सदस्यों में पाया जाता है तथा B उसी समष्टि में 90% जीवों में पाया जाता है, तो कौन-सा लक्षण पहले उत्पन्न और क्यों?
उत्तर⇒ लक्षण (B) पहले उत्पन्न होगा क्योंकि यह समष्टि 90% के जीवों में पाया जाता है।
चूँकि जीव अलैंगिक प्रजनन करते हैं तो वह लक्षण जो 90% समष्टि में है वह पहले प्रकट होगा।
प्रश्न 8. मेंडल के प्रयोगों से कैसे पता चला कि विभिन्न लक्षण स्वतंत्र रूप से वंशानगत होते हैं?
उत्तर⇒ मेंडल ने दो विभिन्न विकल्पों, लक्षणों वाले मटर के पौधों का चयन कर उनसे पौधे उगाए गए थे । लंबे पौधे तथा बौने पौधे का संकरण कराकर प्राप्त संतति में लंबे एवं बौने पौधों की गणना की । प्रथम संतति पीढ़ी (F1) में कोई पौधा बीच की ऊँचाई का नहीं था। सभी पौधे लंबे थे। दो लक्षणों में से केवल एक पैतृक लक्षण ही दिखाई दिया था लेकिन दूसरी पीढ़ी (F2) में सभी पौधे लंबे नहीं थे बल्कि उनमें से एक चौथाई बौने पौधे थे। इससे स्पष्ट हुआ कि किसी भी लक्षण के दो विकल्प लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न होने वाले जीवों में किसी भी लक्षण के दो विकल्प की स्वतंत्र रूप से वंशानुगति होती है।
प्रश्न 9. क्या एक तितली तथा एक चमगादड़ के पंखों को समजात अंग कहा जा सकता है? क्यों अथवा क्यों नहीं?
उत्तर⇒ तितली के पंख तथा चमगादड़ के पंख कार्य में तो समान हैं परंतु उत्पत्ति में दोनों असमान हैं। अतः, ये समजात अंग नहीं हैं।
प्रश्न 10. क्या भौगोलिक पृथक्करण स्वपरागित स्पीशीज के पौधों के जोति उद्भव का प्रमुख कारण हो सकता है ? क्यों या क्यों नहीं?
उत्तर⇒ हाँ, स्वयं परागित होने वाले पौधों में जाति उद्भव के लिए भौगोलिक पृथक्करण एक प्रमुख कारण है।
प्रश्न 11. बाघों की संख्या में कमी आनुवंशिकता के दृष्टिकोण से चिन्ता का विषय क्यों है?
उत्तर⇒ पर्यावरण में परिवर्तन बाघों की संख्या में ह्रास का मुख्य कारण है। पर्यावरण में परिवर्तन से जीव के बाह्य लक्षणों में परिवर्तन होते हैं । जननकीय लक्षण प्रतिकूल पर्यावरण में भी यथावत् रहते हैं । अतः, पर्यावरण की प्रतिकूलता बाघों की मृत्यु का कारण बनती है। इसी कारण से बाघों की संख्या में कमी चिन्ता का विषय बनी हुई है।
प्रश्न 12. संतति में नर तथा मादा जनकों द्वारा आनुवंशिक योगदान में बराबर की भागीदारी किस प्रकार सुनिश्चित की जाती है ?
उत्तर⇒ एक स्पीशीज के प्रत्येक सदस्य की कोशिका में गुण सूत्रों की संख्या समान होती है। लैंगिक प्रजनन में प्रत्येक गुणसूत्र दो समान लम्बाई वाले भागों में बँट जाता है। प्रत्येक भाग को क्रोमेटिड कहते हैं। प्रत्येक क्रोमेटिड लैंगिक प्रजनन में सक्रिय भाग लेता है जिन्हें नर तथा मादा युग्मक कहते हैं। केवल एक युग्मक ही लैंगिक जनन में भाग नहीं ले सकता । अतः, नर तथा मादा पित्रों के युग्मक लैंगिक जनन में सक्रिय भाग लेते हैं तथा आनुवंशिकता को सुनिश्चित करते हैं।
प्रश्न 13. जैव विकास तथा वर्गीकरण का अध्ययन क्षेत्र किस प्रकार परस्पर संबंधित है?
उत्तर⇒ जीवों में वर्गीकरण का अध्ययन उनमें विद्यमान समानताओं और भेदों के आधार पर किया जाता है। उनमें समानता इसलिए प्रकट होती है कि वे किसी समान पूर्वज से उत्पन्न हुए हैं और उनमें भिन्नता विभिन्न प्रकार के पर्यावरणों में की जाने वाली अनुकूलता के कारण से है। उनमें बढ़ती जटिलता को जैव विकास के उत्तरोत्तर क्रमिक आधार पर स्थापित कर अंतर्संबंधों का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।
प्रश्न 14. क्या कारण है कि आकृति, आकार, रंग-रूप इतने भिन्न दिखायी पड़ने वाले मानव एक ही स्पीशीज के सदस्य हैं ?
उत्तर⇒ मानव परस्पर बहुत भिन्न दिखायी पड़ते हैं जिनकी भिन्नता का कारण भौतिक पर्यावरण के कारकों से भौतिक लक्षणों में होने वाले परिवर्तन हैं। उनके जननकीय लक्षणों में कोई परिवर्तन नहीं होता। इसी कारण उनके अंगों में कोई परिवर्तन नहीं आता, परंतु भौगोलिक परिस्थितियों में परिवर्तनों के कारण उनके आकार, रंग तथा दिखायी देने वाली आकृति में परिवर्तन दिखायी पड़ते हैं जबकि वे एक ही स्पीशीज के सदस्य हैं।
प्रश्न 15. समजात तथा समरूप अंगों को उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर⇒ समजात अंग —विभिन्न जीवों में वे अंग जो आकृति तथा उत्पत्ति में समानता रखते हैं समजात अंग कहलाते हैं।
उदाहरण—मेढ़क के अग्रपाद, पक्षी के पंख, चमगादड के पंख, ह्वेल के फ्लेपसे, घोड़े के अग्रवाद तथा मानव के अग्रपाद आदि उत्पत्ति में समान होते हैं, परंतु व कार्य में परस्पर भिन्नता रखते हैं।
समरूप अंग—विभिन्न जीवों के वे अंग जो कार्य में समान होते हैं, परंतु उत्पत्ति में भिन्न होते हैं। ऐसे अंगों को समरूप अंग कहते हैं।
उदाहरण—तितली के पंख, पक्षी के पंख आदि कार्य में समान हैं, परंतु उत्पत्ति में वे भिन्न हैं।
प्रश्न 16. वे कौन-से विभिन्न तरीके हैं जिनके द्वारा एक विशेष लक्षण वाले व्यष्टि जीवों की संख्या समष्टि में बढ़ सकती है?
उत्तर⇒ निम्नलिखित विधियों से जीव जिसमें विशेष लक्षण होते हैं जनसंख्या में वृद्धि करता है—
(i) प्रजनन में रंग विभेद संभव है जिससे जनसंख्या में विशेष लक्षणों वाले व्यष्टि जीवों में वृद्धि हो जाएगी।
(ii) रंग विभेद प्रथम, द्वितीय पीढ़ियों में पुनः विभेद संभव है जो जनसंख्या पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। इन दोनों परिस्थितियों में जनसंख्या में बहुत कम रंग-विभेद उभयनिष्ठ होता है ।
प्रश्न 17. क्या भौगोलिक पृथक्करण अलैंगिक जनन वाले जीवों के जाति-उद्भव का प्रमुख कारक हो सकता है ? क्यों अथवा क्यों नहीं?
उत्तर⇒ जाति उद्भव में भौगोलिक पृथक्करण ही प्रमुख कारण है विशेष रूप से अलैंगिक जनन करने वाले पादपों में। एक जीवधारी भौतिक परिस्थितियों में जीवित रहता है, परंतु कुछ जीवधारी यदि निकटवर्ती भौगोलिक पर्यावरण में विस्थापित हो जाते हैं जिनमें विभिन्न भौतिक परिवर्तनीय लक्षण हों तो वे जीवित नहीं रहेंगे। यदि जीवित रह रहे जीवधारियों में अलैंगिक जनन होता है तत्पश्चात् वे अन्य पर्यावरण में विस्थापित होते हैं तो वे भी भिन्न पर्यावरणीय परिस्थितियों में जीवित नहीं रह पाएँगे।
प्रश्न 18. वे कौन-से कारक हैं जो नयी स्पीशीज के उद्भव में सहायक है?
उत्तर⇒ नई स्पीशीज के उद्भव में वर्तमान स्पीशीज के सदस्यों का परिवर्तनशील पर्यावरण में जीवित बने रहना है। इन सदस्यों को नये पर्यावरण में जीवित रहने के लिए कुछ बाह्य लक्षणों में परिवर्तन करना पड़ता है। अतः भावी पीढ़ी के सदस्यों में शारीरिक लक्षणों में परिवर्तन दिखाई देने लगते हैं जो संभोग क्रिया के द्वारा अगली पीढ़ी में हस्तांतरित हो जाते हैं परंतु यदि दूसरी कॉलोनी के नर एवं मादा जीव वर्तमान पर्यावरण में संभोग करेंगे तब उत्पन्न होने वाली पीढ़ी के सदस्य जीवित नहीं रह सकेंगे।
प्रश्न 19. उन अभिलक्षणों का एक उदाहरण दीजिए जिनका उपयोग हम दो स्पीशीज के विकासीय सम्बन्ध निर्धारण के लिए करते हैं ?
उत्तर⇒ लगभग दो हजार, वर्ष पूर्व जंगली बन्दगोभी को खाद्य पौधे के रूप में उगाया गया था। यह एक बनावटी चयन था न कि प्राकृतिक चयन । अतः, कुछ कृषकों ने इच्छा व्यक्त की कि इस गोभी में पत्तियाँ निकट होनी चाहिए। अतः उन्होंने परस्पर क्रियाविधि द्वारा उस बन्दगोभी को प्राप्त किया जिसका हम आजकल प्रयोग करते हैं। कुछ किसानों ने पत्तियों को पुष्पों के निकट प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त की। अतः उन्होंने प्रयास करके इस प्रकार का पौधा प्राप्त किया। इसे फूलगोभी का नाम दिया गया जिसे हम आज भी प्राप्त करते हैं तथा सब्जी के रूप में प्रयोग करते हैं। इस प्रकार से बन्दगोभी तथा फूलगोभी दोनों निकट स्पीशीज हैं जो उद्विकसित स्पीशीज है।
प्रश्न 20. किन प्रमाणों के आधार पर हम कह सकते हैं कि जीवन की उत्पत्ति अजैविक पदार्थों से हुई है ?
उत्तर⇒ एक ब्रिटिश वैज्ञानिक जे. बी. एस. हाल्डेन ने सबसे पहली बार सुझाव दिया था कि जीवों की उत्पत्ति उन अजैविक पदार्थों से हुई होगी जो पृथ्वी की उत्पत्ति के समय बने थे। 1953 में स्टेनल एल. मिलर और हेराल्ड सी. डरे ने ऐसे कृत्रिम वातावरण का निर्माण किया था जो प्राचीन वातावरण के समान था । इस वातावरण में ऑक्सीजन नहीं थी। इसमें अमोनिया, मीथेन और हाइड्रोजन सल्फाइड थे। उसमें एक पात्र में जल भी था जिसका तापमान 100°C से कम रखा गया था। जब गैसों के मिश्रण से चिंगारियाँ उत्पन्न की गईं जो आकाशीय बिजलियों के समान थीं। मीथेन से 15% कार्बन सरल कार्बनिक यौगिकों में बदल गए। इनमें एमीनो अम्ल भी संश्लेषित हुए जो प्रोटीन के अणुओं का निर्माण करते हैं। इसी आधार पर हम कह सकते हैं कि जीवन की उत्पत्ति अजैविक पदार्थों से हुई है। .
प्रश्न 21. विकासीय सम्बन्ध स्थापित करने में जीवाश्म का क्या महत्त्व
उत्तर⇒ कालान्तर के जंतुओं एवं पादपों के मृत शरीर के अवशेष जीवाश्म कहलाते हैं। ऐसा माना जाता है कि अवशेषों वाले जंतु लाखों वर्ष पूर्व जीवित थे। ये जीवाश्म उद्विकास के लिए प्रमाण प्रस्तुत करते हैं।
उदाहरण-आर्कियोप्टेरिक्स एक जीवाश्म पक्षी है जो बाहर से देखने पर पक्षी के समकक्षी है, पर उसके अन्य लक्षण सरीसृप श्रेणी के सदस्यों से मिलते-जुलते हैं।
आर्कियोप्टेरिक्स में अग्र पाद पंखों के रूप में परिवर्तित हैं जिन पद ‘पर’ भी उपस्थित हैं जो पक्षियों के समान हैं। इसके मुख में दाँत हैं तथा पूँछ भी उपस्थित है जो सरीसृपों के लक्षणों के समान है। ।
अतः आर्कियोप्टेरिक्स सरीसृप तथा पक्षी वर्ग के मध्य की एक कड़ी (शृंखला) है। इसी कारण से इस बात की पुष्टि होती है कि पक्षी वर्ग सरीसृप वर्ग से उद्विकसित हुआ है।
अतः, जीवाश्म से इस बात की पुष्टि होती है कि वर्तमान जंतु एवं पादप उन वस्तुओं तथा पादपों से उद्विकसित हुए हैं जो प्राचीन काल में सक्रिय एवं जीवित थे ।
प्रश्न 22. मेंडल के प्रयोगों द्वारा कैसे पता चला कि लक्षण प्रभावी अथवा अप्रभावी होते हैं?
उत्तर⇒ जब मेंडल ने मटर के लंबे पौधे और बौने पौधे का संकरण कराया तो उसे प्रथम संतति पीढ़ी F1 में सभी पौधे लंबे प्राप्त हुए थे। इसका अर्थ था कि दो लक्षणों में से केवल एक पैतृक लक्षण ही दिखाई दिया। उन दोनों का मिश्रित प्रमाण दिखाई नहीं दिया । उसने पैतृक पौधों और F1 पीढ़ी के पौधों को स्वपरागण से उगाया । इस दूसरी पीढ़ी F2 में सभी पौधे लंबे नहीं थे। इसमें एक-चौथाई पौधे बौने थे। मेंडल ने लंबे पौधों के लक्षण को प्रभावी और बौने पौधों के लक्षण को अप्रभावी कहा।
पौधों में दो प्रकार के लक्षण पाये जाते हैं-जननकीय लक्षण तथा भौतिक लक्षण । जननकीय लक्षण गुणसूत्रों पर उपस्थित DNA के द्वारा हस्तान्तरित होते हैं। गुणसूत्रों की संख्या एवं आकृति ज्यों की त्यों बनी रहती है, परंतु भौतिक लक्षण भौगोलिक परिस्थितियों से प्रभावित होते हैं । जननकीय लक्षण अनुकूलित परिस्थितियों में क्रियाशील रहते हैं । अतः भौतिक लक्षणों में भिन्नता स्वयं परागित पौधों में विभेदंन का प्रमुख कारण होती है।
प्रश्न 23. विकास के आधार पर क्या आप बता सकते हैं कि जीवाणु; मकड़ी, मछली तथा चिम्पैन्जी में किसका शारीरिक अभिकल्प उत्तम है ? अपने उत्तर की व्याख्या कीजिए।
उत्तर⇒ उद्विकास के आधार पर जीवाणु, मकड़ी, मछली तथा चिम्पैन्जी के शरीरों में जीवधारियों के वंशों की विविधता के अस्तित्व के लक्षण विद्यमान होते हैं। अतः, इनमें शारीरिक आकृति श्रेष्ठ प्रकार की है। ये शरीर की प्रतिकूलता को अनुकूलता में परिवर्तन कर देती है। जैसे गर्म झरने, गहरे समुद्रों के गर्म स्रोत तथा अंटार्कटिका में उपस्थित बर्फ आदि में उपस्थित जीवधारियों में उपस्थित लक्षण जो उन्हें उत्तरजीविता के योग्य बनाते हैं।
प्रश्न 24. अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न विभिन्नताएँ अधिक स्थायी होती हैं, व्याख्या कीजिए। यह लैंगिक प्रजनन करनेवाले जीवों के विकास को किस प्रकार प्रभावित करता है?
उत्तर⇒ अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न विभिन्नताएँ अधिक स्थाई होती हैं । अलैंगिक जनन एक ही जीव से होने के कारण केवल उसी के गुण उसकी संतान में जाते हैं और वे बिना परिवर्तन हुए पीढ़ी दर पीढ़ी समान ही रहते हैं । लैंगिक जनन नर और मादा के युग्मकों के संयोग से होता है जिनमें भिन्न-भिन्न जीन होने के कारण संकरण के समय विभिन्नता वाली संतान उत्पन्न होती है। उदाहरण के लिए सभी मानव युगों पहले अफ्रीका में उत्पन्न हुए थे पर जब उनमें से अनेक ने अफ्रीका छोड़ दिया और धीरे-धीरे सारे संसार में फैल गए तो लैंगिक जनन से उत्पन्न विभिन्नताओं के कारण उनकी त्वचा का रंग, कद, आकार आदि में परिवर्तन आ गया।
प्रश्न 25. आनुवंशिक विविधता क्या है?
उत्तर⇒ अलग-अलग जीन की उपस्थिति के कारण उत्पन्न विविधता को आनुवंशिक विविधता कहते हैं। मनुष्यों में यह विविधता मंगोल, नीगों आदि में देखी जा सकती है ।
प्रश्न 26. विकास का कृत्रिम सिद्धांत क्या है?
उत्तर⇒ नई जातियों का विकास पुरानी जातियों के जीन्स में परिवर्तन से होता है। जीन में परिवर्तन के कारण जीवों के आनुवंशिक लक्षणों में परिवर्तन आ जाते हैं ।
प्रश्न 27. गुणसूत्र की संरचना कैसे होती है ?
उत्तर⇒ गुणसूत्र धागों के समान दो सममित क्रोमोटिड से बना होता है। दोनों क्रोमोटिड गुणसूत्र बिंदु के द्वारा आपस में जुड़े होते हैं।
प्रश्न 28. ऑटोसोम्स किसे कहते हैं ?
उत्तर⇒ मनुष्य में 23 जोड़े गुणसुत्र होते हैं। लिंग गुणसूत्रों का जोड़ा 23वां होता है। शेष 22 जोड़े ऑटोसोम्स कहलाते हैं।
प्रश्न 29. बायोजेनेटिक नियम लिखिए।
उत्तर⇒ जीव जंतु भ्रूण-विकास के समय अपने पूर्वजों के जातीय विकास की उतरोत्तर अवस्थाओं को प्रकट करता है।
प्रश्न 30. जनन प्रक्रम में सबसे महत्त्वपूर्ण परिणाम क्या है ?
उत्तर⇒ जनन प्रक्रम में सबसे महत्त्वपूर्ण संतति के जीवों के समान प्रारूप होते हैं। आनुवंशिकता के नियम पर आधारित उनमें विभिन्न लक्षण वंशागत होते हैं।
प्रश्न 31. विविधता क्या है ?
उत्तर⇒ समान माता-पिता और एक ही जाति से संबंधित होकर भी उनके बच्चों में बुद्धिमत्ता, रंग-रूप, शक्ल-सूरत और गुणों में अंतर पाया जाता है। इसी को विविधता कहते हैं।
प्रश्न 32. जैव विविधता क्या है ?
उत्तर⇒ जैव विविधता या जीव भिन्नता पृथ्वी पर पाई जाने वाली विविध प्रकार की उन जैवीय प्रजातियों को कहते हैं जो अपने-अपने प्राकृतिक आवास क्षेत्रों में पाई जाती हैं। इसमें पेड़-पौधे, सूक्ष्मजीव, पशु-पक्षी आदि सभी प्राणी सम्मिलित हैं।
प्रश्न 33. मानवों में लक्षणों की वंशागति किस बात पर आधारित होती है ?
उत्तर⇒ मानवों में लक्षणों की वंशागति इस बात पर आधारित होती है कि माता-पिता दोनों अपनी संतान में समान मात्रा में आनुवंशिक पदार्थ को स्थानांतरित कहते हैं। संतान का प्रत्येक लक्षण पिता या माता के DNA से प्रभावित होता है।
प्रश्न 34. जैव विविधता के विभिन्न स्तर कौन-कौन से हैं ?
उत्तर⇒ जैव विविधता के विभिन्न स्तर निम्न हैं–
(i) आनुवंशिक विविधता (Genetic diversity)
(ii) प्रजाति विविधता (Species diversity)
(iii) uffiefonia fafata (Ecosystem diversity)
प्रश्न 35. लिंग गुण सूत्र क्या है ?
उत्तर⇒ मानवों में कुल 23 जोड़े गुण सूत्र होते हैं जिनमें से अंतिम 23वाँ जोड़ा लिंग गुण सूत्र (Sex Chromosome) कहलाता है। इसी के कारण कोई मानव नर या मादा के रूप में जन्म लेता है। नर में XY लिंग गुण सूत्र होते हैं पर मादा में XX लिंग गुण सूत्र होते हैं।
प्रश्न 36. पक्षियों का विकास डायनोसौर से क्यों माना जाता है ?
उत्तर⇒ डायनोसौर सरीसृप थे। उनके विभिन्न जीवाश्मों में अस्थियों के साथ पंखों की छाप भी स्पष्ट रूप से मिलती है । तब शायद वे सब इन पंखों की सहायता से उड़ नहीं पाते होंगे पर बाद में पक्षियों ने पंखों से उड़ना सीख लिया होगा। इसीलिए पक्षियों की डायनोसौर से संबंधित मान लिया जाता है।
प्रश्न 37. F1 संतति और F2 संतति क्या है ?
उत्तर⇒ प्रथम संतति F कहलाती है जिसमें माता-पिता के दो लक्षणों में से एक केवल पैतृक लक्षण दिखाई देता है जिसका अर्थ है कि उन दोनों में से केवल एक पैतृक लक्षण ही दिखाई देता है। स्वपरागण की अवस्था में F,संतति दोनों के विकल्पी लक्षणों को प्रकट करती है।
प्रश्न 38. समजात अंग और समरूप अंग में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर⇒
समजात अंग | समरूप अंग |
इन अंगों की मूल रचना और उत्पत्ति एक समान नहीं होती। | इन अंगों की मूल रचना और उत्पत्ति एक समान होती है। |
इनके कार्य समान नहीं होते हैं। | इनके कार्य समान होते हैं। |
प्रश्न 39. क्या बाद में उत्पन्न हुई स्पीशीज अपने से पहली स्पीशीज से सदा उत्तम होती है ? क्यों ?
उत्तर⇒ अपने से पहले की स्पीशीज से उत्पन्न बाद की स्पीशीज उत्तम ही हो-ऐसा कहना ठीक नहीं हो सकता । प्राकृतिक वरण और आनुवंशिक विचलन ही ऐसा कर सकता है।
प्रश्न 40. आप किस आधार पर प्रमाणित करेंगे कि पक्षियों का विकास सरीसृपों से हुआ था ?
उत्तर⇒ सरीसप और पक्षी दोनों अंडे देकर अपना वंश वद्धि करते हैं। सरीसप रेंग कर चलते हैं। जीवाश्मों से प्रमाणित हो चका है कि उनकी अगली दो टाँगें परिवर्तित होकर पक्षियों के पंख बन गए थे। सरीसृपों के मुँह में दाँत होते हैं और पक्षियों की चोंच होती है। कबूतर के जन्म से पहले अंडे की अवस्था में भ्रूण के मुँह में दाँत-सी रचना होती है।
प्रश्न 41. मेंडल के मटर के पौधों पर प्रयोग से क्या परिणाम निकले ?
उत्तर⇒ मेंडल के मटर के पौधों पर किए प्रयोग से निम्नलिखित परिणाम निकले-
(i) पौधों में लक्षण कुछ इकाइयों द्वारा नियंत्रित होते हैं। उन्हें कारक कहा जाता है। प्रत्येक लक्षण के लिए युग्मक में एक कारक होता है। जैसे लंबाई, फूल का रंग।
(ii) एक लक्षण को दो कारकों द्वारा ही व्यक्त किया जाता है। जैसे-TT या tt।
प्रश्न 42. मेंडल के कार्य का संक्षिप्त उल्लेख करें।
उत्तर⇒ आस्ट्रिया निवासी मेंडल (1882-84) ने आनुवंशिकता को नियंत्रित करने के बारे में महत्त्वपूर्ण कार्य किया था। उसने मटर के पौधे के विभिन्न सात गुणों-पौधे की ऊँचाई, फूल का रंग, बीज की आकृति, फूलों की स्थिति, बीज का रंग, फलों का प्रकार, फली का रंग के बारे में तुलनात्मक अध्ययन किया था और परिणाम निकाला कि मटर के लक्षण कुछ विशेष इकाइयों द्वारा नियंत्रित होते हैं जिन्हें ‘कारक’ कहते हैं। यही बाद में आनुवंशिक सूचनाओं को संचारित करनेवाले ‘जीन’ कहलाए थे।
प्रश्न 43. जीन लक्षणों को कैसे नियंत्रित करते हैं ?
उत्तर⇒ कोशिका में प्रोटीन संश्लेषण के लिए एक सूचना तंत्र होता है, DNA के जिस भाग में प्रोटीन संश्लेषण के लिए सूचना होती है वह प्रोटीन का जीन कहलाता है । जीवों के लक्षण इसी हॉर्मोन पर निर्भर करते हैं। हॉर्मोन की मात्रा उस प्रक्रम की दक्षता पर निर्भर करती है जिसके द्वारा वे उत्पादित होते हैं। यदि विशिष्ट प्रोटीन दक्षता से कार्य करेगी तो हॉर्मोन पर्याप्त मात्रा में उत्पन्न होगा और यदि प्रोटीन की दक्षता पर कुछ भिन्न प्रभाव पड़ता है, तो कम दक्षता के कारण हॉर्मोन कम होगा। जीन ही लक्षणों को प्रभावित और नियंत्रित करते हैं।
प्रश्न 44. समजात, समवृति और अवशेषी अंग क्या है ? प्रत्येक के एक-एक उदाहरण दें।
उत्तर⇒ समजात अंग–विभिन्न जीवधारियों के ऐसे अंग जो उत्पत्ति के आधार पर समान होते हैं, परन्तु कार्य के आधार पर भिन्न होते हैं, समजात अंग कहलाते हैं। उदाहरण ह्वेल का फ्लिपर और चमगादड़ का पंख । समवृत्ति अंग भिन्न-भिन्न जीवधारियों के ऐसे अंग जो कार्य में तो समान होते हैं परन्तु उत्पत्ति में एक दूसरे से भिन्न होते हैं, समवृत्ति अंग कहलाते हैं। उदाहरण चिड़िया का पंख एवं कीट का पंख।
अवशेषी अंग—जीवों के ऐसे अंग जिनसे काफी समय पहले कार्य सम्पन्न किए जाते थे, लेकिन धीरे-धीरे उन अंगों की उपयोगिता नहीं रह गई तथा जो इस कारण पृष्ठभूमि में चले गए, अवशेषी अंग कहलाते हैं। उदाहरण—मानव में वर्मिफार्म एपेंडिक्स, निक्टिटेटिंग झिल्ली, बाह्य कान की. पेशियाँ, पुच्छ कशेरूक आदि ।
प्रश्न 45. आर्कियोप्टेरिक्स को सरीसृप और पक्षी वर्ग के बीच की कड़ी क्यों माना जाता है ?
उत्तर⇒ आर्कियोप्टेरिक्स में कुछ विशेषताएँ सरीसृपों जैसी थीं और कुछ पक्षियों जैसी। इसलिए, उसे इन दोनों के बीच की कड़ी के रूप में स्वीकार किया जाता है।
(a) सरीसृपों के गुण–
(i) इनकी पूँछ लंबी होती थी।
(ii) जबड़ों में दाँत होते थे।
(iii) लंबे नुकीले नाखुनों से युक्त तीन उँगलियाँ होती थीं।
(iv) शरीर छिपकली के समान था।
(b) पक्षियों के गुण –
(i) शरीर पर पँख होते थे।
(ii) चोंच उपस्थित थी।
(iii) अग्रबाहु पक्षियों की तरह थे।
प्रश्न 46. DNA आनुवंशिकता का आधार है, कैसे?
उत्तर⇒ DNA आनुवंशिकता का आधार है, क्योंकि–
(i) इसमें द्विगुणन की क्षमता होती है।
(ii) यह सभी कोशिकाओं में पाया जाता है।
(iii) DNA की अनुकृति मूल DNA अणु की तरह ही होती है।
(iv) DNA का द्विगुणन कोशिका विभाजन से पहले हो जाता है।
(v) यदि DNA की रचना में परिवर्तन हो जाय तो जीव के शरीर में उत्परिवर्तन के लक्षण दिखाई देंगे।
(vi) DNA स्वयं एक आनुवंशिक पदार्थ है।
प्रश्न 47. DNA तथा RNA में कोई तीन अंतर लिखें।
उत्तर⇒
DNA | RNA |
यह आनुवंशिक गुणों के वंशागत होने को नियंत्रित करता है। | यह कोशिका में प्रोटीन बनाने का नियंत्रण करता है। |
न्यूक्लिओटाइड में डी-ऑक्सीराइबोज़ शर्करा होती है। | न्यूक्लिओटाइड में राइबोज शर्करा होती है। |
थायमिन और सिस्टोसिन दो पायरीमिडीन क्षार हैं। | थायमिन के स्थान पर यूरासिल क्षार होता है, दूसरा पायरीमिडीन क्षार सिस्टोसिन है। |
DNA केवल एक रूप में ही मिलता है। | यह तीन रूपों में होता है। m-RNA, t-RNA, r-RNA |
इसमें पोली न्यूक्लिओटाइड की दो श्रृंखलाएँ एक-दूसरे के चारों ओर कुंडलित होती हैं । | इसमें पोली न्यूक्लिओटाइड शृंखला का केवल एक धागा होता है। |
प्रश्न 48. अवशेषी अंग क्या है?
उत्तर⇒ अनेक प्राणियों में अभी भी अनेक ऐसे अंग पाये जाते हैं जिनकी अब उनके शरीर के लिए कोई उपयोगिता नहीं रह गई है। ऐसे अंगों को अवशेषी अंग कहते हैं। हम मानवों में कर्णपल्लव की पेशियाँ, कृमिरूप परिशेषिका, पुच्छ कशेरुकाएँ, निमेषक पटल और बाल ऐसी ही रचनाएँ हैं।
प्रश्न 49. समरूप अंगों को उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर⇒ समरूप अंगों में कार्य की समानता होती है लेकिन उनकी उत्पत्ति और मूल संरचना में अंतर होता है । कीड़े, पक्षी और चमगादड़ सभी पंखों का प्रयोग उडने के लिए करते हैं पर उनकी उत्पत्ति अलग-अलग ढंग से हुई थी।
प्रश्न 50. मेंडल के आनुवंशिकता के प्रबलता के नियम की व्याख्या कीजिए।
उत्तर⇒ जब पौधों के विपरीत लक्षणों के बीच संकरण कराया जाता है जो उनकी संतति में उन लक्षणों में से एक लक्षण ही प्रभावी रहता है जबकि दूसरा विपरीत लक्षण अप्रभावी रहता है। प्रभावी लक्षण संतान में दिखाई देता है जबकि अप्रभावी लक्षण विद्यमान होते हुए भी दिखाई नहीं देता ।
मेंडल के द्वारा किए गए मटरों के प्रयोग में पहली पीढ़ी में सभी पौधे शुद्ध लंबे थे परंतु दूसरी पीढ़ी में एक शुद्ध लंबा पौधा, दो संकरे लंबे तथा एक शुद्ध बौना पौधा था ।
प्रश्न 51. गोभी का रूपांतरण विभिन्न सब्जियों में किस प्रकार हुआ?
उत्तर⇒ दो हजार वर्ष पहले से ही मनुष्य जंगली गोभी की एक खाद्य पौधों के रूप में उगाता रहा है तथा उसने चयन द्वारा इससे विभिन्न सब्जियाँ विकसित की। यह प्राकृतिक वरण न होकर कृत्रिम चयन है। कुछ किसान इसकी पत्तियों के बीच की दूरी को कम करना चाहते थे जिससे पत्तागोभी का विकास हुआ। कुछ किसान पुष्पों की वृद्धि रोकना चाहते थे, अतः फूलगोभी विकसित हुई। कुछ ने फूले हुए भाग का चयन किया, अतः गाँठगोभी विकसित हुई। कुछ ने केवल चौड़ी पत्तियों को ही पसंद किया तथा कैल’ नामक सब्जी का विकास किया । यदि मनुष्य ने स्वयं ऐसा नहीं किया होता तो हमें गोभी की विभिन्न किस्में प्राप्त न हुई होती।
चित्र : जंगली गोभी का विकास
Science ( विज्ञान ) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. जैव विकास क्या है ? लामार्कवाद का वर्णन करें
उत्तर ⇒ पृथ्वी पर वर्तमान जटिल प्राणियों का विकास प्रारंभ में पाये जाने वाले सरल प्राणियों से परिस्थिति और वातावरण के अनुसार होने वाले परिवर्तनों के कारण हुआ। सजीव जगत में होनेवाले इस परिवर्तन को जैव विकास (organic evolution) कहते हैं। फ्रांसीसी प्रकृति वैज्ञानिक लामार्क (Jean Baptiste Lamarck, 1744-1829) न सबसे पहले 1809 में जैव विकास के अपने विचारों को अपनी पुस्तक फिलॉसफिक जूलौजिक (Philosophic Zoologique) में प्रकाशित किया । यही लामार्कवाद या उपार्जित लक्षणों का वंशागति सिद्धांत (theory of inheritance of acquired characters) है। लामार्क के अनुसार जीवों की संरचना, कायिकी, उनके व्यवहार पर वातावरण के परिवर्तन का सीधा असर पड़ता है। इसके कारण जीवों के अंगों का उपयोग ज्यादा या कम होता है। जिन अंगों का उपयोग अधिक होता है वे अधिक विकसित हो जाते हैं तथा जिनका उपयोग नहीं होता है, धीरे-धीरे उनका ह्रास हो जाता है। वातावरण के सीधे प्रभाव से या अंगों में कम या अधिक उपयोग के कारण जंतु के शरीर में जो परिवर्तन आते हैं उन्हें उपार्जित लक्षण (acquired character) कहते हैं। यह लक्षण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में प्रजनन द्वारा चले जाते हैं । ऐसा लगातार होने से कुछ पीढ़ियों के बाद उनकी शारीरिक रचना बदल जाती है तथा एक नई प्रजाति का विकास हो जाता है।
2. आनुवंशिकी की परिभाषा दीजिए। जीव विज्ञान की इस शाखा को मेण्डल का क्या योगदान है ?
उत्तर ⇒ आनुवंशिकी जीव विज्ञान की वह शाखा है जिसके अन्तर्गत आनुवंशिकता और विभिन्नताओं का अध्ययन किया जाता है।
मेण्डल को आनुवंशिकी का जनक माना जाता है। उन्होंने मटर के पौधों पर. संकरण सम्बन्धी तरह-तरह के प्रयोग किए थे और तीन नियमों को प्रतिपादित किया।
(i) प्रभाविता का नियम (Law of dominance)- संकरण में भाग लेने वाले पौधों का प्रभावी गुण प्रकट होता है और अप्रभावी गुण छिप जाता है।
(ii) पृथक्करण का नियम (Law of segregation)- युग्मकों की रचना के समय कारकों (Genes) के जोड़े अलग-अलग हो जाते हैं। इन दोनों में से केवल एक ही युग्मक के पास पहुँचता है। दोनों कारक कभी भी एक साथ युग्मक में नहीं जाते।
(iii) स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम (Law of independent assortment) – कारक एक-दूसरे को प्रभावित किये बिना उन्मुक्त रूप से युग्मकों में जाते हैं और प्रकट होते हैं। उदाहरण के लिए द्विसंकर क्रॉस की दूसरी पीढ़ी की संतानों में सभी कारकों के गुण अलग-अलग दिखाई देते हैं पर पहली पीढ़ी में प्रभावी गुण ही प्रकट होता है।
3. आनुवंशिक विभिन्नता के स्रोतों का वर्णन करें।
उत्तर ⇒ जीवों में आनुवंशिक विभिन्नता उत्परिवर्तन के कारण होता है तथा नई जाति (species) के विकास में इसका योगदान हो सकता है । क्रोमोसोम पर स्थित जीन की संरचना तथा स्थिति में परिवर्तन ही उत्परिवर्तन के कारण है । आनवंशिक विभिन्नता का दूसरा कारण है आनुवंशिक पुनर्योग (genetic recombination) भी है। आनुवंशिक पुनर्योग के कारण संतानों के क्रोमोसोम में जीन के गुण (संरचना तथा ‘क्रोमोसोम पर उनकी स्थिति) अपने जनकों के. जीन से भिन्न हो सकते हैं । अतः उत्परिवर्तन तथा आनुवंशिक पुनर्योग जीव में नए गुणों की उत्पत्ति के कारण हो सकते हैं । ऐसे नए गण जीवों को अपने वातावरण के अनसार अनुकूलन में सहायक हो सकते हैं । कभी-कभी ऐसे नए गण जीवों को वातावरण में अनुकूलित होने में सहायक नहीं भी होते हैं । ऐसी स्थिति में आपसी स्पर्धा, रोग इत्यादि कारणों से वैसे जीव विकास की दौड में विलप्त हो जाते हैं । बचे हुए जीव ऐसे लाभदायक गुणों को अपने संतानों में संचरित करते हैं। इस तरह प्रकृति नए गुणों वाले जीवा का चयन कर लेती है तथा कुछ को निष्कासित कर देती है । प्राकृतिक चयन (natural selection) द्वारा नए गुणों वाले जीवों का विकास इसी प्रकार होता है।
4. डार्विन के प्राकृतिक चयन के सिद्धांत की व्याख्या करें।
उत्तर ⇒ डार्विन के अनुसार प्रत्येक जीव में प्रजनन की असीम क्षमता होती है तथा प्रत्येक जीव ज्यामितीय अनक्रम द्वारा अपनी जनसंख्या में वृद्धि करते हैं। प्रत्येक जीव में अत्यधिक प्रजनन दर की तलना में पथ्वी पर भोजन तथा आवास नियत है। अतः जीवों में अपने अस्तित्व को बचाने के लिए आपस में संघर्ष होता रहता है। ये संघर्ष मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं।
(क) अपनी एक ही समष्टि के व्यष्टियों के बीच का संघर्ष
(ख) एक ही जाति के विभिन्न समष्टियों के बीच का संघर्ष तथा
(ग) जीवों का प्रतिकूल वातावरणीय परिस्थितियों में संघर्ष।
प्राकृतिक वरण द्वारा चयनित विभिन्नताएँ दूसरी पीढी में उनके संतानों में वंशागत होती है तथा पीढ़ी-दर-पीढ़ी इनके प्राकृतिक वरण से ही नये प्रजाति का निर्माण होता है।
5. क्या कारण है कि आकृति, आकार, रंग-रूप में इतने भिन्न दिखाई पड़ने वाले मानव एक ही स्पीशीज के सदस्य हैं ?
उत्तर ⇒ सभी दिशाओं में मानव का प्रव्रजन हुआ। आकृति, आकार, रंग-रूप में इतने भिन्न दिखाई पड़नेवाले मानव एक ही स्पीशीज के सदस्य हैं, मानव के DNA अनुक्रम तथा Y क्रोमोसोम तथा उनमें हुए उत्परिवर्तनों के अध्ययन से ही संभव हुआ है। आज रक्त के एक नमूने के विश्लेषण से किसी व्यक्ति के पूर्वजों की खोज की जा सकती है। इस विश्लेषण से यह भी जाना जा सकता है कि किसी व्यक्ति विशेष के पूर्वज संसार के किस भाग के मूल निवासी थे। ऐसा माइटोकॉण्डिया के DNA तथा क्रोमोसोम के अध्ययन से ही संभव हो पाया है। वर्तमान समय के सभी मानवों के जीन कोश (gene pool) एक समान होने के कारण सभी मानव एक ही प्रजाति (Homo sapiens) कहलाते हैं। हालाँकि विभिन्न क्षेत्रों के मानवों के गुणों की तुलना करने पर उनमें कई प्रकार की व्यक्तिगत विभिन्नताएँ पायी जाती हैं, जैसे त्वचा तथा बालों के रंग, शरीर की लंबाई एवं गठन इत्यादि।
6. जाति उद्भवन क्या है ?
उत्तर ⇒ जब दो उप-आबादियों के बीच जीन प्रवाह (gene flow), अर्थात् आनुवंशिक पदार्थों के आदान-प्रदान की संभावना कम होगी, तब वे अपनी ही उप-आबादी के सदस्यों के साथ लैंगिक प्रजनन कर पायेंगे। ऐसी स्थिति में एक उप आबादी के दोनों जनकों के अप्रभावी उत्परिवर्तित जीनों (recessive mutant genes) के संयोजन की संभावना अधिक होगी। ऐसे जीन इस स्थिति में अब प्रभावी उत्परिवर्तित जीन (dominant mutant genes) की तरह व्यवहार करेंगे । इससे उत्पन्न गुण (traits) अब संतानों में परिलक्षित होंगे। इस तरह के गुण लाभदायक होने पर प्रकृति द्वारा उनका चुनाव होता है तथा एक नई उपप्रजाति का उद्भव होता है । यदि मूल प्रजाति से इनका लैंगिक प्रजनन संभव हो भी गया तो उत्पन्न संतानों में जनन क्षमता नहीं होगी। इससे एक या एक से अधिक उपप्रजातियाँ बन जाएँगी। यही जाति – उद्भवन (speciation) कहलाता है।
7. मेंडल के प्रयोगों द्वारा कैसे पता चला कि लक्षण प्रभावी अथवा अप्रभावी होते हैं ?
उत्तर ⇒ मेंडल ने मटर के पौधे के अनेक विकल्पी लक्षणों का अध्ययन किया जो स्थूल दिखते हैं। उदाहरणतः गोल/झुरींदार बीज, लंबे/बौने पौधे, सफेद बैंगनी फूल इत्यादि। उसने विभिन्न लक्षणों वाले मटर के पौधों को लिया जैसे कि लंबे पौधे तथा बौने पौधे। इससे प्राप्त संतति पीढ़ी में लंबे एवं बौने पौधों के प्रतिशत की गणना की। मेंडल के अपने प्रयोगों में दोनों प्रकार के पैतृक पौधों एवं F पीढ़ी के लंबे पौधों की दूसरी पीढ़ी; अर्थात् F, पीढ़ी के सभी पौधे लंबे नहीं थे वरन् उनमें से एक चौथाई संतति बौने पौधे थे । यह इंगित करता है कि F. पौधों द्वारा लंबाई एवं बौनेपन दोनों विशेषकों (लक्षणों) की वंशानुगति हुई। परंतु केवल लंबाई वाला लक्षण ही व्यक्त हो पाया। अतः लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न होनेवाले जीवों में किसी भी लक्षण की दो प्रतिकृतियों की वंशानुगति होती है। ये दोनों एक समान हो सकते हैं अथवा भिन्न हो सकते हैं जो उनके जनक पर निर्भर करता है।
चित्र : दो पीढ़ियों तक लक्षणों की वंशानुगति ।
8. मेंडल का प्रथम नियम या पृथक्करण का नियम क्या है ?
उत्तर ⇒ मेंडल ने एकसंकर संकरण (monohybrid cross) में केवल एक जोड़े विपरीत गुणों की वंशागति का अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकाला कि अप्रभावी गुण (बौनापन—recessive trait) में न तो कोई बदलाव आता है और न ही ऐसा गुण लुप्त होता है। संकर नस्ल की पीढ़ी में दोनों विपरीत गुण (opposite traits) साथ-साथ होते हैं। परंतु अगली पीढ़ियों में पृथक, अर्थात् अलग-अलग हो जाते हैं। यह निष्कर्ष मेंडल का प्रथम नियम या पृथक्करण का नियम (Mendel’s first law of segregation) कहलाता है।
दो पीढ़ियों तक एक जोड़े विपरीत गुणों की वंशागति
चित्र : दो पीढ़ियों तक एक जोड़े विपरीत गुणों की वंशागति
9. मानव में लिंग निर्धारण आनुवंशिक आधार पर होता है, चित्र द्वारा – समझाएँ।
उत्तर ⇒ मानव के सभी गुणसूत्र पूर्णरूपेण युग्म नहीं होते। मानव में अधिकतर गुणसूत्र माता और पिता के गुणसूत्रों के प्रतिरूप होते हैं। इनकी संख्या 22 जोड़े हैं। परन्तु एक युग्म जिसे लिंग सूत्र कहते हैं वह पूर्ण जोड़े में नहीं होते। स्त्री में गुणसूत्र का पूर्ण युग्म होता है तथा दोनों ‘X’ कहलाते हैं। लेकिन पुरुष (नर) में यह जोड़ा परिपूर्ण जोड़ा नहीं होता, जिसमें एक गुणसूत्र सामान्य आकार का ‘X’ होता है तथा दूसरा गुणसूत्र छोटा होता है जिसे ‘गुणसूत्र कहते हैं । अतः स्त्रियों में ‘XX’ तथा पुरुष में :xr गुणसूत्र होते हैं। इसमें सामान्यत: आधे बच्चे लड़के एवं आधे लड़की हो सकते हैं। सभी को चाहे वह लड़का हो अथवा लड़की, अपनी माता से ‘X गुणसूत्र प्राप्त करते हैं। बच्चों का लिंग निर्धारण इस बात पर निर्भर करता है कि उन्हें अपने पिता से कि प्रकार गणसूत्र प्राप्त हुआ है। जिसे अपने पिता से ‘X’ गुणसत्र वंशानगत हुआ लडकी एवं जिसे पिता से ‘Y गुणूसत्र वंशानुगत होता है वह लड़का होता है। .
10. अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न विभिन्नताएँ अधिक स्थायी होती हैं, व्याख्या कीजिये। यह लैंगिक प्रजनन करने वाले जीवों के विकास को किस प्रकार प्रभावित करता है ?
उत्तर ⇒ अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न विभिन्नताएँ अधिक स्थायी होती हैं। अलैंगिक जनन एक ही जीव से होने के कारण केवल उसी के गुण उसकी संतान में जाते हैं और वे बिना परिवर्तन हुए पीढ़ी दर पीढ़ी समान ही रहते हैं। लैंगिक जनन नर और मादा के युग्मकों के संयोग से होता है जिसमें भिन्न-भिन्न जीन होने के कारण संकरण के समय विभिन्नता वाली संतान उत्पन्न होती है। जैसे सभी मानव युगों पहले अफ्रीका में उत्पन्न हुए थे पर जब उनमें से अनेक ने अफ्रीका छोड़ दिया और धीरे-धीरे सारे संसार में फैल गए। इस कारणवश लैंगिक जनन से उत्पन्न विभिन्नताओं के कारण उनकी त्वचा का रंग, कद, आकार आदि में परिवर्तन आ गया।
11. क्या भौगोलिक पृथक्करण स्वपरागित स्पीशीज के पौधों के जाति-उद्भव का प्रमुख कारण हो सकता है। क्यों या क्यों नहीं ?
उत्तर ⇒ भौगोलिक पृथक्करण स्वपरागित स्पीशीज के पौधों के जाति-उद्भव का प्रमुख कारण हो सकता है। जननीय लक्षण तथा भौतिक लक्षण पौधों में दो प्रकार के पाये जाते हैं। जननीय लक्षण गुणसूत्रों पर उपस्थित डी० एन० ए० के द्वारा हस्तान्तरित होते हैं। भौतिक लक्षण भौगोलिक परिस्थितियों से प्रभावित होते हैं परन्तु गुणसूत्रों की संख्या एवं आकृति ज्यों की त्यों बनी रहती है। जननीय लक्षण अनुकूल परिस्थितियों में क्रियान्वित रहते हैं। अतः भौतिक लक्षणों में भिन्नता ही स्व-परागित पौधों में विभेदन का प्रमुख कारण होती है।
12. विभिन्नता को परिभाषित करें। जननिक विभिन्नता एवं कायिक विभिन्नता में विभेद करें। जीवों में आनुवंशिक विभिन्नताओं का संचयन कैसे होता है ?
उत्तर ⇒ जीवों के ऐसे गुण जो उन्हें अपने जनकों अथवा अपनी ही जाति के अन्य सदस्यों के उसी गुण के मूल स्वरूप से भिन्नता दर्शाते हैं, विभिन्नता कहलाते हैं। जननिक विभिन्नता एवं कायिक विभिन्नता में निम्न अंतर हैं -जनन कोशिकाओं में होनेवाले परिवर्तन के कारण होनेवाली विभिन्नता, जननिक विभिन्नता या आनुवंशिक विभिन्नता कहलाती है। ऐसी विभिन्नताएँ एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में वंशागत होती है। वैसी विभिन्नताएँ जो गुणसूत्र सर जीन के गुणों में विभिन्नता के कारण उत्पन्न नहीं होती है वरन अन्य कई कारणों जैसे जलवायु एवं वातावरण का प्रभाव, उपलब्ध भोजन के प्रकार, अन्य उपस्थित जीवों के साथ परस्पर व्यवहार आदि के कारण उत्पन्न हो, कायिक विभिन्नताएँ कहलाती है। जीवों में आनुवंशिक विभिन्नताओं का संचयन जीन की प्रतिलिपि से बनती है।
13. मानव में बच्चे का लिंग निर्धारण कैसे होता है ?
उत्तर ⇒ मानव के सभी गुणसूत्र पूर्णरूपेण युग्म नहीं होते । मानव में अधिकतर गुणसूत्र माता और पिता के गुणसूत्रों के प्रतिरूप होते हैं । इनकी संख्या 22 जोड़े हैं । परंतु एक युग्म जिसे लिंग सूत्र कहते हैं वह पूर्ण जोड़े में नहीं होते । स्त्री में गुणसूत्र का पूर्ण युग्म होता है तथा दोनों ‘X’ कहलाते हैं। लेकिन पुरुष (नर) में यह जोड़ा परिपूर्ण जोड़ा नहीं होता, जिसमें एक गुणसूत्र सामान्य आकार का ‘X’ होता है तथा दूसरा गुणसूत्र छोटा होता है जिसे ‘Y’ गुणसूत्र कहते हैं । अतः स्त्रियों में XX’ तथा पुरुष में ‘XY’ गुणसूत्र होते हैं।
चित्र : मानव में लिंग निर्धारण
इसमें सामान्यत: आधे बच्चे लड़के एवं आधे लड़की हो सकते हैं । सभी बच्चे * चाहे वह लड़का हो अथवा लड़की, अपनी माता से ‘X’ गुणसूत्र प्राप्त करते हैं। अतः बच्चों का लिंग निर्धारण इस बात पर निर्भर करता है कि उन्हें अपने पिता से किस प्रकार का गुणसूत्र प्राप्त हुआ है। जिसे अपने पिता से ‘X’ गुणसूत्र वंशानुगत हुआ है वह लड़की एवं जिसे पिता से ‘Y’ गुणसूत्र वंशानुगत होता है वह लड़का होता है।
14. समजात अंग व असमजात अंग से क्या समझते हैं ?
उत्तर ⇒ भिन्न-भिन्न वातावरण में रहनेवाले मेढकाली जंतुओं के कुछ ऐसे अंग होते हैं जो संरचना एवं उत्पत्ति के दृष्टिकोण से तो एक समान होते हैं, परंतु अपने वातावरण के अनुसार वे भिन्न कार्यों . का संपादन करते हैं। ऐसे अंग समजात अंग (homologous organs) कहलाते हैं । जैसे— मेढक, पक्षी, बिल्ली तथा मनुष्य के अग्रपादों (forelimbs) में पाये जाने वाले अस्थियों के अवयव पक्षी मानव प्रायः समान होते हैं, परंतु इन कशेरुक प्राणियों के अग्रपाद विभिन्न प्रकार के कार्यों का संपादन कर सकते हैं। समजात अंगों के विपरीत जंतुओं के कुछ अंग ऐसे होते हैं, जो रचना और उत्पत्ति या उद्भव के दृष्टिकोण से एक-दूसरे से भिन्न होते हैं, परंतु वह एक ही प्रकार का कार्य करते हैं। ऐसे अंग असमजात अंग (analogous organs) चित्र : समजात अंग कहलाते हैं। जैसे—तितली तथा पक्षी के पंख (wings) उड़ने का कार्य करते हैं परंतु इनकी मूल संरचना और उत्पत्ति अलग-अलग प्रकार की होती है।
चित्र : समरूप अंग : चमगादड़ एवं पक्षी के पंख
15. उन अभिलक्षणों का एक उदाहरण दीजिये जिनका उपयोग हम लो स्पीशीज के विकासीय संबंध निर्धारण के लिए करते हैं।
उत्तर ⇒ बहूत अधिक भिन्न दिखने वाली संरचनाएँ एकसमान परिकल्प स विकसित हैं। जंगली गोभी इसका अच्छा उदाहरण है। दो हजार वर्ष पूर्व मनुष्य गाभा को एक खाद्य पौधे के रूप में उगाता था, तथा उसने चयन द्वारा इससे विभिन्न सब्जियाँ विकसित की।
चित्र: जंगली गोभी का विकास
कुछ किसान इसकी पत्तियों के बीच की दूरी कम करना चाहते थे जिससे पत्तागोभी का विकास हुआ। बंध्य पुष्पों से फूलगोभी विकसित हुई ।
16. एक एकल जीव द्वारा उपार्जित लक्षण सामान्यतः अगली पीढ़ी में वंशानुगत नहीं होते । क्यों ?
उत्तर ⇒ वैसे जीव जिनमें लैंगिक जनन होता है, जनन कोशिकाओं (germ cells) का निर्माण उनके जनद या जनन ग्रंथि या गोनैड (genad) में होता है। शरीर की अन्य कोशिकाएँ कायिक या सोमैटिक सैल्स (Somatic cells) कहलाती है । वातावरण के प्रभाव के कारण कायिक कोशिकाओं में परिवर्तन, लोहार के हाथों की पेशियों का हथौड़ा चलाने के कारण मजबूत होता, चूहे की पूँछ काटने पर, इत्यादि गुण वंशागत नहीं होते अपितु इनकी अगली पीढ़ी सामान्य लक्षणों के साथ ही पैदा हुई जैसे लोहार की संतानों में मजबूत पेशियों का गुण वंशागत नहीं होता, कटे पूँछवाले चूहे की संतान पूँछ के साथ पैदा होती है, इत्यादि । यही कारण है कि एक एकल जीव द्वारा उपार्जित लक्षण सामान्यतः अगली पीढ़ी में वंशानुगत नहीं होते क्योंकि इससे जनन कोशिकाओं के जीन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता ।
17. एक ‘A’रुधिर वर्ग वाला पुरुष एक स्त्री जिसका रुधिर वर्ग ‘0’ है से विवाह करता है। उनकी पुत्री का रुधिर वर्ग ‘0’ है । क्या यह सूचना पर्याप्त है यदि आपसे कहा जाये कि कौन-सा विकल्प लक्षण रुधिर वर्ग-‘A’ अथवा ‘0’ प्रभावी लक्षण हैं? अपने उत्तर का स्पष्टीकरण दीजिये।
उत्तर ⇒ एक ‘A’ रुधिर वर्ग वाला पुरुष एक स्त्री जिसका रुधिर वर्ग :0′ है से विवाह करता है। उनकी पुत्री का रुधिर वर्ग ‘O’ है। यह सूचना पर्याप्त है यदि हमसे कहा जाये कि विकल्प लक्षण-रुधिर वर्ग- ‘A’ अथवा ‘0’ प्रभावी लक्षण है। क्योंकि लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न होने वाले जीवों में किसी भी लक्षण की दो प्रतिकृतियों की (स्वरूप) वंशानुगति होती हैं। ये दोनों एक समान हो सकते हैं अथवा भिन्न हो सकते हैं जो उनके जनक पर निर्भर करता है ।।
18. ‘किन प्रमाणों के आधार पर हम कह सकते हैं कि जीवन की उत्पत्ति अजैविक पदार्थों से हुई है ?
उत्तर ⇒ जे० बी० एस० हाल्डेन नामक एक ब्रिटिश वैज्ञानिक ने सर्वप्रथम सुझाव दिया कि जीवों की उत्पत्ति उन अजैविक पदार्थों से हुई होगी जो पृथ्वी की उत्पत्ति के समय बने थे। सन् 1953 ई० में स्टेनल, एल० मिलर और हेराल्ड सी० डरे ने ऐसे कृत्रिम वातावरण का निर्माण किया था जो प्राचीन वातावरण के समान था। इस वातावरण में ऑक्सीजन अनुपस्थित था। अमोनिया, मिथेन और हाइड्रोजन सल्फाइड इसमें थे। एक पात्र में जल भी था जिसका तापमान 100°C से कम रखा गया था। जब गैसों के मिश्रण से चिंगारियाँ उत्पन्न की गई जो आकाशीय बिजली के समान थीं, मिथेन से 15% कार्बन सरल कार्बनिक यौगिकों में बदल गए। इनमें अमीनो अम्ल भी संश्लेषित हुए जो प्रोटीन के अणुओं का निर्माण करते हैं। इसी आधार पर कहा जा सकता है कि जीवन की उत्पत्ति अजैविक पदार्थों से हुई है।
19. एकसंकर संकरण को F-पीढ़ी तक चित्र के द्वारा दर्शाएँ।
उत्तर ⇒ एक लंबा पौधा को बौना पौधा से संकरण को निम्न तरीके से दिखाया जा सकता है
चित्र : मेंडल के एक संकर संकरण के आधार पर दो पीढ़ियों तक एक जोड़े विपरीत गुणों की वंशागति
20. जीवाश्म एक के बाद एक परत कैसे बनाते हैं ?
उत्तर ⇒ अगर दस करोड़ वर्ष पूर्व से प्रारंभ किया जाये तब हम देखेंगे कि जीवाश्म एक के बाद एक परत कैसे बनाते हैं।
एक के बाद एक परत बनना
आइए 10 करोड़ (100 मिलियन) वर्ष पहले से प्रारंभ करते हैं। समुद्र तल पर कुछ अकशेरुकीय जीवों की मृत्यु हो जाती है तथा वे रेत में अधिक दब जाते हैं। धीरे-धीरे और अधिक रेत एकत्र होती जाती है तथा अधिक दाब के कारण चट्टान बन जाती है।
कुछ मिलियन वर्षों बाद, क्षेत्र में रहने वाले डायनोसॉर मर जाते हैं तथा उनका शरीर भी मिट्टी में दब जाता है । यह मिट्टी भी दबकर चट्टान बन जाती है । जो पहले वाले अकशेरुकीय जीवाश्म वाली चट्टान के ऊपर बनती है ।
फिर इसके कुछ और मिलियन वर्षों बाद इस क्षेत्र में घोड़े के समान कुछ जीवों . के जीवाश्म चट्टानों में दब जाते हैं ।
जल प्रवाह) के कारण कुछ चट्टानें फट जाती हैं तथा घोड़े के समान जीवाश्म प्रकट होते हैं। जैसे-जैसे हम गहरी खुदाई करते जाते हैं, वैसे-वैसे पुराने तथा और पुराने जीवाश्म प्राप्त होते हैं।