आत्मकथ्य

आत्मकथ्य

आत्मकथ्य कवि-परिचय

प्रश्न-
कविवर जयशंकर प्रसाद का संक्षिप्त जीवन-परिचय, रचनाओं, काव्यगत विशेषताओं एवं भाषा-शैली का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय छायावाद के प्रवर्तक जयशंकर प्रसाद का जन्म काशी के प्रतिष्ठित वैश्य कुल में सन् 1889 में हुआ था। उनका कुल ‘सुँघनी साहू’ के नाम से विख्यात था। उनके पिता का नाम देवीप्रसाद था। किशोरावस्था में ही उनके सिर से पिता का साया उठ गया था। यक्ष्मा रोग का शिकार होकर सन् 1937 में वे 48 वर्ष की आयु में ही इस संसार से विदा हो गए। प्रसाद जी ने हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, उर्दू आदि भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। वे भारतीय साहित्य और संस्कृति के पुजारी थे तथा राष्ट्र-प्रेम ‘ की भावना उनमें कूट-कूटकर भरी हुई थी। शैव दर्शन से प्रभावित होने के कारण वे नियतिवादी भी थे।

2. प्रमुख रचनाएँ-जयशंकर प्रसाद की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं(क) काव्य-ग्रंथ ‘लहर’, ‘झरना’, ‘आँसू’, ‘कानन कुसुम’, ‘प्रेम पथिक’, ‘महाराणा का महत्त्व’, ‘करुणालय’, ‘चित्राधार’, ‘कामायनी’ । (ख) उपन्यास-‘कंकाल’, ‘तितली’, ‘इरावती’ (अपूर्ण)। (ग) कहानी-संग्रह ‘छाया’, ‘प्रतिध्वनि’, ‘आकाशदीप’, ‘आँधी’ और ‘इंद्रजाल’ (कुल 69 कहानियाँ)। (घ) निबंध-संग्रह ‘काव्य और कला तथा अन्य निबंध।
(ङ) नाटक-‘सज्जन’, ‘राज्यश्री’, ‘अजातशत्रु’, ‘एक घुट’, ‘कल्याणी’, ‘परिचय’, ‘विशाख’, ‘कामना’, ‘स्कंदगुप्त’, ‘ध्रुवस्वामिनी’ .. और ‘चंद्रगुप्त’।

3. काव्यगत विशेषताएँ-प्रसाद जी एक प्रतिभासंपन्न साहित्यकार थे। वे छायावाद के प्रवर्तक तथा सर्वश्रेष्ठ कवि थे। अतीत के प्रति उनका मोह था, लेकिन वर्तमान के प्रति भी वे जागरूक थे। उनके काव्य की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार से हैं
(i)प्रेम तथा सौंदर्य का वर्णन-प्रसाद जी के काव्य का मुख्य तत्त्व प्रेमानुभूति एवं सौंदर्यानुभूति है। प्रेमानुभूति की दिशा मानव, प्रकृति और ईश्वर तक फैली हुई है। इसी प्रकार से प्रसाद जी ने मानव, प्रकृति और ईश्वर तीनों के सौंदर्य का आकर्षक चित्रण किया है। उनकी सौंदर्य-चेतना परिष्कृत, उदात्त एवं सूक्ष्म है।

(ii) वेदना की अभिव्यक्ति–प्रसाद जी के काव्य में ऐसे अनेक स्थल हैं जो पाठक के हृदय को छू लेते हैं। उनका ‘आँसू’ काव्य कवि के हृदय की वेदना को व्यक्त करता है। इसी प्रकार से ‘लहर’ काव्य-ग्रंथ की ‘प्रलय की छाया’ कविता भी मार्मिक है। ‘कामायनी’ में भी इस प्रकार के स्थलों की कमी नहीं है जो पाठक के हृदय को आत्मविभोर न कर देते हों।

(iii) प्रकृति-वर्णन-प्रसाद जी के काव्य में अनेक स्थलों पर प्रकृति का स्वाभाविक चित्रण किया गया है। ‘लहर’ की अनेक कविताएँ प्रकृति-वर्णन से संबंधित हैं। प्राकृतिक पदार्थों पर मानवीय भावों का आरोप करना उनके प्रकृति-चित्रण की अनूठी विशेषता है; जैसे-
बीती विभावरी जाग री,
अंबर पनघट में डुबो रही,
तारा घट उषा-नागरी।
छायावादी काव्य होने के नाते यहाँ पर प्रकृति का मानवीकरण देखने योग्य है। उषा को नायिका के रूप में वर्णित किए जाने से यहाँ प्रकृति का मानवीकरण हुआ है। उन्होंने प्रकृति-वर्णन के अनेक रूपों में से आलंबन, उद्दीपन, दूती, उपदेशिका, रहस्यात्मक, पृष्ठभूमि, मानवीकरण आदि रूपों को चुना है।

(iv) रहस्य भावना-छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद सर्वात्मवाद से सर्वाधिक प्रभावित हैं। वे अज्ञात सत्ता के प्रेम-निरूपण में अधिक तल्लीन रहे हैं। उनकी इस प्रवृत्ति को रहस्यवाद की संज्ञा दी जाती है। कवि बार-बार प्रश्न करता है कि वह अज्ञात सत्ता कौन है और क्या है? प्रसाद जी के काव्य में रहस्य-भावना का सुष्ठु रूप देखने को मिलता है। रहस्यसाधक कवि प्रकृति के अनंत सौंदर्य को देखकर उस विराट् सत्ता के प्रति जिज्ञासा प्रकट करता है। तदंतर अपनी प्रिया का अधिकाधिक परिचय प्राप्त करने के लिए आतुरता व्यक्त करता है, उसके विरह में तड़पता है और प्रियतमा के परिचय की अनुभूति का ‘गूंगे के गुड़’ की भाँति आस्वादन करता है। प्रसाद जी के काव्य में रहस्य भावना का रूप निम्नलिखित उदाहरण में देखा जा सकता है
हे अनंत रमणीय! कौन हो तुम? यह मैं कैसे कह सकता। कैसे हो, क्या हो? इसका तो
भार विचार न सह सकता ॥

(v) नारी भावना-छायावादी कवि होने के कारण प्रसाद जी ने नारी को अशरीरी सौंदर्य प्रदान करके उसे लोक की मानवी न बनाकर परलोक की ऐसी काल्पनिक देवी बना दिया जिसमें प्रेम, सौंदर्य, यौवन और उच्च भावनाएँ हैं, लेकिन ऐसे गुण मृत्युलोक की नारी में देखने को नहीं मिलते। ‘कामायनी’ की श्रद्धा इसी प्रकार की नारी है। वह काल्पनिक जगत् की अशरीरी सौंदर्यसंपन्न अलौकिक देवी है जो नित्य छवि से दीप्त है, विश्व की करुण-कामना मूर्ति है और कानन-कुसुम अंचल में मंद पवन से प्रेरित सौरभ की साकार प्रतिमा है। प्रसाद जी की यह नारी भावना छायावादी काव्य के सर्वथा अनुकूल है लेकिन यह नारी भावना आधुनिक युगबोध से मेल नहीं खाती।

(vi) नवीन जीवन-दर्शन-कविवर प्रसाद शैव दर्शन के अनुयायी थे। अतः उनके दार्शनिक विचारों पर शैव दर्शन का स्पष्ट प्रभाव है। वे कामायनी के माध्यम से समरसता और आनंदवाद की स्थापना करना चाहते हैं। उनकी रचनाओं, विशेषकर, ‘कामायनी’ में दार्शनिकता और कवित्व का सुंदर समन्वय हुआ है। वे समरसताजन्य आनंदवाद को ही जीवन का परम लक्ष्य स्वीकार करते हैं। ‘कामायनी’ की यात्रा ‘चिंता’ सर्ग से प्रारंभ होकर ‘आनंद’ सर्ग में ही समाप्त होती है।

(vii) राष्ट्रीय भावना-प्रसाद सांस्कृतिक और दार्शनिक चेतना के कवि हैं। यह सांस्कृतिक चेतना उनके राष्ट्रीय भावों की प्रेरक है। उनके नाटकों में कवि का देशानुराग अथवा राष्ट्र-प्रेम अधिक मुखरित हुआ है। उनकी काव्य-रचनाओं में यह राष्ट्र-प्रेम संस्कृति प्रेम के रूप में संकेतित हुआ है। ।
कवि ने अतीत के संदर्भ में वर्तमान का भी चित्रण किया है। ‘चंद्रगुप्त’, ‘स्कंदगुप्त’, ‘ध्रुवस्वामिनी’, ‘जनमेजय का नागयज्ञ’ आदि नाटकों में भी इसी दृष्टिकोण को व्यक्त किया गया है। ‘चंद्रगुप्त’ नाटक का निम्नलिखित गीत कवि की राष्ट्रीय भावना को स्पष्ट करता है-

अरुण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।
सरस तामरस गर्भ विभा पर नाच रही तरु शिखा मनोहर,
छिटका जीवन-हरियाली पर मंगल कुमकुम सारा।

(viii) मानवतावादी दृष्टिकोण-मानवतावाद छायावादी कवियों की उल्लेखनीय प्रवृत्ति है। अनेक स्थलों पर कवि राष्ट्रीयता की भाव-भूमि से ऊपर उठकर मानव-कल्याण की चर्चा करता हुआ दिखाई देता है। प्रसाद जी के काव्य में शाश्वत मानवीय भावों और मानवतावाद को प्रचुर बल मिला है। ‘कामायनी’ में कवि ने मनु, श्रद्धा और इड़ा के प्रतीकों के माध्यम से मानवता के विकास की कहानी कही है और इच्छा, क्रिया एवं ज्ञान के समन्वय पर बल दिया है। समष्टि के लिए व्यक्ति का उत्सर्ग ‘कामायनी’ का संदेश है। श्रद्धा इस बात पर बल देती हुई कहती है

औरों को हँसते देखो मनु हँसो और सुख पाओ।
अपने सुख को विस्तृत कर लो सबको सुखी बनाओ।

‘आनंद’ सर्ग में कवि ने ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की चर्चा करके विश्व-बंधुत्व की भावना का संदेश दिया है। कवि बार-बार मानव-प्रेम पर बल देता है और मानवतावादी दृष्टिकोण को अभिव्यक्त करता है।

4. भाषा-शैली–प्रसाद जी ने प्रबंध और गीति इन दो काव्य-रूपों को ही अपनाया है। प्रेम पथिक’ और ‘महाराणा का महत्त्व’ दोनों उनकी प्रबंधात्मक रचनाएँ हैं। ‘कामायनी’ उनका प्रसिद्ध महाकाव्य है। ‘लहर’, ‘झरना’ और ‘आँसू’ गीतिकाव्य हैं। उनके काव्य में भावात्मकता, संगीतात्मकता, आत्माभिव्यक्ति, संक्षिप्तता, कोमलकांत पदावली आदि सभी विशेषताएँ देखी जा सकती हैं। प्रसाद जी की भाषा साहित्यिक हिंदी है। फिर भी इसे संस्कृतनिष्ठ, तत्सम प्रधान हिंदी भाषा कहना अधिक उचित होगा। प्रसाद जी की भाषा में ओज, माधुर्य और प्रसाद तीनों गुण विद्यमान हैं। उनकी भाषा प्रवाहपूर्ण, प्रांजल, संगीतात्मक और भावानुकूल है। उनकी भाषा की प्रथम विशेषता है लाक्षणिकता। लाक्षणिक प्रयोगों में कवि ने विरोधाभास, मानवीकरण, विशेषण-विपर्यय, प्रतीक आदि उपकरणों के प्रयोग से भाषा में सौंदर्य उत्पन्न कर दिया है। उनकी भाषा की दूसरी विशेषता है- प्रतीकात्मकता। कवि ने प्रकृति के विभिन्न उपादानों को प्रतीक के रूप में प्रयुक्त किया है। उनके सभी प्रतीक प्रभावपूर्ण हैं। कवि ने कुछ स्थलों पर चित्रात्मकता और ध्वन्यात्मकता का भी सफल प्रयोग किया है। .

प्रसाद जी की अलंकार योजना उच्चकोटि की है। शब्दालंकारों की अपेक्षा अर्थालंकारों में उनकी दृष्टि अधिक रमी है। उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, रूपकातिशयोक्ति, अर्थान्तरन्यास आदि प्रसाद जी के प्रिय अलंकार हैं। प्रसाद जी की छंद योजना स्वर और लय की मिठास से अणुप्राणित है। कुछ स्थलों पर कवि ने अतुकांत और मुक्तक छंदों का भी प्रयोग किया है। इस प्रकार भाव और भाषा दोनों ही दृष्टियों से उनका काव्य उच्चकोटि का है।

आत्मकथ्य कविता का सार

प्रश्न-
‘आत्मकथ्य’ शीर्षक कविता का सार लिखिए।
उत्तर-
‘आत्मकथ्य’ जयशंकर प्रसाद की महत्त्वपूर्ण छायावादी कविता है। यह सन् 1932 में ‘हंस’ नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। कवि के मित्रों ने उन्हें आत्मकथा लिखने के लिए आग्रह किया। उसी आग्रह के उत्तर में प्रसाद जी ने यह कविता लिखी थी।

इस कविता में कवि ने बताया है कि यह संपूर्ण संसार नश्वर है। हर जीवन एक दिन मुरझाई पत्ती-सा झड़कर गिर जाता है। इस नीले आकाश के नीचे न जाने कितने जीवनों के इतिहास रचे जाते हैं, किंतु ये व्यंग्य से भरे होने के कारण पीड़ा को प्रकट करते हैं। क्या इन्हें सुनकर किसी को सुख मिला है। मेरा जीवन तो खाली गागर के समान व्यर्थ तथा अभावग्रस्त है। इस दुनिया में मानव स्वार्थ से पूर्ण जीवन जीते हैं। इस संसार में लोग दूसरों के सुखों को छीनकर स्वयं सुखी जीवन जीने की इच्छा रखते हैं। यही जीवन की विडंबना है।

कवि दूसरों के धोखे और अपनी पीड़ा की कहानी सुनाने का इच्छुक नहीं है। कवि के पास दूसरों को सुनाने के लिए जीवन की मीठी व मधुर यादें भी नहीं हैं। उसे अपने जीवन में सुख प्रदान करने वाली मधुर बातें दिखाई नहीं देतीं। उसके जीवन में अधूरे सुख थे जो जीवन के आधे मार्ग में ही समाप्त हो गए। उसका जीवन तो थके हुए यात्री के समान है जिसमें कहीं भी सुख नहीं है। उनके जीवन में जो दुःख से पूर्ण यादें हैं, उन्हें भला कोई क्यों सुनना चाहेगा। उसके इस लघु जीवन में बड़ी-बड़ी उपलब्धियाँ भी नहीं हैं जिन्हें वह दूसरों को सुना सके। अतः कवि इस आत्मकथ्य के नाम पर चुप रहना ही उचित समझता है। उसे अपनी आत्मकथा अत्यंत सरल एवं साधारण प्रतीत होती है। उसके हृदय की पीड़ाएँ मौन रूप में सोई हुई हैं जिन्हें वह जगाना उचित नहीं समझता। कवि नहीं चाहता कि कोई उसके जीवन के कष्टों को जाने। वह अपने जीवन के कष्टों को स्वयं ही जीना चाहता है।

Hindi आत्मकथ्य Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कविवर जयशंकर प्रसाद की कविता ‘आत्मकथ्य’ के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
‘आत्मकथ्य’ जयशंकर प्रसाद की सोद्देश्य रचना है। इस कविता में उन्होंने अपने जीवन के विषय में संकेत रूप में वह सब कुछ कह दिया है जो बहुत लंबी-चौड़ी आत्मकथा में भी नहीं कहा जा सकता। उन्होंने अपनी इस कविता में उन लोगों को उत्तर दिया है जो लोग उनको आत्मकथा लिखने का आग्रह कर रहे थे। उन्होंने स्पष्ट किया है कि उनके जीवन में आत्मकथा लिखने योग्य महान् उपलब्धियाँ नहीं हैं। उनका जीवन तो दुःखों व अभावों से भरा पड़ा है। इसलिए अभावों व दुःखों की घटनाओं को दोहराने से मनुष्य सदा दुःखी ही होता रहता है। उनके जीवन के कुछ मधुर एवं प्रसन्नता के पल भी रहे हैं जो उनके जीवन की निजी निधि हैं। उन्हें वे सबके सामने व्यक्त नहीं करना चाहते। अतः स्पष्ट है कि प्रसाद जी ने अपनी इस कविता में अपने विषय में कुछ न कहकर भी सब कुछ कह दिया है। यही इस कविता का लक्ष्य है। .

प्रश्न 2.
कवि अपने जीवन के किस प्रसंग को उद्घाटित नहीं करना चाहता और क्यों?
उत्तर-
कवि अपने जीवन में किसी के प्रति किए प्रेमभाव के प्रसंग को लोगों के सामने व्यक्त नहीं करना चाहता था। वह नहीं चाहता था कि जिस प्रेम के सुख को उसने पाया ही नहीं अपितु उसने तो सुख का सपना ही देखा था, भला उसे दूसरों के सामने क्या प्रकट करे। वह प्रेम तो उसके लिए भावी जीवन जीने के लिए प्रेरणा बना रहता है अथवा जीवन जीने की प्रेरणा देता है।

प्रश्न 3.
कवि मधुर चाँदनी रातों की उज्ज्वल गाथाएँ क्यों नहीं गाना चाहता? .
उत्तर-
कवि मधुर चाँदनी रातों में किए गए मधुर प्रेम की कहानियों को निजी दौलत समझता है। वह उनके विषय में लोगों से कुछ नहीं कहना चाहता। उन मधुर स्मृतियों पर केवल कवि का अधिकार है। वह अपनी उन मधुर यादों के सहारे अपना शेष जीवन जी लेना चाहता है। यही कारण है कि कवि मधुर चाँदनी रातों की उज्ज्वल गाथा को नहीं गाना चाहता।

प्रश्न 4.
‘भोली आत्मकथा’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
कवि ने ‘भोली आत्मकथा’ के माध्यम से यह समझाने का सफल प्रयास किया है कि उसका जीवन अत्यंत सरल एवं सीधा सादा है। उसने अपना सारा जीवन एक साधारण व्यक्ति की भाँति व्यतीत किया है। उसके जीवन में कहीं किसी प्रकार का छलकपट नहीं है। उनके जीवन में संतुष्टि तो है, किंतु किसी को प्रेरणा देने की क्षमता बहुत कम है।

प्रश्न 5.
पठित कविता के आधार पर कवि की प्रिया के रूप-सौंदर्य का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
पठित कविता के अध्ययन से पता चलता है कि कवि को अपनी प्रिया से मिलने के बहुत कम क्षण प्राप्त हुए थे। कवि ने स्वयं स्वीकार किया है कि उनकी प्रिया के गाल लाल और मस्ती भरे थे। ऐसा लगता था मानो प्रातःकाल की लालिमा कवि की प्रिया के गालों की लालिमा से उधार ली हुई है। कहने का तात्पर्य है कि कवि की प्रिया के चेहरे की लालिमा प्रातःकाल की लालिमा से भी अधिक सुंदर है।

सदेश/जीवन-मूल्यों संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 6.
‘आत्मकथ्य’ कविता का मूलभाव स्पष्ट कीजिए। [H.B.S.E. March, 2019 (Set-A, D), 2020 (Set-D)]
उत्तर-
‘आत्मकथ्य’ कविता में कवि के जीवन के रहस्यों का आभास मिलता है। कवि स्वयं को एक सामान्य व्यक्ति बताता है। यह उनके व्यक्तित्व की उदारता है। कवि के अनुसार उसका जीवन दुर्बलताओं, अभावों व दुःखों से भरा हुआ है। उसके जीवन में मधुर क्षण बहुत कम आए हैं। कवि ने मधुर सपने देखे किंतु वे पूरा होने से पहले ही मिट गए थे। उसका जीवन अत्यंत सरल एवं साधारण रहा है। कवि ने स्पष्ट किया है कि उसके जीवन में कुछ महान् नहीं है जिसे वह आत्मकथा में लिखकर लोगों के सामने प्रस्तुत करे। उसका जीवन तो अभावों से भरा हुआ है। उसके जीवन में मधुर क्षण भी आए हैं जिन्हें वह किसी दूसरे के सामने प्रकट नहीं करना चाहता। कवि अपनी बातें बताने की अपेक्षा दूसरों की कहानी सुनना अच्छा समझता है।

प्रश्न 7.
“आत्मकथ्य’ शीर्षक कविता के आधार पर बताएँ कि प्रसाद जी का जीवन कैसा रहा?
उत्तर-
‘आत्मकथ्य’ नामक कविता से पता चलता है कि जयशंकर प्रसाद का जीवन सरल, सहज एवं विनम्रता से युक्त था। वे दिखावे में जरा भी विश्वास नहीं रखते थे। इस आत्मकथा को लिखकर वे अपनी प्रशंसा के पक्ष में नहीं थे। पठित कविता से पता चलता है कि उनके जीवन में दुःखों एवं अभावों का पक्ष ही भारी रहा। सुख के क्षण बहुत कम थे। इसलिए वे बीते दुःखद जीवन को दोहराना नहीं चाहते थे। उनके जीवन में जो मधुर क्षण थे, उन्हें वे अपनी निजी संपत्ति समझकर दूसरों के सामने व्यक्त नहीं करना चाहते। इसलिए उन्होंने बताया है कि उनके जीवन में ऐसा कुछ नहीं था जिसे पढ़कर लोग सुख व आनंद अनुभव कर सकें।

प्रश्न 8.
कवि अपनी आत्मकथा लिखने के प्रस्ताव को क्यों ठुकरा देता है?
उत्तर-
कवि का मत है कि आत्मकथा तो महान् लोग ही लिखा करते हैं क्योंकि उनके जीवन की महान् उपलब्धियों को पढ़ने . व सुनने से लोगों को जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा मिलती है। किंतु कवि कहता है कि उसके जीवन में कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है जिसे लिखकर बताया जाए। उसके जीवन में अभाव-ही-अभाव हैं जिन्हें सुनकर किसी को प्रसन्नता नहीं मिल सकती। इसके अतिरिक्त उन्होंने कहा है कि उनके मन में दुःख की स्मृतियाँ थककर सो गई हैं। उन्हें जगाने का अभी उचित समय नहीं है। उन्हें जगाने से मन को पीड़ा ही पहुँचेगी। इसलिए कवि आत्मकथा लिखने के प्रस्ताव को ठुकरा देता है।

Hindi आत्मकथ्य Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
कवि आत्मकथा लिखने से क्यों बचना चाहता है?
उत्तर-
कवि आत्मकथा लिखने से इसलिए बचना चाहता है क्योंकि उसका जीवन साधारण-सा रहा है। उसमें कुछ भी ऐसा महत्त्वपूर्ण नहीं है जिसे पढ़कर लोगों को सुख व आनंद प्राप्त हो सके। फिर उसके जीवन में दुःख और अभावों की भरमार रही है जिन्हें कवि दूसरों से बाँटना नहीं चाहता। उसके मन में किसी के प्रति अनुरक्ति की भावना थी, उसे भी कवि किसी को बाँटना नहीं चाहता। कवि द्वारा आत्मकथा न लिखने के ये ही कारण रहे हैं।

प्रश्न 2.
आत्मकथा सुनाने के संदर्भ में, ‘अभी समय भी नहीं’ कवि ऐसा क्यों कहता है?
उत्तर-
कवि द्वारा यह कहना कि ‘अभी समय भी नहीं है’ के दो प्रमुख कारण रहे होंगे-प्रथम, उसने अभी तक कोई महान् कार्य नहीं किया कि उसके बारे में आत्मकथा लिखकर संसार भर को बताया जाए। दूसरा प्रमुख कारण यह हो सकता है कि कवि शांत चित्त है। उसके जीवन में व्यथा-ही-व्यथा है। उन्हें सुनाकर फिर से अपने मन को अशांत क्यों किया जाए।

प्रश्न 3.
स्मृति को ‘पाथेय’ बनाने से कवि का क्या आशय है?
उत्तर-
जिस प्रकार एक पथिक को यात्रा पूरी करने के लिए मार्ग में पाथेय की आवश्यकता पड़ती है उसी प्रकार अपनी लंबी एवं दुःखों से भरी जीवन-यात्रा में कवि ने अपने जीवन की सुखद एवं मधुर स्मृतियों को मन में संजोया है ताकि उनके सहारे वे आगे के पथ में पाथेय का काम करती रहें अर्थात् आने वाला जीवन उन मधुर यादों के सहारे व्यतीत हो सके। .

प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
(ख) जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उत्तर-
(क) कवि ने इन पंक्तियों में स्पष्ट किया है कि उसने जिस सुख का सपना देखा था वह सुख कभी नहीं मिला। उसकी पत्नी या प्रेमिका भी उसके आलिंगन में आते-आते रह गई। वह मुस्कराकर उसकी ओर बढ़ी, किंतु कवि के आलिंगन में न आ सकी। वह उसकी पहुँच से सदा के लिए दूर चली गई। कहने का भाव यह है कि कवि को दांपत्य सुख कभी प्राप्त न हो सका।
(ख) कवि ने अपनी प्रिया की सुंदरता का उल्लेख करते हुए कहा है कि उसके गाल लाल एवं मस्ती भरे थे। ऐसा लगता है कि प्रेममयी भोर की बेला भी अपनी लालिमा उसके मतवाले गालों से लिया करती थी। कवि के कहने का भाव है कि उसकी प्रिया के मुख की सुंदरता प्रातःकालीन लालिमा से अधिक सुंदर थी।

प्रश्न 5.
‘उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की’-कथन के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है? .
उत्तर-
इस कथन के माध्यम से कवि ने स्पष्ट किया है कि निज प्रेम के मधुर प्रसंगों को सबके सामने प्रकट नहीं किया जाता। मधुर चाँदनी रात में बिताए गए मधुर क्षण कवि को उज्ज्वल गाथा के समान लगते हैं। ऐसी उज्ज्वल गाथा अत्यंत निजी संपत्ति होती है। अतः ऐसे क्षणों को आत्मकथा में लिखकर अपना मजाक बनवाना है। अतः आत्मकथा में उनका लिखना आवश्यक नहीं।

प्रश्न 6.
‘आत्मकथ्य’ कविता की काव्यभाषा की विशेषताएँ उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर-
आत्मकथ्य एक छायावादी कविता है। इसमें कवि ने संस्कृतनिष्ठ भाषा का प्रयोग किया है अर्थात् इसमें संस्कृत की तत्सम शब्दावली का प्रयोग किया है; जैसे- …
“उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।” कवि ने इस कविता की भाषा में प्रकृति के विभिन्न उपमानों का प्रयोग किया है, जिससे विषय अत्यंत रोचक बन गया है। मधुप, पत्तियाँ, नीलिमा, चाँदनी रात आदि इसके उदाहरण हैं। इसके अतिरिक्त मधुप, रीति गागर आदि प्रतीकों का भी प्रयोग किया गया है। संपूर्ण कविता की भाषा में गेय तत्त्व विद्यमान है। अन्त्यानुप्रास अलंकार के सफल प्रयोग से भाषा में लय बनी रहती है; यथा-

“उसकी स्मृति पाथेय बनी है, थके पथिक की पंथा की।
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की? ॥”

स्वर मैत्री के कारण भी भाषा संगीतात्मक बन पड़ी है। चित्रात्मकता भाषा की अन्य प्रमुख विशेषता है। कवि ने इसके द्वारा पाठक के मन पर शब्दचित्र अंकित किए हैं जिससे पाठक के मन पर कविता का प्रभाव देर तक बना रहता है।

प्रश्न 7.
कवि ने जो सुख का स्वप्न देखा था उसे कविता में किस रूप में अभिव्यक्त किया है?
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में कवि ने बताया है कि उसने जो सुख का स्वप्न देखा था, वह उसे प्राप्त नहीं कर पाया था। वह स्वप्न अधूरा ही रह गया था। किंतु उस स्वप्न की स्मृति उसके मन की गहराइयों में बसी हुई है। कवि के हृदय में अपनी प्रिया की स्मृति बसी हुई है। कवि के लिए सुख के वे दिन भुलाए नहीं भूलते। उसकी प्यार भरी वे चाँदनी रातें उसके लिए सदा याद रखने योग्य थीं। वे स्मृतियाँ उनके लिए महत्त्वपूर्ण संबल थीं। उसके जीवन में एक अपूर्व आनंद का संचार करती थीं। प्रिया की हँसी का स्रोत तो उसके जीवन के कण-कण को सराबोर किए रहता था। कवि उस स्वप्न को प्राप्त नहीं कर पाया। ज्यों हि कवि ने उसे प्राप्त करने के लिए बाँहें फैलायी तो आँख खुल गई और स्वप्न अपना न हो सका। इस प्रकार कवि ने इस कविता में सुख के स्वप्न को मधुर स्मृतियों के रूप में प्रस्तुत किया है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 8.
इस कविता के माध्यम से प्रसाद जी के व्यक्तित्व की जो झलक मिलती है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
इस कविता के माध्यम से पता चलता है कि जयशंकर प्रसाद अत्यंत सरल स्वभाव के व्यक्ति थे। वे अंतर्मुखी होते हुए भी यथार्थवादी थे। वे सत्यवादी थे और सच कहने में विश्वास रखते थे। विनम्रता उनके व्यक्तित्व की प्रमुख विशेषता थी। वे अपने-आपको एक साधारण व्यक्ति की भाँति समझते थे। इसलिए उन्होंने कहा है
‘तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे यह गागर रीती।’ उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि उनके जीवन में ऐसी कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है जिसका वर्णन वे आत्मकथा में लिखें।
वे बीती बातों को कुरेदने के पक्ष में नहीं हैं। वे नहीं चाहते थे कि विगत जीवन की दुःखद घटनाओं को पुनः याद करके दुःखी हों। वे दिखावे व प्रदर्शन के पक्ष में नहीं थे। वे यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाने वाले व्यक्ति थे। वे अपने सुख-दुःख के क्षणों को स्वयं ही समभाव से झेलने व बिताने के पक्ष में थे।

प्रश्न 9.
आप किन व्यक्तियों की आत्मकथा पढ़ना चाहेंगे और क्यों?
उत्तर-
हम महान् व्यक्तियों की आत्मकथाएँ पढ़ना चाहेंगे क्योंकि उनकी आत्मकथाओं में उनके जीवन की सफलता के रहस्यों का पता चलता है। उनकी आत्मकथाओं को पढ़कर हम भी उनका अनुसरण करते हुए जीवन में सफल बनने का प्रयास करेंगे। महान् व्यक्तियों की आत्मकथा सदा दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत होती है। .

प्रश्न 10.
कोई भी अपनी आत्मकथा लिख सकता है। उसके लिए विशिष्ट या बड़ा होना जरूरी नहीं। हरियाणा राज्य के गुड़गाँव में घरेलू सहायिका के रूप में काम करने वाली बेबी हालदार की आत्मकथा बहुतों के द्वारा सराही गई। आत्मकथात्मक शैली में अपने बारे में कुछ लिखिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

पाठेतर सक्रियता

  • किसी भी चर्चित व्यक्ति का अपनी निजता को सार्वजनिक करना या दूसरों का उनसे ऐसी अपेक्षा करना सही है-इस विषय के पक्ष-विपक्ष में कक्षा में चर्चा कीजिए।
  • बिना ईमानदारी और साहस के .आत्मकथा नहीं लिखी जा सकती। गांधी जी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ पढ़कर पता लगाइए कि उसकी क्या-क्या विशेषताएँ हैं?

उत्तर-
इन प्रश्नों के उत्तर विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

यह भी जानें

प्रगतिशील चेतना की साहित्यिक मासिक पत्रिका हंस प्रेमचंद ने सन् 1930 से 1936 तक निकाली थी। पुनः सन् 1986 से यह साहित्यिक पत्रिका निकल रही है और इसके संपादक राजेंद्र यादव हैं।
बनारसीदास जैन कृत अर्धकथानक हिंदी की पहली आत्मकथा मानी जाती है। इसकी रचना सन् 1641 में हुई और यह पद्यात्मक है।

आत्मकथ्य का एक अन्य रूप यह भी देखें
मैं वह खंडहर का भाग लिए फिरता हूँ।
मैं रोया, इसको तुम कहते हो गाना,
मैं फूट पड़ा, तुम कहते, छंद बनाना;
क्यों कवि कहकर संसार मुझे अपनाए,
मैं दुनिया का हूँ एक नया दीवाना!
मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ,
मैं मादकता निःशेष लिए फिरता हूँ;
जिसको सुनकर जग झूम, झुके, लहराए,
मैं मस्ती का संदेश लिए फिरता हूँ।
-कवि बच्चन की आत्म-परिचय
कविता का अंश

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