आकाशवाणी

आकाशवाणी

          आज के युग से कुछ युग पूर्व जब लोग कहते थे कि राम लंका से सीता को लेकर पुष्पक विमान द्वारा कुछ ही क्षणों में अयोध्या पहुँच गए या संजय कुरुक्षेत्र के महाभारत का आँखों देखा हाल धृतराष्ट्र को दिल्ली में बैठे-बैठे बताते रहे थे, तो श्रोतागण आश्चर्यचकित हो जाते थे और बुद्धिजीवी प्राणी कपोल कल्पित ठहरा देते थे । प्रत्यक्षवादियों के लिये इन कथाओं पर सहसा विश्वास कर लेना कठिन ही नहीं नितान्त असम्भव था । परन्तु आज आकाश में संचरण करते हुए जहाजों को देखकर, रेडियो पर मास्को और अमेरिका के समाचार सुनकर, टेलीविजन पर दिल्ली में हुए नृत्य को देखकर आज बुद्धिजीवी मानव का मन इस निष्कर्ष पर पहुँच गया है कि प्राचीन काल में अवश्य ही इस प्रकार के वैज्ञानिक साधनों का प्रयोग होता रहा होगा, भले ही वह सर्वसाधारण के लिये आज की भाँति सुलभ न रहे हों। बीसवीं शताब्दी के विज्ञान ने विश्व को चमत्कृत करके विस्मय में डाल दिया है । विज्ञान की शक्ति को हाथ में लेकर आज का युयुत्सु मानव ईश्वर की शक्ति को चुनौती देने से नहीं चूकता ।
          ईश्वर की महिमा की तरह मानव की बुद्धि की भी आज के युग में कोई सीमा नहीं । वह जन्म से ही अपने जीवन को सुखी और सम्पन्न बनाने के लिये अनवरत प्रयत्न करता रहा है। आज हमारे शरीर, मन तथा प्राणों को अनन्त सुविधायें प्राप्त हो रही हैं, ये सब मानव के उन्हीं अनवरत साधनों का फल है जिन्हें वह जन्म से ही अपनी बुद्धि के सहारे करता आया है। आज उसे स्वर्ग जाने की इच्छा नहीं है। वह इस पुण्य भूमि को ही स्वर्ग मानने के प्रयत्नों में रत है। आज के मानव का जीवन सुखी, सरल और सरस है । आज वह एकाकीपन का अनुभव नहीं करता । उसका सम्बन्ध विश्व के समस्त प्राणियों से है। यह अपने दुःख में संसार भर की संवेदनायें सुनता है और दूसरों के हर्ष में अपनी शुभकामनायें प्रकट करता है। विज्ञान के उपयोग ने आज के मनुष्य को उन्नति के शिखर पर आसीन कर दिया है। उसे आज विज्ञान की सर्वांगीण बहुमुखी प्रगति और उन्नति पर आश्चर्य नहीं है। उसके बहुत से आविष्कारों में से एक अदभुत आविष्कार में आकाशवाणी है।
          आज के विज्ञान की महान् सफलता रेडियो और वायरलैस के आविष्कार में निहित है। पहले समाचार तार द्वारा भेजे जाते थे। बिजली के वेग के कारण समाचार कुछ ही सैकिण्डों में हजारों मील दूर पहुँच जाते थे। परन्तु इतनी दूर तक तार लगाना और उन्हें ठीक अवस्था में बनाये रखना कोई साधारण काम नहीं था। आँधी तूफानों में तार टूट जाते थे या उपद्रवी लोग तार काट देते थे। वैज्ञानिकों के मस्तिष्क में यह बात खटकी कि ऐसा भी कोई उपाय होना चाहिये जिससे कि बिना तार की सहायता के भी विद्युत तरंगें एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजी जा सकें। इस सम्बन्ध में, भारतीय वैज्ञानिक डा० जगदीश चन्द्र बसु और पाश्चात्य वैज्ञानिक मारकोनी ने अनेक परीक्षण किये। रेडियो के महान् आविष्कार का श्रेय इटली के मार्कोनी को है। इस महापुरुष अपने अथक प्रयासों के द्वारा रेडियो का आविष्कार करके मानव जाति का महान् उपकार किया। मार्कोनी ने अनेक प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध कर दिया कि मनुष्य की ध्वनि में भी लहरें हैं, वे आकाश में उसी प्रकार संचालित होती हैं जैसे शान्त सरोवर में पत्थर का टुकड़ा फेंकने से लहरें । उसने बिजली के यन्त्रों द्वारा उन ध्वनि लहरों को पकड़ने के कई प्रकार के प्रयोग किये । रेडियो भी उन प्रयोगों में से एक सफल प्रयोग है। बड़े-बड़े नगरों में ध्वनि फैलाने के केन्द्र होते हैं  इन केंद्रों से संगीत, वाद्य, समाचार आदि ध्वनियों को ध्वनि-प्रसारक यन्त्र द्वारा आकाश में फैलाया जाता है। रेडियो इन ध्वनि तरंगों को पकड़ लेता है। मर्कोनी ने रेडियो का आविष्कार सन् १९२१ में किया। आकाशवाणी का केन्द्र सर्वप्रथम इंगलैंड में स्थापित हुआ । इंगलैंड से न्यूजीलैंड तक समाचार भेजकर उसने अपने महान् आविष्कार की धाक सारे संसार में जमा दी । उत्तरोत्तर इसका विकास होता गया। आज हम अपनी इच्छानुसार कहीं का भी प्रोग्राम सुन सकते हैं। आधुनिक आविष्कारों में रेडियो का स्थान सर्वोच्च है ।
          रेडियो के आविष्कार ने मानव समाज की अनेक प्रकार से सेवा की है। विश्व के सभी राष्ट्र आज एक-दूसरे के निकट हैं, वे आपस में एक-दूसरे के हर्ष व शोक में उल्लास और संवेदना प्रकट करते हैं। इस प्रकार, आज समस्त विश्व बन्धुत्व और एकात्मकता की पुनीत धारा में प्रवाहित हो रहा है।
          देश-विदेश में घटित होने वाली घटनाओं को आज हम तत्क्षण ही घर बैठे सुन लेते हैं। पं० नेहरू ने अमेरिका और रूस की यात्रा करके जो आनन्द प्राप्त किये थे उन आनन्दपूर्ण समाचारों को हमने उन्हीं क्षणों में अपने-अपने घरों में सुन लिया। आज हमारे लोकप्रिय नेता लोग बोलते दिल्ली में ही हैं पर सारा विश्व कान लगाकर सुनता है। यह सब चमत्कार रेडियो का ही है।
          व्याख्यान और समाचार आदि के साथ-साथ रेडियो से और भी बहुत लाभ हैं । रेडियो के द्वारा हम बड़े से बड़े उपदेशों को मनोरंजन के माध्यम से जनता तक पहुँचा सकते हैं। प्रातः से संध्या तक जीविकोपार्जन के संघर्षों में व्यस्त मानव जब परिश्रान्त होकर शाम को घर आता है तब रेडियो का मधुर संगीत कुछ ही क्षणों में उसे नवस्फूर्ति प्रदान कर देता है। आज का रेडियो केवल मनोविनोद की ही वस्तु नहीं है अपितु उसमें शैक्षणिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक और अन्य धारायें भी प्रभावित होती हैं। अतः रेडियो मानव के हृदय को ही स्पर्श नहीं करता, बल्कि बुद्धि को सन्तुलित भोजन भी प्रदान करता है। मनुष्य के बौद्धिक विकास और मानसिक परिष्कार के लिये रेडियो महत्वपूर्ण सेवा कर रहा है। रेडियो से देहाती, साहित्यिक, फौजी, प्रहसन, आलोचना आदि सभी प्रकार के कार्यक्रम प्रसारित किये जाते हैं। जहाँ समाचारों के प्रसारण का प्रश्न है, अब ऐसी व्यवस्था कर दी गयी है कि दिन में कई बार समाचार प्रसारित किये जाते हैं। जिससे प्रत्येक व्यक्ति जब उसे समय और सुविधा मिले, प्रमुख समाचार सुन सके । उच्च कोटि के साधक कलाकारों को आकाशवाणी से बहुत प्रोत्साहन मिलता है। ललित कलाओं के विकास में रेडियो ने महत्वपूर्ण सहयोग प्रदान किया है। भिन्न-भिन्न रुचि के मनुष्य अपनी-अपनी रुचि के अनुसार कार्यक्रम सुनते हैं। व्यापारियों के लिये बाजार भाव, किसानों के लिये खेती की बातें, मौसम का हाल और देहाती प्रोग्राम, स्त्रियों के लिये बहिनों के प्रोग्राम में घरेलू काम धन्धे की बात; परिवार को उन्नतिशील । बनाने के उपाय, परिवार नियोजन की समस्या और बच्चों के लिये बच्चों का कार्यक्रम प्रसारित किया जाता है। समय-समय पर योग्य विद्वानों की सामयिक एवं बहुचर्चित विषयों पर वार्तायें और गोष्ठियाँ प्रसारित की जाती हैं। इनसे सभी रेडियोधारी लाभ उठा सकते हैं। दिल्ली, जालन्धर, लखनऊ, वाराणसी, मथुरा, वृन्दावन, बम्बई, कलकत्ता, मद्रास आदि भारत के प्रमुख नगरों में इस समय जितने भी ध्वनि-प्रसारक केन्द्र कार्य कर रहे हैं, इन सबका नियन्त्रण दिल्ली आकाशवाणी केन्द्र से होता है ।
          रेडियो की सीमा यहीं समाप्त नहीं हो जाती, इसका एक और भी आश्चर्यजनक रूप हमारे सामने है, जो कि रेडियो के सफल भविष्य की ओर संकेत करता है और वह है टेलीविजन, जिसके द्वारा हम वक्ता की मुखाकृति को भी देख सकते हैं। टेलीविजन मूल्य की अधिकता के कारण सर्वसाधारण के लिये अभी सुलभ नहीं है। भविष्य में सम्भवतः इसका मूल्य अपेक्षाकृत कम हो जायेगा और सर्वसाधारण इससे अपना, मनोविनोद कर सकेंगे ।
          इस प्रकार, हम देखते हैं कि रेडियो के द्वारा विदेशों के नवीन समाचार, प्रसिद्ध महाकवियों की रचनायें, गीत-शिल्पियों के मधुर गीत, नये विज्ञान और सूचनायें, सुन्दर कहानियों और एकांकी नाटक, आदि का लाभ प्राप्त करते हैं । तरह-तरह के धारावाहिक नित्य प्रसारित किये जाते हैं जो शिक्षाप्रद भी होते हैं और मनोरंजनप्रद भी । हम जिन मनोविनोदों का आनन्द प्राप्त करने के लिये हजारों रुपये व्यय करते थे या दूर स्थानों पर होने के कारण उनसे वंचित रह जाते थे, वे आज मार्कोनी की कृपा के कारण सुलभ हो गये हैं। आजकल सरकार ने गाँवों में भी रेडियो यन्त्र रखने की व्यवस्था कर दी है कि यदि प्रत्येक गाँव में एक भी रेडियो हो तो उससे ग्रामवासी नित्य नवीन समाचार सुन सकते हैं और ज्ञान की ज्ञातव्य बातों को जान सकते हैं। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् देश की समृद्धि बढ़ाने के साथ-साथ लोगों में कला के प्रति भी अभिरुचि बढ़ रही है। मानव रुचि के परिष्कार में रेडियो भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। आशा है कि रेडियो नवीन भारत के निर्माण में शिक्षण के माध्यम की दृष्टि से तथा शिष्य मनोरंजन की दृष्टि से पूर्ण सहयोग देता रहेगा। परन्तु अब कुछ दिनों से रेडियो में इतने भद्दे अश्लील, कुवासनापूर्ण गाने प्रसारित किये जाने लगे हैं जिनका प्रभाव आज के नवयुवकों व नवयुवतियों के मस्तिष्क पर अच्छा नहीं पड़ रहा, कहीं ऐसा न हो कि एक दिन यह सिनेमा की तरह पतन की ओर ले जाने वाली वस्तुओं में अग्रगण्य हो जाये। प्रसारण अधिकारियों को ध्यान देना चाहिये कि जहाँ गानों को घर के सभी सदस्य बहू, बेटी, लड़का सभी सुनते और आनन्द ले रहे हैं, और वहीं पिता और पुत्री बैठकर रेडियो का कुरुचि और वासना का दुर्गन्धपूर्ण गायन सुन रहे हैं, क्या यह उचित है ? पिछले वर्षों से आकाशवाणी के कार्यक्रमों में सुधार आया है तथा समाज कल्याणकारी कार्यक्रम प्रसारित किये जाने लगे हैं जिनसे ज्ञानवर्धक होता है।
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