अपवाह Drainage
अपवाह Drainage
♦ अपवाह शब्द एक क्षेत्र के नदी तन्त्र की व्याख्या करता है।
♦ दिशाओं से छोटी-छोटी धाराएँ आकर एक साथ मिल जाती हैं तथा एक मुख्य नदी का निर्माण करती हैं, अन्ततः इनका निकास किसी बड़े जलाशय, जैसे- झील या समुद्र या महासागर में होता है। एक नदी तन्त्र द्वारा जिस क्षेत्र का जल प्रवाहित होता है। उसे एक अपवाह द्रोणी कहते हैं।
♦ विश्व की सबसे बड़ी अपवाह द्रोणी मिस्र की नील नदी की है।
♦ कोई भी ऊँचा क्षेत्र, जैसे- पर्वत या उच्च भूमि दो पड़ोसी अपवाह द्रोणियों को एक-दूसरे से अलग करती हैं। इस प्रकार की उच्च भूमि को जल विभाजक कहते हैं।
अपवाह प्रतिरूप
♦ एक अपवाह प्रतिरूप में धाराएँ एक निश्चित प्रतिरूप का निर्माण करती हैं, जो कि उस क्षेत्र की भूमि की ढाल, जलवायु सम्बन्धी अवस्थाओं तथा अधःस्थ शैल संरचना पर आधारित है।
♦ यह द्रुमाकृतिक, जालीनुमा आयताकार तथा अरीय अपवाह प्रतिरूप हो सकता है।
♦ दुमाकृतिक प्रतिरूप तब बनता है जब धाराएँ उस स्थान के भूस्थल की ढाल के अनुसार बहती हैं इस प्रतिरूप में मुख्य धारा तथा उसकी सहायक नदियाँ एक वृक्ष की शाखाओं की भाँति प्रतीत होती हैं।
♦ जब सहायक नदियाँ मुख्य नदी से समकोण पर मिलती हैं तब जालीनुमा प्रतिरूप का निर्माण करती हैं। जालीनुमा प्रतिरूप वहाँ विकसित होता है जहाँ कठोर और मुलायम चट्टानें समानान्तर पाई जाती हैं।
♦ आयताकार अपवाह प्रतिरूप प्रबल सन्धित शैलीय भू-भाग पर विकसित करता है।
♦ अरीय प्रतिरूप तब विकसित होता है जब केन्द्रीय शिखर या गुम्बद जैसी संरचना धाराएँ विभिन्न दिशाओं में प्रवाहित होती हैं।
♦ विभिन्न प्रकार के अपवाह प्रतिरूप का संयोजन एक ही अपवाह द्रोणी में भी पाया जा सकता है।
भारत में अपवाह तन्त्र
♦ भारत के अपवाह तन्त्र का नियन्त्रण मुख्यतः भौगोलिक आकृतियों के द्वारा होता है। इस आधार पर भारतीय नदियों को दो मुख्य वर्गों में विभाजित किया गया है
1. हिमालय की नदियाँ तथा
2. प्रायद्वीपीय नदियाँ
♦ भारत के दो मुख्य भौगोलिक क्षेत्रों से उत्पन्न होने के कारण हिमालय तथा प्रायद्वीपीय नदियाँ एक-दूसरे से भिन्न हैं।
♦ हिमालय की अधिकतर नदियाँ बारहमासी नदियाँ होती हैं। इनमें वर्ष भर पानी रहता है, क्योंकि इन्हें वर्षा के अतिरिक्त ऊँचे पर्वतों से पिघलने वाले हिम द्वारा भी जल प्राप्त होता है।
♦ हिमालय की दो मुख्य नदियाँ सिन्धु तथा ब्रह्मपुत्र इस पर्वतीय शृंखला के उत्तरी भाग से निकलती हैं। इन नदियों ने पर्वतों को काटकार गॉर्जों का निर्माण किया है।
♦ हिमालय की नदियाँ अपने उत्पत्ति के स्थान से लेकर समुद्र तक के लम्बे रास्ते को तय करती हैं। ये अपने मार्ग के ऊपरी भागों में तीव्र अपरदन क्रिया करती हैं तथा अपने साथ भारी मात्रा में सिल्ट एवं बालू का संवहन करती हैं।
♦ मध्य एवं निचले भागों में ये नदियाँ विसर्प, गोखुर झील तथा अपने बाढ़ वाले मैदानों में बहुत सी अन्य निक्षेपण आकृतियों का निर्माण करती हैं। ये पूर्ण विकसित डेल्टाओं का भी निर्माण करती हैं।
♦ अधिकतर प्रायद्वीपीय नदियाँ मौसमी होती हैं, क्योंकि इनका प्रवाह वर्षा पर निर्भर करता है।
♦ शुष्क मौसम में बड़ी नदियों का जल भी घटकर छोटी-छोटी धाराओं में बहने लगता है।
♦ हिमालय की नदियों की तुलना में प्रायद्वीपीय नदियों की लम्बाई कम तथा छिछली हैं। फिर भी इनमें से कुछ केन्द्रीय उच्च भूमि से निकलती हैं तथा पश्चिम की तरफ बहती हैं।
♦ प्रायद्वीपीय भारत की अधिकतर नदियाँ पश्चिमी घाट से निकलती हैं तथा बंगाल की खाड़ी की तरफ बहती हैं।
हिमालय की नदियाँ
♦ सिन्धु, गंगा तथा ब्रह्मपुत्र हिमालय से निकलने वाली प्रमुख नदियाँ हैं। ये नदियाँ लम्बी हैं तथा अनेक महत्त्वपूर्ण एवं बड़ी सहायक नदियाँ आकर इनमें मिलती हैं।
♦ किसी नदी तथा उसकी सहायक नदियों की नदी तन्त्र कहा जाता है।
सिन्धु नदी तन्त्र
♦ सिन्धु नदी का उद्गम मानसरोवर झील के निकट तिब्बत में है। पश्चिम की ओर बहती हुई यह नदी भारत में जम्मू-कश्मीर के लद्दाख जिले से प्रवेश करती है। इस भाग में यह एक बहुत ही सुन्दर दर्शनीय गार्ज का निर्माण करती है। इस क्षेत्र में बहुत सी सहायक नदियाँ जैसे-जास्कर, नूबरा, श्योक तथा हुन्जा इस नदी में मिलती हैं।
♦ सिन्धु नदी बलूचिस्तान तथा गिलगित से बहते हुए अटक में पर्वतीय क्षेत्र से बाहर निकलती है। सतलज, व्यास, रावी, चेनाब तथा झेलम आपस में मिलकर पाकिस्तान में मिठानकोट के पास सिन्धु नदी में मिल जाती है । इसके बाद यह नदी दक्षिण की तरफ बहती है तथा अन्त में कराची से पूर्व की ओर अरब सागर में मिल जाती है।
♦ सिन्धु नदी के मैदान का ढाल बहुत धीमा है।
♦ सिन्धु द्रोणी का एक तिहाई से कुछ अधिक भाग भारत के जम्मू-कश्मीर, हिमाचल तथा पंजाब में तथा शेष भाग पाकिस्तान में स्थित है।
♦ 2900 किमी लम्बी सिन्धु नदी विश्व की लम्बी नदियों में से एक है।
♦ सिन्धु जल समझौता सन्धि के अनुच्छेदों (1960) के अनुसार भारत इस नदी प्रक्रम के सम्पूर्ण जल का केवल 20% जल उपयोग कर सकता है। इस जल का उपयोग हम पंजाब, हरियाणा एवं राजस्थान के दक्षिण-पश्चिम भागों में सिंचाई के लिए करते हैं।
गंगा नदी तन्त्र
♦ गंगा की मुख्य धारा ‘भागीरथी’ गंगोत्री हिमानी से निकलती है तथा अलकनन्दा उत्तराखण्ड के देवप्रयाग में इससे मिलती हैं।
♦ हरिद्वार के पास गंगा पर्वतीय भाग को छोड़कर मैदानी भाग में प्रवेश करती है।
♦ हिमालय से निकलने वाली बहुत-सी नदियाँ आकर गंगा में मिलती हैं, इनमें से कुछ प्रमुख नदियाँ है— यमुना, घाघरा, गण्डक तथा कोसी।
♦ यमुना नदी हिमालय के यमुनोत्री हिमानी से निकलती है। यह गंगा के दाहिने किनारे के समानान्तर बहती है तथा इलाहाबाद में गंगा में मिल जाती है।
♦ घाघरा, गण्डक तथा कोसी, नेपाल हिमालय से निकलती हैं। इनके कारण प्रत्येक वर्ष उत्तरी मैदान के कुछ हिस्से में बाढ़ आती है, जिससे बड़े पैमाने पर जान-माल का नुकसान होता है, लेकिन ये वे नदियाँ हैं, जो मिट्टी को उपजाऊपन प्रदान कर कृषि योग्य भूमि बना देती हैं।
♦ प्रायद्वीपीय उच्चभूमि से आने वाली मुख्य सहायक नदियाँ चम्बल, बेतवा तथा सोन हैं। ये अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों से निकलती है। इनको लम्बाई कम तथा इनमें पानी की मात्रा भी कम होती है।
♦ बाएँ तथा दाहिने किनारे की सहायक नदियों के जल से परिपूर्ण होकर गंगा पूर्व दिशा में, पश्चिम बंग के फरक्का तक बहती है। यह गंगा डेल्टा का सबसे उत्तरी बिन्दु है। यहाँ नदी दो भागों में बँट जाती है, भागीरथी, हुगली (जो इसकी एक वितरिका है), दक्षिण की तरफ बहती है तथा डेल्टा के मैदान से होते हुए बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। मुख्य धारा दक्षिण की ओर बहती हुई बांग्लादेश में प्रवेश करती है एवं ब्रह्मपुत्र नदी इससे आकर मिल जाती है।
♦ अन्तिम चरण में गंगा और ब्रह्मपुत्र समुद्र में विलीन होने से पहले मेघना के नाम से जानी जाती हैं। गंगा एवं ब्रह्मपुत्र के जल वाली यह वृहद् नदी बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। इन नदियों के द्वारा बनाए गए डेल्टा को सुन्दरवन डेल्टा के नाम से जाना जाता है। सुन्दरवन डेल्टा का नाम वहाँ पाए जाने वाले सुन्दरी पादप से लिया गया है।
♦ सुन्दरवन डेल्टा विश्व का सबसे बड़ा एवं तेजी से वृद्धि करने वाला डेल्टा है। यहाँ रॉयल बंगाल टाइंगर भी पाए जाते हैं।
♦ गंगा की लम्बाई 2500 किमी से अधिक है।
♦ अम्बाला नगर, सिन्धु तथा गंगा नदी तन्त्रों के बीच जल-विभाजक पर स्थित है।
♦ अम्बाला से सुन्दरवन तक मैदान की लम्बाई लगभग 1800 किमी है, परन्तु इसके ढाल में गिरावट मुश्किल से 300 मोटर है। दूसरे शब्दों में, प्रति 6 किमी की दूरी पर ढाल में गिरावट केवल 1 मीटर है। इसलिए इन नदियों में अनेक बड़े-बड़े विसर्प बन जाते हैं।
ब्रह्मपुत्र नदी तन्त्र
♦ ब्रह्मपुत्र नदी तिब्बत की मानसरोवर झील के पूर्व तथा सिन्धु एवं सतलज के स्रोतों के काफी नजदीक से निकलती है। इसको लम्बाई सिन्धु से कुछ अधिक है, परन्तु इसका अधिकतर मार्ग भारत से बाहर स्थित है।
♦ यह हिमालय के समानान्तर पूर्व की ओर बहती है।
♦ नमचा बारवा शिखर (7757 मीटर) के पास पहुँचकर यह अंग्रेजी के यू (U) अक्षर जैसा मोड़ बनाकर भारत के अरुणाचल प्रदेश में गॉर्ज के माध्यम से प्रवेश करती है। यहाँ इसे दिहांग के नाम से जाना जाता है तथा दिबांग, लोहित, केनुला एवं दूसरी सहायक नदियाँ इससे मिलकर असोम में ब्रह्मपुत्र का निर्माण करती हैं।
♦ ब्रह्मपुत्र को तिब्बत में सांगपो एवं बांग्लादेश मे जमुना कहा जाता है।
♦ तिब्बत एक शीत एवं शुष्क क्षेत्र है। अतः यहाँ इस नदी में जल एवं सिल्ट की मात्रा बहुत कम होती है।
♦ भारत में यह उच्च वर्षा वाले क्षेत्र से होकर गुजरती है। यहाँ नदी में जल एवं सिल्ट की मात्रा बढ़ जाती है।
♦ असोम में ब्रह्मपुत्र अनेक धाराओं में बहकर एक गुम्फित नदी के रूप में बहती है तथा बहुत-से नदीय द्वीपों का निर्माण करती है।
♦ प्रत्येक वर्ष वर्षा ऋतु में यह नदी अपने किनारों से ऊपर बहने लगती है एवं बाढ़ के द्वारा असोम तथा बांग्लादेश में बहुत अधिक क्षति पहुँचाती है।
♦ उत्तर भारत की अन्य नदियों के विपरीत, ब्रह्मपुत्र नदी में सिल्ट निक्षेपण की मात्रा बहुत अधिक होती है। इसके कारण नदी की सतह बढ़ जाती है और यह बार-बार अपनी धारा के मार्ग मे परिवर्तन लाती है।
प्रायद्वीपीय नदियाँ
♦ प्रायद्वीपीय भारत में मुख्य जल विभाजक का निर्माण पश्चिमी घाट द्वारा होता है, जो पश्चिमी तट के निकट उत्तर से दक्षिण की ओर स्थित है। प्रायद्वीपीय भाग की अधिकतर मुख्य नदियाँ जैसे—महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी पूर्व की ओर बहती हैं तथा बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं।
♦ ये नदियाँ अपने मुहाने पर डेल्टा का निर्माण करती हैं।
♦ पश्चिमी घाट से पश्चिम में बहने वाली अनेक छोटी धाराएँ हैं। नर्मदा एवं ताप्ती, दो ही बड़ी नदियाँ हैं जो कि पश्चिम की तरफ बहती हैं और ज्वारनदमुख का निर्माण करती हैं।
♦ प्रायद्वीपीय नदियों का अपवाह द्रोणियाँ आकार में अपेक्षाकृत छोटी हैं।
नर्मदा द्रोणी
♦ नर्मदा का उद्गम मध्य प्रदेश में अमरकण्टक पहाड़ी के निकट है।
♦ यह पश्चिम की ओर एक भ्रंश घाटी में बहती है।
♦ समुद्र तक पहुँचने के क्रम में यह नदी बहुत से दर्शनीय स्थलों का निर्माण करती है।
♦ जबलपुर के निकट संगमरमर के शैलों में यह नदी गहरे गार्ज से बहती है तथा जहाँ यह नदी तीव्र ढाल से गिरती है, वहाँ ‘धुँआमार प्रपात’ का निर्माण करती है।
♦ नर्मदा की सभी सहायक नदियाँ बहुत छोटी हैं, इनमें से अधिकतर समकोण पर मुख्य धारा से मिलती हैं।
♦ नर्मदा द्रोणी मध्य प्रदेश तथा गुजरात के कुछ भागों में विस्तृत है।
ताप्ती द्रोणी
♦ ताप्ती का उद्गम मध्य प्रदेश के बेतुल जिले में सतपुड़ा की शृंखलाओं में है।
♦ यह भी नर्मदा के समानान्तर एक भ्रंश घाटी में बहती है, लेकिन इसकी लम्बाई बहुत कम है।
♦ इसकी द्रोणी मध्य प्रदेश, गुजरात तथा महाराष्ट्र राज्य में है।
♦ अरब सागर तथा पश्चिमी घाट के बीच का तटीय मैदान बहुत अधिक संकीर्ण है। इसलिए तटीय नदियों की लम्बाई बहुत कम है।
♦ पश्चिम की ओर बहने वाली मुख्य नदियाँ साबरमती, माही, भारत-पूजा तथा पेरियार हैं।
गोदावरी द्रोणी
♦ गोदावरी सबसे बड़ी प्रायद्वीपीय नदी है। यह महाराष्ट्र के नासिक जिले में पश्चिम घाट के ढालों से निकलती है।
♦ इसकी लम्बाई लगभग 1500 किमी है।
♦ यह बहकर बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
♦ प्रायद्वीपीय नदियों में इसका अपवाह तन्त्र सबसे बड़ा
♦ इसकी द्रोणी महाराष्ट्र ( नदी द्रोणी का 50% भाग ), मध्य प्रदेश, ओडिशा तथा आन्ध्र प्रदेश में स्थित है।
♦ गोदावरी में अनेक सहायक नदियाँ मिलती हैं, जैसे- पूर्णा, वर्धा, प्रान्हिता, मान्जरा, वेनगंगा तथा पेनगंगा। इनमें से अन्तिम तीनों सहायक नदियाँ बहुत बड़ी हैं।
♦ बड़े आकार और विस्तार के कारण इसे ‘दक्षिण गंगा’ के नाम से भी जाना जाता है।
महानदी द्रोणी
♦ महानदी का उद्गम छत्तीसगढ़ की उच्चभूमि से है तथा यह
ओडिशा से बहते हुए बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है।
♦ इस नदी की लम्बाई 860 किमी है।
♦ इसकी अपवाह द्रोणी महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, झारखण्ड तथा ओडिशा में है।
कृष्णा द्रोणी
♦ महाराष्ट्र के पश्चिमी घाट में महाबलेश्वर के निकट एक स्रोत से निकलकर कृष्णा लगभग 1400 किमी बहकर बंगाल की खाड़ी में गिरती है। तुंगभद्रा, कोयना, घाटप्रभा, मुसी तथा भीमा इसकी कुछ सहायक नदियाँ हैं।
♦ इसकी द्रोणी महाराष्ट्र, कर्नाटक तथा आन्ध्र प्रदेश में फैली है।
कावेरी द्रोणी
♦ कावेरी पश्चिमी घाट के ब्रह्मगिरी श्रृंखला से निकलती है तथा तमिलनाडु में कुडलूर के दक्षिण में बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है।
♦ इसकी लम्बाई 760 किमी है।
♦ इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ हैं— अमरावती, भवानी, हेमावती तथा काबिनि।
♦ इसकी द्रोणी तमिलनाडु, केरल तथा कर्नाटक में विस्तृत है।
♦ भारत में दूसरा सबसे बड़ा जलप्रपात कावेरी नदी बनाती है। इसे शिवसमुद्रम् के नाम से जाना जाता है। यह प्रपात मैसूर, बंगलुरु तथा कोलार स्वर्ण क्षेत्र को विद्युत प्रदान करता है। उपरोक्त बड़ी नदियों के अतिरिक्त कुछ छोटी नदियाँ हैं, जो पूर्व की तरफ बहती हैं। दामोदर, ब्रह्मनी, वैतरणी तथा सुवर्ण रेखा कुछ महत्त्वपूर्ण उदाहरण हैं।
झीलें
♦ पृथ्वी की सतह के गर्त वाले भागों में जहाँ जल जमा हो जाता है, उसे झील कहते हैं।
♦ बड़े आकार वाली झालों को समुद्र कहा जाता है, जैसे – केस्पियन, मृत तथा अरब सागर ।
♦ भारत में भी बहुत-सी झीलें हैं। ये एक-दूसरे से आकार तथा अन्य लक्षणों में भिन्न हैं।
♦ अधिकतर झीलें स्थायी होती हैं तथा कुछ में केवल वर्षा ऋतु में ही पानी होता है, जैसे— अन्तर्देशीय अपवाह वाले अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों की द्रोणी वाली झीलें।
♦ भारत में कुछ ऐसी झीलें हैं, जिनका निर्माण हिमानियों एवं बर्फ चादर की क्रिया के फलस्वरूप हुआ है। जबकि कुछ अन्य झीलों का निर्माण वायु, नदियों एवं मानवीय क्रियाकलापों के कारण हुआ है।
♦ एक विसर्प नदी बाढ़ वाले क्षेत्रों में कटकर गौखुर झील को निर्माण करती है ।
♦ स्पिट तथा बार (रोधिका) तटीय क्षेत्रों में लैगून का निर्माण करते हैं, जैसे—चिल्का झील, पुलीकट झील तथा कोलेरू झील ।
♦ अन्तर्देशीय भागों वाली झीलें कभी-कभी मौसमी होती हैं, उदाहरण के लिए राजस्थान की सांभर झील, जो एक लवण जल वाली झील है। इसके जल का उपयोग नमक के निर्माण के लिए किया जाता है।
♦ मीठे पानी की अधिकांश झीलें हिमालय क्षेत्र में हैं। ये मुख्यतः हिमानी द्वारा बनी हैं। दूसरे शब्दों में, ये तब बनीं जब हिमानियों ने या कोई द्रोणी गहरी बनाई, जो बाद में हिम पिघलने से भर गई या किसी क्षेत्र में शिलाओं अथवा मिट्टी से हिमानी मार्ग बँध गए। इसके विपरीत, जम्मू तथा कश्मीर की वूलर झील भू-गर्भीय क्रियाओं से बनी है। यह भारत की सबसे बड़ी मीठे पानी वाली प्राकृतिक झील है।
♦ डल झील, भीमताल, नैनीताल, लोकताक तथा बड़ापानी कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण मीठे पानी की झीलें हैं।
♦ जल विद्युत उत्पादन के लिए नदियों पर बाँध बनाने से भी झील का निर्माण हो जाता है, जैसे—गुरु गोविन्द सागर ( भाखड़ा-नांगल परियोजना ) ।
♦ झीलें मानव के लिए अत्यधिक लाभदायक होती हैं।
♦ एक झील नदी के बहाव को सुचारु बनाने में सहायक होती है। अत्यधिक वर्षा के समय यह बाढ़ को रोकती है तथा सूखे के मौसम मे यह पानी के बहाव को सन्तुलित करने में सहायता करती है ।
♦ झीलों का प्रयोग जल विद्युत उत्पन्न करने में भी किया जा सकता है।
♦ ये आस-पास के क्षेत्रों की जलवायु को सामान्य बनाती हैं, जलीय पारितन्त्र को सन्तुलित रखती हैं, झीलों की प्राकृतिक सुन्दरता व पर्यटन को बढ़ाती हैं तथा हमें मनोरंजन प्रदान करती हैं।
नदियों का अर्थव्यवस्था में महत्त्व
♦ सम्पूर्ण मानव इतिहास में नदियों का अत्यधिक महत्त्व रहा है। नदियों का जल मूल प्राकृतिक संसाधन है तथा अनेक मानवीय क्रियाकलापों के लिए अनिवार्य है। यही कारण है कि नदियों के तट ने प्राचीन काल से ही आदिवासियों को अपनी ओर आकर्षित किया है।
♦ भारत जैसे देश के लिए, जहाँ कि अधिकांश जनसंख्या जीविका के लिए कृषि पर निर्भर है, वहाँ सिंचाई, नौका संचालन, जल विद्युत निर्माण में नदियों का महत्त्व बहुत अधिक है।
नदी प्रदूषण
♦ नदी जल की घरेलू, औद्योगिक तथा कृषि में बढ़ती माँग के कारण, इसकी गुणवत्ता प्रभावित हुई है। इसके परिणास्वरूप, नदियों से अधिक जल की निकासी होती है तथा इनका आयतन घटता जाता है।
♦ दूसरी ओर, उद्योगों का प्रदूषण तथा अपरिष्कृत कचरे नदी में मिलते रहते हैं। यह केवल जल की गुणवत्ता को ही नहीं, बल्कि नदी के स्वतः स्वच्छीकरण की क्षमता को भी प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए, दिए गए समुचित जल प्रवाह में गंगा का जल लगभग 20 किमी क्षेत्र में फैले बड़े शहरों की गन्दगी को तनु करके समाहित कर सकता है। लेकिन लगातार बढ़ते हुए औद्योगीकरण एवं शहरीकरण के कारण ऐसा सम्भव नहीं हो पाता तथा अनेक नदियों में प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है।
♦ नदियों में बढ़ते प्रदूषण के कारण इनको स्वच्छ बनाने के लिए अनेक कार्य योजनाएँ लागू की गई हैं।
राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना (NRCP)
♦ गंगा कार्य योजना के क्रियाकलापों का पहला चरण सन् 1985 में आरम्भ किया गया एवं इसे 31 मार्च, 2000 को बन्द किया गया था।
♦ राष्ट्रीय नदी संरक्षण प्राधिकरण की कार्यकारी समिति ने गंगा कार्य योजना के प्रथम चरण की प्रगति की समीक्षा की तथा गंगा कार्य योजना के प्रथम चरण से प्राप्त अनुभवों के आधार पर आवश्यक सुझाव दिए। इस कार्य योजना को देश की प्रमुख प्रदूषित नदियों में राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना के अन्तर्गत लागू किया गया है।
♦ गंगा कार्य योजना के दूसरे चरण को राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना के अर्न्तगत शामिल कर लिया गया है ।
♦ विस्तृत राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना में अब 16 राज्यों की 27 नदियों के किनारे बसे 152 शहर शामिल हैं। इस कार्य योजना के तहत 57 जिलों में प्रदूषण को कम करने के लिए कार्य किया जा रहा है।
♦ प्रदूषण को कम करने वाली कुल 215 योजनाओं को स्वीकृति दी गई है।
♦ अभी तक 69 योजनाएँ इस कार्य योजना के तहत पूरी हो चुकी हैं। इसके अन्तर्गत, लाखों लीटर प्रदूषित जल को रोककर उसकी दिशा में परिवर्तन करके परिष्करण करने का लक्ष्य रखा गया है।
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