अनुचित हस्तक्षेप

भारत के आंतरिक मामलों में दूसरे देशों द्वारा की जा रही टिप्पणियों को सरकार ने न केवल खारिज किया है, बल्कि तीखा जवाब देने की चेतावनी भी दी है. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सलाह दी है कि अन्य देशों को राजनीतिक टीका-टिप्पणी करने से बचना चाहिए. उल्लेखनीय है कि कुछ दिन पहले अमेरिका और जर्मनी ने प्रवर्तन निदेशालय द्वारा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी पर बयान जारी किया था. इसके बाद भारतीय विदेश मंत्रालय ने इन देशों के दूतावासों के उच्च अधिकारियों को तलब कर कड़ी आपत्ति जतायी थी. इसके बावजूद अमेरिका ने फिर से अपने बयान को दोहराते हुए उसमें आयकर विभाग द्वारा कांग्रेस के बैंक खातों पर रोक के मुद्दे को भी जोड़ दिया था.

विदेश मंत्री जयशंकर ने स्पष्ट रूप से कहा है कि यदि ऐसी बयानबाजी होती रही, तो उन देशों को बहुत कड़े जवाब के लिए तैयार रहना चाहिए. यह जगजाहिर तथ्य है कि अनेक देश वैश्विक स्तर पर अपने वर्चस्व और प्रभाव को बढ़ाने के लिए दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने का प्रयास करते हैं. अमेरिका और कुछ यूरोपीय देश ऐसा करने में सबसे आगे रहते हैं. ये देश अपने को विशिष्ट समझते हैं और उन्हें लगता है कि वे दुनिया के दारोगा हैं. लोकतंत्र, मानवाधिकार, धार्मिक एवं नागरिक अधिकार, नैतिकता आदि की आड़ में ये देश दबाव बनाने का प्रयास करते हैं. जयशंकर ने उचित ही रेखांकित किया है कि ये उनकी पुरानी आदतें हैं और खराब आदतें हैं. अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में एक-दूसरे देश की संप्रभुता के सम्मान का सिद्धांत आधारभूत सिद्धांत है.

स्थापित आचरणों, परंपराओं और व्यवहारों का अनुपालन अगर कोई देश नहीं करता है, तो फिर उसे भी तैयार रहना चाहिए कि दूसरे देश उसकी राजनीति और कानून-व्यवस्था पर अपने विचार रखेंगे. हाल में चीन ने अरुणाचल प्रदेश की विकास परियोजनाओं तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा को लेकर आपत्ति की थी. उसने प्रदेश के अनेक स्थानों का नामकरण भी किया है. जयशंकर ने फिर रेखांकित किया है कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग है और हमेशा रहेगा. इससे पहले चीन कश्मीर और लद्दाख पर भी निराधार बयान दे चुका है. भारत में संवैधानिक और कानूनी व्यवस्था के अंर्तगत क्या हो रहा है और क्या होना चाहिए, क्या सही है और क्या गलत, इस बारे में विचार करने, समर्थन करने, आलोचना करने या विरोध जताने का अधिकार भारत के लोगों को है. अमेरिका हो, जर्मनी हो या चीन हो, उन्हें अपने देशों की चिंता करनी चाहिए. आपत्तिजनक टिप्पणियों से परस्पर विश्वास को चोट पहुंच सकती है और संबंध प्रभावित हो सकते हैं.

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