समय का सदुपयोग अथवा “समय जात नहिं लागहिं बारा”
समय का सदुपयोग अथवा “समय जात नहिं लागहिं बारा”
नष्ट हुई सम्पत्ति और खोए हुए वैभव को पुनः प्राप्त करने के लिये मनुष्य अनवरत श्रम करता है। एक दिन वह आता है, जबकि वह उसे फिर से प्राप्त करके फूला नहीं समाता । मानव खोए हुए स्वास्थ्य को भी बुद्धिमान वैद्यों की सम्मति पर चलकर, पुष्टिकारक औषधियों का सेवन करके तथा संयत जीवन व्यतीत करके एक बार फिर प्राप्त कर लेता है। भूली हुई और खोई हुई प्रतिष्ठा को मनुष्य थोड़े से श्रम से पुनः प्राप्त करने में समर्थ हो जाता है। युगों के भूले बिछुड़े मिल जाते हैं, परन्तु जीवन के जो क्षण एक बार चले गए वे फिर इस जीवन में कभी नहीं मिलते। कितनी अमूल्यता है इन क्षणों की,कितनी तीव्रता है इनकी गति में, जो न आते मालूम पड़ते हैं और न जाते, परन्तु चले जाते हैं। एक ओर मानव के लघु जीवन की भयानक क्षण भंगुरता, दूसरी ओर सीमित समय की गतिशीलता एवम् अस्थिरता ।
“स्वल्पं तथायुर्बहवश्च विघ्नाः”
समय मनुष्य की न तो प्रतीक्षा करता है न तो परवाह । रेलगाड़ी यात्रियों की प्रतीक्षा नहीं करती, उसमें कोई बैठे या न बैठे, उसे अपने समय पर आना है और चले जाना है। जो लोग भीड़ को चीरते हुए, आलस्य को छोड़कर छलाँग मारते हुए, उसमें बैठ जाते हैं, वे अपने गन्तव्य स्थान पर समय पर पहुँच जाते हैं और जो प्लेटफार्म पर अपनी अकर्मण्यता, आलस्य, भीरुता या निद्रा के कारण पड़े रह जाते हैं वे न गाड़ी में बैठ पाते हैं और न ही अपने लक्ष्य तक ही पहुँच पाते हैं। ठीक यही बात समय की रेलगाड़ी के साथ है। जीवन में सफलता भी उन्हीं पुरुष सिंहों को प्राप्त होती है, जो अपने एक क्षण का भी अपव्यय नहीं करते, अपितु अधिक से अधिक उसका उपयोग करते हैं। यही कारण है कि संसार का महान् से महान् और कठिन से कठिन कार्य भी उनके लिए सुलभ हो जाता है। अब यह आपके ऊपर है कि इन क्षणों का आप कैसे उपयोग करते हैं—निद्रा में या निज कार्यपूर्ति में, विद्या में या विवाद में, मैत्री में या कलह में, रक्षा में या परपीडन में। समय की अमूल्यता की द्योतक कबीर की पंक्तियाँ कितनी महान् हैं –
“काल करै सो आज कर, आज करै सो अब ।
पल में परलै होयगी, बहुरि करैगो कब ।”
जीवन की सफलता का रहस्य समय के सदुपयोग में ही निहित है। चाहे वह निर्धन हो या धनवान, किसान हो या मजदूर, राजा हो या प्रजा, विद्वान हो या मूर्ख, समय पर सभी का समान अधिकार है। समय की उपयोगिता साधारण से साधारण व्यक्ति को भी महान् बना देती है। आज तक जितने भी महान् पुरुष हुए उनके जीवन की सफलता का रहस्य एकमात्र समय के अमूल्य क्षणों का सदुपयोग ही रहा है। बड़े से बड़े संकटों भयानक से भयानक संघर्षों में भी सदैव विजय वैजयन्ती उनका वरण करती है । “पाँच मिनट” के महत्त्व और माहात्म्य के अपरिचित आस्ट्रियन नैपोलियन से युद्ध में पराजित हो गए थे। नैपोलियन के एकमात्र साथी गुशी के आने में पाँच मिनट के विलम्ब ने नैपोलियन को बन्दी की उपाधि से विभूषित कर दिया था । आलस्यरहित होकर यथासमय प्रत्येक कार्य को करना ही समय की उपयोगिता है। जो मनुष्य आज का काम कल पर टाल देते हैं उनका काम कभी पूरा नहीं होता। वे जीवन में सदैव पश्चात्ताप की अग्नि में जलते रहते हैं। परन्तु जलने से कोई लाभ नहीं होता क्योंकि- “समय चूँकि पुनि का पछताने” वे आगे बढ़ने के समय में भी पीछे रहते हैं। बुद्धिमान व्यक्ति अपने अवकाश के क्षणों को भी व्यर्थ नहीं जाने देता।
“काव्यशास्त्रविनोदेन कालो गच्छति धीमताम् ।
व्यसनेन च मूर्खाणां निद्रया कलहेन वा || ”
बुद्धिमान व्यक्ति अपने विश्राम के समय को भी व्यर्थ नहीं जाने देता, सद्-ग्रन्थो के अवलोकन में ही उसका समय व्यतीत होता है। परन्तु मूर्ख अपना समय बुरे व्यसनों में, सोने में या आपस के लड़ाई-झगड़ों में ही खो देते हैं। उनकी दृष्टि में न तो समय का मूल्य होता है और न जीवन की क्षण भंगुरता का । परन्तु बुद्धिमान व्यक्ति समय के सदुपयोग में आत्मिक आनन्द और शारीरिक सुख का अनुभव करता है। ऐसे व्यक्तियों का समाज आदर करता है। समय का अपव्यय करना आत्महत्या के समान है। संसार से ऊब कर जीवनमुक्त होने के लिए मानव आत्महत्या का साधन ढूढ़ता है। आत्महत्या उसे जीवन के संघर्षों से सदा-सदा के लिए मुक्त कर देती है। ठीक इसी प्रकार समय का दुरुपयोग मानव जीवन को अनिश्चित समय के लिए मृतप्राय कर देता है। समय की दुरुपयोगिता मानव को कायर, पुरुषार्थहीन एवम् अनुद्योगी और अकर्मण्य बना देती है। समय की दुरुपयोगिता से केवल विचार ही दूषित नहीं होते, बल्कि मानव का नैतिक पतन हो जाता है।
समय के सदुपयोग के लिए मनुष्य को अपने प्रतिदिन के कार्य का सम्यक् विभाजन कर लेना चाहिए। उसे इस बात को दृष्टि में रख लेना चाहिए कि उसे किस समय क्या काम करना है । जिस मनुष्य का कार्यक्रम सुनिश्चित नहीं होता उसका अधिकांश समय व्यर्थ में ही इधर-उधर बीत जाता है। जो मनुष्य अपना निश्चित कार्यक्रम बनाकर, मानसिक वृत्तियों को एकाग्र करके कार्य करता है, उसे जीवन-संग्राम में अवश्य सफलता प्राप्त होती है। विद्यार्थियों को अपने समय का सदुपयोग करने के लिए टाइमटेबिल बना लेना चाहिए। उन्हें ध्यान रखना चाहिए कि उनका निश्चित कार्य उस निश्चित समय में पूर्ण हुआ अथवा नहीं । जो छात्र नियत समय में अपने कार्य में पूर्ण मनोयोग के साथ संलग्न नहीं होता, वह अपने साथ घोर अन्याय करता है। उसका भविष्य अन्धकारमय रहता है। समय विभाजन करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि शारीरिक और मानसिक थकावट अधिक न होने पावे । उसमें मनोरंजन की भी व्यवस्था करनी चाहिए । मनोरंजन से जीवन में सरसता आती है, शक्ति संचय होता है।
समय का सदुपयोग करने से मनुष्य की व्यक्तिगत उन्नति होती है। हमें बाल्यकाल से ही समय की अमूल्यता पर ध्यान देना चाहिए । शरीर को स्वस्थ्य बनाने के लिए समय पर सोना, समय पर उठना, समय पर भोजन करना, समय पर व्यायाम करना, समय पर पढ़ना बहुत ही आवश्यक है। मानसिक उन्नति के लिए हमें प्रारम्भ से ही सद्ग्रन्थों का अध्ययन करना चाहिएं तथा अपने से बड़े, अपने से अधिक बुद्धिमान लोगों के साथ जीवनोपयोगी विषयों पर चर्चा करनी चाहिए। जिस काम के लिए जो समय निश्चित हो, उस समय वह काम अवश्य कर लेना चाहिए, तभी मनुष्य जीवन में उन्नति कर पाता है। कभी-किसी काम को देर से शुरू न करो क्योंकि प्रारम्भ में विलम्ब हो जाने से अन्त तक विलम्ब होता रहता है और उस कार्य में सफलता संदिग्ध रहती है। विदेशों में समय का मूल्य बहुत समझा जाता है। वहाँ का प्रत्येक व्यक्ति उसका सदुपयोग करना जानता है। यदि आपने किसी व्यक्ति को आठ बजे बुलाया है तो वह आपके पास ठीक आठ बजे ही आयेगा, न एक मिनट पूर्व और न एक मिनट पश्चात् ।
देश और समाज के प्रति हमारे कुछ कर्त्तव्य हैं। हमें अपना कुछ समय उनकी सेवा में भी लगाना चाहिए, जिससे देश और समाज की उन्नति हो । असहायों की सहायता करने में, भूखों के पेट भरने में, दूसरों के हित सम्पादन में जो अपना कुछ समय व्यतीत करता है, वह भी समय का सदुपयोग करता है तथा उसका समाज में सम्मान होता है। हमें अपने दैनिक कार्यक्रमों में राष्ट्रसेवा, जाति सेवा और समाज सेवा का अवसर भी निकालना चाहिए। स्वार्थ सिद्धि ही मानव जीवन का प्रमुख लक्ष्य नहीं है। इस जीवन में जितने शुभ कार्य हो सकें उतना ही यह जीवन सफल है । मानव-जीवन देश की सम्पत्ति है। अतः देशहित में जो अपना समय व्यतीत करता है, वह धन्य है मनुष्य का परम कर्त्तव्य है कि वह अपने समय का सदुपयोग करता हुआ अपने समाज, अपने देश और मानव जाति का कल्याण करे ।
“आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः ।”
अर्थात् आलस्य ही मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है । आलसी मनुष्य जीवन में उन्नति नहीं कर पाता है। उसके जीवन के अधिकाँश क्षण सुस्ती, सोने और वाद-विवाद में ही व्यतीत हो जाते हैं। ऐसा मनुष्य न तो छात्रावस्था में विद्योपार्जन ही कर सकता है और न युवावस्था में गृहस्थी का भार ही वहन कर सकता है। आलसी मनुष्य की प्रज्ञा मन्द और संकल्प क्षीण हो जाते हैं, वे सदैव समय की शिकायत किया करते हैं। परिश्रमी के पास कभी समय का अभाव नहीं होता । आलसी मनुष्य का समय दूसरों की निन्दा करने, निरुद्देश्य घूमने, गन्दी पुस्तकें पढ़ने तथा व्यर्थ की गपशप में व्यतीत हो जाता है। ऐसे व्यक्ति न देश का कल्याण कर पाते हैं और न अपना ही। आलस्य का परित्याग करके समय का सदुपयोग करने वाले व्यक्ति ही साहित्य के सृष्टा, राष्ट्रनायक, वैज्ञानिक और आविष्कारक हुए हैं। ठीक ही कहा गया है-
“क्षण त्यागे कुतो विद्या, कण त्यागे कुतो धनम् ।
क्षणशः कणशश्चैव विद्यामर्थञ्च चिन्तयेत् ॥”
गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है, “समय जात नहीं लागहिं बारा ।” समय की गति तीव्र है। प्रत्येक बुद्धिमान व्यक्ति का कर्त्तव्य है कि वह समय का उचित मूल्यांकन करते हुए उसका उपयोग करे । समय की गति रोकी नहीं जा सकती। आज के वैज्ञानिक ने प्रकृति के तत्वों पर अपना अधिकार करना प्रारम्भ कर दिया है, परन्तु समय को वश में नहीं कर पाया । इसलिये यदि हम अपनी शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति करना चाहते हैं, अपने देश और अपनी जाति का उत्थान चाहते हैं तो हमें अपने समय का सदुपयोग करना सीखना चाहिये तभी हमारी उन्नति सम्भव है। विद्यार्थियों को तो विशेष रूप से समय का महत्त्व समझना ही चाहिए क्योंकि –
“गया वक्त फिर हाथ आता नहीं है।”
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