समकालीन विश्व में लोकतन्त्र Democracy in the Contemporary World
समकालीन विश्व में लोकतन्त्र Democracy in the Contemporary World
♦ पहले पूरी दुनिया में राजतन्त्र का वर्चस्व था।
♦ लोगों के अधिकारों का हनन और अत्याचार की अधिकता के बाद लोगों ने अपने हक की लड़ाई लड़नी शुरू की।
♦ किसी भी देश के सभी लोगों को समान अधिकार सिर्फ लोकतन्त्र के जरिए ही उपलब्ध हो सकते थे, इसलिए अठारहवीं सदी के उत्तरार्द्ध में विश्व के अधिकतर देशों में लोकतन्त्र की स्थापना के लिए संघर्ष शुरू हो गए।
♦ उन्नीसवीं सदी को लोकतन्त्र के लिए संघर्ष का काल कहा जा सकता है, क्योंकि इसी सदी के दौरान विश्व के अधिकतर देशों में लोकतन्त्र के लिए संघर्ष हुए, जिसके परिणामस्वरूप अधिकतर देशों में लोकतन्त्र की स्थापना हो सकी एवं इस विचार का प्रचार-प्रसार हुआ।
♦ बीसवीं सदी को लोकतन्त्र के विस्तार का काल कहा जाता है, इस दौरान दुनिया के लगभग सभी उपनिवेश आजाद हो गए एवं वहाँ के लोगों ने लोकतान्त्रिक व्यवस्था को अपनाया।
♦ लोकतन्त्र का विस्तार दुनिया के सभी हिस्सों में एक समान नहीं हुआ है। यह पहले कुछ हिस्सों में स्थापित हुआ और फिर इसका विस्तार अन्य क्षेत्रों में हुआ।
♦ आज दुनिया के अधिकांश देशों में लोकतन्त्र है पर अभी भी काफी बड़े हिस्से ऐसे हैं जहाँ लोकतन्त्र नहीं है ।
लोकतन्त्र के विस्तार के विभिन्न चरण
♦ 1789 ई. में हुई फ्रांसीसी क्रान्ति ने पूरे यूरोप के विभिन्न देशों में लोकतन्त्र के लिए संघर्षों की प्रेरणा दी।
♦ फ्रांसीसी क्रान्ति के कुछ समय पहले उत्तरी अमेरिका में स्थित ब्रिटिश उपनिवेशों ने 1776 ई. में खुद को आजाद घोषित कर दिया था। अगले कुछ वर्षों में इन उपनिवेशों ने साथ मिलकर संयुक्त राज्य अमेरिका अर्थात् आधुनिक अमेरिका का गठन किया। 1787 ई. में उन्होंने एक लोकतान्त्रिक संविधान को मंजूर किया।
♦ उन्नीसवीं सदी में लोकतन्त्र के संघर्ष तेज होने लगे, किन्तु ये संघर्ष प्राय: राजनीतिक समानता, आजादी और न्याय जैसे मूल्यों को लेकर ही होते थे।
♦ द्वितीय विश्व युद्ध के बाद उपनिवेशवाद के अन्त ने लोकतन्त्र के विस्तार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
♦ पहले सभी लोकतान्त्रिक देशों में सभी नागरिकों को मताधिकार हासिल नहीं थे। कई देशों में महिलाओं को मताधिकार प्राप्त नहीं थे, तो कुछ देशों में अश्वेतों को मताधिकार नहीं दिया गया था।
♦ देश के सभी नागरिकों, औरत या मर्द, अमीर या गरीब, श्वेत या अश्वेत को समान रूप से यदि मत देने का अधिकार प्राप्त हो, तो इसे सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार कहते हैं।
♦ सबसे पहले 1893 ई. में न्यूजीलैण्ड में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार का प्रावधान किया गया था। इसके बाद 1917 ई. में रूस में, 1918 ई. में जर्मनी में और 1928 ई. में ब्रिटेन में लोगों को यह अधिकार प्राप्त हुआ।
♦ फ्रांस में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार लोगों को 1944 ई. में मिला।
♦ भारत में 1950 ई. में लोगों को सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार हासिल हुआ।
♦ श्रीलंका में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार 1931 ई. में, जापान में 1945 ई. में, यूनान में 1952 ई. में, ऑस्ट्रेलिया में 1962 ई. में, अमेरिका में 1965 ई. में, स्पेन में 1978 ई. में तथा दक्षिण अफ्रीका में 1994 ई. में लागू हुआ।
♦ अभी भी विश्व के सभी देशों में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार का प्रावधान नहीं है।
♦ लोकतन्त्र की दिशा में ज्यादा तेजी से कदम उठाने का सिलसिला दक्षिणी अमेरिका के अनेक देशों में लोकतान्त्रिक व्यवस्था की बहाली के साथ 1980 ई. के बाद शुरू हुआ।
♦ 1990 ई. के दशक में सोवियत संघ के बिखराव के साथ यह प्रक्रिया और तेज हुई।
♦ 1991 ई. में सोवियत संघ के बिखरने के बाद इसके 15 गणराज्यों में से अधिकतर ने लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था अपनाई।
म्यांमार में लोकतन्त्र के लिए संघर्ष
♦ म्यांमार, जिसे पहले बर्मा कहा जाता था, 1948 ई. में अपने औपनिवेशिक शासन से आजाद हुआ और इसने लोकतन्त्र अपनाया, किन्तु 1962 ई. में सैनिक तख्तापलट से यहाँ लोकतन्त्र का अन्त हो गया।
♦ 1990 ई. में लगभग 30 वर्षों के बाद पहली बार यहाँ चुनाव कराए गए और आंग सान सू की की अगुवाई वाली नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी ने चुनाव जीते। पर म्यांमार के फौजी शासकों ने सत्ता छोड़ने से इनकार कर दिया और चुनाव परिणामों को मान्यता नहीं दी। उन्होंने आंग सान सू की समेत चुने हुए लोकतन्त्र समर्थक नेताओं को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया।
♦ बहुत-सी छोटी-छोटी राजनीतिक गतिविधियों के लिए भी लोगों को पकड़ कर जेल की सजा दी गई।
♦ इस देश में सरकार के खिलाफ बोलने वाले लोगों को बीस वर्ष तक के लिए जेल की सजा दी जाती थी अतः तंग आकर वहाँ के 6 से 10 लाख लोगों ने अपना घर-बार छोड़कर दूसरी जगहों पर शरण लेना शुरू किया।
♦ आंग सान सू की को बाद में नजरबन्द कर दिया गया, किन्तु उनके संघर्ष को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली और उन्हें नोबेल शान्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
♦ आंग सान सू की को अन्तर्राष्ट्रीय दबावों को देखते हुए म्यांमार की सैन्य सरकार ने जेल से रिहा कर दिया है तथा वे इन दिनों म्यांमार में लोकतन्त्र के लिए संघर्षशील हैं।
लोकतन्त्र और अन्तर्राष्ट्रीय संगठन
♦ विश्व में लोकतन्त्र को बढ़ावा देने एवं लोकतान्त्रिक सरकारों को सहयोग देने के उद्देश्य से कई अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों की स्थापना की गई है।
♦ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के जिम्मे देशों के बीच शान्ति और सुरक्षा बनाए रखने की जिम्मेदारी है। यह एक अन्तर्राष्ट्रीय दस्ता बनाकर गलती करने वाले के खिलाफ कार्यवाही कर सकता है।
♦ विभिन्न देशों को आवश्यकता पड़ने पर ऋण देने का काम अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं विश्व बैंक करता है। किन्तु, उधार देने से पहले ये संस्थाएँ सम्बद्ध सरकार से अपना हिसाब-किताब दिखाने को कहती हैं और उनकी आर्थिक नीतियों में बदलाव का निर्देश देती हैं।
♦ अधिकतर अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के फैसलों में शक्तिशाली देशों का वर्चस्व दिखाई पड़ता है, जिसके कारण इनके लोकतान्त्रिक मूल्यों की अवहेलना होती है। उदाहरणस्वरूप संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्यों के पास वीटो का अधिकार है और ये देश इस अधिकार का उपयोग अपने फायदे के लिए करते हैं।
♦ अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के सभी 189 देशों को समान मताधिकार प्राप्त नहीं हैं। हर देश इस कोष में जितने धन का योगदान करता है उसी अनुपात में उसके वीटो का भार भी तय होता है। मुद्रा कोष के 54% से अधिक वोटों पर सिर्फ दस देशों (अमेरिका, जापान, जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, चीन, इटली, सऊदी अरब, कनाडा और रूस) का अधिकार है। बाकी 175 सदस्य इस संगठन के फैसलों को ज्यादा प्रभावित करने की स्थिति में नहीं हैं ।
♦ विश्व बैंक में भी वोटिंग की प्रणाली अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के समान है। विश्व बैंक का अध्यक्ष हमेशा कोई अमेरिकी नागरिक ही रहा है, जिसका मनोनयन अमेरिकी वित्त मन्त्री करते हैं।
♦ दुनिया भर के विभिन्न देश पहले की तुलना में अधिक लोकतान्त्रिक होते जा रहे हैं, किन्तु अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के लोकतान्त्रिक चरित्र में कमी आती जा रही है।
♦ पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न देशों के लोग अपनी सरकारों की मदद के बिना एक-दूसरे के ज्यादा सम्पर्क में आए हैं। उन्होंने युद्ध और दुनिया पर कुछ देशों या व्यापारिक कम्पनियों के प्रभुत्व के खिलाफ वैश्विक संगठन बनाए हैं।
♦ किसी भी देश में लोकतन्त्र जिस तरह लोगों के संघर्षों और पहल से मजबूत हुआ है वैसे ही वैश्विक मामलों में यह पहल भी लोगों के संघर्षों से ही आगे बढ़ी है।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
- Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Facebook पर फॉलो करे – Click Here
- Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Google News ज्वाइन करे – Click Here