संविधान निर्माण Constitutional Design
संविधान निर्माण Constitutional Design
भारतीय संविधान निर्माण के आरम्भिक प्रयास
♦ 1928 ई. में मोतीलाल नेहरू और कांग्रेस के आठ अन्य नेताओं ने भारत का एक संविधान लिखा था।
♦ 1931 ई. में कराची में हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में एक प्रस्ताव में यह रूपरेखा रखी गई थी।
♦ इन दस्तावेजों में स्वतन्त्र भारत के संविधान में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार, स्वतन्त्रता और समानता का अधिकार और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा की बात कही गई थी।
संविधान सभा और संविधान का निर्माण
♦ चुने गए जनप्रतिनिधियों की जो सभा संविधान नामक विशाल दस्तावेज को लिखने का काम करती है, उसे संविधान सभा कहते हैं।
♦ भारतीय संविधान सभा के लिए जुलाई, 1946 में चुनाव हुए थे।
♦ संविधान सभा की पहली बैठक दिसम्बर, 1946 में हुई थी। इसके तत्काल बाद देश दो हिस्सों – भारत और पाकिस्तान, में बँट गया। इसलिए संविधान सभा भी दो हिस्सों में बँट गई – भारत की संविधान सभा और पाकिस्तान की संविधान सभा ।
♦ प्रारम्भ में संविधान सभा सदस्यों की कुल संख्या 324 थी, जिसमें 235 स्थान प्रान्तों तथा 89 देशी रियासतों के लिए थे। 31 अक्टूबर, 1947 ई. को संविधान सभा का पुनर्गठन किया गया और 31 दिसम्बर, 1947 ई. को इसके सदस्यों की संख्या 299 हो गई, जिसमें 229 प्रान्तीय सदस्य तथा 70 देशी रियासतों के सदस्य थे।
♦ 22 जनवरी, 1947 ई. को उद्देश्य प्रस्ताव की स्वीकृति के बाद संविधान सभा ने संविधान निर्माण हेतु अनेक समितियाँ नियुक्त कीं। इनमें से प्रमुख थीं वार्ता समिति, संघ संविधान समिति, प्रान्तीय संविधान समिति, संघ शक्ति समिति, प्रारूप समिति ।
♦ प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव अम्बेडकर थे।
♦ प्रारुप समिति ने संविधान के प्रारूप पर विचार-विमर्श करने के बाद 21 फरवरी, 1948 को संविधान सभा को अपनी रिपोर्ट पेश की।
♦ संविधान सभा ने 26 नवम्बर, 1949 को अपना काम पूरा कर लिया अर्थात् इस दिन भारतीय संविधान बनकर तैयार हो गया।
♦ भारतीय संविधान की निर्माण प्रक्रिया में कुल 2 वर्ष 11 माह और 18 दिन लगे तथा इस कार्य पर लगभग ₹6.4 करोड़ खर्च हुए।
♦ संविधान को जब 26 नवम्बर, 1949 को संविधान सभा द्वारा पारित किया गया था, उस समय इसमें कुल 22 भाग, 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियाँ थीं। वर्तमान समय में संविधान में 25 भाग, 395 अनुच्छेद एवं 12 अनुसूचियाँ हैं।
♦ भारतीय संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ, इसी दिन की याद में हर साल 26 जनवरी को गणतन्त्र दिवस मनाया जाता है।
भारतीय संविधान के बुनियादी मूल्य
♦ जिन मूल्यों ने भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की प्रेरणा दी और उसे दिशा-निर्देश दिए तथा जो इस क्रम में जाँच-परख लिए गए वे ही भारतीय लोकतन्त्र का आधार बने । भारतीय संविधान की प्रस्तावना में इन्हें शामिल कर लिया गया।
♦ भारतीय संविधान की शुरुआत बुनियादी मूल्यों की एक छोटी-सी उद्देशिका के साथ होती है। इसे संविधान की उद्देशिका या प्रस्तावना कहते हैं। इसमें भारतीय संविधान की आत्मा बसती है।
♦ भारतीय संविधान की उद्देशिका- हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व – सम्पन्न, समाजवादी, पंथ-निरपेक्ष, लोकतन्त्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म की उपासना की स्वतन्त्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता, प्राप्त कराने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बन्धुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर, 1949 ई. (मिति मार्ग शीर्ष शुक्ला सप्तमी, सम्वत् दो हजार छह विक्रमी ) को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।
♦ प्रस्तावना में उल्लिखित ‘हम भारत के लोग’ का तात्पर्य यह है कि भारत के संविधान का निर्माण और अधिनियमन भारत के लोगों ने अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से किया है न कि इसे किसी राजा या बाहरी आदमी ने उन्हें दिया है।
♦ ‘प्रभुत्व – सम्पन्न’ का तात्पर्य यह है कि लोगों को अपने से जुड़े हर मामले में फैसला करने का सर्वोच्च अधिकार है। कोई भी बाहरी शक्ति भारत की सरकार को आदेश नहीं दे सकती।
♦ ‘समाजवादी’ का तात्पर्य है कि समाज में सम्पदा सामूहिक रूप से पैदा होती है और समाज में उसका बँटवारा समानता के साथ होना चाहिए। सरकार जमीन और उद्योग-धन्धों की हकदारी से जुड़े कायदे-कानून इस तरह बनाए कि सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ कम हों।
♦ ‘पंथ-निरपेक्ष’ का तात्पर्य यह है कि नागरिकों को किसी भी धर्म को मानने की पूरी स्वतन्त्रता है, लेकिन कोई धर्म आधिकारिक नहीं है। सरकार सभी धार्मिक मान्यताओं और आचरणों को समान सम्मान देती है।
♦ ‘लोकतन्त्रात्मक’ का तात्पर्य है सरकार का एक ऐसा स्वरूप जिसमें लोगों को समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त रहते हैं, लोग अपने शासन का चुनाव करते हैं और उसे जवाबदेह बनाते हैं। यह सरकार कुछ बुनियादी नियमों के अनुरूप चलती है।
♦ ‘गणराज्य’ से तात्पर्य यह है कि शासन का प्रमुख लोगों द्वारा चुना हुआ व्यक्ति होगा न कि किसी वंश का या राज-खानदान का।
♦ ‘न्याय’ का अर्थ है- नागरिकों के साथ उनकी जाति, धर्म और लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता।
♦ ‘स्वतन्त्रता’ का तात्पर्य है- नागरिक कैसे सोचें, किस तरह अपने विचारों को अभिव्यक्त करें और अपने विचारों पर किस तरह अमल करें, इस पर कोई अनुचित पाबन्दी नहीं है।
♦ ‘समता’ का अर्थ है – कानून के समक्ष सभी लोग समान हैं। पहले से चली आ रही सामाजिक असमानताओं को समाप्त होना होगा। सरकार हर नागरिक को समान अवसर उपलब्ध कराने की व्यवस्था करेगी।
♦ ‘बन्धुता’ का अर्थ है – हम सभी ऐसा आचरण करें जैसे कि हम एक परिवार के सदस्य हों। कोई भी नागरिक किसी दूसरे नागरिक को अपने से कमतर न माने ।
संस्थाओं का स्वरूप
♦ संविधान सिर्फ मूल्यों और दर्शन का बयान भर नहीं है, यह इन मूल्यों को संस्थागत रूप देने की कोशिश है।
♦ जिसे हम भारत का संविधान कहते हैं उसका अधिकांश हिस्सा इन्हीं व्यवस्थाओं को तय करने वाला है। यह एक बहुत ही लम्बा और विस्तृत दस्तावेज है। इसलिए समय-समय पर इसे नया रूप देने के लिए इसमें बदलाव की जरूरत महसूस होती है।
♦ संविधान में समय-समय पर होने वाले बदलावों को संविधान संशोधन कहते हैं।
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