विधुत धारा
विधुत धारा
SCIENCE ( विज्ञान ) लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. ओम के नियम को लिखें।
उत्तर⇒ यदि किसी चालक की भौतिक अवस्थाएँ जैसे ताप आदि में कोई परिवर्तन न हो तो उसके सिरों पर लगाया गया विभवान्तर उससे प्रवाहित धारा के अनुक्रमानुपाती होता है।
V∝ I अथवा V=RI, जहाँ R एक नियतांक है।
प्रश्न 2. प्रत्यावर्ती धारा एवं दिष्ट धारा में अंतर, स्पष्ट करें।
उत्तर⇒
दिष्ट धारा | प्रत्यावती धारा | |
(i) |
इस धारा का परिमाण एवं दिशा समय के साथ स्थिर रहता है। | इस धारा का परिमाण एवं दिशा समय के साथ बदलता है। |
(ii) |
इसे एक स्थान से दूसरे स्थान तक प्रेषित करने पर अधिक ऊर्जा का व्यय होता है। | इसे एक स्थान से दूसरे स्थान तक प्रेषित करने पर कम ऊर्जा व्यय का होता है। |
(iii) |
ट्रांसफॉर्मर की मदद से इस धारा धारा के विभवांतर को घटना संभव नहीं है। | ट्रांसफॉर्मर की सहायता से इस के विभवान्तर को बढ़ाना-घटाना बढ़ाना संभव है। |
(iv) |
इस धारा की सहायता से संचायक सेल को चार्ज किया जाता है। | इस धारा की सहायता से संचायक सेल को चार्ज नहीं किया जा सकता है। |
(v) |
यह कम वोल्टेज के कारण अपेक्षाकृत कम खतरनाक है। | यह अधिक वोल्टेज के कारण बहुत खतरनाक है। |
प्रश्न 3. प्रतिरोध किसे कहते हैं ? प्रतिरोध का S.I.मात्रक लिखें। किसी चालक का प्रतिरोध किन कारकों पर निर्भर करता है। अथवा, प्रतिरोध क्या है ? इसका S.I. मात्रक लिखें। अथवा, प्रतिरोध किसे कहते हैं?
उत्तर⇒ प्ररतिरोध—चालक का वह गुण जिसके द्वारा विद्युत-धारा के प्रवाह का विरोध किया जाता है, उसे चालक का प्रतिरोध कहते हैं।
यदि परिपथ की अन्य परिस्थितियाँ समान रहें, तो प्रतिरोध बढ़ाने से विद्युत-धारा कम हो जाती है तथा प्रतिरोध घटाने से विद्युत-धारा बढ़ जाती है।
प्रतिरोध के S.I. मात्रक— प्रतिरोध का मान किसी चालक के दो सिरों के मध्य के विभवांतर और उसमें बह रही विद्युत-धारा की मात्रा के अनुपात के बराबर होता है ।
किसी चालक का प्रतिरोध निम्नलिखित तीन बातों पर निर्भर करता है—
(i) चालक की लंबाई—चालक का प्रतिरोध र चालक की लंबाई के समानुपाती होता है।
R ∝ l |
इसका अर्थ है कि अगर लंबाई दो गुनी करेंगे तो प्रतिरोध भी दोगुना हो जाएगा और अगर लंबाई को आधा करेंगे तो प्रतिरोध भी आधा हो जाएगा।
(ii) अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल—चालक का प्रतिरोध उसके अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल के प्रतिलोमानुपाती होता है
R ∝ l /a |
यहाँ a अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल है। इसका अर्थ है जब क्षेत्रफल दोगुना होगा तो प्रतिरोध आधा हो जाएगा ।
(ii) पदार्थ की प्रकृति—प्रतिरोध इस बात पर भी निर्भर करता है कि चालक जिस पदार्थ का बनाया गया है उसकी प्रकृति क्या है।
(iv) चालक का तापमान ।
प्रश्न 4. विद्युत लैम्पों के तंतुओं के निर्माण में प्रायः एकमात्र टंगस्टन का ही उपयोग किया जाता है।
उत्तर⇒ विद्युत बल्ब में टंग्स्टन का फिलामेंट (तंतु) इसलिए बनाया जाता है, क्योंकि इसका गलनांक बहुत अधिक (लगभग 3400°C) होता है। अतः, यह बिना गले 2700°C का श्वेत-तप्त ताप प्राप्त कर सकता है। चूंकि टंग्स्टन की प्रतिरोधकता कम है, इसलिए पतला और लंबा तार (कुंडली के रूप में) लेना पड़ता है ताकि प्रतिरोध अधिक हो और ऊष्मा अधिक उत्पन्न हो ।
प्रश्न 5. उस युक्ति का नाम लिखिए जो किसी चालक के सिरों पर विभवान्तर बनाए रखने में सहायता करती है।
उत्तर—किसी चालक के सिरों पर विभवांतर बनाए रखने के लिए सेल अपनी संचित रासायनिक ऊर्जा नियमित रूप से खर्च करता है, जिससे विद्युत-धारा निश्चित रहती है और चालकों के सिरों के बीच विभवांतर बना रहता है। यह परिवर्ती प्रतिरोध द्वारा सम्पन्न होती है।
प्रश्न 6. सेल, खुला स्विच, प्रतिरोध एवं अमीटर के लिये संकेत लिखें।
उत्तर⇒
प्रश्न 7. घरेलू विद्युत परिपथों में श्रेणीक्रम संयोजन का उपयोग क्यों नहीं किया जाता है ?
उत्तर⇒ श्रेणीक्रम में समान विद्युत धारा, सभी उपकरणों में प्रवाहित होती है। श्रेणीक्रम से अधिक उपकरण लगाने से धीरे-धीरे धारा का मान घटता जाता है क्योंकि सभी प्रतिरोध श्रेणीक्रम में हैं और कुल प्रतिरोध बहुत अधिक हो जाता है। ऐसी स्थिति में प्रत्येक उपकरण के सिरों पर विभवांतर भिन्न होता है।
प्रश्न 8. भूसंपर्क तार का क्या कार्य है ? धातु के आवरण वाले विद्युत साधित्रों को भूसंपर्कित करना क्यों आवश्यक है ?
उत्तर⇒ किसी भी विद्युत उपकरण के लिए दो तारों की आवश्यकता होती है एक जिसमें धारा गुजरती है और दूसरी उदासीन । अधिक ऊष्मा उत्पत्ति या टूट-फूट के कारण कभी-कभी धारा युक्त तार उपकरण को सीधा स्पर्श कर लेती है जिससे उपकरण को छू जाने पर शॉक लगता है। इससे बचने के लिए उपकरण के धात्विक भाग का सम्बन्ध धरती से कर दिया जाता है। तीन पिन वाले प्लग के साथ इसे जोड़ दिया जाता है। इसे धरती में बहुत गहराई में दबाई गई तार से सम्बन्धित किया जाता है । लघु पथन के समय धारा उपकरण से धरती में चली जाती है। इससे फ्यूज पिघल जाता है। लघुपथन और विद्युत शॉक से बचने के लिए यह बहुत ही आवश्यक है।
प्रश्न 9. विद्युत टोस्टरों तथा विद्युत इस्तरियों के तापन अवयव शुद्ध धातु के न बनाकर किसी मिश्रधातु के क्यों बनाए जाते हैं?
उत्तर⇒ विद्युत टोस्टरों तथा विद्युत इस्तरियों के तापन अवयव शुद्ध धातु के न बनाकर किसी मिश्रधातु के बनाए जाते हैं, क्योंकि मिश्रधातुओं की प्रतिरोधकता उनकी अवयवी धातुओं की अपेक्षा अधिक होती है और उनका उच्च ताप पर शीघ्र ही उपचयन (दहन) नहीं होता है।
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प्रश्न 10. किसी विद्युत परिपथ का व्यवस्था आरेख खींचे जिसमें 2V के तीन सेलों की बैटरी, एक 5Ω प्रतिरोधक, एक 8Ω प्रतिरोधक तथा एक 12Ω प्रतिरोधक तथा एक प्लग कुंजी सभी श्रेणीक्रम में संयोजित हो।
उत्तर⇒
प्रश्न 11. ऐमीटर और वोल्टमीटर को विद्युत परिपथ के साथ क्रमशः श्रेणी एवं समांतर क्रम में जोड़ा जाता है ?
उत्तर⇒ ऐमीटर धारा मापने की एक युक्ति है। अतः, इसे विद्युत परिपथ में श्रेणीक्रम में जोड़ा जाता है ताकि कुल धारा इससे होकर प्रवाहित हो। इसका प्रतिरोध बहुत कम होने के कारण प्रवाहित धारा का परिमाण नहीं बदलता है।
वोल्टमीटर विद्युत परिपथ में किन्हीं दो बिंदुओं के बीच विभवांतर मापने की युक्ति है। अतः, इसे उन दो बिंदुओं के समांतर क्रम में जोड़ा जाता है। इसका प्रतिरोध बहुत अधिक होने के कारण यह परिपथ से नगण्य धारा लेता है।
प्रश्न 12. विद्युत आवेश क्या है ? विद्युत आवेश कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर⇒ इलेक्ट्रॉन के सतत प्रवाह को विद्युत आवेश कहते हैं। आवेश का S.I. मात्रक कूलंब (कूलॉम) है। एक इलेक्ट्रॉन पर 1.6 x 10-19 कूलंब (C) ऋण आवेश होता है।
विद्युत आवेश दो प्रकार का होता है- (i) धनात्मक आवेश और (ii) ऋणात्मक आवेश।
प्रश्न 13. प्रतिरोधों का संयोजन (समूहन) क्या है ? यह कितने प्रकार से होता है ? किसी एक समतुल्य प्रतिरोध के लिये व्यंजक प्राप्त करें।
उत्तर⇒ विद्युत परिपथ में दो या दो से अधिक प्रतिरोधों (चालकों) को एक साथ जोड़ना, प्रतिरोधों का संयोजन या समूहन कहते हैं।
संयोजन दो प्रकार से होता है-
श्रेणीक्रम के लिए समतुल्य प्रतिरोध का व्यंजक- श्रेणीक्रम में प्रतिरोध के मान के अनुसार विभवान्तर का वितरण [V = V1,V2, V3,….] होता है जबकि धारा (I) का मान समान रूप से प्रवाहित होता है।
यदि समतुल्य प्रतिरोध = R, विभवान्तर = V
तो R1,R2 R3 में वितरित विभावनतर =V1,V2, V3, ……
तो V=V1,+ V2, + V3,+………
या, I. R. =I.R1, + I.R2, + I.R3, + ….. [:: Ohm’s Law is I =V/R ]
या, I. R. = I. [R1+ ,R2+ R3 + …..
: R= R1+ ,R2+ R3
यही व्यंजक प्राप्त हुआ।
प्रश्न 14. विद्युत बल्ब का नामांकित चित्र खींचिए।
उत्तर⇒
प्रश्न 15. विद्युत-धास क्या है? इसका समीकरण एवं मात्रक लिखें। अथवा, विद्युत-धारा की प्रबलता की परिभाषा दें।
उत्तर⇒ किसी चालक से प्रवाहित विद्युत-धारा की प्रबलता उस चालक के किसी अनुप्रस्थ काट से एकांक समय में प्रवाहित आवेश का परिमाण है। यदि 1 सेकण्ड में 1 कूलॉम आवेश प्रवाहित होता है तो उस अनुप्रस्थ काट से प्रवाहित धारा का मान 1 ऐम्पियर होता है।
अर्थात्, ऐम्पियर, विद्युत-धारा का SI मात्रक है।
प्रश्न 16. विद्युत बल्ब में निष्क्रिय गैस क्यों भरी जाती है?
उत्तर⇒ विद्युत बल्ब में टंग्स्टन का फिलामेंट (तंतु) से हवा-माध्यम में विद्युत-धारा प्रवाहित की जाए तो यह हवा के ऑक्सीजन से ऑक्सीकृत होकर भंगुर हो जाएगा और टूट जाएगा। इसलिए फिलामेंट को टूटने से बचाने के लिए काँच के बल्ब के अंदर की हवा को निकालकर निष्क्रिय गैस भर दी जाती है। गैसों को निम्न दाब पर भरा जाता है जिससे कि संवहन द्वारा ऊष्मा की हानि न्यूनतम हो।
प्रश्न 17. घरों के विद्युत परिपथ में विद्युत उपकरण समान्तरक्रम में क्यों जोड़े जाते हैं ?
उत्तर⇒ पार्श्वक्रम में संयोजित करने के लाभ होते हैं-
(i) प्रतिरोधों को पार्श्वक्रम में जोड़ने से किसी भी चालक में स्विच की सहायता से विद्युत-धारा स्वतंत्रतापूर्वक भेजी अथवा रोकी जा सकती है ।
(ii) ऐसा करने से सभी समांतर शाखाओं के सिरों के बीच का विभवांतर बराबर होता है । इसलिए लैंप, बिजली की प्रैस, रेफ्रीजरेटर, रेडियो आदि को एक ही विभव पर प्रचलन के योग्य बनाया जा सकता है।
प्रश्न 18. विद्युत परिपथ का क्या अर्थ है ?
उत्तर⇒ विद्युत परिपथ चालकों तथा विद्युत-स्रोतों का संयोजन है। इन चालकों तथा विद्युत स्रोतों को कम प्रतिरोध के संयोजक तारों से इस प्रकार जोड़ा जाता है कि कोई लघु पथ न हो।
प्रश्न 19. विद्युत-धारा के मात्रक की परिभाषा लिखिए।
उत्तर⇒ विद्युत धारा का मात्रक ऐम्पियर है। किसी चालक के अनुप्रस्थ काट क्षेत्रफल से प्रति सेकेण्ड होने वाले आवेश की मात्रा एक कूलॉम हो तो विद्युत-धारा ऐम्पियर कहलाती है।
प्रश्न 20. किसी तार का प्रतिरोध उसकी अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल में परिवर्तन के साथ किस प्रकार परिवर्तित होता है ?
उत्तर⇒ -जब तार का पृष्ठ क्षेत्रफल अधिक होगा तो चालक में इलेक्ट्रॉन भी अधिक मुक्त रूप से बहेंगे। इस कारण चालक में धारा अधिक होगी तथा प्रतिरोध कम ।
प्रश्न 21. विद्युत-तापन युक्तियों, जैसे ब्रेड-टोस्टर तथा विद्युत इस्तरी के चालक शुद्ध धातुओं के स्थान पर मिश्र धातुओं के क्यों बनाए जाते हैं।
उत्तर⇒ मिश्र धातुओं की प्रतिरोधकता बहुत उच्च होती है तथा तापमान परिवर्तन से प्रतिरोधकता में विशेष कमी नहीं आ पाती, इसके साथ-साथ यह अधिक तापमान पर ऑक्सीकृत भी नहीं होती है।
प्रश्न 22. विद्युत संचारण के लिए प्रायः कॉपर तथा एल्युमिनियम के तारों का उपयोग क्यों किया जाता है ?
उत्तर⇒ कॉपर तथा ऐलुमिनियम विद्युत के अच्छे चालक हैं। कॉपर तथा एल्यमिनियम की प्रतिरोधकता कम है। जब ताँबे तथा ऐलमिनियम तारों में विद्यत प्रेषित होती है, तो ऊष्मा के रूप में शक्ति ह्रास बहुत कम होता है।
प्रश्न 23. यह कहने का क्या तात्पर्य है कि दो बिंदुओं के बीच विभवांतर 1 V है?
उत्तर⇒ किसी धारावाही विद्युत परिपथ के दो बिंदुओं के बीच विद्युत विभवांतर को हम उस कार्य द्वारा परिभाषित करते हैं जो एकांक आवेश की एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक लाने में किया जाता है।
प्रश्न 24. श्रेणीक्रम में संयोजित करने के स्थान पर वैद्युत युक्तियों को पार्श्वक्रम में संयोजित करने के क्या लाभ हैं ?
उत्तर⇒ पार्श्वक्रम में संयोजित करने के लाभ होते हैं-
(i) प्रतिरोधों को पार्श्वक्रम में जोड़ने से किसी भी चालक में स्विच की सहायता से विद्युत-धारा स्वतंत्रतापूर्वक भेजी अथवा रोकी जा सकती है।
(ii) ऐसा करने से सभी समांतर शाखाओं के सिरों के बीच का विभवांतर बराबर होता है। इसलिए लैंप, बिजली की प्रैस, रेफ्रीजरेटर, रेडियो आदि को एक ही विभव पर प्रचलन के योग्य बनाया जा सकता है।
प्रश्न 25. कूलॉम का नियम क्या है ?
उत्तर⇒ दो आवेशित वस्तुओं के बीच का विद्युत बल उनके गुणनफल का समानुपाती और उनके बीच की दूरी के वर्ग का व्युत्क्रमानुपाती होता है।
प्रश्न 26. किसी विद्युत हीटर की डोरी उत्तप्त नहीं होती जबकि उसका तापन अवयव उत्तप्त हो जाता है।
उत्तर⇒ विद्युत हीटर में लगे तापन अवयव का प्रतिरोध, विद्युत हीटर की डोरी के प्रतिरोध की अपेक्षा काफी अधिक होता है। चूंकि किसी चालक में विद्युत-धारा के प्रवाह के कारण चालक में उत्पन्न ऊष्मा, चालक के प्रतिरोध के समानुपाती होती है (H∝ R, I तथा t नियत रहने पर), इसलिए हीटर का तापन अवयव तो उत्तप्त हो जाता है, परंतु हीटर की डोरी उत्तप्त नहीं होती है।
प्रश्न 27. साधारण वोल्टिक सैल की संरचना लिखिए।
उत्तर⇒ साधारण वोल्टिक सैल वोल्टा के द्वारा तैयार किया गया था। यह पहला ऐसा यंत्र था जिसके द्वारा विद्युत-धारा को प्राप्त किया गया था। काँच के बने बर्तन में तांबे और जिस्ते की दो छड़ें तनु गंधक के अम्ल में डुबोई जाती हैं । जिस्त अम्ल से क्रिया करता है। जब टॉर्च के बल्ब को तार की सहायता से तांबे और जिस्ता से जोड़ा जाता है तो विद्युत आवेश उत्पन्न होता है।
प्रश्न 28. विद्युत ऊर्जा किसे कहते हैं ? इसके मात्रक क्या हैं ?
उत्तर⇒ किसी निश्चित समय में धारा के द्वारा किया गया कुल कार्य विद्युत ऊर्जा कहलाता है।
W=Pxt.
विद्युत ऊर्जा के मात्रक—
(i) वाट सेकेंड— जो विद्युत ऊर्जा एक वाट शक्ति वाले परिपथ में एक सेकेंड में खर्च होती है।
(ii) वाट घंटा—जो विद्युत ऊर्जा एक वाट शक्ति वाले परिपथ में एक घंटे में खर्च होती है।
1 वाट घंटा = 1 वाट x 1 घंटा = 1 x 3600 सेकेंड
= 3600 वाट सेकेंड = 3600 जूल ।
(iii) किलोवाट घंटा—जो विद्युत ऊर्जा एक किलोवाट शक्ति वाले परिपथ में एक घंटे में खर्च होती है।
1 किलोवाट घंटा = 1 किलोवाट x 1 घंटा = 1000 वाट x 3600 से०
= 3600000 जूल = 3.6 x 106 जूल ।
प्रश्न 29. विद्युत परिपथ का आरेख खींचिए।
उत्तर⇒
प्रश्न 30. तारों का श्रेणीक्रम संयोजन का आरेख खींचिए।
उत्तर⇒
चित्र-श्रेणीक्रम में जुड़े हुए चालक
प्रश्न 31. तारों का समानान्तर क्रम का आरेख खींचिए।
उत्तर⇒
चित्र-पार्श्वक्रम में संयोजित प्रतिरोधक
प्रश्न 32. कूलॉम के नियम की व्याख्या कीजिए।
उत्तर⇒ कूलॉम का नियम दो आवेशों के बीच लगने वाला बल, उन आवेशों के परिमाण के गुणनफल के अनुक्रमानुपाती और उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
व्याख्या यदि q1 तथा q2 दो आवेश हों, जिनके बीच की दूरी r’ हो तथा इनके बीच लगनेवाला बल F हो, तो
जहाँ ‘K’ समानुपातिकता स्थिरांक है।
दो आवेशों के बीच बल उनके केंद्रों को जोड़नेवाली रेखा के अनुदिश होता है । समान आवेशों के लिए यह बल प्रतिकर्षी (धनात्मक) होता है तथा विपरीत आवेशों के लिए यह बल आकर्षी (ऋणात्मक) होता है।
Science ( विज्ञान ) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. विधुत शक्ति क्या है ? निगमन करे H= I 2Rt जहाँ H ,किसी प्रतिरोधक R में विधुत धारा द्विारा I समय t में उत्पन्न ऊष्मा की मात्रा है।
उत्तर ⇒ कार्य करने की दर को शक्ति कहते हैं। अगर कोई कार्यकर्ता t सेकेण्ड में W कार्य करे तो
शक्ति = W/t
अथवा ऊर्जा के उपभुक्त होने की दर को शक्ति कहते हैं।
शक्ति P को इस प्रकार व्यक्त करते हैं –
P = VI
अथवा P = VI = I2R =V2 /R
इसका S.I मात्रक वाट है।
जब किसी चालक से विधुत धारा प्रवाहित की जाती है तो चालक में विधुत ऊर्जा ऊष्मा के रूप में प्रकट होती है जिससे चालक गर्म हो जाता है। इसे विधुत धारा का उष्मीय प्रभाव कहा जाता है।
जब किसी चालक से विधुत धारा का प्रवाह होता है तो धारावाही इलेक्ट्रोन तार के धनायन से टकराते हैं जिससे धनायनों की ऊर्जा दुगुनी बढ़ जाती है। यह ऊर्जा तार में ताप के रूप में प्रकट होती है। इलेक्ट्रॉन के प्रवाह में धनायन द्वारा प्रस्तुत किये गये बाधा को प्रतिरोध कहा जाता है।
2. (a) ओम के नियम के अध्ययन के लिए विधुत परिपथ खींचें।
(b) ओम के नियम को सत्यापित करने वाले V-Iग्राफ को खींचेंऔर उस ग्राफ की प्रकृति को लिखें।
उत्तर ⇒
अतः ओम के नियम की सत्यता की जाँच हो जाती है। अगर विभवांतर को x-अक्ष पर और धारा को y-अक्ष पर लेकर एक ग्राफ खींचा जाये, तो यह ग्राफ एक सरल रेखा प्राप्त होती है तथा मूल बिंदु से ग्राफ गुजरता है। अतः ओम के नियम की सत्यता की जाँच हो जाती है।
3. प्रतिरोध किसे कहते हैं? प्रतिरोध का ST मात्रक लिखें। किसी चालक का प्रतिरोध किन-किन कारकों पर निर्भर करता है ?
उत्तर ⇒विधुत परिपथ में धारा कम करने के गुण को प्रतिरोध कहा जाता है। यह गुण तार के अंदर और सेल के अंदर भी होता है। किसी तार में प्रतिरोध के गुण के कारण इसे प्रतिरोधक कहा जाता है।
किसी प्रतिरोधक का प्रतिरोध निम्नलिखित बातों पर निर्भर करता है-
(i) तार की लंबाई (l)
(ii) तार के अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल (A)
(iii) तार के पदार्थ की प्रकृति जिसे इस पदार्थ की विशिष्ट प्रतिरोध कहा जाता है। विशिष्ट प्रतिरोध को सामान्य चिह्न (p) से सूचित किया जाता है।
प्रतिरोध का SI मात्रक ओम (Ω) है तथा प्रतिरोधकता का SI मात्रक ओम मीटर है।
4. श्रेणीक्रम में जुड़े तीन-प्रतिरोधकों के समतुल्य प्रतिरोध के लिए एक व्यंजक प्राप्त करें।
उत्तर ⇒तीन प्रतिरोधक R 1, R2 , और R3 विद्युत परिपथ में श्रेणीक्रम में संयोजित हैं। परिपथ में आमीटर श्रेणीक्रम में संयोजित है।
R1 प्रतिरोधक के बीच विभवांतर V1 = IR1
R2 प्रतिरोधक के बीच विभवांतर V2 = IR2
R3 प्रतिरोधक के बीच विभवांतर V3 = IR3
तथा कुल विभवांतर = V = IR (R = समतुल्य प्रतिरोध)
हम जानते हैं कि, V = V1 + V2 + V3
इसलिए IR = IR1 + IR2 + IR3
IR = I (R1 + R2 + R3)
इसलिए R = R1 + R2 + R3 समतुल्य प्रतिरोध = सभी प्रतिरोधों का योग।
5. समतुल्य प्रतिरोध का मान ज्ञात करें।
उत्तर ⇒समतुल्य चित्र
6. जूल का उध्मीय नियम क्या है ? H = I 2Rt सूत्र का निगमन करें।
उत्तर ⇒जब किसी चालक से विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो चालक में विद्युत ऊर्जा ऊष्मा के रूप में प्रकट होती है जिससे चालक गर्म हो जाता है। इसे विद्युत धारा का ऊष्मीय प्रभाव कहा जाता है।
जब चालक से विद्युत धारा का प्रवाह होता है तो धारावाही इलेक्ट्रोन तार के धनायन से टकराते हैं जिससे धनायनों की ऊर्जा दुगनी बढ़ जाती है। यह ऊर्जा तार में ताप के रूप में प्रकट होती है। इलेक्ट्रोन के प्रवाह में धनायन द्वारा प्रस्तुत किये | गये बाधा को प्रतिरोध कहा जाता है।
माना कि AB एक चालक है। जिसकी प्रतिरोध R है तथा इसके सिरों पर विभवांतर v है। अतः तार से T
समय में प्रवाहित धारा I = q/T
इसलिए q= IT
q आवेश को एक स्थान से दूसरे स्थान तक स्थानान्तरित करने में की गई कार्य
W=qV
यही कार्य ऊर्जा के रूप में परिलक्षित होती है।
अतः W = H = qV = ITV
ओम के नियम से V = IR
इसलिए H = IT• IR
H = 12RT
जूल ने इस नियम की व्याख्या जिस प्रकार की उसे जूल का नियम कहते हैं।
H∝ IR2 जब R एवं T अचर हों, इसे धारा का नियम कहा जाता है।
H∝ R जब I एवं T अचर हों, इसे प्रतिरोध का नियम कहा जाता है।
H ∝T जंब I एवं R अचर हों, इसे समय का नियम कहा जाता है।
7. विभव और विभवांतर पदों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर ⇒प्रत्येक आवेश अपने चारों ओर प्रभाव क्षेत्र बनाता है। आवेश के नजदीक वाले क्षेत्र में प्रभाव अधिक और दूर वाले क्षेत्र में प्रभाव कम होता है। आवेश की इसी प्रभाव को मापने के लिए विभव शब्द का प्रयोग किया गया है।
किसी आवेश के कारण दूर के बिन्दु पर विभव शून्य और समीप के बिन्दु पर विभव अधिक होता है। माना कि कोई आवेश Q से कुछ दूरी पर एक बिन्दु P पर कोई इकाई आवेश है। अब इस इकाई आवेश को अनंत से P बिन्दु तक लाया जा रहा है। इकाई आवेश को अनंत से P बिन्दु तक लाने में आवेश Q से इस इकाई आवेश पर बल लगता रहता है। इकाई आवेश को अनंत से P बिन्दु तक लाने में इस विद्युत बल के विरुद्ध कुछ कार्य करना पड़ता है। इसी कार्य को P बिन्दु का विभव कहा जाता है।
अतः किसी बिन्दु P का विभव इकाई धन आवेश को अनंत से उस बिन्दु तक लाने में किया गया कार्य है।
अगर किसी बिन्दु का विभव 10 वोल्ट है तो इसका अर्थ है कि इकाई धन आवेश को अनंत से उस बिन्दु तक लाने में किसी कर्ता को 10 जूल कार्य करना पड़ेगा। अर्थात् कर्त्ता 10 जूल कार्य करेगा अथवा 10 जूल ऊर्जा खर्च करेगा। दो बिन्दुओं का विभवांतर इकाई धन आवेश को एक बिन्दु से दूसरे बिन्द तक लाने में किए गए कार्य के बराबर होता है।
अगर किसी चालक तार की दो सिरों के बीच का विभवांतर 10 वोल्ट हो तो इकाई धन आवेश को तार के एक सिरे से दूसरे सिरे तक लाने में 10 जल कार्य करना होगा। यदि दो बिन्दुओं के बीच इकाई आवेश कूलंब ले जाने में । जल का कार्य होता है तो दोनों बिन्दुओं के बीच का विभवांतर 1 वोल्ट होगा।
SI पद्धति में विभवांतर की इकाई भी जुल/कूलंबअर्थात बोल्ट होगा ।सेल या बैटरी एक ऐसी ही युक्ति है जो बिधुत के बीच विभवांतर पैदा करता है।
8. शुष्क सेल की संरचना और उसका कार्य लिखिए।
उत्तर ⇒शुष्क सेल लक्लांची सेल का सुधरा हुआ रूप है। जिस धातु के एक छोटे बर्तन में कार्बन की छड़ ली जाती है जिसे MnO2 और चारकोल के चूरे से मलमल के कपड़े के द्वारा ढांप दिया जाता है। इसे जिस्त की डिब्बों के बीचो-बीच रखा जाता है। जिस्त ऋणाग्र का काम करता है और कार्बन की छड हनान का । इसमें विलायक के रूप में NH2Cl और ZnCl2 को डाला जाता है। MnO2 हाइड्रोजन गैस को बनने से रोकता है । जिस्त की डिब्बों को भली-भांति बंद कर दिया जाता है ताकि अंदर हवा न जा सके।
क्रिया – सेल में निम्नलिखित क्रिया होती है –
Zn → Zn ++ + 2e –
NH 4Cl → NH 4 + Cl –
इलैक्ट्रॉन गति करते हैं और घोल में प्रविष्ट हो जाते हैं । (अमोनियम के आयन कार्बन को आकृष्ट करते हैं तथा. एनोड से इलेक्ट्रॉन को दूर करते हैं)
2NH4 + 2e– → 2NH3 + H2O (एनोड पर)
इसमें जो हाइड्रोजन उत्पन्न होती है उसका MnO2 के द्वारा प्रयोग कर लिया जाता है।
H2 + MnO2 → Mn2O 3 + H2O
जिंक आयन क्लोरीन से क्रिया करके ZnCl2 बनाते हैं।
Zn++ + 2CI → ZnCl2
इस सैल का e.m.f. 1.45 V होता है।
9. पार्श्वक्रम संयोजन किसे कहते हैं ? प्रतिरोधकों R 1 R 2 तथा R 3 को पार्श्वक्रम में संयोजित करने पर समतुल्य प्रतिरोध का व्यंजक प्राप्त करें।अथवा, समानांतर श्रेणी में संयोजित दो प्रतिरोधों का तुल्य प्रतिरोध ज्ञात करें।
उत्तर ⇒जब तीनों प्रतिरोधकों के प्रथम सिरों को एक बिन्दु पर एवं दूसरे सिरों को एक बिन्दु पर जोड़कर परिपथ पूरा किया जाता है तब इस प्रकार जोड़ने की विधि को पार्श्वक्रम संयोजन कहा जाता है।
संयोजक तार से चित्रानुसार परिपथ पूरा करते हैं। प्लग में कुँजी लगाकर एमीटर से धारा I एवं वोल्टामीटर से विभवान्तर V ज्ञात करते हैं। माना प्रत्येक प्रतिरोधी तारों का प्रतिरोध क्रमश: R1, R2 एवं R3 तथा संगत धारा क्रमशः I1, I2 एवं I3 है।
इसलिए :- I = I1 + I2 +I3
माना प्रतिरोधकों के पार्श्व संयोजन का समतुल्य प्रतिरोध R है।
ओम के नियम से,
10. S.I. मात्रक के साथ विद्युत धारा, विभवान्तर और प्रतिरोध को परिभाषित करें, और इनमें संबंध नियम की व्याख्या के साथ स्थापित करें।
उत्तर ⇒ विद्युत धारा – विद्युत धारा का S.I. मात्रक एम्पियर है । किसी चालक के अनुप्रस्थ काट क्षेत्रफल से प्रति सेकेण्ड होने वाली आवेश की मात्रा एक कूलॉम हो तो विद्युत धारा 1 एम्पियर कहलाती है।
विभवांतर – विभवांतर का S.I. मात्रक वोल्ट (V) है ।
किसी धारावाही विद्युत परिपथ के दो बिन्दुओं के बीच विद्युत विभवांतर को हम उस कार्य द्वारा परिभाषित करते हैं जो एकांक आवेश को एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक लाने में किया जाता है।अत: जब 1 जल कार्य है जो एक कलॉम के आवेश को एक बिन्द से दूसरी बिन्दु पर ले जाए तो दोनों बिन्दुओं के बीच 1 वोल्ट विभवांतर होता है।
बिधुत धारा, विभवान्तर और प्रतिरोध में संबंध ओम के नियमानुसार स्थापित होता है। यदि किसी चालक की भौतिक अवस्थाएँ जैसे ताप आदि में कोई परिवर्तन न हो तो उसके सिरों पर लगाया गया विभवान्तर उससे प्रवाहित धारा के अनुक्रमानुपाती होता है।
V∝ I अथवा V = RI जहाँ R एक नियतांक है।
ओम के नियम का सत्यापन – एक चालक, जैसे मैगनीज का प्रतिरोधी तार लेते हैं। इसके श्रेणीक्रम में सेलों की एक बैट्री, एमीटर, धारा नियंत्रक तथा कुंजी लगाते हैं। तार के सिरों पर एक वोल्टमीटर लगाते हैं, कुंजी लगाते ही पूरे परिपथ में विद्युत बहने लगती है। धारा (I) का मान एमीटर से तथा प्रतिरोधक के सिरों के बीच विभवान्तर (V) वोल्टमीटर से बढ़कर सारणी में लिख लिया जाता है। अब धारा नियंत्रक द्वारा परिपथ में बढ़ने वाली धारा का मान बदल-बदलकर हर बार एमीटर तथा वोल्टमीटर से पाठ सारणी में लिख लेते हैं, और पाते हैं कि V तथा I में ग्राफ एक सरल रेखा होती है ।