विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
1. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान
◆ भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति का गठन 1962 में प्रसिद्ध अंतरिक्ष वैज्ञानिक डॉ. विक्रम साराभाई (भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक) की अध्यक्षता में किया गया जिसने परमाणु ऊर्जा विभाग के अंतर्गत कार्य करना प्रारंभ किया।
◆ भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति का पुनर्गठन करके 15 अगस्त, 1969 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की स्थापना की गई ।
◆ भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रमों को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए अंतरिक्ष आयोग और अंतरिक्ष विभाग का 1972 में गठन किया गया तथा इसरो को अंतरिक्ष विभाग के नियंत्रण में रखा गया ।
◆ वस्तुत: भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत नवम्बर, 1963 में तिरूअनंतपुरम् स्थित सें मेरी मैकडेलेन चर्च के एक कमरे में हुई थी । 21 नवम्बर, 1963 को देश का पहला साउंडिंग रॉकेट ‘नाइक एपाश’ (अमेरिका निर्मित) को थुम्बा भूमध्य रेखीय रॉकेट प्रक्षेपण केंद्र (TERLS) से प्रक्षेपित किया गया ।
अंतरिक्ष केंद्र और इकाइयाँ
विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र, तिरुअनंतपुरम् (VSSC): यह केंद्र रॉकेट अनुसंधान तथा प्रक्षेपण यान विकास परियोजनाओं को बनाने और उन्हें क्रियान्वित करने में अग्रणी भूमिका निभाता है । अभी तक के सभी प्रक्षेपण यानों यथा- एस.एल.वी-3, ए.एस.एल.वी., पी.एस.एल.वी. एवं जी.एस.एल.वी. को इसी केंद्र में विकसित किया गया है ।
इसरो उपग्रह केंद्र, बंगलौर (ISAC) : इस केंद्र में उपग्रह परियोजनाओं के डिजाइन, निर्माण, परीक्षण और प्रबंध कार्य सम्पन्न किए जाते हैं ।
अंतरिक्ष उपयोग केंद्र, अहमदाबाद (SAC) : इस केंद्र के प्रमुख कार्यों में दूरसंचार व टेलीविजन में उपग्रह का प्रयोग, प्राकृतिक संसाधनों के सर्वेक्षण और प्रबंध के लिए दूरसंवेदन, मौसम विज्ञान, भू-मापन, पर्यावरण पर्यवेक्षण आदि शामिल हैं ।
शार (SHAR) केंद्र, श्री हरिकोटा: यह इसरो का प्रमुख प्रक्षेपण केंद्र है, जो आन्ध्रप्रदेश के पूर्वी तट पर स्थित है। इस केंद्र में भारतीय प्रक्षेपण यान के ठोस ईंधन रॉकेट के विभिन्न चरणों का पृथ्वी पर परीक्षण तथा प्रणोदक का प्रसंस्करण भी किया जाता है । :
द्रव प्रणोदक प्रणाली केंद्र (LPSC) : तिरुअनंतपुरम्, बंगलौर और महेन्द्रगिरि (तमिलनाडु) में इस केंद्र की शाखाएँ हैं। यह केंद्र इसरो के उपग्रह प्रक्षेपण यानों और उपग्रहों के लिए द्रव ईंधन से चलने वाली चालक नियंत्रण प्रणालियों और इंजनों के डिजाइन, विकास और आपूर्ति के लिए कार्यरत है। महेन्द्रगिरि में द्रव ईंधन से चलने वाले रॉकेट इंजनों की परीक्षण सुविधा उपलब्ध है ।
इसरो टेलीमेट्री निगरानी एवं नियंत्रण नेटवर्क (ISTRAC): इस नेटवर्क का मुख्यालय तथा उपग्रह नियंत्रण केंद्र बंगलौर में स्थित है। श्री हरिकोटा, तिरुअनंतपुरम, बंगलौर, लखनऊ, पोर्ट ब्लेयर और मॉरीशश में इसके भू-केंद्र हैं। इसका प्रमुख कार्य इसरो के प्रक्षेपण यानों एवं उपग्रह मिशनों तथा अन्य अंतरिक्ष एजेंसियों को टेलीमेट्री, निगरानी और नियंत्रण सुविधाएँ प्रदान करना है।
मुख्य नियंत्रण सुविधा, हासन (MCF) : इनसैट उपग्रह के प्रक्षेपण के बाद की सभी गतिविधियों यथा— उपग्रह को कक्षा में स्थापित करना, केंद्र से उपग्रह का नियमित सम्पर्क स्थापित करना तथा कक्षा में उपग्रह की सभी क्रियाओं पर निगरानी एवं नियंत्रण का दायित्व कर्नाटक के हासन स्थित मुख्य नियंत्रण सुविधा के पास है । इसरो का दूसरा ‘मुख्य नियंत्रण सुविधा केंद्र मध्य प्रदेश के भोपाल में 11 अप्रैल, 2005 को स्थापित किया गया ।
इसरो जड़त्व प्रणाली इकाई, तिरुअनंतपुरम् (IISU) : इसरो की इस इकाई का प्रमुख कार्य प्रक्षेपण यानों और उपग्रहों के लिए जड़त्व प्रणाली का विकास करना है ।
भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला, अहमदाबाद (PRL) : अंतरिक्ष विभाग के अन्तर्गत कार्यरत यह संस्थान अंतरिक्ष और संबद्ध विज्ञान में अनुसंधान एवं विकास करने वाला प्रमुख राष्ट्रीय केंद्र है।
राष्ट्रीय दूरसंवेदी एजेंसी, हैदराबाद (NRSA) अंतरिक्ष विभाग के अन्तर्गत कार्यरत यह एजेंसी उपग्रह से प्राप्त आँकड़ों का उपयोग करके पृथ्वी के संसाधनों की पहचान, वर्गीकरण और निगरानी करने की जिम्मेदारी निभाती है इसका प्रमुख केंद्र बालानगर में है। इसके अतिरिक्त देहरादून स्थित भारतीय दूरसंवेदी संस्थान भी राष्ट्रीय दूर संवेदी एजेंसी का ही एक अंग है।
प्रमुख भारतीय उपग्रह
आर्यभट्ट : स्वदेशी तकनीक से निर्मित प्रथम भारतीय उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ को 19 अप्रैल, 1975 को पूर्व सोवियत संघ के बैकानूर अंतरिक्ष केंद्र से इंटर कॉस्मोस प्रक्षेपण यान द्वारा पृथ्वी के निकट वृत्तीय कक्षा में 594 किमी की ऊँचाई पर सफलतापूर्वक स्थापित किया गया। इसका वजन 360 किग्रा था । इस अभियान के तीन प्रमुख लक्ष्य थे— वायु विज्ञान प्रयोग, सौर भौतिकी प्रयोग तथा एक्स-किरण खगोलिकी प्रयोग। इस उपग्रह में संचार व्यवस्था को सक्रिय कार्य विधि मात्र 6 माह निर्धारित की गयी थी परन्तु इसने मार्च, 1980 तक अंतरिक्ष से आँकड़े भेजने का कार्य किया ।
भास्कर – I : प्रायोगिक पृथ्वी पर्यवेक्षण उपग्रह ‘भास्कर – I’ को 7 जून, 1979 को पूर्व सोवियत संघ के प्रक्षेपण केंद्र बैकानूर से इंटर कॉस्मोस प्रक्षेपण यान द्वारा पृथ्वी से 525 किमी की ऊँचाई पर पूर्व निर्धारित कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित किया गया । इसका लक्ष्य जल विज्ञान, हिम गलन, समुद्र विज्ञान एवं वानिकी के क्षेत्र में भू-पर्यवेक्षण अनुसंधान करना था। इसने 1 अगस्त, 1981 को कार्य करना बंद किया ।
भास्कर-II : भास्कर-I के संशोधित प्रतिरूप ‘भास्कर-II’ को भी रूसी प्रक्षेपण केंद्र, बैकानूर से ही 20 नवम्बर, 1981 की पृथ्वी से 525 किमी की ऊँचाई पर स्थापित किया गया तथा इसका घूर्णन कक्षा तल के लम्बवत् रखा गया। समीर उपकरण के कारण भास्कर-II द्वारा समुद्री सतह का ताप, सामुद्रिक स्थिति, बर्फ गिरने व पिघलने आदि जैसी अनेक घटनाओं का व्यापक विश्लेषण किया गया ।
रोहिणी श्रृंखला : रोहिणी उपग्रह श्रृंखला के अंतर्गत भारतीय प्रक्षेपण केंद्र ( श्री हरिकोटा) से भारतीय प्रक्षेपण यान (एस. एल. वी-3) द्वारा चार उपग्रह प्रक्षेपित किए गए। इस श्रृंखला के उपग्रहों के प्रक्षेपण का मुख्य उद्देश्य भारत के प्रथम उपग्रह प्रक्षेपण यान एस.एल.वी.-3 का परीक्षण करना था। इस अभियान का प्रथम एवं तृतीय प्रायोगिक परीक्षण असफल रहा था। इस अभियान के द्वितीय प्रायोगिक परीक्षण में रोहिणी आर. एस. – I को 18 जुलाई, 1980 को श्री हरिकोटा से एस. एल. वी-3 प्रक्षेपण यान से सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया । इस प्रकार रोहिणी आरएस. – I भारतीय भूमि से भारतीय प्रक्षेपण यान द्वारा प्रक्षेपित प्रथम भारतीय उपग्रह बना । चतुर्थ प्रायोगिक परीक्षण में रोहिणी आर. एस. डी-2 को 17 अप्रैल, 1983 को श्री हरिकोटा से एस.एल.वी.- 3 डी. – 2 द्वारा सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया। इस सफलता ने एस.एल.वी 3 को एक प्रामाणिक प्रक्षेपण यान सिद्ध कर दिया तथा भारत को छोटे प्रक्षेपण यानों को विकसित करने वाले देशों की श्रेणी में ला दिया ।
प्रायोगिक संचार उपग्रह एप्पल एप्पल भारत का पहला संचार उपग्रह था; जिसे भू-स्थैतिक कक्षा में स्थापित किया गया। भारत के प्रथम प्रायोगिक संचार उपग्रह ‘एप्पल’ को 19 जून, 1981 को फ्रेंच गुयाना के कोरु अंतरिक्ष प्रक्षेपण केंद्र से यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के एरियन 4 प्रक्षेपण यान द्वारा भू-स्थिर कक्षा में लगभग 36,000 किमी की ऊँचाई पर स्थापित किया गया । इस उपग्रह का उपयोग राष्ट्रीय संचार व्यवस्था को आधुनिक बनाने, घरेलू संचार व्यवस्था, रेडियो नेटवर्क डाटा संप्रेषण, दूर-राज के क्षेत्रों में संचार व्यवस्था स्थापित करने, भू-स्थैतिक कक्षा में उपग्रहों के प्रक्षेपण की तकनीक का ज्ञान प्राप्त करने तथा संचार के लिए प्रयुक्त सी-बैंड ट्रांसपोडर के प्रयोग आदि में किया गया। एप्पल से प्राप्त तकनीकि अनुभव ने इनसैट श्रृंखला के निर्माण एवं विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई
विस्तारित रोहिणी उपग्रह शृंखला ( सास-SROSS): इस शृंखला का उद्देश्य 100 से 150 किग्रा वर्ग के उपग्रहों का निर्माण करना था, जिन्हें संवर्द्धित उपग्रह प्रक्षेपण यान ( Augmented Satellite Launch Vehicle – ASLV) द्वारा छोड़ा गया थातहत् चार उपग्रह खास – I, स्रास-II, स्रास-III एवं स्रास-IV प्रक्षेपित किया गया । स्रास-1 एवं ग्रास-II असफल रहा।
भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह (इनसैट) प्रणाली : भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह प्रणाली अर्थात् इनसैट प्रणाली एक बहुउद्देशीय कार्यरत उपग्रह प्रणाली है, जो एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सबसे बड़ी घरेलू संचार उपग्रह प्रणालियों में से एक है। इसका उपयोग लम्बी दूरी के घरेलू दूरसंचार, ग्रामीण क्षेत्रों में उपग्रह के माध्यम से सामुदायिक दूरदर्शन के सीधे राष्ट्रव्यापी प्रसारण को बेहतर बनाने, भू- – स्थित ट्रांसमीटरों के माध्यम से पुनः प्रसारण हेतु आकाशवाणी तथा दूरदर्शन कार्यक्रमों को देशभर में प्रसारित करने, मौसम संबंधी जानकारी, वैज्ञानिक अध्ययन हेतु भू-सर्वेक्षण तथा आँकड़ों के संप्रेषण में किया जाता है । इनसैट प्रणाली अंतरिक्ष विभाग, दूरसंचार विभाग, भारतीय मौसम विभाग, आकाशवाणी तथा दूरदर्शन का संयुक्त प्रयास है, जबकि इनसैट अंतरिक्ष कार्यक्रमों की व्यवस्था, निगरानी और संचालन का पूर्ण दायित्व अंतरिक्ष विभाग को सौंपा गया है। इनसैट प्रणाली के प्रथम पीढ़ी में चार उपग्रह (इनसैट-1A, 1B, 1C, 1D) । द्वितीय पीढ़ी में पाँच उपग्रह (इनसैट 2A, 2B, 2C, 2D, 2E), तृतीय पीढ़ी में भी पाँच उपग्रह (3A, 3B, 3C, 3D, 3E) तथा चौथी पीढ़ी में सात उपग्रहों के प्रक्षेपण की योजना बनाई गयी है । चौथी पीढ़ी के उपग्रह 4A, 4C, 4B तथा 4CR का प्रक्षेपण हो चुका है ।
भारतीय दूरसंवेदी उपग्रह प्रणाली:– भारत में राष्ट्रीय प्राकृतिक संसाधन प्रबंध प्रणाली की सहायता के लिए ‘भारतीय दूरसंवेदी उपग्रह प्रणाली’ (Indian Remote Sensing Satellite IRS) का विकास किया गया है, इसका मुख्य उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों (मृदा, जल, भू-जल, सागर, वन आदि) का सर्वेक्षण और सतत् निगरानी करना है। दूरसंवेदी उपग्रह प्रणाली के अन्तर्गत .पृथ्वी के गर्भ में छूपे संसाधनों को स्पर्श किए बिना प्रकीर्णन विधि द्वारा विश्वसनीय और प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध कराई जाती है। इसके तहत उपग्रह में लगे इलेक्ट्रॉनिक कैमरों से पृथ्वी पर स्थित वस्तुओं का चित्र लेते है और उन चित्रों के विश्लेषण से जानकारी प्राप्त करते हैं। उपग्रह के उपयोग से सुदूर संवेदन की प्रक्रिया को एक निश्चित अंतराल के बाद दुहराकर किसी स्थान विशेष पर समयानुसार होरहे परिवर्तनों को बारी-बारी से अध्ययन किया जा सकता है । वर्तमान में आई. आर. एस. उपग्रह किसी विशेष स्थान पर लगभग प्रत्येक तीन सप्ताह के बाद गुजरता है । इस प्रणाली के तहत प्रक्षेपित किए गए उपग्रह हैं : I.R.S. – 1A, I.R.s.-1B, I.R.S. 1E, I.R.S.–P2, I.R.S. – 1C, I.R.S., P4, I.R.S. -P6, कार्टोसैट-I एवं II आदि ।
नोट : कार्टोसेट-I देश का प्रथम मैपिंग सेटेलाइट है।
मैटसैट : भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के तहत भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने 12 सितम्बर, 2002 को श्री हरिकोटा (आन्ध्रप्रदेश) के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान – सी 4 (Polar Satellite Launch Vehicle-PSLV-C4) के माध्यम से देश के पहले मौसम संबंधी विशिष्ट उपग्रह ‘मेटसैट’ (Metasat) को भूस्थैतिक स्थानांतरण कक्षा (Geostationary Transfer Orbit-GTO) में सफलतापूर्वक स्थापित किया। यह पहला मौका में था जब किसी भारतीय अंतरिक्षयान ने 1000 किग्रा से अधिक भार के उपग्रह को भूस्थैतिक कक्षा. (भूस्थैतिक कक्षा से तात्पर्य है कि जस गति से पृथ्वी घूमती है उसी कोणीय गति से उपगह भी घूमेगा जिसके कारण उपगह सदा पृथ्वी के बएक विशेष स्थान के ऊपर स्थिर नजर आएगा) में स्थापित किया । इससे पूर्व सभी उपग्रह केवल ध्रुवीय कक्षा में ही स्थापित किए गए हैं। मैटसैट की कक्षा दीर्घवृत्ताकार है जिसमें पृथ्वी से निकटतम बिन्दु 250 किमी की दूरी पर स्थित है जबकि अधिकतम दूरी पर स्थित बिन्दु 36,000 किमी की दूरी पर है । यह पहला अवसर था जब भारत ने मौसम संबंधी जानकारियाँ प्राप्त करने के लिए स्वदेशी प्रक्षेपण यान से विशेष मौसम उपग्रह प्रक्षेपित किया। इससे पूर्व मौसम संबंधी जानकारियाँ इनसैट श्रेणी के उपग्रहों से प्राप्त की जाती थी ।
एजुसैट: 20 सितम्बर, 2004 को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्री हरिकोटा से शिक्षा कार्य के लिए समर्पित दुनिया के पहले उपग्रह ‘एजुसैट’ को सफलतापूर्वक भू-स्थैतिक कक्षा में स्वदेश निर्मित भूसमस्थानिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (GSLV F-01) की सहायता से स्थापित किया गया । एजुसैट में समावेस की गई नई प्रौद्योगिकी को आई-2 नाम दिया गया है । इसकी जीवन अवधि 7 वर्ष निर्धारित है। एजुसैट के माध्यम से शिक्षा से जुड़े कार्यक्रम प्रसारित किए जा रहे हैं ।
नोट : एजुसैट को प्रक्षेपित करने वाले प्रक्षेपण यान का निर्माण विक्रम साराभाई स्पेस सेन्टर, तिरूअनंतपुरम् में किया गया तथा एजुसैट का निर्माण इसरो के बंगलौर स्थित केंद्र में किया गया है । जी.एस.एल.वी की यह पहली कार्यात्मक उड़ान थी ।
हैमसैट : पी.एस.एल.वी – सी 6 द्वारा कार्टोसैट-I के साथ ही संचार उपग्रह ‘हैमसैट’ को एक अतिरिक्त उपग्रह के रूप में 5 मई, 2005 को छोड़ा गया । हैमसैट एक छोटे आकार का उपग्रह है जिसका उद्देश्य देश औरविश्व के शौकिया रेडियो (हैम) ऑपरेटरों को उपग्रह आधारित रेडियो सेवा मुफ्त उपलब्ध कराना है। इसकी जीवन अवधि लगभग दो वर्ष है ।
अंतरिक्ष में प्रथम भारतीय
3 अप्रैल, 1984 को स्क्वाडून लीडर राकेश शर्मा अंतरिक्ष में जाने वाले प्रथम भारतीय बने । वे दो अन्य सोवियत अंतरिक्ष यात्रियों के साथ सोयुज़ टी- 2 यान में कजाखस्तान में अंतरिक्ष बैकावूर कोस्मोड्रीम से अंतरिक्ष में गए। स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा 11 अप्रैल, 1984 को | सुरक्षित पृथ्वी पर वापस लौट आए।
◆ तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीममि इंदिरा गाँधी ने सोवियत अंतरिक्ष केंद्र पर स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा से बातचीत की। उन्होंने पूछा : अंतरिक्ष से भारत कैसा दिखता है ? शर्मा का उत्तर था ‘सारे जहाँ से अच्छा ।’
◆ अंतरिक्ष में मानव भोजने वाला भारत 14वाँ राष्ट्र बना और स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा अंतरिक्ष में जाने वाले 139वें अंतरिक्ष यात्री ।
◆ अंतरिक्ष में जाने वाली भारतीय मूल की प्रथम महिला कल्पना चावला थी । इनकी मृत्यु 1 फरवरी, 2003 को अंतरिक्ष यान कोलम्बिया के मिशन एसटीएस107 के वातावरण में पुनर्प्रवेश के कुछ देरपश्चात् नष्ट हो जाने से हो गयी ।
चन्द्रयान-l
◆ चन्द्रमा के लिए भारत का पहला मिशन “चन्द्रयान- I” है। यह विश्व का 68वाँ चन्द्र अभियान है ।
◆ भारत ने अपने पहले चन्द्रयान का प्रक्षेपण श्री हरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से 22 अक्टूबर, 2008 को ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण वाहन ( PSLV-C11) के जरिए किया ।
◆ प्रथम चन्द्रमा अभियान सोवियत संघ ने 2 जनवपरी, 1959 को भेजा था और द्वितीय चन्द्रमा अभियान 3 मार्च, 1959 को अमरीका ने भेजा।
◆ अमरीका, यूरोपीय संघ, रूस, जापानव चीन के बाद भारत छठा ऐसा देश है जो चन्द्रमा के लिए यान भेजने में सफल हुआ ।
◆ 11 पेलोड `युक्त चन्द्रयान-I से सिगनल प्राप्त करने के लिए 32 मीटर व्यास के एक विशाल एंटीना की स्थापना कर्नाटक में बंगलौर से 40 किमी दूर ब्यालालू में की गई है । यह प्रथम अवसर था जब एक साथ 11 उपकरण विभिन्न अध्ययनों के लिए किसी यान के साथ भेजे गए हैं ।
◆ भारत का पहला चन्द्र अभियान चन्द्रयान-I अपने साथ राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा भी लेकर गया है जिसे मून इम्पेकटर प्रोब चन्द्रमा की सतह पर स्थापित करेगा ।
चन्द्रयान-II
◆ भारत सरकार द्वारा 18 सितम्बर, 2008 को चन्द्रयान-II अभियान को अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी गई। यह अभियान 2011-12 में सम्पन्न होगा।
◆ इस अभियान हेतु ‘इसरो’ तथा रूस की अंतरिक्ष एजेंसी ‘ग्लावकास्मॉस’ के बीच समझौता हुआ ।
◆ इस अभियान के अन्तर्गत चन्द्रमा की सतह का अध्ययन होगा, जिससे रासायनिक तत्त्वों की सही स्थिति को ज्ञात किया जा सकेगा। ब्यालालू स्थित एंटीना चन्द्रयान-II को कमाण्ड एवं उसकी स्थिति कापता लगाने में सहायता करेगा ।
नोट: इसरो की योजना वर्ष 2015 तक चन्द्रमा पर मानव अभियान भेजने की है ।
प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी
एस.एल.वी-3 (Satellite Launch Vehicle, SLV-3) : साधारण क्षमता वाले एस. एल. वी.-3 के विकास से भारत ने प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कदम रखा तथा 18 जुलाई, 1980 को SLV-3 का सफल प्रायोगिक परीक्षण करके अपनी योग्यता को सिद्ध करते हुए स्वयं को अंतरिक्ष क्लब कास छठा सदस्य ना लिया। इस क्लब के अन्य पूर्व पाँच सदस्य थे-रूस, अमेरिका, फ्रांस, जापान एवं चीन | SLV-3 एक चार चरणों वाला साधारण क्षमता का उपग्रह प्रक्षेपण यान था जो 40 किलोग्राम भार वर्ग के उपग्रहों को पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित कर सकता था। इसका ईंधन (प्रणोदक) ठोस था । SLV-3 का कुल चार प्रायोगिक परीक्षण प्रक्षेपण किए गए, जिनमें द्वितीय तथा चतुर्थ प्रक्षेपण पूर्णतः सफल रहा । 17 अप्रैल, 1983 की SLV-3 की चतुर्थ एवं अंतिम उडान द्वारा ‘राहिणी आर. एस. डी-2’ को सफलतापूर्वक निर्धारित कक्षा में स्थापित करने के बाद इस उपग्रह प्रक्षेपण यान के कार्यक्रम को बंद कर दिया गया।
ए.एस.एल.वी ( Augmented Satellite Launch Vehicle, ASLV) : संवर्धित उपग्रह प्रक्षेपण यान अर्थात् ए.एस.एल.वी वास्तव में एस.एल.वी.-3 का ही संवर्धित रूप है । इसे 100 से 150 किग्रा भार वर्ग के उपग्रहों को पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित करने के उद्देश्य से विकसित किया गया था। यह एक पाँच चरणों वाला संवर्धित उपग्रह प्रक्षेपण यान था । ठोस प्रणोदक (ईंधन) से चलने वाले ए. एस. एल. वी के स्ट्रैप यान प्रथम एवं द्वितीय चरण के लिए . स्वदेशी तकनीक से विकसित हाइड्रॉक्सिल टर्मिनेटेड पॉलि ब्यूटाडाइन (NTPB) प्रणोदक तथा तृतीय एवं चतुर्थ चरण के लिए एच.ई.एफ.- 20 प्रणोदक का प्रयोग किया गया था। ए.एस.एल. बी. के कुल चार प्रक्षेपण कराए गए जिनमें से ए. एस. एल. बी. डी1 (24 मार्च, 87) एवं ए. एस. एल.वी- डी2 (13 जुलाई, 88 ) की प्रथम दोनों प्रक्षेपण असफल सिद्ध हुए । –
पी.एस.एल.वी. (Polar Satellite Launch Vehicle, PSLV) : 1200 किग्रा भार वर्ग तक के दूरसंवेदी उपग्रहों को 900 किमी ऊँचाई तक की ध्रुवीय सूर्य तुल्यकालिक/समकालिक कक्षा में स्थापित करने के उद्देश्य से पी.एस.एल.वी. का देश में विकास किया गया। पी.एस.एल. वी. एक चार चरणों वाला ध्रुवीय उप्रह प्रक्षेपणयान है, जिसके प्रथम व तृतीय चरण में ठोस प्रणोदकों तथा द्वितीय व चतुर्थ चरण में द्रव प्रणोदकों का उपयोग किया जाता है। ठोस प्रणोदकों के अन्तर्गत हाईड्रॉक्सिल टर्मिनेटेड पॉली ब्यूटाडाइन (HTPB) का ईंधन के रूप में तथा अमोनिया परक्लोरेट का ऑक्सीकारक के रूप में प्रयोग किया जाता है। जबकि द्रव प्रणोदक के रूप में मुख्य रूप से अनसिमेट्रिकल डाई मिथाइल हाइड्राजाइन एवं N2O4 का प्रयोग किया जाता है, जो कमरे के ताप पर द्रवीभूत रहता है ।
पी.एस.एल.वी की कुल तीनउड़ान कराई गई, जिसमें प्रथम उड़ान असफल तथा द्वितीय एवं तृतीय उड़ान पूर्णतः सफल सिद्ध हुई ।
नोट : पी.एस.एल.वी-सी 3 द्वारा प्रक्षेपित भारतीय दूरसंवेदी प्रौद्योगिकी परीक्षण उपग्रह ‘टीईएस’ भारत का पहला सैनिक उपग्रह है, जो देश के समुद्री इलाकों और विशेषकर चीन एवं पाकिस्तान से लगी अन्तर्राष्ट्रीय सीमा और नियंत्रण रेखा पर किसी घुसपैठ पर प्रभावी नजर रख सकेगा।
जी.एस.एल.वी (Geo Stationary or Geosynchronous Satellite Launch Vehicle-GSLV) : जी.एस.एल.वी एक शक्तिशाली तीन चरणों वाला ‘भू-तुल्यकालिक या भू-स्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान है । जी.एस.एल.वी. के प्रीम चरण में ठोस प्रणोदक, द्वितीय चरण में द्रव प्रणोदक तथा तृतीय चरण में क्रायोजेनिक इंजन का उपयोग किया गया है। ठोस प्रणोदकों के अन्तर्गत हाईड्रॉक्सिल टर्मिनेटेड पॉली ब्यूटाडाइन (HTPB) का ईंधन के रूप में तथा अमोनियम परक्लोरेट का ऑक्सीकारक के रूप में प्रयोग किया जाता है। द्रव प्रणोदकों के ‘अन्तर्गत मुख्य रूप से अनसिमेट्रिकल डाई मिथाइल हाइड्राजाइन (UDMH) एवं N2O4 का प्रयोग किया जाता है, जो कमरे के ताप पर द्रवीभूत रहता है । क्रायोजेनिक तकनीक में प्रणोदन के रूप में अत्यन्त निम्न ताप पर द्रव हाइड्रोजन (-250°C) एवं द्रव ऑक्सीजन (-183°C’) का प्रयोग होता है। जी.एस.एल.वी की पहली विकासात्मक परीक्षण उड़ान 28 मार्च, 2001 को असफल रहा था । जी.एस.एल.वी. डी 1 ने भी प्रायोगिक संचार उप्रह ‘जीसैट-1’ को 36,000 किमी की ऊँचाई प स्थित भूस्थैतिक स्थानांतरण कक्षा में स्थापित नहीं कर सका और लगभग 1000 किमी नीचे रह गया । लेकिन जी.एस.एल.वी.-डी 2 ने प्रायोगिक संचार उप्रह ‘जीरौट 2’ (वजन 1800 किग्रा) को पृथ्वी की समानांतर कक्षा से 36,000 किमी ऊपर स्थापित कर दिया तथा इसका इंडोनेशिया के ‘बिआब’ और कर्नाटक के ‘हासन’ स्थित मुख्य नियंत्रण प्रणाली से सम्पर्क हो गया । जी. एस. एल. वी – डी 2 को श्री हरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से 8 मई, 2003 को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया। इस सफलता के बाद भारत उन पाँच देशों (अमेरिका, रूस, यूरोपीय संघ, जापान और चीन) के ‘एलीट ग्रुप’ में शामिल हो गया जो भूस्थैतिक प्रक्षेपण में अपनी योग्यता सिद्ध कर चुके हैं।
क्रायोजेनिक प्रौद्योगिकी: क्रायोजेनिक का शाब्दिक अर्थ निम्नतापिकी है। यह ग्रीक भाषा के बाद योस से बना है जो बर्फ के समान शीतलता के लिए प्रयुक्त होता है। निम्नतापिकी विज्ञान में 0°C से 150°C नीचे के तापमान को क्रायोजेनिक ताप कहा जाता है। निम्न ताप अवस्था (क्रायोजेनिक अवस्था) वाले इंजनों में अतिनिम्न ताप (-250°C) पर हाइड्रोजन का ईंधन के रूप में तथा ऑक्सीजन (183°C) का ऑक्सीकारक के रूप में प्रयोग होता है | इस प्रौद्योगिकी में इन प्रणोदकों को तरल अवस्था में ही प्रयोग किया जाता है। इसमें ईंधन को परम तापीय अवस्था में प्रयोग करने की विशेषता के कारण इसे क्रायोजेनिक इंजन कहते हैं । इस इंजन की प्रमुख विशेषता है :
(i) क्रायोजेनिक इंजन में प्रयोग होने वाले द्रव हाइड्रोजन एवं द्रव ऑक्सीजन के दहन से जो ऊर्जा पैदा होती है वह ठोस ईंधन आधारित इंजन से प्राप्त ऊर्जासे कई गुना अधिक होती है ।
(ii) इसमें ईंधन के ज्वलन की दर को नियंत्रित किया जा सकता है जबकि ठोस ईंधन से परिचालित होने वाले इंजन की ज्वलन की दर को नियंत्रित करना कठिन होता है ।
(iii) इस प्रौद्योगिकी सेयुक्त इंजन में प्रणोदक की प्रति इकाई भार में अधिक बल पैदा होता है जिससे यान को अधिक बल (थर्स्ट) मिलता है।
नोट : क्रायोजेनिक इंजन कापहली बार प्रयोग अमेरिका द्वारा एटलांस संटूर नामक रॉकेट में किया गया था ।
◆ 28 अक्टूबर, 2006 को तमिलनाडु के महेन्द्रगिरि में पूर्ण निम्नताप (क्रायोजेनिक) अवस्था का भारत ने सफल परीक्षण किया। भारत पूर्ण निम्नताप अवस्था का सफल परीक्षण करने वाला छठा देश है। भारत से पूर्व यह क्षमता अमेरिका, रूस, चीन, जापान एवं यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ने प्राप्त की है ।
2. भारतीय परमाणु अनुसंधान
◆ डॉ होमी जे. भाभा की अध्यक्षता में अगस्त, 1948 को परमाणु ऊर्जा आयोग की स्थापना के साथ ही परमाणु ऊर्जा अनुसंधान की भारतीय यात्रा आरंभ हुई।
◆ भारत के प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में परमाणु ऊर्जा कार्यक्रमों के कार्यान्वयन हेतु अगस्त 1954 में परमाणु ऊर्जा विभाग की स्थापन की गयी। परमाणु ऊर्जा के सभी कार्यक्रम प्रधानमंत्री के तत्वावधान में किए जाते हैं ।
परमाण अनुसंधान एवं विकास के प्रमुख केंद्र
1. भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) याम्बे (मुम्बई) में स्थापित परमाणु अनंसधान केंद्र (BARC) परमाणु विज्ञान एवं सम्बद्ध क्षेत्र में कार्यरत देश का प्रमुख अनुसंधान केन्द्र है । BARC परमाणु विद्युत कार्यक्रम तथा उद्योग एवं खजिन क्षेत्र की इकाइयाँ अनुसंध न एवं विकास में सहायता प्रदान करता है। इस केन्द्र ने उद्योग, औषधि तथा कृषि के क्षेत्र में रेडियो, आइसोटोप के चिकित्सीय उपयोगों सहित परमाणु ऊर्जा के शान्तिपूर्ण कार्यों में उपयोग की प्रौद्योगिकी का विकास किया है ।
◆ प्रायोगिक रिएक्टरों को ‘जोशी पावर’ रिएक्टर भी कहते हैं, क्योंकि इसका इस्तेमाल ऊर्जा प्राप्ति की अपेक्षा नाभिकीय अनुसंधान के लिए खास तौर से किया जाता है ।
◆ कनाडा के सहयोग से बार्क (BARC) में स्थापित साइरस तापीय रिएक्टर का मुख्य उद्देश्य रेडियो आइसोटोप का उत्पादन एवं उनके प्रयोग को प्रोत्साहित करना है ।
◆ ध्रुव अनुसंधान रिएक्टर में रेडियो आइसोटोप तैयार करने के साथ-साथ परमाणु प्रौद्योगिकियों व पदार्थों में शोध पर कार्य किया जाता है ।
2. इंदिरा गाँधी परमाणु अनुसंधान केंद्र (IGCAR) वर्ष 1971 में कलपक्कम (तमिलनाडु) में इस केंद्र की स्थापना की गयी। इस केंद्र का प्रमुख कार्य फास्ट ब्रीडर रिएक्टर के संबंध में अनुसंधान एवं विकास करना है। इस केंद्र में स्थित फास्ट ब्रीडर टेस्ट रिएक्टर विश्व में अपनी तरह का पहला रिएक्टर है जो प्लूटोनियम, यूरेनियम मिश्रित कार्बाइड ईंधन को काम में लाता है। फास्ट ब्रीडर टेस्ट रिएक्टर की कुछ विशेषताएँ निम्न हैं –
(i) इसमें शृंखलागत अभिक्रिया तीव्र न्यूट्रॉनों के माध्यम से निरंतर जारी रखा जाता है। ताप रिएक्टर की अपेक्षा इसमें विखंडित न्यूट्रॉनों की संख्या अत्यधिक होती है।
(ii) फास्ट ब्रीडर टेस्ट रिएक्टर में प्राकृतिक यूरेनियम का प्रयोग ताप रिएक्टर की अपेक्षा 60 से 70 गुना ज्यादा होता है ।
(iii) इसमें रेडियोधर्मिता का उत्सर्जन अल्प मात्रा में होता है।
(iv) इसमें शीतलक के रूप में सोडियम का प्रयोग किया जाता है, जबकि ताप रिएक्टर में 3. जल का ।
(v) फास्ट ब्रीडर टेस्ट रिएक्टर की रूपरेखा फ्रांस की रैपसोडी रिएक्टर पर आधारित है।
3. उच्च प्रौद्योगिक केंद्र (C.A.) – 1984 में इंदौर में स्थापित उच्च प्रौद्योगिकी केंद्र का मुख्य कार्य लेसर एवं त्वरकों के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी का विकास करना है।
नोट : लेसर (LASER) अक्षर समूह का निर्माण लाइट एम्प्लिफिकेशन बाई स्टीमुलेटेड एमिशन ऑफ रेडिएशन के सक्षिप्तीकरण से हुआ जिसका अर्थ होता है विकिरण उत्सर्जन के द्वारा प्रकाश का प्रवर्द्धन । लेसर एक ऐसी युक्ति है जिसमें विकिरण ऊर्जा के उत्सर्जन के द्वारा एकवर्णी प्रकाश प्राप्त किया जाता है। लेसर की खोज अमरीका की हेजेज प्रयोगशाला में थियोडोर मेमैन के द्वारा 1960 में की गयी भि। 1964 में BARC ने गैलियम-आर्सेनिक अर्द्धचालक लेसर का निर्माण किया ।
4. परिवर्तनीय ऊर्जा साइक्लोट्रॉन केंद्र (VECC)—यह केन्द्र परमाणु भौतिकी, परमाणु रसायन शास्त्र विभिन्न उद्योगों के लिए रेडियो समस्थानिकों के उत्पादन एवं रिएक्टरों को विभिन्न स्तरों से संस्थापन का नाम परमाणु ऊर्जा विभाग की अन्य प्रमुख इकाइयाँ स्थिति
होने वाली क्षति के उच्च अध्ययन का राष्ट्रीय केंद्र है। इसका मुख्यालय कोलकाता में है ।
भारत के परमाणु विद्युत गृह
◆ परमाणु विद्युत उत्पादन के प्रबंध न के लिए, 1987 में भारतीय परमाणु विद्युत निगम लिमिटेड | की स्थापना की गई।
◆ तारापुर परमाणु विद्युत गृह संयुक्त राज्य अमरीका की सहायता से स्थापित भारत का पहला परमाणु विद्युत संयंत्र है । यहाँ अमेरिका से आयातित व संवर्द्धित यूरेनियम का ईंधन के रूप में प्रयोग होता है । इस विद्युत गृही के लिए आवश्यक ईंधन की आपूर्ति अंतिम समय तक संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा की जाएगी।
◆ रावतभाटा परमाणु विद्युत गृह प्रारंभ में कनाडा के सहयोग से शुरू किया गया था बाद में यह परियोजना स्वदेशी तकनीक से पूरी की गई। वर्तमान में यह भारत का सबसे बड़ा ‘न्यूक्लियर पार्क’ है।
नोट: विश्व का पहला परमाणु बिजलीघर रूस में स्थापित किया गया था। (दूसरा-USA में)
परमाणु परीक्षण
◆ 18 मई, 1974 में पोखरण (जैसलमेर-राजस्थान) में भारत ने स्वदेशी पहला परीक्षणीय परमाणु विस्फोट किया। यह बम 12 किलो टन क्षमता का था ।
◆ पहले परीक्षण के 24 वर्षों के बाद पोखरण में दूसरी बार 11 मई व 13 मई, 1998 को परमाणु परीक्षण किया गया, जिसे शक्ति- 98 नाम दिया गया ।
◆ सब किलोटन (अर्थात् 1 किलोटन से कम) विस्फोटों का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यदि भारत ने समग्र परमाणु परीक्षण निषेध संधि (सी. टी.बी.टी.) पर हस्ताक्षर कर भी दिए, तो इस विस्फोटक तकनीक के माध्यम के बाद प्रयोगशाला में भी परीक्षणों को जारी रखा जा सकता है ।
◆ ‘शक्ति 98’ योजना की सफलता का श्रेय तीन वैज्ञानिकों को संयुक्त रूप से जाता है : (i) आर चिदम्बरम् (ii) ए.पी.जे. अब्दुल कलाम (iii) अनिल काकोदकर ।
◆ 1974 के परमाणु परीक्षण में मात्र प्लूटोनिक ईंधन का उपयोग हुआ था जबकि वर्ष 1998 में परिशोषित यूरेनियम से लेकर ट्रीटियम ड्यूटेरियम तक का उपयोग किया गया ।
◆ ट्रीटियम ईंधन परमाणु ऊर्जा रिएक्टरों में प्रयोग में लाए जाने वाले भारी जल से प्राप्त किया जाता है l
3. भारतीय रक्षा प्रौद्योगिकी
◆ रक्षा क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास के लिए रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन की स्थापना वर्ष 1958 में की गई । इस समय इसे कुछ अन्य प्रौद्योगिकीय संस्थानों के साथ मिलाकर स्थापित किया गया था।
◆ 1980 में स्वतंत्र रक्षा अनुसंधान एवं विकास विभाग को गठित ।
◆ रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) के प्रमुख रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार होते है। इस संगठन का मुख्यालय नई दिल्ली में है।
◆ रक्षा उत्पादन विभाग एवं रक्षा आपूर्ति विभाग का 1984 में विलय करके ‘रक्षा उत्पादन एवं आपूर्ति विभाग’ की स्थापना की गयी ।
भारतीय प्रक्षेपास्त्र कार्यक्रम
भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने जुलाई, 1983 में ‘समेकित निर्देशित प्रक्षेपास्त्र विकास कार्यक्रम’ (Integrated Guided Missile Development Programme-IGMDP) की नींव रखी। इस कार्यक्रम के संचालन का भार रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) को सौंपा गया। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत विकसित प्रक्षेपास्त्रों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है –
1. पृथ्वी (Prithvi)
◆ ‘पृथ्वी प्रक्षेपास्त्र का प्रथम परीक्षण फरवरी, 1998 को चाँदीपुर अंतरिम परीक्षण केंद्र किया गया ।
◆ पृथ्वी की न्यूनतम मारक क्षमता 40 किमी तथा अधिकतम मारक क्षमता 250 किमी है।
2. त्रिशुल (Trishul)
◆ यह कम दूरी का जमीन से हवा में मार करने वाला प्रक्षेपास्त्र है।
◆ इसकी मारक क्षमता 500 मी से 9 किमी तक है ।
◆ यह मैक – 2 की गति से निशाने को बेध सकता है।
3. आकाश (Aakash)
◆ यह जमीन से हवा में मार करने वाला मध्यम दूरी का बहुलक्षीय प्रक्षेपास्त्र है।
◆ इसकी मारक क्षमता लगभग 25 किमी है।
◆ आकाश पहली ऐसी भारतीय प्रक्षेपास्त्र है, जिसके प्रणोदक में रामजेट सिद्धांतों का प्रयोग किया गया है। इसकी तकनीकी को दृष्टिगत करते हुए इसकी तुलना अमरीकी पैट्रिया: मिसाइल से की जा सकती है।
◆ यह परम्परागत एवं परमाणु आयुध को ढोने की क्षमता रखता है तथा इसे मोबाइल लांचर से भी छोड़ा जा सकता है।
4. अग्नि (Agni)
◆ अग्नि श्रेणी में तीन प्रक्षेपास्त्र हैं: अग्नि-I, अग्नि-II, अग्नि-III
◆ अग्नि जमीन से जमीन पर मार करने वाली मध्यम दूरी की बैलस्टिक मिसाइल है ।
◆ अग्नि-III की मारक क्षमता 3000 किमी से 3500 किमी तक है ।
◆ अग्नि-III को पाकिस्तान की हत्फ – 3 तथा इजराइल की जेरिको-2 की श्रेणी में रखा जा सकता है।
◆ अग्नि III परम्परागत तथा परमाणु दोनों प्रकार के विसफोटों को ढोने की क्षमता रखती है
5. नाग (Nag)
◆ यह टैंक रोधी निर्देशित प्रक्षेपास्त्र है। इसकी मारक क्षमता 4 किमी है
◆ इसका प्रथम सफल परीक्षण नवम्बर, खं 1990 में किया गया ।
◆ इसे ‘दागो और भूल जाओ’ टैंक रोधी प्रक्षेपास्त्र भी कहा जाता है क्योंकि इसे एक बार दागे जाने के पश्चात् पुनः निर्देशित करने की आवश्यकता नहीं पड़ती ।
कुछ अन्य भारतीय प्रक्षेपास्त्र
1. धनुष (Dhanush)
◆ यह जमीन से जमीन पर मार करने वाले प्रक्षेपास्त्रों में से एक ।
◆ यह ‘पृथ्वी’ प्रक्षेपास्त्र का ही नौसैनिक रूपान्तरण है।
◆ इसकी मारक क्षमता 150 किमी तथा इस पर लगभग 500 किग्रा आयुध प्रक्षेपित किया जा सकता है ।
क्रूज मिसाइल : इस श्रेणी की मिसाइल अपने लक्ष्य को खोज कर प्रहार करती है ।
2. सागरिका (Sagrika)
◆ यह सबमेरीन लाँच बैलेस्टिक मिसाइल है।
◆ समुद्र के भीतर से इसका पहला परीक्षण फरवरी, 2008 में किया गया ।
◆ यह परम्परागत एवं परमाणु दोनों ही तरफ के आयुध ले जाने में सक्षम है।
◆ इसे रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन के द्वारा तैयार किया गया है ।
◆ भारत ऐसा पाँचवाँ देश है जिसके पास पनडुब्बी से बैलिस्टिक मिसाइल दागने की क्षमता
3. अस्त्र (Astra )
◆ यह मध्यम दूरी का हवा से हवा में मार करने वाला और स्वदेशी तकनीक से विकसित प्रक्षेपास्त्र है। इसकी मारक क्षमता 10 से 25 किमी है।
◆ यह भारत का प्रथम हवा से हवा में मार करने वाला प्रक्षेपास्त्र है
4. ब्रह्मोस (Brahmos)
◆ यह भारत एवं रूस की संयुक्त परियोजना के तहत विकसित किया जाने वाला प्रक्षेपास्त्र है।
◆ यह सतह से सतह पर मार करने वाला मध्यक दूरी का सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है।
◆ इसका प्रथम सफल परीक्षण जून, 2001 में किया गया था। इसका तीसरा सफल परीक्षण मार्च, 2009 में किया गया ।
◆ यह भी दागो और भूल जाओ (Fire and Forget) की पद्धति पर ही विकसित किया गया है।
◆ इस क्रूज मिसाइल को जून, 2007 में भारतीय थल सेना में सम्मिलित किया गया। लगभग 290 किमी तक 200 किलोग्राम वजनी परमाणु बम ले जाने में सक्षम ब्रह्मोस ध्वनि की लगभग तीन गुना तेज गति से चलती है।
5. प्रद्युम्न (Pradhuman)
◆ यह प्रक्षेपास्त्र दुश्मन के प्रक्षेपास्त्र को हवा में बहुत ही कम दूरी पर मार गिराने में सहायक है।
◆ यह एक इंटरसेप्टर प्रक्षेपास्त्र है।
◆ भारत ने स्वदेश निर्मित इडवांस्ड एयर पिडफेंस (AAD-02) मिसाइल का परीक्षण उड़ीसा के पूर्वी तट पर स्थित एकीकृत परीक्षण रेंज से 6 दिसम्बर, 2007 को किया ।
युद्धक टैंक अर्जुन
◆ इसका विकास रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन के द्वारा किया गया है ।
◆ इस युद्धक टैंक की गति अधिकतम 70 किमी प्रति घंटा तक हो सकती है।
◆ यह रात के अँधेरे में भी काम कर सकता है ।
◆ इस टैंक में लगा एक विशेष प्रकार का फिल्टर जवानों को जहरीली गैसों एवं विकिरण प्रभाव
से रक्षा करता है । इस फिल्टर का निर्माण बार्क (BARC) ने किया है।
◆ अर्जुन टैंक को विधिवत रूप से भारतीय सेना में शामिल कर लिया गया हैं।
T-90 एस. भीष्म टैंक
◆ इसका निर्माण चेन्नई के समीप आवडी टैंक कारखाने में किया गया है ।
◆ यह चार किमी के दायरे में प्रक्षेपास्त्र दाग सकता है ।
◆ यह दुश्मन की प्रक्षेपास्त्र से स्वयं को बचाने की क्षमता रखता है तथा जमीन में बिछाई गयी बारूदी सुरंगों से भी अपनी रक्षा करने की क्षमता रखता है ।
हल्के लड़ाकू विमान तेजस (Tejas)
◆ यह स्वदेश निर्मित प्रथम हल्का लड़ाकू विमान है । इसके विकास में हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही।
◆ इसमें अभी जी.ई.-404 अमेरिकी कंपनी जनरल इलेक्ट्रॉनिक का इंजन लगा है जिसे भविष्य में स्वदेश निर्मित कावेरी इंजन लगाकर हटाया जाएगा ।
◆ विश्व के सबसे कम बजन वाल बहुआयमी सुपर सोनिक लड़ाकू विमान 600 किमी / घंटे से उड़ान भरती है और हवा से हवा में, हवा से धरमी पर तथा हवा से समुद्र में मार करने में सक्षम है।
पायलट रहित प्रशिक्षण विमान-निशांत
◆ यह स्वदेशी तकनीक से निर्मित पायलट रहित प्रशिक्षण विमान है।
◆ इसे जमीन से 160 किमी के दायरे में नियंत्रित किया जा सकता
◆ इस विमान का मुख्य उद्देश्य युद्ध क्षेत्र में पर्यवेक्षण और टोह लेने की भूमिकाओं का निर्वाह करना है।
पायलट रहित विमान-लक्ष्य
◆ इसका विकास रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन के द्वारा किया गया।
◆ इसका उपयोग जमीन से वायु तथा वायु से वायु में मार करने वाले प्रक्षेपास्त्रों से तथा तोपों से निशाना लगाने के लिए प्रशिक्षण देने हेतु एक लक्ष्य के रूप में प्रयोग किया जाता है।
◆ यह जेट इंजन से चलता है तथा 10 बार प्रयोग में लाया जा सकता है।
◆ 100km के दायरे में इसे रिमोट से नियंत्रित किया जा सकता है।
◆ इसका प्रयोग तीनों सेनाओं द्वारा किया जा रहा है ।
एडवांस लाइट हेलीकॉप्टर ध्रुव
◆ इसे डी. आर. डी. ओ. द्वारा विकसित किया गया है ।
◆ अधिकतम 245 किमी / घंटे की गति उड़ान भरने वाला यह हेलीकॉप्टर 4 घंटे तक आकाश में रहकर 800 किमी की दूरी तय कर सकता है ।
◆ यह दो इंजन वाला हेलीकॉप्टर है जिसमें दो चालकों सहित 14 व्यक्तियों को ले जाया जासकता है।
आई. एल. – 78
◆ यह आसमान में उड़ान के दौरान ही लड़ाकू विमानों में ईंधन भरने वाला प्रथम विमान जिसे भारत ने मार्च, 2003 में उज्बेकिस्तान से प्राप्त किया है ।
◆ इस विमान में 35 टन वैमानिकी ईंधन के भण्डारण की सुविधा है ।
◆ आगरा के वायु सैनिक अड्डे पर इन विमानों को रखने की विशेष व्यवस्था है ।
काली – 5000
◆ काली – 5000 का विकास बार्क (BARC) द्वारा किया जा रहा है ।
◆ यह एकशक्तिशाली बीम अस्त्र है जिसमें कई गीगावाट शक्ति की माइक्रोवेव तरंगें उत्सर्जित होंगी, जो शत्रु के विमानों एवं प्रक्षेपास्त्रों पर लक्षित करने पर उनकी इलेक्ट्रॉनिक प्रणालियों और कम्प्यूटर चिप्स को समाप्त करके उन्हें ध्वस्त करने में सक्षम होंगी।
पिनाका
◆ यह मल्टी बैरल रॉकेट लांचर है ।
◆ स्वदेशी तकनीक से डी. आर. डी. ओ. द्वारा विकसित इस रॉकेट प्रक्षेपक को ए. आर. डी. ई. पूणे में निर्मित किया गया है तथा इसका नाम भगवान शंकर के धनुष ‘पिनाक’ के नाम पर ‘ पिनाका’ रखा गया हैं।
◆ इसके द्वारा मात्र 40 सेकेण्ड में ही 100-100 किग्रा वजन के एक के बाद एक 12 रॉकेट प्रक्षेपित किए जा सकते हैं, जो कम-सं-कम 7 और अधिक से अधिक 39 किमी दुश्मन के खेमे में तबाही मचा सकते हैं। तक
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