विकलांग भी देश का अंग हैं अथवा विकलांगों के प्रति हमारा कर्त्तव्य
विकलांग भी देश का अंग हैं अथवा विकलांगों के प्रति हमारा कर्त्तव्य
मनुष्य इस संसार का सर्वश्रेष्ठ प्राणी माना जाता है। उसके पास सोचने, समझने और करने की जो क्षमता है, वह किसी अन्य प्राणी की योजना के कारण वह अद्भुत कार्य कर सकता है। अपनी सामर्थ्य से तथा अपनी शक्ति के सदुपयोग से वह दूसरों के अभाव को दूर कर सकता है। वह अपने मानवीय गुणों तथा परोपकारी वृत्ति के माध्यम से दूसरे में आत्मविश्वास जगाकर उनकी हीनभावना को दूर कर सकता है। विकलांग भी हमारे समाज का अंग हैं। उनकी सहायता करना हमारा परम कर्त्तव्य है।
विकलांग का अर्थ ऐसे व्यक्ति से है, जो किसी अंग के न होने अथवा उसके नकारा हो जाने पर एक सामान्य व्यक्ति के समान काम नहीं कर सकता। यदि कोई व्यक्ति एक आँख से अन्धा अथवा एक कान से बहरा है अथवा उसका कोई अंग कुरूप है; यथा नाक का टेढ़ा होना चपटा होना आदि विकलांगता का सूचक नहीं । ये सब कमयां उसके सामान्य रूप में अथवा कार्य शक्ति में विशेष बाधक नहीं । वह अपना काम एक सामान्य व्यक्ति के समान कर सकता है। इसके विपरीत यदि कोई व्यक्ति दोनों आँखों से वंचित है, दोनों कानों से बहरा है, उसका एक अथवा दोनों हाथ नहीं, एक पैर अथवा दोनों पैर नहीं, तो वह विकलांग कहा जायेगा क्योंकि वह एक सामान्य व्यक्ति के समान न देख सकता है, न सुन सकता है, न कार्य कर सकता है और न चल सकता है आदि विकलांगता के सूचक हैं ।
विकलांगता के कई कारण हो सकते हैं । व्यक्ति जन्म से अन्धा हो सकता है। अथवा उसका कोई अंग नकारा हो सकता है। इस प्रकार की विकलांगता प्रायः लाइलाज होती है । इस प्रकार के विकलांगों के जीने के लिए विशेष प्रबन्ध तथा प्रयत्न की आवश्यकता होती है यथा अन्धों तथा बहरों के लिए विशेष प्रकार के विद्यालय खोले जाएं। उन्हें पढ़ने के लिए छात्रवृत्तियां प्रदान की जाएं। उनके शिक्षित तथा प्रशिक्षित होने के बाद उन्हें उनके अनुकूल काम सौंपा जाए।
दूसरे प्रकार की विकलांगता वह होती है, जो किसी दैवी प्रकोप यथा बाढ़, भूचाल, आंधी-तूफान अथवा दुर्घटना आदि के कारण उत्पन्न होती है। इनमें से कुछ विकलांग ऐसे होते हैं, जिनका इलाज सम्भव होता है। ऐसे व्यक्तियों का इलाज कराने के लिए हम धन आदि देकर उनकी सहायता कर सकते हैं। उनके लिए कृत्रिम अंगों के प्रत्यारोपण की भी वैज्ञानिक व्यवस्था है ।
भारत में विकलांगता की समस्या बड़े भयंकर रूप में है। निर्धनता इसका प्रधान कारण है। जन्म के उपरान्त कुपोषण के कारण बहुत से बच्चे अन्धेपन तथा पोलियो का शिकार हो जाते हैं। उनके इलाज की व्यवस्था नहीं हो सकती । यही कारण है कि सहायता के अभाव में विकलांगों की संख्या निरन्तर बढ़ती जा रही है।
हमारे देश के लोगों में सभ्यता और शिष्टाचार का अभाव है। वे विकलांगों के प्रति सहानुभूति दिखाना तथा मानवीय व्यवहार करने की बजाय उन पर व्यंग्य के छींटे कसते हैं। उनकी हंसी उड़ाई जाती है । उनको उपेक्षा तथा घृणा की दृष्टि से देखा जाता है। उससे विकलांग हीन भावना का शिकार होते हैं उनमें निराशा फैल जाती है। इस तरह का दृष्टिकोण विकलांग के लिए अभिशाप बन जाता है।
हमारा यह कर्त्तव्य है कि हम विकलांगों के प्रति अपना दृष्टिकोण बदलें। उनके प्रति मानवीय दृष्टि का परिचय दें। उनमें निहित हीन भावना को दूर कर उनमें आत्म-विश्वास जगाएं। उनके पुनर्वास के लिए प्रयत्नशील रहें। उन्हें यह अनुभव कराया जाए कि वे भी समाज का एक महत्त्वपूर्ण अंग हैं। उन्हें भी एक सामान्य व्यक्ति के समान अधिकार प्राप्त हैं। वे भी मतदान करके राष्ट्र के निर्माण में सहायक बन सकते हैं। वे भी अपनी उपलब्धियों का पुरस्कार पाने के अधिकारी हैं।
विकलांगों के पुनर्वास के लिए यह जरूरी है कि उन्हें दूसरों के समान रोजगार तथा वेतन आदि दिये जाएं, ऐसा करना कठिन अवश्य है; क्योंकि यहाँ पढ़े-लिखे सामान्य युवकों के लिए तो रोजगार उपलब्ध नहीं, फिर भी उनके लिए कुछ स्थान निश्चित किये जा सकते हैं। उनके लिए सरकार रोजगार के विशेष साधन उपलब्ध कराये । वे जो-जो कर सकते हैं, उन्हें उन कामों में लगाया जाए बहरा व्यक्ति कई काम कर सकता है। लंगड़ा व्यक्ति हाथों की सहायता से काम कर सकता है। अन्धा व्यक्ति सूत कात सकता है और रस्सी बुन सकता है। कुछ ऐसे भी काम हैं, जिन्हें विकलांग एक-दूसरे की सहायता से भी कर सकते हैं। कुछ कार्य क्षेत्र ऐसे भी हैं, जिनमें विकलांग स्वस्थ व्यक्ति से भी अधिक सफल हो सकते हैं ।
विकलांगों की सहायता के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ भी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर सकता है। इस दिशा में संयुक्त राष्ट्र संघ अपनी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा भी चुका है। उसके तत्त्वावधान में 1981 के वर्ष को ‘विकलांग कल्याण वर्ष’ के रूप में मनाया जा चुका है। इससे विकलांगों के प्रति जनता के दृष्टिकोण में परिवर्तन आया है। भारत सरकार भी विकलांगों की दशा सुधारने में प्रयत्नशील है।
हमें यह स्वीकार करना होगा कि विकलांग भी देश का अंग हैं । जिस देश में जितने अधिक विकलांग होंगे, वह देश उतने ही अनुपात में कमजोर माना जायेगा । अतः भारतवासियों तथा भारत का यह परम कर्त्तव्य है कि विकलांगों की दशा सुधारने के लिए भरसक प्रयत्न किये जाएं ।
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