भारत में परमाणु परीक्षण
भारत में परमाणु परीक्षण
भारत में 11 व 13 मई, 98 को बुद्ध-स्थल पर राजस्थान के पोखरण में क्रमशः तीन व दो परमाणु विस्फोट होने से सारे विश्व में तहलका मच गया है। अब भारत भी परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों में सम्मिलित हो गया है। परीक्षण के इन धमाकों ने सारे संसार को चकित कर दिया है। परीक्षण स्थल से निकट के गाँव खेतोलाइ के मकानों में भी दरारें पड़ गयीं; किन्तु राष्ट्र के इस महान उपलब्धि के सामने लोगों को अपने घरों के चटकने से इतनी चिन्ता नहीं हुई जितनी प्रसन्नता इस महान् सफलता से हुई हैं। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 20 मई को इसी पोखरण क्षेत्र में बुद्ध स्थल का दौरा किया। वहीं प्रधानमंत्री ने देश को एक नया नारा दिया ‘जय जवान जय किसान-जय विज्ञान ।’ सभी देशवासी प्रधानमंत्री के साथ-साथ गर्व से भर उठे । इन परीक्षणों की प्रतिक्रिया परमाणु सम्पन्न देशों पर बहुत अधिक हुई। अमरीका, रूस, फ्रांस, जापान व चीन आदि देशों ने भारत को आर्थिक सहायता न देने की धमकी भी दी । किन्तु भारत इन धमकियों के सामने झुका नहीं ।
इन परीक्षणों को करने का मुख्य उद्देश्य विश्व को यह बता देना है कि पड़ोसी देशों की सामरिक क्षमता का हम मुँह तोड़ उत्तर देने में समर्थ हैं। अपनी सुरक्षा और बचाव करने के लिए अब हम आत्म-निर्भर हैं। भारत में इन परीक्षणों का विरोध करने वाले विकसित देश यह भूल गए हैं कि भारत में 1974 में एक और 1998 में पाँच परमाणु परीक्षण हुए हैं। जबकि इस से पूर्व पूरे विश्व में 2052 परमाणु से परीक्षण किये जा चुके हैं। इनमें से अमरीका ने सबसे अधिक ऐसे परीक्षण 1945 से अब तक 1032 किये हैं। इसके अतिरिक्त सोवियत संघ रूप ने 715, फ्रांस ने 210, ब्रिटेन ने 457 और चीन ने 44 परमाणु परीक्षण किये हैं। पाकिस्तान और इजराइल के बारे में प्रायः कहा जाता है कि वे भी परमाणु परीक्षण की क्षमता रखते हैं और कभी भी उनकी ओर से परमाणु परीक्षण का समाचार मिल सकता है ।
भारत ने कुल पाँच परमाणु परीक्षण जो हाल ही में किये हैं उन को मुख्य रूप से चार श्रेणियों में बाँटा जा सकता है । ये चार तरह के परमाणु परीक्षण हैं –
1. विखण्डनीय बम या फिशन डिवाइस बम : यह परमाणु बम बनाये जाने के लिए किया गया सामान्य परीक्षण था जिसकी क्षमता सन् 1974 में किये गये परीक्षण के समान अर्थात् 15 किलो टन थी ।
2. कम क्षमता वाला विस्फोट या लो यील्ट डिवाइस: इसकी क्षमता 10 किलो अन से नीचे अर्थात् इकाई किलो टन क्षमता तक ही सीमित मानते हैं। इसे प्रक्षेपास्त्रों के वार हैड के तौर पर भी प्रयुक्त किया जा सकता है। इस परीक्षण का एक उद्देश्य ऐसे आंकड़े प्राप्त करना था जिस से आगे प्रयोगशाला में कम्प्यूटर आधारित परीक्षण किये जा सकें ।
3. हाइड्रोहन बम परीक्षा या थर्मा न्यूकिलयर या डिवाइस: इसे आज ‘सुपर ‘बम’ भी कहा जाता है। इसकी विनाशक क्षमता सामान्य परमाणु बम की तुलना में सौ से हजार गुणा तक अधिक है। परमाणु बम की विस्फोटक क्षमता को किला टन में मापते हैं जबकि हाइड्रोजन बम की क्षमता को मेगावाट में नापते हैं।
4. सब किलोटन परीक्षण भारत में 13 मई को पुनः दो परीक्षण किये। ये परीक्षण सब किलोटन या एक किलोटन से कम क्षमता वाले थे। इस परीक्षण के बाद यह दावा किया गया है कि इन से भारत में कम्प्यूटर सिमूलेशन (अनुकरण) एवं प्रयोगशालाओं में किये जाने वाले अपक्रान्तिक परीक्षण की क्षमता प्राप्त कर ली है ।
भारत ने 1960 से हो रही कुछ देशों की ‘सी.टी.बी.टी’ (कांप्रीहेंसिव टैस्ट बैन ट्रीटी) या व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबन्ध संधि की माँग के अनुसार उस पर हस्ताक्षर नहीं किए । भारत कुछ शर्तों पर ही इस संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए तैयार है। भारत को इन पाँच परीक्षणों के पश्चात् परमाणु अस्त्र सम्पन्न राष्ट्रों की श्रेणी में रखा जाये या सीटीबीटी के भेद भावकारी उपबंधों को समाप्त किया जाये। इसके विरोध में तीन देश हैं- भारत, पाकिस्तान और इज़रायल । इज़राइल कुछ समय बाद इस पर हस्ताक्षर करने को तैयार है। पाकिस्तान भारत द्वारा इस संधि पर हस्ताक्षर करने के पश्चात् ही तैयार है ।
इन परमाणु परीक्षणों का आरम्भ द्वितीय महायुद्ध में ही हो गया था। जब संयुक्त राज्य अमरीका ने 1945 में 22 किलोटन क्षमता वाले परमाणु बम का परीक्षण न्यू मैक्सिको के अल्मोगोर्डो क्षेत्र में किया। पहले परमाणु बम का प्रयोग अमरीका द्वारा जापान के विरूद्ध किया गया जिसकी क्षमता 13 किलोटन थी। 6 अगस्त 1945 को बी-29 एयर क्राफ्ट के द्वारा जापान के हिरोशिमा नगर पर गिराया गया दूसरा बम जिसकी क्षमता 22 किलोटन थी जापान के नागासाकी नगर पर गिराया गया। पहले बम से 70 हज़ार से लेकर एक लाख लोग मरे, दूसरे में लगभग 40 हज़ार लोग मरे । यह कम संख्या पर्वतीय क्षेत्र होने के कारण थी। तभी जापान ने 14 अगस्त 1945 में आत्म-समपर्ण कर दिया ।
इस विनाश का अन्त करने के लिए परमाणु हथियारों को नष्ट करने का अभियान चला, किन्तु इस प्रक्रिया के अधिक दुरुह, कठिन व खर्चीले होने के कारण इसकी धीमी पड़ गई। आज विश्व में लगभग 60 हज़ार परमाणु हथियार हैं जिन को नष्ट करने में कम से कम 20 से 25 वर्ष लगेंगे। निरस्त्रीकरण के फलस्वरूप केवल 10 हज़ार परमाणु हथियार ही नष्ट हो सके। इस से स्पष्ट है कि परमाणु हथियारों का खतरा तो बना ही रहेगा। इसलिए भारत ने अपनी आत्मरक्षा के लिए यह प्रयास किया है ।
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