भारत-चीन के मिलने से अमेरिका में मचेगी खलबली, पश्चिमी देशों पर भारी पड़ेगा ग्लोबल साउथ

Explainer: भारत-चीन के आपस में मिलने के बाद अब अमेरिका में खलबली मचने के आसार अधिक दिखाई देने लगे हैं. इन दोनों देशों पर भारी-भरकम टैरिफ लगाकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ब्रिक्स और ग्लोबल साउथ के देशों में अपना शक्ति संतुलन बनाने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन, अब उनका दांव उल्टा पड़ता दिखाई दे रहा है. इसका कारण यह है कि कोविड-19 के बाद वैश्विक स्तर पर पैदा हुए भू-राजनीतिक तनाव की वजह से ब्रिक्स और ग्लोबल साउथ के देश जहां बिखर गए थे, ट्रंप के टैरिफ की वजह से अब ये आपस में जुड़कर एक नई धूरी बनाने की दिशा में आगे बढ़ चुके हैं. भारत-चीन के मिलने के बाद ब्रिक्स के ताकतवर होने के आसार अधिक दिखाई दे रहे हैं.

शक्ति संतुलन के लिए महत्वपूर्ण है ग्लोबल साउथ

एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के अनुसार, ग्लोबल साउथ का उदय वैश्विक शक्ति संतुलन में एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक है. भारत जैसे देशों की सक्रिय कूटनीति और ग्लोबल साउथ की एकजुटता ने पश्चिमी देशों के प्रभुत्व को चुनौती दी है. पश्चिमी देशों में यह खलबली इसलिए मची है, क्योंकि ग्लोबल साउथ अब न केवल अपनी समस्याओं को वैश्विक मंचों पर उठा रहा है, बल्कि वैश्विक शासन, आर्थिक नीतियों और भू-राजनीति में एक प्रभावशाली भूमिका निभाने की दिशा में बढ़ रहा है. पश्चिमी देशों को अब इस नई वास्तविकता के साथ तालमेल बिठाने की जरूरत है, विशेष रूप से भारत जैसे देशों के साथ सहयोग बढ़ाकर, जो ग्लोबल साउथ और ग्लोबल नॉर्थ के बीच एक सेतु की भूमिका निभा सकता है.

ग्लोबल साउथ क्या है?

दृष्टि आईएएस की एक रिपोर्ट के अनुसार, ग्लोबल साउथ एक ऐसा शब्द है, जो मुख्य रूप से एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और ओशिनिया के विकासशील, कम विकसित या आर्थिक रूप से कम समृद्ध देशों को संदर्भित करता है. यह शब्द 1969 में अमेरिकी राजनीति विज्ञानी कार्ल ओग्लेसबी की ओर से पहली बार इस्तेमाल किया गया था और इसका उपयोग शीत युद्ध के दौरान “थर्ड वर्ल्ड” देशों के लिए किया गया, जो न तो पूंजीवादी “फर्स्ट वर्ल्ड” (पश्चिमी देश) और न ही साम्यवादी “सेकंड वर्ल्ड” (सोवियत ब्लॉक) का हिस्सा थे.

ग्लोबल साउथ की खासियत

रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्लोबल साउथ में शामिल देशों में अक्सर साम्राज्यवाद और औपनिवेशिक शासन का इतिहास रहा है, जिसने उनकी आर्थिक और सामाजिक संरचना को प्रभावित किया है. इन देशों में गरीबी, आय असमानता, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी जैसी चुनौतियां आम हैं. यह शब्द भौगोलिक नहीं है. भारत और चीन उत्तरी गोलार्ध में हैं, फिर भी ग्लोबल साउथ का हिस्सा माने जाते हैं. ग्लोबल साउथ में भारत, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, इंडोनेशिया, कई अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी जैसे देश शामिल हैं.

ग्लोबल साउथ का आर्थिक और राजनीतिक महत्व

हाल के दशकों में ग्लोबल साउथ की आर्थिक और राजनीतिक शक्ति में बढ़ोतरी हुई है. विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2030 तक चार सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से तीन (चीन, भारत और अन्य) ग्लोबल साउथ से होंगी. ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) का संयुक्त जीडीपी पहले से ही जी-7 देशों से अधिक है. भारत ने “वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट” जैसे मंचों के माध्यम से इन देशों की आवाज को वैश्विक मंचों पर उठाया है, जैसे जी-20 में अफ्रीकी संघ को शामिल करना है.

पश्चिमी देशों में खलबली क्यों?

ब्रिक्स और ग्लोबल साउथ के उभरते प्रभाव ने अमेरिका और पश्चिमी देशों में चिंता पैदा की है, जिसके कई कारण हैं.

आर्थिक शक्ति का बदलाव

ग्लोबल साउथ की उभरती अर्थव्यवस्थाएं (जैसे भारत और चीन) वैश्विक आर्थिक संतुलन को बदल रही हैं. विश्व बैंक ने “संपत्ति का बदलाव” उत्तरी अटलांटिक से एशिया-प्रशांत क्षेत्र की ओर देखा है. ब्रिक्स देशों का बढ़ता प्रभाव और जी-7 के प्रभुत्व को चुनौती देने की उनकी क्षमता पश्चिमी देशों के लिए चिंता का विषय है.

भू-राजनीतिक प्रभाव

ग्लोबल साउथ के देश (विशेष रूप से भारत) अब वैश्विक मंचों पर अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं. भारत की जी-20 अध्यक्षता और ग्लोबल साउथ के मुद्दों को उठाने की उसकी सक्रियता (जैसे खाद्य सुरक्षा, जलवायु वित्त और हरित ऊर्जा) ने पश्चिमी देशों के पारंपरिक प्रभुत्व को चुनौती दी है.
नाटो के समर्थन से इनकार: ग्लोबल साउथ कई देशों ने रूस-यूक्रेन युद्ध में नाटो का समर्थन करने से इनकार कर दिया, जिससे पश्चिमी देशों की एकतरफा नीतियों को झटका लगा है.

चीन का प्रभाव और भारत की भूमिका

चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) ने ग्लोबल साउथ में बुनियादी ढांचे के विकास के लिए बड़े पैमाने पर निवेश किया है, लेकिन यह कई देशों के लिए “कर्ज का जाल” बन गया है. खासकर, पाकिस्तान कर्ज के जाल में बुरी तरह फंसता जा रहा है. भारत ने इसके जवाब में ग्लोबल डेवलपमेंट कॉम्पैक्ट जैसे वैकल्पिक मॉडल प्रस्तुत किए, जो पारदर्शी और सौम्य सहायता पर आधारित हैं. भारत की बढ़ती भूमिका (विशेष रूप से जी-20 और वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट जैसे मंचों पर) ने इसे ग्लोबल साउथ का एक विश्वसनीय नेता बनाया है, जिससे चीन के प्रभाव को संतुलित करने में मदद मिली है. यह पश्चिमी देशों के लिए एक जटिल स्थिति पैदा करता है, क्योंकि वे भारत को अपने रणनीतिक साझेदार के रूप में देखते हैं, लेकिन साथ ही ग्लोबल साउथ के बढ़ते प्रभाव से सतर्क भी हैं.

नियम-आधारित व्यवस्था पर सवाल

ग्लोबल साउथ के देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, विश्व बैंक, और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसे वैश्विक संस्थानों में सुधार की मांग कर रहे हैं, जो ऐतिहासिक रूप से पश्चिमी देशों के प्रभुत्व में रहे हैं. कुछ देश अमेरिकी डॉलर के बजाय अन्य मुद्राओं (जैसे युआन) में व्यापार की ओर बढ़ रहे हैं, जो अमेरिकी आर्थिक प्रभुत्व के लिए खतरा है.

पश्चिमी नीतियों पर असंतोष

ग्लोबल साउथ के देशों में पश्चिमी देशों की नीतियों, विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन और हरित ऊर्जा वित्तपोषण में उनकी उदासीनता के प्रति असंतोष बढ़ रहा है. ग्लोबल नॉर्थ के उच्च उत्सर्जन के बावजूद, ग्लोबल साउथ के देश जलवायु परिवर्तन के सबसे बड़े पीड़ित हैं. कोविड-19 महामारी के दौरान पश्चिमी देशों की ओर से वैक्सीन की जमाखोरी ने भी ग्लोबल साउथ में नाराजगी बढ़ाई, जबकि भारत ने इस दौरान कई देशों को मुफ्त वैक्सीन प्रदान की.

सामाजिक और वैचारिक बदलाव

ग्लोबल साउथ के देश अब केवल “नियमों का पालन करने वाले” (रूल-टेकर्स) नहीं रहना चाहते, बल्कि वे वैश्विक नियमों को बनाने (रूल-मेकर्स) में हिस्सेदारी चाहते हैं. यह बदलाव पश्चिमी देशों के लिए चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि यह उनकी ऐतिहासिक प्रभुत्व को कमजोर करता है और एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की ओर इशारा करता है.

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वैक्सीन से ग्लोबल साउथ का भरोसेमंद नेता बना भारत

ग्लोबल साउथ एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के विकासशील देशों को संदर्भित करता है, जो औपनिवेशिक इतिहास और आर्थिक चुनौतियों से जूझते हैं. भारत और चीन जैसे देशों की बढ़ती आर्थिक-राजनीतिक शक्ति, ब्रिक्स का प्रभाव और वैश्विक मंचों पर ग्लोबल साउथ की मांगों ने अमेरिका और पश्चिमी देशों में खलबली मचाई है. ये देश नियम-आधारित व्यवस्था में सुधार, जलवायु वित्त, और वैश्विक शासन में हिस्सेदारी चाहते हैं. भारत की सक्रिय कूटनीति और वैक्सीन साझा करने जैसे कदमों ने इसे ग्लोबल साउथ का नेता बनाया, जो पश्चिमी प्रभुत्व को चुनौती देता है.

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