बिहार की राजव्यवस्था

बिहार की राजव्यवस्था

बिहार की शासन व्यवस्था
>बिहार भारतीय संघ का एक राज्य (प्रात) है। राज्य के प्रशासन का सुचारू रूप से चलाने के लिए संघ सरकार के सदृश बिहार में भी प्रतिनिधिमूलक संसदीय प्रणाली को अपनाया गया है।
>भारतीय संविधान के भाग 6 में राज्य प्रशासन के लिए प्रावधान किया गया है। यह प्रावधान जम्मू कश्मीर को छोड़कर बिहार सहित अन्य सभी राज्यों पर समान रूप से लागू होता है।
>सरकार के तीन अंग होते हैं- (1) कार्यपालिका (2) व्यवस्थापिका (3) न्यायपालिका ।
राज्य की शासन व्यवस्था का सांगठनिक स्वरूप इस प्रकार है-
                                                       
>संविधान की धारा 168 के अन्तर्गत राज्य विधानमंडल का गठन किया गया है। इसके अनुसार राज्य विधानमंडल के तीन अंग निम्नलिखित है- (1) राज्यपाल (2) विधान परिषद् और (3) विधानसभा
राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था निम्नक्रम में विभाजित होती है-
राज्य
प्रमडल
जिला
अनुमण्डल
सामुदायिक विकास प्रखंड
ग्राम पंचायत
>उपयुक्त प्रशासनिक इकाई के अनुसार राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था संचालित होती है।
> राज्य स्तर पर शासन कार्य का सम्पादन राज्यपाल, मुख्यमंत्री, मंत्रिपरिषद् और विभागीय  सचिवों के जरिये होता है।
>प्रमंडल स्तर पर सभी विभागों के लिए हालांकि आयुक्त उत्तरदायी होते हैं, लेकिन आरक्षी  उपमहानिरीक्षक (D.I.G), शिक्षा विभाग के सर्वोच्च अधिकारी क्षेत्रीय शिक्षा उपनिदेशक  (RDD) इत्यादि भी महत्वपूर्ण पदाधिकारी होते हैं।
>जिला स्तर पर सर्वोच्च प्रशासनिक अधिकारी जिलाधीश या समाहर्त्ता (D.M. या कलेक्टर होता है, जबकि पुलिस महकमे का सर्वोच्च अधिकारी पुलिस अधीक्षक (SP) होता है।
> शिक्षा विभाग का सर्वोच्च अधिकारी जिला शिक्षा अधिकारी (D.E.O) जिला शिक्षा अधीक्ष (D.S.E) इत्यादि होता है।
> इसी प्रकार अनुमंडल स्तर पर प्रशासन के लिए अनुमंडलाधिकारी (SDO/SDM), आरक्षी  उपाधीक्षक (DSP) इत्यादि जिम्मेवार होते हैं। प्रखण्ड स्तर पर प्रखंड विकास पदाधिकारी (B.D.O) एवं अंचल अधिकारी (C.O) तथा थानों के प्रभारी आरक्षी निरीक्षक (इंस्पेक्ट) या अवर निरीक्षक (दारोगा या S. I) होते हैं।
> भारतीय संविधान में एकरूप राजव्यवस्था का प्रावधान किया गया है। संविधान में राज्यों की शासन व्यवस्था संबंधी उपबंध भी लगभग संघीय सरकार के समान किये गए हैं।
व्यवस्थापिका
> संविधान की धारा 168 के अंतर्गत राज्य विधानमंडल का गठन किया गया है। इसके अनुसार राज्य या विधानमंडल के तीन अंग हैं-
(1) राज्यपाल (2) विधानपरिषद् और (3) विधानसभा। इस प्रकार बिहार विधानमंडल द्विसदनीय  (विधान परिषद् तथा विधान सभा दोनों ) है।
बिहार विधानसभा
> बिहार विधानसभा का गठन संविधान के उपबंधों के अनुसार किया गया है। वर्तमान में विहार विधान सदस्यों की कुल संख्या 243 है। (अविभाजित विहार में 14 नवम्बर, 2000 ई० तक 324 सदस्य थे) ।
> पूरे राज्य को 242 निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित किया गया है। प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से एक सदस्य चुनकर विधानसभा में आते हैं। इस प्रकार बिहार विधान सभा में निर्वाचित सदस्य की कुल संख्या 242 है।
> साथ ही विधानसभा में सभी को प्रतिनिधित्व देने की दृष्टि से एंग्लो-इंडियन समुदाय के एक प्रतिनिधि को राज्यपाल द्वारा विधानसभा का सदस्य मनोनीत किया जाता है।
>मनोनीत सदस्य को मिलाकर राज्य विधानसभा में सदस्यों की कुल संख्या 243 होती है।
> विधानसभा का गठन 5 वर्ष के लिए किया जाता है, किन्तु संवैधानिक संकट उत्पन्न होने की स्थिति में इसे 5 वर्ष से पूर्व भी विघटित किया जा सकता है।
> विधान सभा राज्य की जनता की प्रतिनिधि सभा है। यह राज्य विधानमंडल का निम्न सदन है।
> विधानसभा को राज्य के लिए कानून बनाने, बजट पारित करने, कार्यपालिका पर अंकुश लगाने संबंधी व्यापक शक्तियां संविधान द्वारा प्रदान की गई हैं।
> राज्य मंत्रिपरिषद् विधानसभा के प्रति ही उत्तरदायी होती है।
>विधानसभा में बहुमत प्राप्त राजनीतिक पार्टी द्वारा ही राज्य में सरकार का गठन किया जाता है।
>राज्य मंत्रिपरिषद् तभी तक अस्तित्व में रह सकती है जबतक कि विधानसभा में उसे बहुमत प्राप्त है।
> बिहार विधानसभा में एक अध्यक्ष (स्पीकर) और एक उपाध्यक्ष (डिप्टी स्पीकर) होता है। इनका चुनाव सदन के सदस्यों में से सदन द्वारा किया जाता है।
बिहार विधानपरिषद्
>संविधान की धारा 168 और 171 के अन्तर्गत गठित बिहार विधानपरिषद् में 75 सदस्य हैं। यह राज्य विधानमंडल का उच्च सदन है।
> इन सदस्यों का चुनाव निम्नलिखित विधि से सम्पन्न होता है-
★सदस्यों की कुल संख्या के 1/3 भाग का चुनाव एक ऐसे निर्वाचक मंडल द्वारा होता है, जिसमें राज्य की नगरपालिकाओं, जिला परिषदों एवं स्थानीय स्वशासन की अन्य
संस्थाओं के सदस्य शामिल होते हैं।
★सदस्यों की कुल संख्या की एक तिहाई का निर्वाचन राज्य विधानसभा के सदस्यों द्वारा सम्पन्न होता है।
★ 1/12 भाग सदस्य ऐसे स्नातकों को मिलाकर बने निर्वाचक मंडलों द्वारा चुने जाते हैं जो किसी विश्वविद्यालय से कम-से-कम तीन वर्ष से पंजीकृत स्नातक हैं।
★ 1/12 भाग सदस्य शिक्षक प्रतिनिधियों के द्वारा चुने जाते हैं। शेष सदस्य राज्यपाल द्वारा मनोनीत किए जाते हैं। ऐसे सदस्य साहित्य, विज्ञान, कला, सहकारी आंदोलन और समाज सेवा के क्षेत्र में विशेष ज्ञान अथवा व्यावहारिक अनुभव रखनेवाले होते हैं।
> विधानपरिषद् एक स्थायी सदन है और इसका विघटन नहीं होता है। किन्तु इसके एक-तिहाई सदस्य प्रत्येक दूसरे वर्ष अवकाश ग्रहण कर लेते हैं।
>बिहार विधानपरिषद् में एक सभापति और एक उपसभापति का पद है।
कार्यपालिका
>राज्य की कार्यपालिका केन्द्र की कार्यपालिका की तरह ही कार्य करती है तथा इसका प्रधान राज्यपाल होता है।
> राज्य की राजधानी– ‘पटना’ से ही राज्य की कार्यपालिका राज्य का संचालन करती है।
> राज्य की कार्यपालिका के राजनीतिक प्रमुख मुख्यमंत्री होते हैं। वे तथा उनकी मन्त्रिपरिषद् संयुक्त रूप से राज्य विधानमण्डल के प्रति उत्तरदायी होते हैं।
> किन्तु कार्यपालिका का वास्तविक प्रमुख राज्य का ‘मुख्य सचिव’ होता है, जो मुख्यमंत्री को उनके कार्य-दायित्वों, विशेषकर प्रशासनिक तथा कार्यान्वयन आदि के प्रति कार्यपालन, परामर्श तथा सहायतार्थ कार्य संचालित करता है।
> राज्य के मुख्य सचिव के अधीन पटना में एक पूर्णतः सुव्यवस्थित सचिवालय कार्यरत है, जिसमें अनेक प्रधान सचिव, संयुक्त सचिव एवं सचिव अपने-अपने विभागों के प्रमुख के रूप में कार्यरत हैं।
> वे अपने विभाग के दक्षतापूर्ण कार्य संचालन, अपने विभाग के मंत्री तथा मंत्रिपरिषद् के आदेशों एवं निर्देशों के अनुपालन के प्रति उत्तरदायी होते हैं।
> इनके सहायतार्थ विशेष सचिव, उप-सचिव, अन्य उच्चाधिकारी तथा कर्मचारी होते हैं।
सचिवालय
> राज्य के सचिवालय के प्रायः सभी विभागों में उनके प्रधान सचिवों के नियन्त्रणाधीन विभागाध्यक्ष अथवा कार्यालयाध्यक्ष होते हैं।
>शासन की कार्यपालिका शक्ति के रूप में कार्य करते हुए समस्त आदेश या समस्त कार्य मुख्यतः हिन्दी भाषा एवं देवनागरी लिपि में सम्पन्न होता है और शासनादेशों पर सचिव अथवा उनके द्वारा अधिकार प्राप्त अनु-सचिव पद तक के अधिकारी हस्ताक्षर करते हैं।
> सचिवालय के प्रधान सचिव, विशेष सचिव, संयुक्त सचिव, उप-सचिव आदि पदों पर सामान्यतः भारतीय तथा बिहार प्रशासनिक सेवाओं के अधिकारी नियुक्त किए जाते हैं।
राज्यपाल
> राज्य का समस्त शासन कार्य राज्यपाल के नाम पर चलता है।
> राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है जो प्राय पाँच साल के लिए नियुक्त किए जाता हैं, किन्तु राष्ट्रपति उन्हें बीच में हटा भी सकता है।
> ऐसे नागरिक ही राज्यपाल नियुक्त किए जा सकते हैं, जिनकी उम्र कम से कम 35 वर्ष हो ।
> राज्यपाल में राज्य की कार्यपालिका संबंधी शक्तिया निहित होती हैं, जिनका उपयोग वह स्वयं या अपने अधीनस्थ मंत्रियों के द्वारा करता है।
राज्यपाल के अधिकार
1. कार्यपालिका संबंधी : राज्यपाल मुख्यमंत्री एवं मंत्रियों, महाधिवक्ता, राज्य के लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों और अन्य बड़े अधिकारियों की नियुक्ति करता है।
2. व्यवस्थापिका संबंधी : राज्यपाल विधानमंडल की बैठकों को बुलाता है, स्थगित कर सकता है तथा विधानसभा को विघटित कर सकता है।
> कोई भी विधेयक तब तक कानून नहीं बन सकता, जब तक कि राज्यपाल उस पर अपनी स्वीकृति न दे दे।
> यदि विधानमंडल का अधिवेशन नहीं चल रहा हो तो आवश्यकता पड़ने पर वह अध्यादेश जारी कर सकता है। अध्यादेश को कानून सदृश विधिक मान्यता प्राप्त होती है।
3. वित्त संबंधी : राज्यपाल की पूर्व स्वीकृति से ही राज्य विधानसभा में वित्त विधेयक प्रस्तुत किया जा सकता है ।
4. न्याय संबंधी : उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति के मामले में राष्ट्रपति राज्यप से सलाह लेता है।
> राज्यपाल अपराधियों की सजा को कम कर सकता है या क्षमा कर सकता है।
5.आपातकाल संबंधी : राज्य में वैधानिक रूप से शासन चलाने की संभावना न होने पर संविधान की धारा 356 के अधीन वह राष्ट्रपति को आपातकाल घोषित करने या राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने का परामर्श दे सकता है।
6. विवेक आधारित अधिकार : राज्यपाल अधिकतर कार्य मंत्रिमंडल के परामर्श से करता।
लेकिन कुछ कार्य, जैसे- (i) विधेयकों की स्वीकृति देने में, (ii) विधानसभा भग करने तथा (iii) मुख्यमंत्री की नियुक्ति करने में, जब विधानसभा में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत न मिला हो, अपने विवेक से निर्णय करता है।
मंत्रिपरिषद्
> राज्यपाल को प्रशासन में सहायता एवं सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद् होती है, जिसके प्रधान मुख्यमंत्री होता है।
> सैद्धान्तिक दृष्टि से मंत्रिपरिषद् एक परामर्शदातृ समिति है, किन्तु व्यवहार में यह राज्य की वास्तविक कार्यपालिका है, जिसके परामर्श के अनुसार राज्यपाल कार्य करने को बाध्य होता है।
> विधि, वित्तीय व अर्थ संबंधी सभी मामलों का निर्धारण मंत्रिपरिषद् ही करती है।
मुख्यमंत्री
> विधानसभा के सदस्य कई राजनीतिक दलों में बंटे होते हैं, जिस दल का बहुमत होता है ।उसी दल का नेता मुख्यमंत्री होता है।
> यदि किसी दल का बहुमत नहीं हुआ तो कई दलों के पारस्परिक तालमेल से गठबंधन सरकार या मत्रिपरिषद् का गठन किया जाता है।
  मंत्रिमंडल में प्रधानता मुख्यमंत्री की होती है। मुख्यमंत्री का चुनाव उसके दल अथवा गठबंधन के सहयोगी दलों के सदस्य करते हैं।
>किन्तु मुख्यमंत्री के रूप में किसी व्यक्ति की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा होती है।
>मुख्यमंत्री नियुक्त हुए व्यक्ति को राज्य व्यवस्थापिका का सदस्य होना चाहिए या नियुक्ति से छ: माह के अंदर सदस्य बन जाना चाहिए।
>मुख्यमंत्री राज्यपाल व मंत्रिमंडल के बीच कड़ी का कार्य करता है।
>शासन संबंधी निर्णयों, मंत्रियों व पदाधिकारियों की नियुक्ति तथा विधि निर्माण कार्य में मुख्यमंत्री की भूमिका अहम होती है।
न्यायपालिका
>न्यायपालिका सरकार का तीसरा प्रमुख अंग होता है।
>नागरिक जीवन में शासन अनुचित हस्तक्षेप न करे और एक नागरिक दूसरे नागरिक के साथ ठीक व्यवहार करे, इसकी देखभाल के लिए भारतीय संविधान के उपबन्धों के अधीन बिहार में भी स्वतंत्र न्यायपालिका की व्यवस्था की गई है।
>राज्य में सबसे ऊँची अदातल पटना उच्च न्यायालय है, जिसकी स्थापना सन् 1916 में हुई थी।
>पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एवं अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति भारत के उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एवं बिहार के राज्यपाल की सलाह से राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
>उच्च न्यायालय के न्यायाधीश होने के लिए आवश्यक है कि (1) वह भारत का नागरिक हो, (2) वह कम से कम 10 वर्ष तक भारत में न्याय संबंधी किसी पद पर कार्य कर चुका हो या (3) राज्यों के उच्च न्यायालय में कम से कम 10 वर्ष तक अधिवक्ता रह चुका हो।
>बिहार में जिला एवं अन्य अधीनस्थ न्यायालय में जिला एवं सत्र न्यायाधीश होते हैं और उनकी सहायता के लिए अतिरिक्त जिला जज तथा सब जज होते हैं।
>अनुमंडलों में मुसिफ मजिस्ट्रेट या जुडिशियल मजिस्ट्रेट होते हैं।
>छोटी अदालतों के अधिकारी राज्य सरकार द्वारा नियुक्त होते हैं।
> अधीनस्थ न्यायालयों और न्यायाधिकरणों के अधीक्षण का अधिकार पटना उच्च न्यायालय को प्रदान किया गया है।
>नीचे की अदालतों के फैसले के विरुद्ध ऊपर की अदालतों में अपील की जा सकती है।
> अंतिम अपील सर्वोच्च न्यायालय, दिल्ली में होती है।
>राज्य में स्थित न्यायालयों पर मंत्रिमंडल का कोई अधिकार नहीं होता है। वे उच्च न्यायालय के अधीन स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं।
> उच्च न्यायालय के न्यायाधीश 62 वर्ष की आयु में अवकाश ग्रहण करते हैं।
उच्च न्यायालय : गठन एवं क्षेत्राधिकार
>देश के विभिन्न राज्यों में न्याय प्रशासन को सुचारु रूप से चलाने के लिए उच्च न्यायालयों का गठन किया गया है।
> उच्च न्यायालय राज्य का शीर्ष न्यायालय होता है, जो राज्य के मौलिक अधिकारों का संरक्षक होता है।
>भारतीय संविधान के अनुच्छेद 214 के अनुसार प्रत्येक राज्य के लिए एक उच्च न्यायालय होगा।
>उच्च न्यायालय के गठन की व्यवस्था अनुच्छेद 216 में की गई है।
>संसद विधि द्वारा दो या अधिक राज्यों के लिए अथवा किसी संघ राज्य क्षेत्र के लिए एक ही उच्च न्यायालय स्थापित कर सकती है।
>गुवाहाटी उच्च न्यायालय मे न्यायाधीशों की संख्या सबसे कम है, जबकि इलाहाबाद उच्च न्यायालय में सबसे अधिक है।
>वर्तमान में सम्पूर्ण भारतवर्ष में 21 उच्च न्यायालय तथा संघ राज्य क्षेत्रों में केवल दिल्ली में ही उच्च न्यायालय है।
>पंजाब तथा हरियाणा के लिए एक ही उच्च न्यायालय (चडीगढ़) है।
>असम, मेघालय, नागालैंड, मणिपुर, त्रिपुरा, मिजोरम तथा अरूणाचल प्रदेश के लिए एक  ही उच्च न्यायालय (गुवाहाटी) है।
> मुंबई उच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार दो प्रान्तो- महाराष्ट्र व गोआ के साथ साथ दो संघ शासित क्षेत्रो– दमन दीव तथा दादरा एवं नगर हवेली पर है।
>कलकत्ता (कोलकाता) उच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार अंडमान तथा निकोबार द्वीप समूह क्षेत्र पर है।
> चेन्नई उच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार पांडिचेरी (पुडुचेरी) तथा केरल उच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार लक्षद्वीप संघ शासित क्षेत्रों पर है।
>संविधान में उच्च न्यायालयों में मुख्य न्यायाधीश सहित अन्य न्यायाधीशों की कोई सीमा निश्चित नहीं की गई है। अतः सभी उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की संख्या समान नहीं होती।
> भारतीय संविधान के अनुच्छेद 231 के अनुसार संसद को यह अधिकार है कि वह किसी  दो राज्यों या दो से अधिक राज्यों के लिए एक ही उच्च न्यायालय की स्थापना करे।
मुख्य न्यायाधीश एवं न्यायाधीशों की नियुक्ति
> भारतीय संविधान के अनुच्छेद 217 के अनुसार राष्ट्रपति उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करने में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा संबंधित राज्य के राज्यपाल से परामर्श लेता है।
>संविधान के अनुच्छेद 217 के अनुसार उच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करने में राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, संबंधित राज्य के राज्य के  राज्यपाल तथा संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करता है।
>1993 में सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले के अनुसार अब भारत के मुख्य न्यायाधीश की  सहमति के बिना किसी उच्च न्यायालय में किसी न्यायाधीश की नियुक्ति नहीं हो सकती है
न्यायाधीशों की योग्यताएँ
> भारतीय संविधान के अनुच्छेद 217 (2) के अनुसार कोई व्यक्ति किसी उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने योग्य तभी होगा, जब वह भारत का नागरिक हो तथा-
(1) किसी भी राज्य के उच्च न्यायालय में या एक से अधिक राज्य के उच्च न्यायालयो में कम से कम 10 वर्ष तक अधिवक्ता रहा हो
अथवा
(2) भारत कम से कम 10 वर्ष तक किसी न्यायिक पद पर आसीन रहा हो तथा
(3) 62 वर्ष की आयु पूरी न किया हो।
न्यायाधीशों का कार्यकाल
> भारतीय संविधान के अनुच्छेद 217 के अनुसार किसी उच्च न्यायालय का न्यायाधीश 62 वर्ष की आयु तक अपने पद पर रह सकता है।
>इसके अतिरिक्त वह निम्न तरीकों से पद छोड़ सकता है, यदि-
(1) वह स्वयं त्यागपत्र दे दे।
(2) संसद द्वारा पारित प्रस्ताव के पश्चात् वह राष्ट्रपति द्वारा बर्खास्त कर दिया जाय।
(3) राष्ट्रपति द्वारा उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश को उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त कर दिया जाय या उसे किसी अन्य राज्य के उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया जाय।
> उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश की आयु संबंधी विवाद का निर्णय राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश
>भारतीय संविधान के अनुच्छेद 223 के अनुसार किसी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का पद रिक्त होने पर, राष्ट्रपति न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों में से किसी एक को मुख्य न्यायाधीश के कार्यों का सम्पादन करने हेतु नियुक्त कर सकता है।
वेतन एवं भत्ते
>सर्वोच्च तथा उच्च न्यायालय (न्यायाधीश) वेतन एवं सेवा शर्ते संशोधन विधेयक/अधिनियम 2008 के अनुसार उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को अब 30,000 के बदले 90,000 रुपये प्रतिमाह तथा अन्य न्यायाधीशों को 26,000 के स्थान पर 80,000 रुपये प्रतिमाह वेतन मिलेगा (नया वेतनमान 1जनवरी, 2006 से प्रभावी किया गया है)।
>इसी तरह उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को 33,000 के स्थान पर अब एक लाख रुपये प्रतिमाह तथा अन्य न्यायाधीशों को 30,000 के बदले 90,000 रुपये प्रतिमाह वेतन मिलेगा।
>वेतन के अलावे उन्हें भत्ते आदि तथा सेवा निवृत्ति के पश्चात् पेंशन भी मिलता है।
> न्यायाधीशों के कार्यकाल में उनके वेतन तथा भत्ते में किसी प्रकार की कमी नहीं की जा सकती है।
>न्यायाधीशों को दिये जाने वाले वेतन व भत्ते भारत की संचित निधि पर भारित होते हैं।
> उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन और भत्ते का निर्धारण करने की शक्ति संसद को प्राप्त है।
स्थान्तरण 
> भारतीय संविधान के अनुच्छेद 222 के अनुसार उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को किसी दूसरे उच्च न्यायालय में स्थानांतरित किया जा सकता है।
> यह कार्य भारत का राष्ट्रपति भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करके करता है।
> उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को उस राज्य के राज्यपाल या उनके द्वारा नियुक्त किसी व्यक्ति द्वारा शपथ ग्रहण करवाया जाता है।
उच्च न्यायालय के अधिकार एवं शक्तियाँ
> भारतीय संविधान के अनुच्छेद 225 के अनुसार उच्च न्यायालय को निम्नलिखित अधिकार व शक्तियाँ प्राप्त हैं-
1. प्रारंभिक अधिकार
> भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के अनुसार मौलिक अधिकार से संबंधित कोई भी मामला सीधे उच्च न्यायालय में लाया जा सकता है।
>उच्च न्यायालय को मौलिक अधिकारों के उल्लंघन सहित अन्य मामलों में भी रिट जारी करने का अधिकार है।
2. अपीलीय अधिकार
> उच्च न्यायालय को अपने अधीनस्थ न्यायालयों तथा न्यायाधिकरण के निर्णयों आदि के विरुद्ध अपील सुनने का अधिकार है।
3. न्यायिक पुनरावलोकन का अधिकार
> उच्च न्यायालय को भी संसद तथा विधानमंडलों द्वारा बनाये गये किसी कानून, जो  संविधान के विरुद्ध हो, को असंवैधानिक घोषित करने का अधिकार प्राप्त है।
4. अंतरण संबंधी अधिकार
> अनुच्छेद 228 के अनुसार उच्च न्यायालय किसी भी अधीनस्थ न्यायालय से मुकदमे को अपने पास मंगवा सकता है और उसकी व्याख्या कर सकता है।
5. अभिलेख न्यायालय
> भारतीय संविधान के अनुच्छेद 215 के अनुसार उच्च न्यायालय को अभिलेख न्यायालय कहा गया है।
6. अधीक्षण संबंधी अधिकार
> अनुच्छेद 227 के अनुसार उच्च न्यायालयों को अपने अधीनस्थ सभी न्यायालयों तथा  अधिकरणों का अधीक्षण करने की शक्ति प्राप्त है।
अधीनस्थ न्यायालय
> भारतीय संविधान के अनुच्छेद 233 में अधीनस्थ न्यायालय के विषय में उल्लेख किया गया है।
> प्रत्येक जिले में एक जिला अदालत होती है। जिला अदालत को कार्यपालिका से स्वतंत्र रखा गया है।
जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति
> उच्च न्यायालय के परामर्श से जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति राज्यपाल करता है।
> अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति उच्च न्यायालय द्वारा आयोजित उच्च न्यायिक सेवा अथवा राज्य लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित प्रांतीय न्यायिक सेवा परीक्षा के परिणाम के आधार पर किया जाता है।
> प्रत्येक जिले में तीन प्रकार के न्यायालय होते  हैं-
1. दीवानी न्यायालय
> दीवानी न्यायालय को सिविल कोर्ट के नाम से भी जाना जाता है।
> इन न्यायालयों में जिला स्तर पर अचल सम्पत्ति संबंधी मामलों की सुनवाई होती है।
2. फौजदारी न्यायालय
> फौजदारी न्यायालय को आपराधिक न्यायालय भी कहा जाता है।
> इसके अन्तर्गत लड़ाई-झगड़े, मारपीट आदि से संबंधित मुकदमों की सुनवाई की जाती है
3. भू-राजस्व न्यायालय
> इस न्यायालय के अन्तर्गत भू-राजस्व एवं लगान संबंधी मामलों की सुनवाई की जाती है।
पटना उच्च न्यायालय
> पटना उच्च न्यायालय बिहार राज्य की न्यायिक व्यवस्था के शिखर पर विराजमान है।
> पटना उच्च न्यायालय की स्थापना 9 फरवरी, 1916 को हुई थी।
> स्थापना के समय पटना उच्च न्यायालय के कार्य क्षेत्र में बिहार व उड़ीसा दोनों सम्मिलित है
>1936 में उड़ीसा के बिहार से अलग होने के पश्चात् इसका कार्यक्षेत्र केवल विहार तक सीमित रह गया।
>15 नवम्बर, 2000 को बिहार के विभाजन के पश्चात् जब झारखंड राज्य का निर्माण हुआ तो झारखंड की राजधानी में स्थित पटना उच्च न्यायालय की राँची पीठ के स्थान पर राँची उच्च न्यायालय का गठन किया गया। सम्प्रति पटना उच्च न्यायालय का कार्यक्षेत्र वर्तमान में मात्र बिहार के क्षेत्रों तक ही सीमित रह गया है।
पटना उच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार
1. प्रारंभिक क्षेत्राधिकार
>मौलिक अधिकार से संबंधित कोई भी मामला सीधे पटना उच्च न्यायालय में लाया जा सकता है।
> पटना उच्च न्यायालय को मौलिक अधिकारों के उल्लंघन सहित अन्य मामलों में भी रिट जारी करने का अधिकार है।
2.अपीलीय क्षेत्राधिकार
>पटना उच्च न्यायालय को अपने अधीनस्थ न्यायालयों तथा न्यायाधिकरण के निर्णयों आदि के विरुद्ध अपील सुनने का अधिकार है।
3. प्रशासकीय क्षेत्राधिकार
> पटना उच्च न्यायालय को प्रशासकीय क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत राज्य के सभी अधीनस्थ न्यायालयों पर निरीक्षण तथा नियंत्रण की शक्ति प्राप्त है।
> पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की सहायता हेतु रजिस्ट्रार, संयुक्त रजिस्ट्रार, उप रजिस्ट्रार तथा सहायक रजिस्ट्रार होते हैं।
> जिलों में अधीनस्थ न्यायिक सेवा की संरचना इस प्रकार है-
जिला एवं सत्र न्यायाधीश
        ↓
अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश
        ↓
सहायक सेशन जज
       ↓
सबआर्डिनेट जज
       ↓
न्यायिक मजिस्ट्रेट
      ↓
मुंसिफ
महाधिवक्ता
> भारतीय संविधान के अनुच्छेद 165 के अनुसार राज्यपाल ऐसे किसी भी व्यक्ति, जो उच्च न्यायालय का न्यायाधीश होने की योग्यता रखता है, को राज्य का महाधिवक्ता नियुक्त करता है।
> महाधिवक्ता बिहार राज्य का उच्चतम विधि अधिकारी होता है।
> महाधिवक्ता राज्यपाल के प्रसादपर्यन्त पद पर आसीन रह सकता है।
> महाधिवक्ता को वही पारिश्रामिक मिलता है जो राज्यपाल द्वारा निर्धारित हो।
> भारतीय संविधान के अनुच्छेद 165 (1) के अनुसार महाधिवक्ता का मुख्य कार्य होता है— विधि सम्बन्धी विषयों पर राज्य सरकार को सलाह देना।
>महाधिवक्ता वैसे कार्यों को भी सम्पादित करता है जो उन्हें राज्यपाल संविधान अथवा अन्य किसी विधि द्वारा प्रदान करता है।
>भारतीय संविधान के अनुच्छेद 177 के अनुसार, महाधिवक्ता को राज्य विधानसभा में बोलने तथा उसकी कार्यवाहियों में भाग लेने का अधिकार तो है परंतु उसे मत देने का अधिक नहीं होता है।
बिहार में स्थानीय प्रशासन
> स्थानीय प्रशासन का तात्पर्य वैसे प्रशासन से है, जो नगर निगमों, सुधार न्यासों, नगरपालिका पंचायती राज संगठनों, महानगर पालिकाओं, क्षेत्रीय विकास प्राधिकरणों, छावनी बोर्डो के रूप में नागरिक जीवन की सुविधाओं से संबंध रखता है। शहरी क्षेत्र की कुछ प्रमुख  संस्थाएँ निम्नवत् हैं :
महानगर निगम
> यह नगरीय शासन का शीर्ष निकाय है।
> इसकी स्थापना राज्य सरकार द्वारा की जाती है।
> महानगर निगम उस शहर में स्थापित किये जाते हैं, जिनकी आबादी 20 लाख से ऊपर है।
नगर निगम
> नगर निगम की स्थापना भी राज्य सरकार के विधायी अंग द्वारा की जाती है।
> नगर निगम उन शहरों में स्थापित किये जाते हैं, जिनकी आबादी 20 लाख से कम किन्तु 10 लाख से ऊपर हो।
नगरपालिका
> उन शहरों में जिनकी आबादी 10 लाख से कम और 5 लाख से अधिक है, नगरपालिका की स्थापना की जाती है।
बिहार में स्थानीय स्वायत्त शासन (नगरपालिकाएँ व योजना समितियाँ)
> नगरी क्षेत्र में स्थानीय स्वायत्त शासन की इकाइयों को सांविधानिक आधार प्रदान किय गया है । इसके तहत संविधान का भाग 9 (क) 1 जून, 1993 को प्रभावी हुआ। इस भाग ने दो प्रकार के निकायों को जन्म दिया-
> (i) स्वायत्त शासन की संस्थाएँ और (ii) योजना समितियाँ।
नगरपालिका
> शहरी स्वायत्त शासन की संस्थाओं को ‘नगरपालिका’ का नाम दिया गया।
>अनुच्छेद 243 थ ने प्रत्येक राज्य के लिए ऐसी इकाइयाँ गठित करना अनिवार्य कर दिया है
> किन्तु यदि कोई ऐसा नगर क्षेत्र है, जहाँ कोई औद्योगिक स्थापना हेतु नगरपालिका सेवाएं प्रदान कर रहा है या इस प्रकार किये जाने का प्रस्ताव है तो ऐसी स्थिति में क्षेत्र का विस्तार और अन्य तथ्यों पर विचार करने के पश्चात् राज्यपाल उसे औद्योगिक नगर घोषित कर सकता है। ऐसे क्षेत्र के लिए नागरपालिका गठित करना आवश्यक नहीं है।
> नगरपालिकाएँ मुख्यतः तीन प्रकार की होती हैं-
(i) नगर पंचायत- ऐसे क्षेत्र के लिए जो ग्रामीण क्षेत्र से नगर क्षेत्र में परिवर्तित हो रहा है।
(ii) नगर परिषद्- छोटे नगर क्षेत्र के लिए।
(iii) नगर निगम– बड़े क्षेत्र के लिए।
नगरपालिकाओं का गठन
>नगरपालिकाओं के सदस्य साधारणतः प्रत्यक्ष निर्वाचन से निर्वाचित होते हैं।
>राज्य का विधानमंडल, विधि द्वारा, नगरपालिका में प्रतिनिधित्व के लिए उपबंध कर सकता
>सदस्यता के लिए आवश्यक है कि उम्मीदवार या प्रत्याशी-
(i) नगर प्रशासन में विशेष ज्ञान और अनुभव रखने वाला व्यक्ति हो ।
(ii) लोकसभा, राज्यों की विधानसभा, राज्यसभा और विधानपरिषद् का सदस्य हो,
(iii) अनुच्छेद 243 ध के अधीन गठित बोर्ड / समितियों का अध्यक्ष हो।
>अध्यक्षों का निर्वाचन विधानमंडल द्वारा उपबंधित रीति से होता है।
>तीन लाख या उससे अधिक जनसंख्या वाली नगरपालिका के क्षेत्र में आने वाले दो या
अधिक वार्डों के लिए ‘वार्ड समितियाँ’ बनाना आवश्यक माना गया है।
>राज्य विधानमंडल उनके गठन, क्षेत्र और वार्ड समितियों में स्थानों के भरे जाने के बारे में
उपबंध करता है। राज्य विधानमंडल वार्ड समितियों के अतिरिक्त भी समितियाँ गठित कर
सकता है।
>जो व्यक्ति राज्य विधानमंडल के लिये चुने जाने के योग्य है वह नगरपालिका का सदस्य होने
के योग्य होगा। (अनुच्छेद 243 फ) इसमें सिर्फ एक बात में भिन्नता है कि नगरपालिका के लिए 21 वर्ष की आयु का व्यक्ति सदस्यता के लिए योग्य होगा, जबकि राज्य विधानसभा के लिए 25 वर्ष का होना आवश्यक है।
>दलित आदिवासियों के लिए उनकी आबादी के अनुरूप आरक्षण का प्रावधान है।
आरक्षण
> दलित आदिवासियों के लिए उनकी आबादी के अनुरूप आरक्षण का प्रावधान है।
> नगरपालिका में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण का प्रावधान है।
> यदि अनुसूचित जातियों की जनसंख्या 30 प्रतिशत और अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या 21 प्रतिशत है तो उनके लिए क्रमशः 30 प्रतिशत और 21 प्रतिशत स्थान आरक्षित होंगे।
> बिहार में वर्ष 2007 से त्रि-स्तरीय पंचायतों की तरह नगर निगमों और नगर निकायों के लिए 20 सभी कोटि के पदों पर महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत तथा अति पिछड़े वर्ग प्रतिशत आरक्षण सुनिश्चित किया गया है।
> यह विधानमंडल पर छोड़ दिया गया है कि वह इस बात का निर्णय करे कि नगरपालिकाओं के अध्यक्ष पद के लिए आरक्षण किस प्रकार होगा।
अवधि व शक्तियाँ
> प्रत्येक नगरपालिका अपने पहले अधिवेशन की तारीख से 5 वर्षों की अवधि तक कार्य करती है। किन्तु उसका विघटन विधि के अनुसार अवधि की समाप्ति के पूर्व भी किया जा सकता है
> विघटन के पहले नगरपालिका को सुनवाई का अवसर दिया जाता है।
> निर्वाचन अवधि (5 वर्ष) की समाप्ति के पूर्व नगरपालिका का गठन हो जाना चाहिए।
> यदि नगरपालिका को उसकी अवधि के पहले विघटित कर दिया जाता है तो निर्वाचन विघटन की तारीख से 6 माह के भीतर हो जाना चाहिए। 5 वर्ष की पूरी अवधि की समाप्ति के पहले विघटित नगरपालिका जब पुनर्गठित की जाती है तो वह अवशिष्ट अवधि के लिए ही होगी। किंतु यदि शेष अवधि 6 माह से कम है तो निर्वाचन आवश्यक नहीं है।
> राज्य विधानमंडल को यह शक्ति दी गयी है कि वे नगरपालिकाओं को ऐसी सभी शक्तियों और प्राधिकार प्रदान करे, जो स्वायत्त शासन की संस्थाओं के रूप में उनके कार्य के लिए आवश्यक हो (अनुच्छेद 243 ब)।
> नगरपालिकाओं को जो उत्तरदायित्व सौंपे जा सकते हैं, वे हैं-
(i) आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय की योजनाएं तैयार करना और उसका क्रियान्वयन करना।
(ii) 12वीं अनुसूची में उल्लिखित 18 मदें हैं- नगर योजना, भूमि के उपयोग का विनियम  मार्ग और पुल, जलप्रदाय, लोक स्वास्थ्य, अग्निशमन सेवाएं, नगर वानिकी, मलिन बस्ती आदि ।
>राज्य विधानमंडल, विधि द्वारा,नगरपालिकाओं को कर, शुल्क, पथकर आदि उगाही करने उनका संग्रह करने और उन्हें विनियोजित करने के लिए और प्राधिकृत कर सकता है।
>राज्य सरकार द्वारा संगृहीत कर, शुल्क आदि नगरपालिकाओं को समानुदेशित किये जा  सकते हैं।
>राज्य की संचित निधि से नगरपालिकाओं को सहायता अनुदान भी दिया जाता है।
नगरपालिका वित्त आयोग
>राज्य सरकार द्वारा नगरपालिकाओं की वित्तीय स्थिति का पुनरावलोकन करने तथा इस बारे  में सिफारिश करने के लिए एक वित्त आयोग की स्थापना करने का प्रावधान है (अनुच्छेद 243 म )I
योजना समितियाँ
>संविधान में 47वें संशोधन अधिनियम ने नगरपालिकाओं को संवैधानिक मान्यता प्रदान की।
>इस संशोधन अधिनियम में यह कहा गया है कि प्रत्येक राज्य में दो समितियाँ- जिला पर जिला योजना समिति तथा प्रत्येक महानगर क्षेत्र में महानगर योजना समिति गठित की जायेगी (अनुच्छेद 243 य घ और 243 य ङ ) ।
> राज्य विधान मंडल द्वारा समिति के गठन और उसमें स्थानों के भरे जाने के विषय में उपबंध किया जाता है। किन्तु उसके लिए आवश्यक है कि-
(i) जिला योजना समिति की दशा में कम से कम 4/5 सदस्य जिला स्तर पंचायत और उनका जिलों की नगरपालिकाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा अपने में से निर्वाचित किये जाएं उनका अनुपात जिले में नगर और ग्राम की जनसंख्या के अनुपात में होगा।
(ii) महानगर योजना समिति की दशा में समिति के कम से कम 2/3 सदस्य नगरपालिकाओं के सदस्यों के सदस्य और नगरपालिका क्षेत्र में पंचायत के अध्यक्षों द्वारा अपने में से निर्वाचित किये जाएं। स्थानों का विभाजन उस क्षेत्र में नगरपालिकाओं और पंचायतों की जनसंख्या के अनुपात में होगा।
पटना नगर निगम
> बिहार सरकार ने 1922 ई० के नगरपालिकाओं  अधिनियम की स्थापना की है।
> पटना नगर निगम की स्थापना 15 अगस्त, 1952 ई० को हुई।
>पटना नगर निगम का एक महापौर (मेयर) तथा एक उपमहापौर (डिप्टी मेयर) होता है इनका कार्यकाल एक वर्ष का होता है।
> पटना नगर निगम का गठन निगम परिषद्, निगम समितियाँ तथा प्रमुख प्रशासकीय पदाधिकारी को मिलाकर हुआ है।
>पटना नगर के आय का स्रोत विभिन्न प्रकार के कर, शुल्क एवं सरकारी अनुदान हैं।
उन्नयन न्यास
>उन्नयन न्यास शहरों के विकास के लिए बनाये जाते हैं तथा नगरों के आधुनिकीकरण, सफाई, स्वास्थ्य, सौंदर्यीकरण तथा योजनाबद्ध निर्माण के लिए कार्य करते हैं।
क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण
>आज बड़े शहरों में योजनाबद्ध विकास का जिम्मा क्षेत्रीय विकास प्राधिकरणों ने ले लिया है।
> इनका कार्य शहरों का आधुनिकीकरण व चतुर्दिक विकास है।
अघिसूचित क्षेत्र समिति
> इन समितियों की स्थापना उन छोटे-छोटे शहरों में की जाती है, जहाँ नगरपालिका व्यवस्था उपयुक्त नहीं समझी जाती है।
>अधिसूचित क्षेत्र समिति की स्थापना का उद्देश्य वहाँ बाद में नगरपालिका को स्थापित करना है।
>समिति उन सभी कार्यों को करती है जो नगरपालिका करती है।
छावनी बोर्ड
> छावनी बोर्ड केन्द्र शासित क्षेत्र है तथा प्रतिरक्षा मंत्रालय के प्रत्यक्ष नियंत्रण में है।
> देश में 63 छावनी परिषद् कार्यरत हैं।
> 1924 में छावनी अधिनियम पारित हुआ, जिसके अनुसार छावनी के प्रबंध के लिए छावनी परिषद् स्थापित करने की व्यवस्था की गयी ।
आवास परिषद्
> आवास परिषदों का गठन सार्वजनिक आवास की परियोजनाओं को तैयार करने और क्रियान्वित करने के लिए किया गया है।
74वाँ संविधान संशोधन व बिहार
> नगरीय स्थानीय स्वशासन से संबंधित 74 वें संविधान संशोधन विधेयक द्वारा नगरपालिका, टाउन एरिया तथा अधिसूचित क्षेत्र (नोटीफाइड एरिया) आदि स्थानीय निकायों में महिलाओं, पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है।
> इस विधेयक द्वारा राज्य विधानसभाओं को नगर निकायों के लिए आर्थिक विकास योजना बनाने तथा कर एवं शुल्क की वसूली एवं उपयोग करने का अधिकार दिया गया है।
ग्रामीण प्रशासन / पंचायती राज
> बिहार में ग्रामीण प्रशासन के प्रमाण प्राचीन काल से ही मिलते हैं।
>भारतीय संविधान की धारा 40 में कहा गया है कि प्रत्येक राज्य का कर्तव्य है कि वह ग्राम पंचायतों का गठन करे।
> 1956 में भारत सरकार ने वलवंत राय मेहता समिति की नियुक्ति की, जिसके प्रतिवेदन के आधार पर पंचायती राज्य संगठनों को लागू करने की योजना को मूर्त रूप दिया गया।
>बिहार सरकार ने सर्वप्रथम बिहार पंचायत समिति तथा जिला परिषद् अधिनियम, 1961 पारित किया, जिसने 17 फरवरी 1962 ई० को कानून का रूप ग्रहण किया।
> इस अधिनियम के द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों की स्थानीय संस्थाओं के लिए तीन इकाइयों: ग्राम- पंचायत, पंचायत समिति और जिला परिषद् का निर्माण किया गया।
ग्राम पंचायत
> बिहार में ग्राम पंचायत प्रशासन की सबसे छोटी किन्तु सर्वाधिक महत्वपूर्ण इकाई है।
> प्रथम पंचवर्षीय योजना में ग्राम विकास को एक स्वतंत्र क्षेत्र घोषित कर दिया गया तथा ग्राम  विकास विभाग को बिहार पंचायती राज योजना के कार्यान्वयन की जिम्मेवारी सौंपी गयी।
बिहार राज्य पंचायती राज अधिनियम 1993
> भारतीय संसद द्वारा 73वां संविधान संशोधन विधेयक, 1992 के पारित हो जाने के आलोक में बिहार सरकार ने भी उसी के अनुरूप अपने राज्य में प्रशासन के विकेन्द्रीकरण के उद्देश्य से बिहार राज्य पंचायत राज अधिनियम, 1993 लागू किया।
> इस अधिनियम के अनुसार राज्य में तीन स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था लागू करने की व्यवस्था है।
> मूल रूप से यह विधेयक बिहार में 1947 और 1961 के पंचायती राज विधेयक को निरस्त करके उसके स्थान पर लागू किया गया है।
बिहार में ग्राम पंचायत के अंग
> बिहार राज्य में ग्राम पंचायत के छः अंग हैं- ग्राम सभा, कार्यकारिणी समिति, मुखिया ग्राम सेवक, ग्राम रक्षा दल तथा ग्राम कचहरी ।
1.ग्राम सभा
> ग्राम सभा ग्राम पंचायत की विधायिका होती है। इसमें ग्राम या ग्राम समूह में रहने वाले सभी मताधिकारी शामिल होते हैं।
>ग्राम सभा की एक साल में कम से कम दो बैठकें अवश्य ही होनी चाहिए
>ग्राम सभा के कुछ प्रमुख कार्य हैं- ग्राम पंचायत के प्रशासनिक कार्यों को स्वीकृति देना ,वार्षिक बजट, लेखा और लेखा परीक्षण रिपोर्ट को स्वीकृति देना, समुदाय सेवा, स्वैचिछक श्रम विकास संबंधी कार्यक्रमों तथा परियोजनाओं को स्वीकृति देना तथा कर संबंधी प्रस्ताव पर विचार करना और उसकी स्वीकृति देना ।
2. कार्यकारिणी समिति
> प्रत्येक ग्राम पंचायत में एक कार्यकारिणी समिति होती है।
>कार्यकारणी समिति का प्रधान मुखिया होता है।
> मुखिया के अलावे कार्यकारिणी समिति के आठ सदस्य होते हैं।
3. मुखिया
> मुखिया ग्राम पंचायत की कार्यपालिका का प्रधान होता है। वह कार्यकारिणी समिति की अध्यक्षता करता है और उसकी बैठकें बुलाता
> ग्रामीण स्तर के सरकारी कर्मचारियों पर नियंत्रण रखने के साथ साथ कार्यकारिणी समिति  की सलाह पर वह विशेष परिस्थितियों में ग्रामीणों पर जुर्माना भी लगा सकता है। संसाधनों में अभिवृद्धि हेतु वह कुछ क्षेत्रों में कर भी लगा सकता है।
3. (क) उप-मुखिया
> कार्यकारिणी समिति के सदस्य विहित रीति से अपने में से एक सदस्य को उप-मुखिया निर्वाचित करते हैं।
> मुखिया कार्यकारिणी समिति के अनुमोदन से उप मुखिया को अपनी शक्ति सौंप सकता है।
>किन्तु उप-मुखिया छह महीने से अधिक मुखिया के रूप में कार्य नहीं कर सकता।
4. ग्राम सेवक
> प्रत्येक ग्राम पंचायत में एक कार्यालय होता है, जो ग्राम सेवक के जिम्मे रहता है।
>ग्राम सेवक को पंचायत सेवक भी कहा जाता है।
>वह सरकारी कर्मचारी होता है तथा उसकी नियुक्ति सरकार द्वारा की जाती है।
>ग्राम सेवक ग्राम पंचायत के सचिव के रूप में कार्य करता है तथा वह मुखिया, सरपंच तथा ग्राम पंचायत के कार्य संचालन में सहायता करता है।
5. ग्राम रक्षा दल
>बिहार पंचायती राज्य अधिनियम के अनुसार ग्राम पंचायतों को ग्राम रक्षा दल कायम रखने का अधिकार दिया गया है।
>ग्राम रक्षा दल का नेता ‘दलपति’ कहा जाता है तथा इसकी नियुक्ति मुखिया और कार्यकारिणी समिति की राय से होती है।
6. ग्राम कचहरी
> ग्राम पंचायत की न्यायपालिका को ग्राम कचहरी की संज्ञा दी गयी है। इसके माध्यम से ग्रामीण जनता को न्याय मिलता है।
> भारतीय स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं में ग्राम पंचायत ही एक ऐसी संस्था है, जिसको न्याय से संबंधित शक्तियाँ प्राप्त हैं।
>मुखिया तथा कार्यकारिणी समिति का कोई भी सदस्य ग्राम कचहरी का सदस्य नहीं हो सकता है।
>ग्राम पंचायत के न्यायिक कार्यों के निष्पादन के लिए गठित ग्राम कचहरी में सरपंच समेत नौ पंचों की एक तालिका होती है। सरपंच एवं पंचों की नियुक्ति पाँच वर्षों के लिए की जाती है।
पंचायत समिति
> बिहार पंचायत समिति तथा जिला परिषद् अधिनियम, 1961 के अनुसार पंचायत समिति के शासन के चार मुख्य अंग हैं- पंचायत समिति, प्रमुख एवं उप प्रमुख, स्थायी समिति तथा प्रखंड विकास पदाधिकारी।
प्रमुख तथा उप प्रमुख
> पंचायत समिति अपने सदस्यों में से एक प्रमुख तथा एक उप प्रमुख पाँच वर्षों के लिए निर्वाचित करती है।
> यदि किसी ग्राम पंचायत का मुखिया प्रमुख या उप प्रमुख के पद पर निर्वाचित हो जाय, तो उसे मुखिया का पद खाली करना पड़ता है।
प्रखंड विकास पदाधिकारी
> बिहार पंचायत समिति तथा जिला परिषद् अधिनियम के अनुच्छेद 20 के अंतर्गत प्रत्येक प्रखंड के लिए राज्य सरकार लोक सेवा आयोग की अनुशंसा पर प्रखंड विकास पदाधिकारी  की नियुक्ति करती है।
> वह पंचायत समिति का कार्यपालक पदाधिकारी और सचिव होता है।
जिला परिषद्
>जिले में पंचायत राज प्रणाली की सर्वोच्च संस्था जिला परिषद् होती है।
>यह एक कानूनी संस्था है तथा पंचायत समिति की तरह यह भी कानूनी अधिकार व शक्तियाँ  रखती है।
>इसके अंतर्गत जिले की सभी पंचायत समितियां आती है।
>जिला परिषद् के चार प्रमुख अंग होते हैं जिपरिषद अध्यक्ष और उपाध्यक्ष स्थायी समितियाँ तथा जिला विकास पदाधिकारी।
>जिला परिषद् के प्रमुख कार्यों में जिले की विकास संबंधी विधियों में सरकार को परामर्श देना, पंचायत समितियों के बजटों का परीक्षण करना और उनको स्वीकृति देना तथा प्रखंड और जिला द्वारा तैयार विकास योजनाओं का समन्वय और परीक्षण कर आदि प्रमुख हैं।
●बिहार का प्रान्तीय प्रशासन
>प्रशासनिक दृष्टि से बिहार को 9 प्रमंडडों, 38 जिलों, 105 अनुमंडलों एवं 534 प्रखंडों में विभाजित किया गया है।
राज्य सचिवालय
> बिहार का राज्य सचिवालय पटना में अवस्थित है, जो राज्य का प्रशासनिक केन्द्र है।
> प्रत्येक विभाग का राजनीतिक प्रधान एक मंत्री होता है।
> प्रत्येक विभाग का एक सचिव होता है जो विभाग का प्रमुख अधिकारी होता है।
> प्रत्येक विभाग के सचिव को उनके कार्यों में सहायता पहुंचाने हेतु विशेष सचिव, संयुक्त सचिव, अतिरिक्त सचिव तथा अन्य अनेक अधिकारी एवं कर्मचारी होते हैं।
>मुख्यमंत्री का भी अपना एक सचिवालय होता है।
>मुख्यमंत्री सचिवालय का प्रमुख मुख्यमंत्री का प्रधान सचिव होता है।
>यह सचिवालय मुख्यमंत्री को उनके कार्यों के संपादन में सहायता प्रदान करता है।
>उपर्युक्त सभी पद समानतः वरिष्ठ भारतीय या बिहार प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों से भरे जाते हैं।
राज्य सचिवालय के कार्य
1.सचिवीय सहायता: राज्य सचिवालय का महत्वपूर्ण कार्य है मंत्रिमंडल तथा उसकी विभिन्न समितियों को सचिवीय सहायता प्रदान करना।
2.सूचना केन्द्र के रूप में : राज्य सचिवालय सरकार से संबंधित आवश्यक सूचनाएँ मंत्रिमंड तथा उनकी विभिन्न समितियों एवं राज्यपाल को प्रेषित करता है।
>मंत्रिमंडल की बैठकों में लिए गये निर्णयों की सूचना भी वह संबंधित विभागों को भेजता है।
3.समन्वयात्मक कार्य : विभिन्न सचिवीय समितियों का अध्यक्ष होने के नाते मुख्य सचिव  विभागों के बीच समन्वय स्थापित करता है।
4. परामर्शदात्री कार्य : राजकीय सचिवालय मुख्यमंत्री तथा अन्य मंत्रियों को नीतियों के निरूपण एवं सम्पादन में परामर्श देता है।
मुख्य सचिव
>मुख्य सचिव सचिवालय का प्रधान होता है तथा यह भारतीय प्रशासनिक सेवा का कोई वरिष्ठतम श्रेणी का अधिकारी होता है। मुख्य सचिव सिविल सेवा का प्रधान माना जाता है अर्थात् वह राज्य की लोक सेवाओं का अध्यक्ष होता है।
> वह राज्य सरकार का जनसम्पर्क अधिकारी होता है, जो अन्तर्राज्यीय सरकारों तथा केन्द्रीय सरकार के मध्य प्रशासनिक संचार का माध्यम है।
>मुख्य सचिव सरकारी तंत्र का मुखिया तथा मत्रिपरिषद् का सलाहकार होता है। वह विभिन्न  विभागों में समन्वय बनाये रखता है।
राज्य में पुलिस-प्रशासन की संरचना
आरक्षी (पुलिस) महानिदेशक (DGP)
               ↓
आरक्षी अपर महानिदेशक (Addl. DGP)
               ↓
आरक्षी महानिरीक्षक (IG)
               ↓
आरक्षी उप महानिरीक्षक (DIG)
               ↓
पुलिस अधीक्षक (SP)
              ↓
पुलिस उपाधीक्षक (DSP)
              ↓
आरक्षी  अवर निरीक्षक (Inspector)
              ↓
आरक्षी अवर निरीक्षक (Sub Inspector S1)
              ↓
सहायक अवर निरीक्षक (A.S.I.)
              ↓
हवलदार (Hawildar)
              ↓
आरक्षी सिपाही (Constable)
क्षेत्रीय प्रशासनिक इकाइयाँ
> प्रशासनिक सुविधा की दृष्टि से राज्य प्रशासन को पाँच इकाइयों में बाँटा गया है-
1. प्रमंडल
>बिहार राज्य में प्रमंडल क्षेत्रीय प्रशासनिक इकाई का शीर्ष संगठन है।
> एक से अधिक अथवा कई जिलों को मिलाकर एक प्रमंडल बनता है।
>आयुक्त/कमिश्नर प्रमंडल का उच्चतम अधिकारी होता है ।
> स्वतंत्रता प्राप्ति के समय बिहार में केवल 4 प्रमंडल थे-
(1) तिरहुत (2) भागलपुर (3) पटना तथा (4) छोटानागपुर।
>वर्ष 2000 तक राज्य में प्रमंडलों की संख्या 13 हो गई थी. किंतु 4 प्रमंडल नव निर्मित झारखंड राज्य में चले जाने के कारण वर्तमान समय में बिहार में प्रमंडलों की संख्या 9 है।
2. जिला
> जिला क्षेत्रीय प्रशासन की महत्वपूर्ण इकाई है।
> एक या एक से अधिक अथवा कई अनुमंडलों को मिलाकर एक जिला का निर्माण होता
>जिलाधिकारी या कलेक्टर जिला का उच्चतम अधिकारी होतासदस्य
> जिला स्तर पर प्रशासनिक कार्यों के समन्वय एवं कार्यान्वयन जिलाधिकारी का महत्पूर्ण कार्य होता है।
> वर्तमान में जिलाधिकारी कानून एवं व्यवस्था के अतिरिक्त नागरिक अपूर्ति, राहत एवम् पुनर्वास कार्यों के दायित्व का भी निर्वहन करता है।
3. अनुमंडल
> एक से अधिक अथवा कई प्रखंडों को मिलाकर एक अनुमडल बनाया जाता है।
> अनुमंडलाधिकारी (एस०डी०ओ०) अनुमंडल का सबसे बड़ा अधिकारी होता है।
4. प्रखंड
> कई गाँवों व पंचायतों को मिलाकर एक प्रखड बनाया जाता है।
> प्रखंड विकास पदाधिकारी (बी०डी०ओ०) प्रखड का उच्चतम प्रशासनिक अधिकारी होता है।
> प्रखंड में एक प्रखंड समिति होती है जिसका प्रधान ‘प्रखंड प्रमुख’ होता है
> प्रखंड समिति द्वारा निम्नलिखित कार्य किए जाते हैं-
(1) कृषि सुधार (2) शिशु शिक्षा (3) पशुओं की देखभाल (4) बीमारियों की रोकथाम तथा अन्य ग्राम सुधार विषयक कार्यक्रमों का संचालन ।
5. ग्राम पंचायत
> ग्राम पंचायत बिहार में प्रशासन की सबसे छोटी इकाई है।
> ग्राम पंचायत द्वारा गाँव का प्रबंध व सुधार का कार्य किया जाता है।
>प्रत्येक ग्राम पंचायत का एक प्रधान होता है जो मुखिया कहलाता है।
> प्रत्येक ग्राम पंचायत में एक ग्राम कचहरी होती है जहाँ गाँव के आपसी झगड़ों का निपटारा किया जाता है।
लोक सेवा आयोग
> भारतीय संविधान के अनुच्छेद 315 के अनुसार संघ के लिए एक संघीय लोक सेवा आयोग तथा राज्यों के लिए राज्य लोक सेवा आयोग गठित करने की व्यवस्था की गई है।
> बिहार लोक सेवा आयोग लोक सेवकों के चयन के लिए प्रतियोगिता परीक्षा तथा साक्षात्कार का आयोजन करता है।
> संविधानत बिहार लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है, जबकि व्यवहारतः यह नियुक्ति मंत्रिपरिषद् की सलाह से मुख्यमंत्री करता।
>भारतीय संविधान के अनुच्छेद 316 के अनुसार लोक सेवा आयोग के कम से कम आधे सदस्य ऐसे होने चाहिए जो भारत सरकार अथवा राज्य सरकार के अधीन कम से कम 10 वर्षों की सेवा कर चुके हों।
>बिहार लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्य 6 वर्ष तक या 62 वर्ष की आयु पुरी होने ( इनमें से जो भी पहले हो ) तक अपने पदों पर कार्य कर सकते हैं।
>अध्यक्ष तथा सदस्य को एक बार अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद उसी पद पर पुनः नियुक्त नहीं किया जा सकता है।
> संविधान के अनुच्छेद 317 के अनुसार राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या किसी सदस्य को राज्यपाल उसके पद से केवल निलवित कर सकता है, हटा नहीं सकता है।
> संविधान के अनुच्छेद 320 के अनुसार संघ तथा राज्य लोक सेवा आयोग का कर्तव्य क्रमशः संघ तथा राज्य की सेवाओं में नियुक्ति के लिए परीक्षाओं का संचालन होगा।
> संविधान के अनुसार राज्य सरकार द्वारा बिहार लोक सेवा आयोग से निम्न विषयों- राज्य के असैनिक सेवाओं में भर्ती की रीतियों से संबद्ध विषय, असैनिक सेवाओं के सदस्यों की पदोन्नति, स्थानांतरण, नियुक्ति इत्यादि विषयों, राज्य सरकार की असैनिक सेवाओं के सदस्यों के अनुशासन संबंधी विषयों पर या फिर सरकारी पद पर रहते हुए की गयी किसी सेवा के लिए सरकारी कर्मचारियों द्वारा विधि या कानूनी कार्यों के खर्चों के लिए दावे आदि पर परामर्श लिया जा सकता है।
>संविधान के अनुच्छेद 323 के मुताबिक राज्य लोक सेवा आयोग प्रति वर्ष अपने कार्यों का वार्षिक प्रतिवेदन राज्यपाल को प्रेषित करता है।
जमींदारी और संविधान संशोधन
> बिहार देश का पहला राज्य है जिसने आजादी के तुरंत बाद ‘बिहार लैंड रिफॉर्म एक्ट 1950’ बनाया; परन्तु दरभंगा के महाराजा सर कामेश्वर सिंह और दूसरे बड़े जमींदारों ने पटना उच्च न्यायालय में इस कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती दे दी और अदालत ने कहा कि यह कानून संविधान की धारा 14 के विरुद्ध है।
> उसके बाद केंद्र सरकार ने बिहार के कारण संविधान में संशोधन कर इसे 9वीं सूची में डाल दिया, लेकिन जमींदारी खत्म करने के लिए सरकार को एक दशक तक कानूनी अड़चनों को झेलना पड़ा।
>इस कानून में पहली अड़चन तव आई कि जब तत्कालीन राजस्व मंत्री कृष्ण वल्लभ सहाय ने विधेयक को प्रस्तुत किया, पर कुछ जमींदारों ने इसे राजनैतिक प्रतिशोध समझा।
> कारण चाहे जो भी हो, बिहार पहला राज्य था जिसने भूमि सुधार कानून बनाया और जिसके कारण 1951 में ही संविधान में पहला संशोधन हुआ।
राज्य की संचित निधि पर भारित व्यय
> राज्य की संचित निधि पर भारित व्यय निम्नलिखित हैं-
(1) राज्यपाल की परिलब्धियाँ, वेतन-भत्ते तथा संबंधित अन्य व्यय,
(2) विधानसभा के अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष व विधानपरिषद् के सभापति तथा उपसभापति के वेतन और भत्ते,
(3) राज्य पर ऋण आदि से संबंधित व्यय,
(4) उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतनों और भत्तों के मद में व्यय,
(5) संविधान द्वारा या राज्य के विधानमंडल द्वारा अन्य व्यय, जो इस प्रकार पारित घोषित किए जाएँ।
केन्द्र-राज्य संबंध
>भारतीय संविधान के अनुसार सरकार की शक्तियों का विभाजन तीन सूचियों में किया गया है— (1) संघ सूची (2) राज्य सूची और (3) समवर्ती सूची।
>राज्य सूची के महत्वपूर्ण विषय, जिन पर राज्य सरकार का अधिकार है, निम्नलिखित हैं—
(1) कृषि (2) भूमि स्वामित्व (3) सिंचाई (4) मत्स्यपालन (5) सार्वजनिक स्वास्थ्य (6) पुलिस (7) कानून और व्यवस्था (8) स्थानीय शासन आदि ।
अन्यान्य
>भारतीय संघ का कोई भी राज्य विदेशी राष्ट्र या अन्तर्राष्ट्रीय संगठन से सीधे ऋण नहीं ले सकता है।
> दो या दो से अधिक राज्यों में बहने वाली नदियों या जलाशयों के जल के बँटवारे से सम्बंधित  विवादों की मध्यस्थता संसद द्वारा किया जाता है।
> केन्द्र-राज्य संबंधों पर विचार-विमर्श करने के लिए केन्द्र सरकार ने 1983 ई० में न्यायमूर्ति आर० एस० सरकारिया की अध्यक्षता में सरकारिया आयोग नियुक्त किया था।
> संघ और राज्यों के मध्य वित्तीय संसाधनों के वितरण के सम्बन्ध में सलाह देने के लिए राष्ट्रपति 5 वर्षों के लिए वित्त आयोग की नियुक्ति करता है।
>डॉ० राजेन्द्र प्रसाद संविधान सभा स्थायी सभापति थे।
>हिन्दी के प्रसिद्ध कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ संसद के सदस्य भी रहे।
>1956 ई० में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पारित किया गया।
>संसद किसी भी राज्य का नाम परिवर्तित कर सकता है अथवा किसी भी राज्य का क्षेत्र घटा या बढ़ा सकता है।
>सम्प्रति भारतीय संघ में राज्यों की संख्या 28 तथा केन्द्रशासित क्षेत्रों की संख्या 7 है।
>संविधान की आठवीं अनुसूची में ‘मैथिली’ सहित 22 भाषाओं को सम्मिलित किया गया।
>योजना आयोग संवैधानिक निकाय नहीं है।
>प्रधानमंत्री योजना आयोग का पदेन अध्यक्ष होता है।
>राजभाषा आयोग का गठन राष्ट्रपति करता है।
> राजभाषा आयोग में 22 सदस्य होते हैं।
बिहार के शीर्षस्थ पदाधिकारी
> बिहार 1912 ई० से पहले बंगाल का हिस्सा था। 1 अप्रैल, 1912 को बंगाल से अलग करके बिहार और उड़ीसा को (संयुक्त रूप से) पृथक् राज्य का दर्जा दिया गया।
> इस संयुक्त राज्य का शासन चलाने के लिए उपराज्यपाल का पद यानी लेफ्टिनेंट गवर्नर का पद बनाया गया। 1 अप्रैल, 1912 से 29 दिसम्बर, 1920 तक रहे बिहार के लेफ्टिनेंट गवर्नर व उनके कार्यकाल-
नाम                                            कार्यकाल
1. सर चार्ल्स स्टुअर्ट बेली    –  1 अप्रैल, 1912 से 19 नवम्बर, 1915
2. सर एडवर्ड अलबर्ट गेट  –   19 नवम्बर, 1915 से 4 अप्रैल, 1918
3. सर एडवर्ड लेविंग     –       5 अप्रैल, 1918 से 12 अगस्त, 1918
4. सर एडवर्ड अलबर्ट गेट  –  12 अगस्त, 1918 से 29 दिसम्बर, 1920
स्वतंत्रता पूर्व बिहार (उड़ीसा सहित) के गवर्नर व उनके कार्यकाल
> 29 दिसम्बर, 1920 को बिहार व उड़ीसा (संयुक्त) राज्य के लेफ्टिनेंट गवर्नर का पद समाप्त कर दिया गया। सर एडवर्ड अलबर्ट गेट इस पद पर रहने वाले अंतिम लेफ्टिनेंट गवर्नर रहे। इसके बाद राज्यपाल का पद बनाया गया। बिहार व उड़ीसा (संयुक्त) के राज्यपाल पद पर ( जब तक उड़ीसा बिहार से अलग नहीं हो गया ) 29 दिसम्बर, 1920 से 31 मार्च 1936 तक रहे राज्यपाल और उनके कार्यकाल-
राज्यपाल का नाम                           कार्यकाल
1. लार्ड सत्येंद्र प्रसन्न सिन्हा – 29 दिसम्बर, 1920 से 30 नवम्बर, 1921
2. सर हवीलैंड ले मेसूरियर (कार्यवाहक) –  30 नवम्बर, 1921 से 12 अप्रैल, 1922
3. सर हेनरी ह्वीलर – 12 अप्रैल, 1922 से 26 मार्च, 1925
4. सर ह्यू मेफरसन (कार्यवाहक) –  27 मार्च, 1925 से 26 जुलाई, 1925
5. सर हेनरी ह्वीलर – 27 जुलाई, 1925 से 7 अप्रैल, 1927
6. सर लेंसडाउन स्टीफेंसन – 7 अप्रैल, 1927 से 26 अप्रैल, 1929
7. सर जेम्स डेविड सिफ्टन (कार्यवाहक) – 26 अप्रैल, 1929 से 25 अगस्त, 1929
8. सर लेंसडाउन स्टीफेंसन – 25 अगस्त, 1929 से 5 जून, 1930
9. सर जेम्स डेविड सिफ्टन (कार्यवाहक) – 5 जून, 1930 से 21 सितम्बर, 1930
10. सर लेंसडाउन स्टीफेंसन – 21 सितम्बर, 1930 से 7 अप्रैल, 1932
11. सर जेम्स डेविड सिफ्टन – 7 अप्रैल, 1932 से 12 अक्टूबर, 1934
12. जॉन टॉर्लटन ह्विटी (कार्यवाहक) – 12 अक्टूबर, 1934 से 11 फरवरी, 1935
13. सर जेम्स डेविड सिफ्टन – 11 फरवरी, 1935 से 31 मार्च, 1936

उड़ीसा राज्य के गठन के बाद बिहार के राज्यपाल

> 1 अप्रैल, 1936 को बिहार से पृथक् होकर उड़ीसा एक राज्य के रूप में स्थापित हुआ
1 अप्रैल 1936 से 14 अगस्त, 1947 तक बिहार के राज्यपाल और उनके कार्यकाल-
राज्यपाल
1. सर जेम्स डेविड सिफ्टन
2. सर मॉरिस गार्नियर हेले
3. सर थॉमस एलेक्जेंडर स्टीवर्ट (कार्यवाहक)
4. सर मॉरिस गार्नियर हेले
5. सर थॉमस एलेक्जेंडर स्टीवर्ट
6. सर थॉमस जॉर्ज रदरफोर्ड
7. सर रॉबर्ट फ्रांसिस (कार्यकारी)
8. सर थॉमस जॉर्ज रदरफोर्ड
9. सर ह्यू डोड

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद बिहार के राज्यपाल

नाम                                                  कार्यकाल
1. जयरामदास दौलतराम – 15 अगस्त, 1947 से 11 जनवरी, 1948 तक
2. माधव श्रीहरि अणे – 12 जनवरी, 1948 से 14 जून, 1952 तक
3. रंगनाथ रामचन्द्र दिवाकर – 15 जून, 1952 से 5 जुलाई, 1957 तक
4. डॉ० जाकिर हुसैन – 6 जुलाई, 1957 से 11 मई, 1962 तक
5. मद्भुसि अनन्तशयनम् अयंगर – 12 मई, 1962 से 6 दिसम्बर, 1967 तक
6. नित्यानन्द कानूनगो – 7 दिसम्बर, 1967 से 20 जनवरी, 1971 तक
7. न्यायमूर्ति उज्ज्वल नारायण सिन्हा (कार्यवाहक) – 21 जनवरी, 1971 से 31 जनवरी, 1971तक
8. देवकान्त बरुआ – 1 फरवरी, 1971 से 4 फरवरी, 1975 तक
9. रामचन्द्र धोंडिबा भण्डारे – 4 फरवरी, 1975 से 15 जून, 1976 तक
10. जगन्नाथ कौशल – 16 जून, 1976 से 27 मई, 1978 तक
11. न्यायमूर्ति कृष्णवल्लभ नारायण सिंह (कार्यवाहक) – 27 मई, 1978 से 26 जून, 1978 तक
12. जगन्नाथ कौशल – 26 जून, 1978 से 31 जनवरी, 1979 तक
13. न्यायमूर्ति कृष्णबल्लभ नारायण सिंह (कार्यवाहक) – 31 जनवरी, 1979 से 9 सितम्बर, 1979 तक
14. डॉ० अखलाक-उर रहमान किदवई – 10 सितम्बर, 1979 से 15 मार्च, 1985 तक
15. पेंडेकांति वेंकटसुब्बैया – 15 मार्च, 1985 से 25 फरवरी, 1988 तक
16. गोविन्द नारायण सिंह – 26 फरवरी, 1988 से 23 जनवरी, 1989 तक
17. न्यायमूर्ति दीपक कुमार सेन (कार्यवाहक) –  24 जनवरी, 1989 से 28 जनवरी, 1989 तक
18. आर० डी० प्रधान (कार्यवाहक) – 29 जनवरी, 1989 से 2 मार्च, 1989 तक
19. जगन्नाथ पहाड़िया – 3 मार्च, 1989 से 21 सितम्बर, 1989 तक
20. टी० वी० राजेश्वर (कार्यवाहक) – 22 सितम्बर, 1989 से 5 फरवरी, 1990 तक
21. मोहम्मद यूनुस सलीम – 6 फरवरी, 1990 से 13 फरवरी, 1991 तक
22. वी० सत्यनारायण रेड्डी – 14 फरवरी, 1991 से 19 मार्च,1991 तक
23. मोहम्मद शफी कुरैशी – 19 मार्च, 1991 से 15 जुलाई, 1993 तक
24. डॉ० अखलाक-उर रहमान किदवई – 15 जुलाई, 1993 से 21 अप्रैल, 1998 तक
25. सुन्दरसिंह भण्डारी – 22 अप्रैल, 1998 से 13 मार्च, 1999 तक
26. न्यायमूर्ति बृजमोहन लाल (कार्यवाहक) – 13 मार्च, 1999 से 3 अक्टूबर, 1999 तक
27. सूरजभान – 3 अक्टूबर, 1999 से 18 नवम्बर, 1999 तक
28. विनोद चन्द्र पाण्डे – 19 नवम्बर, 1999 से 12 जून, 2003 तक
29. एम० रामा जोइस – 12 जून, 2003 से 5 नवम्बर, 2004 तक
30. वूटा सिंह – 5 नवम्बर, 2004 से 26 जनवरी, 2006 तक
31. गोपाल कृष्ण गाँधी (कार्यवाहक) – 27 जनवरी, 2006 से 21 जून, 2006 तक
32. रामकृष्ण सूर्यभान गवई – 22 जून, 2006 से जुलाई, 2008 तक
33. रघुनन्दन लाल भाटिया – जुलाई, 2008 से 28 जून, 2009 तक
34. देवानंद कुँवर – 29 जून, 2009 से
35. डॉ० डी० वाई० पाटिल
36. केशरीनाथ त्रिपाठी
37. रामनाथ कोविद
38. केशरीनाथ त्रिपाठी
39. सत्यपाल मलिक
40. लालजी टंडन
41. वर्तमान में एच.ई. फागू चौहान बिहार के राज्यपाल हैं।

बिहार के मुख्यमंत्री

नाम                                          कार्यकाल
1. डॉ० श्रीकृष्ण सिंह – 30 मार्च, 1946 – 31 जनवरी, 1961
2. दीप नारायण सिंह – 1 फरवरी, 1961-18 फरवरी, 1961
3. विनोदानन्द झा – 18 फरवरी, 1961- 2 अक्टूबर, 1963
4. कृष्ण वल्लभ सहाय – 2 अक्टूबर, 1963- 5 मार्च, 1967
5. महामाया प्रसाद सिन्हा – 5 मार्च, 1967 – 28 जनवरी, 1968
6. सतीश प्रसाद सिंह – 28 जनवरी, 1968- 1 फरवरी, 1968
7. विन्देश्वरी प्रसाद मण्डल – 1 फरवरी, 1968 – 22 मार्च, 1968
8. भोला पासवान शास्त्री – 22 मार्च, 1968 – 29 जून, 1968
राष्ट्रपति शासन – 29 जून, 1968 – 26 फरवरी, 1969
9. सरदार हरिहर सिंह – 26 फरवरी, 1969 -22 जून, 1969
10. भोला पासवान शास्त्री – 22 जून, 1969 – 4 जुलाई, 1969
राष्ट्रपति शासन  – 4 जुलाई, 1969 -16 फरवरी, 1970
11. दारोगा प्रसाद राय – 16 फरवरी, 1970- 22 दिसम्बर, 1970
12. कर्पूरी ठाकुर – 22 दिसम्बर, 1970 – 2 जून, 1971
13. भोला पासवान शास्त्री –  2 जून, 1971 –  9 जनवरी, 1972
राष्ट्रपति शासन – 9 जनवरी, 1972 -19 मार्च, 1972
14. केदार पाण्डेय – 19 मार्च, 1972 – 2 जुलाई, 1973
15. अब्दुल गफूर – 2 जुलाई, 1973 – 11 अप्रैल, 1975
16. डॉ० जगन्नाथ मिश्र – 11 अप्रैल, 1975 – 30 अप्रैल, 1977
राष्ट्रपति शासन – 30 अप्रैल, 1977 – 24 जून, 1977
17. कर्पूरी ठाकुर – 24 जून, 1977 – 21 अप्रैल, 1979
18. राम सुन्दर दास – 21 अप्रैल, 1979 -17 फरवरी, 1980
राष्ट्रपति शासन – 17 फरवरी, 1980 – 8 जून, 1980
19. डॉ० जगन्नाथ मिश्र – 8 जून, 1980 -14 अगस्त, 1983
20. चन्द्रशेखर सिंह – 14 अगस्त, 1983 -12 मार्च, 1985
21. विन्देश्वरी दूबे – 12 मार्च, 1985 – 13 फरवरी, 1988
22. भागवत झा आजाद – 14 फरवरी, 1988 -10 मार्च 1989
23. सत्येन्द्र नारायण सिंह – 11 मार्च, 1989 -6 दिसम्बर, 1989
24. डॉ० जगन्नाथ मिश्र – 6 दिसम्बर, 1989 -10 मार्च, 1990
25. लालू प्रसाद – 10 मार्च, 1990 – 31 मार्च, 1995
राष्ट्रपति शासन – 31 मार्च, 1995 – 4 अप्रैल, 1995
26. लालू प्रसाद – 4 अप्रैल, 1995 – 25 जुलाई, 1997
27. श्रीमती राबड़ी देवी – 25 जुलाई, 1997- 12 फरवरी, 1999
राष्ट्रपति शासन – 12 फरवरी, 1999 – 8 मार्च 1999
28. श्रीमती राबड़ी देवी – 9 मार्च, 1999- 1 मार्च 2000
29. नीतीश कुमार – 3 मार्च, 2000  – 10 मार्च 2000
30. श्रीमती राबड़ी देवी – 11 मार्च, 2000 – 6 मार्च 2005
राष्ट्रपति शासन – 7 मार्च, 2005 -24 नवंबर 2005 
31. नीतीश कुमार  – 24 नवम्बर, 2005- कार्यरत

पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश

नाम                                                                      कार्यकाल
1. न्यायमूर्ति सर एडवर्ड मायनर्ड चैम्प्स चामियर – 01.03.1916 – 30.10.1917
2. न्यायमूर्ति सर थॉमस फ्रेडरिक डॉसन मिलर – 31.10.1917 – 31.03.1928
3. न्यायमूर्ति सर कॅर्टनी टेरेल  – 31.03.1928 – 06.05.1938
4. न्यायमूर्ति सर आर्थर ट्रेवर हैरिस  – 10.10.1938 – 19.01.194
5. न्यायमूर्ति सर सैयद फजल अली  – 19.01.1943 – 14.10.1946
6. न्यायमूर्ति सर क्लिपर्ड मनमोहन अग्रवाल – 09.01.1948- 24.01.1950
7. न्यायमूर्ति सर हर्बर्ट रिष्टन मेयरडीथ – 25.01.1950 -08.04.1950
8. न्यायमूर्ति पंडित लक्ष्मीकांत झा – 08.04.1950 – 01.06.1952
9. न्यायमूर्ति डेविड एजरा रियूवेन – 01.06.1952 – 02.09.1953
10. न्यायमूर्ति सर सैयद जाफर इमाम – 03.09.1953 -10.01.1955
11. न्यायमूर्ति सुधांशु कुमार दास – 10.01.1955 – 30.04.1956
12. न्यायमूर्ति विद्यानाथियर रामास्वामी – 30.04.1956 – 04.01.1965
13. न्यायमूर्ति रामास्वामी लक्ष्मी नरसिंहन – 04.01.1965 – 02.08.1968
14. न्यायमूर्ति सतीश चंद्र मिश्र – 09.11.1968 – 05.09.1970
15. न्यायमूर्ति उज्ज्वल नारायण सिन्हा – 05.09.1970 – 29.09.1972
16. न्यायमूर्ति नंदलाल उंटवालिया  – 29.09.1972 – 03.10.1974
17. न्यायमूर्ति श्याम नंदन प्रसाद सिंह  – 03.10.1974 – 01.05.1976
18. न्यायमूर्ति कृष्ण बल्लभ नारायण सिंह  – 19.07.1976 – 12.03.1983
19. न्यायमूर्ति सुरजीत सिंह संधावालिया  – 29.11.1983 – 27.07.1987
20. न्यायमूर्ति भगवती प्रसाद झा  – 02.01.1988. -01.05.1988
21. न्यायमूर्ति दीपक कुमार सेन  – 01.05.1988 – 23.10.1989
22. न्यायमूर्ति सुशील कुमार झा  – 19.10.1989 – 17.12.1990
23. न्यायमूर्ति गंगाधर गणेश सोहनी  – 24.10.1989 – 21.10.1994
24. न्यायमूर्ति विमल चंद्र बसाक  – 18.03.1991 – 11.06.1994
25. न्यायमूर्ति कृष्णस्वामी सुन्दर परिपूर्णन  –  24.01.1994 – 06.03.1995
26. न्यायमूर्ति के० वेंकटस्वामी  – 19.09.1994 -11.09.1995
27. न्यायमूर्ति गोविन्द बल्लभ पटनायक  – 19.05.1995 – 21.03.1997
28. न्यायमूर्ति देविन्दर प्रताप वाधवा  – 29.09.1995 – 06.10.1999
29. न्यायमूर्ति बृज मोहन लाल  –  09.07.1997 – 06.10.1999
30. न्यायमूर्ति रवि स्वरूप धवन  –  25.01.2000 – 22.07.2004
31. न्यायमूर्ति जे० एन० भट्ट  –  18.07.2005 – 16.10.2007
32. न्यायमूर्ति राजेश वालिया  –  05.01.2008 – 03.03.2008
33. न्यायमूर्ति राजेन्द्र मल लोढ़ा   – 13.05.2008 -दिसम्बर,2008
34. न्यायमूर्ति जे० वी० कोशी  – मार्च, 2009 -13.05.2009
35. न्यायमूर्ति प्रफुल्ल कुमार मिश्रा  – 12.08.2009 – 17.09.2009
36. न्यायमूर्ति दीपक कुमार मिश्रा  – 23.12.2009 – 24.05.2010
37. न्यायमूर्ति रेखा एम दोशित – 21.06.2010 –
(नोट : इस सूची में कुछ कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीशों के नाम शामिल नहीं हैं।)
1.किसी राज्य में विधान परिषद् की संरचना अथवा विघटन किया जा सकता है ?
(a) उस राज्य की विधानसभा द्वारा
(b) केन्द्रीय संसद द्वारा
(c) राष्ट्रपति द्वारा राज्यपाल की अनुशंसा पर
(d) राष्ट्रपति द्वारा राज्यपाल की अनुशंसा पर
                            (40वीं BPSC, 1995]
2. निम्नलिखित राज्यों में से कहाँ विधान परिषद् है ?
1. केरल
2. हिमाचल प्रदेश
3. दिल्ली
4. बिहार
(a) 1 एवं 4
(b) 1 एवं 2
(c) 2 एवं 3
(d) केवल 4 
3. निम्नलिखित में कौन राज्य विधानमंडल का अंग नहीं है ?
(a) राज्यपाल
(b) विधानसभा
(c) विधान परिषद
(d) महाधिवक्ता
4. एंग्लो इंडियन समुदाय का एक प्रतिनिधि विधान सभा की सदस्यता के लिए…… है।
(a) निर्वाचित होता है
(b)मुख्यमंत्री द्वारा नियुक्त होता है
(c) राज्यपाल द्वारा मनोनीत किया जाता है 
(d) इनमें कोई नहीं
5. विधान सभा का गठन कितने समय के लिए किया जाता है?
(a) एक वर्ष
(b) दो वर्ष
(c) तीन वर्ष
(d) पाँच वर्ष
6. राज्य मंत्रिपरिषद् किसके प्रति जिम्मेदार होता है ?
(a) विधान सभा के प्रति
(b) विधान परिषद् के प्रति
(c) राज्यपाल के प्रति
(d) इनमें से कोई नहीं
7. बिहार के छपरा निर्वाचन क्षेत्र में लोकसभा चुनाव 2004 में कब रद्द किये गये और पुनः मतदान कब हुआ?
(a) 15 मई और 31 मई
(b) 5 मई और 31 मई
(c) 10 मई और 31 जुलाई
(d) 25 मई और 10 जून
                     [48वीं- 52वीं BPSC, 2008]
8. फरवरी 2005 के राज्य विधानमंडल के चुनाव हुए ?
(a) एक चरण में
(b) चार चरणों में
(c) दो चरणों में
(d) इनमें से कोई नहीं
                                (47वीं BPSC, 2005]
[ध्यातव्य – फरवरी 2005 विधान सभा चुनाव- तीन राज्यों- हरियाणा, में तीन चरणों में (3, 15 व 23 फरवरी, 2005 को) सम्पन्न हुए।]
9. बिहार विधान सभा में वर्तमान में कितने सदस्य हैं ?
(a) 240
(b) 243
(c) 245
(d) इनमें से कोई नहीं
                          (46वीं BPSC, 2004]
10. सम्प्रति बिहार विधानसभा के स्पीकर कौन हैं ?
(a) उदय नारायण चौधरी
(b) सदानन्द सिंह
(c) उमेश्वर प्रसाद वर्मा
(d) देवेन्द्र नारायण यादव
11. विधान परिषद् का कार्यकाल क्या होता है  ?
(a) यह एक स्थायी सदन है, इसलिए इसका कभी विघटन नहीं होता
(b) 4 वर्ष
(c) 5 वर्ष
(d) इनमें कोई नहीं
12. विधान परिषद के कितने सदस्य प्रत्येक दूसरे वर्ष अवकाश ग्रहण कर लेते हैं ?
(a) कुल सदस्य संख्या के 1/3 सदस्य
(b) कुल सदस्य संख्या के 1/6 सदस्य
(c) कुल सदस्य संख्या के 1/12 सदस्य
(d) कुल सदस्य संख्या के 1/4 सदस्य
13. राज्यपाल की पदावधि क्या है ?
(a) एक वर्ष
(b) तीन वर्ष
(c) पाँच वर्ष
(d) चार वर्ष
14. राज्य में महाधिवक्ता की नियुक्ति कौन करता है?
(a) उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश
(b) राज्य के मुख्यमंत्री
(c) राज्य बार एसोसियेशन द्वारा महाधिवक्ता का चुनाव होता है
(d) राज्यपाल
15. बिहार में फरवरी 2005 का अन्तिम चरण का चुनाव हुआ ?
(a) 93 सीटों के लिए
(b) 83 सीटों के लिए
(c) 73 सीटों के लिए
(d) इनमें से कोई नहीं (47वी BPSC. 2005)
16. विधान सभा को भंग कौन कर सकता है ?
(a) स्पीकर, विधानसभा
(b) मुख्यमंत्री
(c) राज्यपाल
(d) इनमें कोई नहीं
17. पटना उच्च न्यायालय की स्थापना कब हुई ?
(a) 1916
(b) 1917
(c) 1918
(d) 1921
18. अधीनस्थ न्यायालयों के अधीक्षण का कार्य कौन करता है ?
(a) सर्वोच्च न्यायालय
(b) उच्च न्यायालय
(c) जिला न्यायालय
(d) महाधिवक्ता
19.जिला नियोजन एवं विकास परिषद का प्रधान कौन होता है?
(a) राज्य का वित्त मंत्री
(b) जिला विकास पदाधिकारी
(c) जिला नियोजन पदाधिकारी
(d) राज्य का मुख्यमंत्री
20. राज्य प्रशासन की सबसे छोटी इकाई है-
(a) ग्राम पंचायत
(b) ग्राम कचहरी
(c) पंचायत समिति
(d) ग्राम सेवक
21. ग्राम कचहरी के प्रधान को क्या कहते हैं ?
(a) मुखिया
(b) पंच
(c) ग्राम सेवक
(d) सरपंच
22. ग्राम पंचायत में नियुक्त सरकारी कर्मचारी कौन होता है ?
(a) वी० डी० ओ०
(b) ग्राम सेवक
(c) मुखिया
(d) सरपंच
23.  पंचायत के चुनाव कराने हेतु निर्णय किसके द्वारा लिया जाता है ?
(a) केन्द्र सरकार
(b) राज्य सरकार
(c) जिला न्यायाधीश
(d) चुनाव आयोग
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