परंपरा का मूल्यांकन
परंपरा का मूल्यांकन
Hindi ( हिंदी )
लघु उतरिये प्रश्न |
प्रश्न 1. परंपरा का ज्ञान किनके लिए सबसे ज्यादा आवश्यक है और क्यों ?
उत्तर ⇒ जो लोग साहित्य में युग-परिवर्तन करना चाहते हैं, क्रांतिकारी साहित्य रचना चाहते हैं, उनके लिए साहित्य की परंपरा का ज्ञान आवश्यक है। क्योंकि साहित्य की परंपरा से प्रगतिशील आलोचना का ज्ञान होता है जिससे साहित्य की धारा को मोड़कर नए प्रगतिशील साहित्य का निर्माण किया जा सकता है।
प्रश्न 2. साहित्य सापेक्ष रूप से स्वाधीन क्यों होता है ?
उत्तर ⇒ साहित्य सापेक्ष रूप में स्वाधीन इसलिए होता है क्योंकि यह मनुष्य और परिस्थितियों के द्वन्द्वात्मक सम्बन्ध पर निर्भर करता है, किसी एक पर नहीं।
प्रश्न 3. लेखक के अनुसार आदर्श समाज में किस प्रकार की गतिशीलता होनी चाहिए ?
उत्तर ⇒ लेखक के अनुसार आदर्श समाज में इतनी गतिशीलता होनी चाहिए जिससे कोई भी वांछित परिवर्तन समाज में एक छोर से दूसरे छोर तक संचारित हो सके।
प्रश्न 4. बहुजातीय राष्ट्र की हैसियत से कोई भी देश भारत का मुकाबला क्यों नहीं कर सकता ?
उत्तर ⇒ संसार का कोई भी देश, बहुजातीय राष्ट्र की हैसियत से, इतिहास को ध्यान में रखें, तो भारत का मुकाबला नहीं कर सकता। यहाँ राष्ट्रीयता एक जाति द्वारा दूसरी जातियों पर राजनीतिक प्रभुत्व कायम करके स्थापित नहीं हुई। वह मुख्यतः संस्कृति और इतिहास की देन है। इस देश की तरह अन्यत्र साहित्य परंपरा का मूल्यांकन महत्वपूर्ण नहीं है। अन्य देश की तुलना में इस राष्ट्र के सामाजिक विकास में कवियों की विशिष्ट भूमिका है।
प्रश्न 5. साहित्य का कौन-सा पक्ष अपेक्षाकृत स्थायी होता है ? इस संबंध में लेखक की राय स्पष्ट करें।
उत्तर ⇒ साहित्य मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन से संबद्ध है। आर्थिक जीवन के अलावा मनुष्य एक प्राणी के रूप में भी अपना जीवन बिताता है । साहित्य में उसकी बहुत-सी आदिम भावनाएँ प्रतिफलित होती हैं जो उसे प्राणी मात्र से जोड़ती हैं। इस बात को बार-बार कहने में कोई हानि नहीं है कि साहित्य विचारधारा मात्र नहीं है । उसमें मनुष्य का इन्द्रिय बोध, उसकी भावनाएँ भी व्यंजित होती हैं । साहित्य का यह पक्ष अपेक्षाकृत स्थायी होता है।
प्रश्न 6. साहित्य के निर्माण में प्रतिभा की भूमिका स्वीकार करने का लेखक किन खतरों से आगाह करता है ?
उत्तर ⇒ लेखक साहित्य के निर्माण में प्रतिभाशाली मनुष्यों की भूमिका निर्णायक मानते हैं। लेकिन उन्होंने इस संबंध में सावधान किया है कि ये मनायो हैं वह सब अच्छा ही होता है, यह आवश्यक नहीं। उनके श्रेष्ठ रचना में दोनों हो सकते ऐसी कोई बात नहीं । उनके कृतित्व को दोषमुक्त मान लेना साहित्य के विकास में खतरनाक सिद्ध हो सकता है। प्रतिभाशाली मनुष्यों की अद्वितीय उपलब्धियों के बाद कुछ नया और उल्लेखनीय करने की गुंजाइश बनी रहती है।
प्रश्न 7. परंपरा के मूल्यांकन में साहित्य के वर्गीय आधार का विवेक लेखक क्यों महत्वपूर्ण मानता है ?
उत्तर ⇒ लेखक के अनुसार परंपरा के मूल्यांकन में साहित्य के वर्गीय आधार का ज्ञान महत्वपूर्ण है। इसका मूल्यांकन करते हुए सबसे पहले हम उस साहित्य का मूल्य निर्धारित करते हैं जो शोषक वर्गों के विरुद्ध जनता के हितों को प्रतिबिम्बित करता है। इसके साथ हम उस साहित्य पर ध्यान देते हैं जिसकी रचना का आधार शोषित जनता का ‘श्रम है।
प्रश्न 8. राजनीतिक मूल्यों से साहित्य के मूल्य अधिक स्थायी कैसे होते हैं ?
उत्तर ⇒ लेखक कहते हैं कि साहित्य के मूल्य राजनीतिक मूल्यों की अपेक्षा अधिक स्थायी हैं। इसकी पुष्टि में अंग्रेज कवि टेनिसन द्वारा लैटिन कवि वर्जिल पर रचित उस कविता की चर्चा करते हैं जिसमें कहा गया है कि रोमन साम्राज्य का वैभव समाप्त हो गया पर वर्जिल के काव्य सागर की ध्वनि तरंगें हमें आज भी सुनाई देती हैं और हृदय को आनन्द-विह्वल कर देती हैं।
प्रश्न 9. किस तरह समाजवाद हमारी राष्ट्रीय आवश्यकता है? इस प्रसंग में लेखक के विचारों पर प्रकाश डालें।
उत्तर ⇒ लेखक के अनुसार पूँजीवादी व्यवस्था में शक्ति का अपव्यय होता है। देश के साधनों का सबसे अच्छा उपयोग समाजवादी व्यवस्था में ही सम्भव है। अनेक छोटे-बड़े राष्ट्र समाजवादी व्यवस्था कायम करने के बाद पहले की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली हो गए। भारत की राष्ट्रीय क्षमता का पूर्ण विकास समाजवादी व्यवस्था में ही संभव है। वास्तव में समाजवाद हमारी राष्ट्रीय आवश्यकता है।
प्रश्न 10. भारत की बहुजातीयता मुख्यतः संस्कृति और इतिहास की देन है। कैसे ?
उत्तर ⇒ भारतीय सामाजिक विकास में व्यास और वाल्मीकि जैसे कवियों की विशेष भूमिका रही है। महाभारत और रामायण भारतीय साहित्य की एकता स्थापित करते हैं । इस देश के कवियों ने अनेक जाति की अस्मिता के सहारे यहाँ की संस्कृति का निर्माण किया है। भारत में विभिन्न जातियों का मिला-जुला इतिहास रहा है। समरसता स्थापित करना सिखाया है
यही भाव राष्ट्रीयता की जड़ को मजबूत किया है।
प्रश्न 11. जातीय अस्मिता का लेखक किस प्रसंग में उल्लेख करता है और उसका क्या महत्व बताता है ?
उत्तर ⇒ साहित्य के विकास में जातियों की भूमिका विशेष होती है। जन समुदाय जब एक व्यवस्था से दूसरी व्यवस्था में प्रवेश करते हैं, तब उनकी अस्मिता नष्ट नहीं हो जाती। मानव समाज बदलता है और अपनी पुरानी अस्मिता कायम रखता है। जो तत्व मानव समुदाय को एक जाति के रूप में संगठित करते हैं, उनमें इतिहास और सांस्कृतिक परम्परा के आधार पर निर्मित यह अस्मिता का ज्ञान अत्यन्त महत्वपूर्ण है। जातीय अस्मिता साहित्यिक परम्परा के ज्ञान का वाहक है।
दीर्घ उतरिये प्रश्न |
प्रश्न 1. ‘परंपरा का मूल्यांकन’ निबंध का समापन करते हुए लेखक कैसा स्वप्न देखता है ? उसे साकार करने में परंपरा की क्या भूमिका हो सकती है? विचार, करें।
उत्तर ⇒ परंपरा का मूल्यांकन निबंध का समापन करते हुए लेखक साहित्यिक परंपरा के ज्ञान-विस्तार का स्वप्न देखता है। इसके लिए उन्होंने समाजवादी व्यवस्था को उत्तम माना है। लेखक कहते हैं कि समाजवादी संस्कृति पुरानी संस्कृति से नाता नहीं तोड़ती है। लेखक आशा करते हैं कि जब जनता साक्षर होगी, साहित्य पढ़ने का उसे अवकाश होगा तब व्यास और वाल्मीकि के करोड़ों पाठक होंगे। किसी भी साहित्यिक रचना को उसके मूल भाषा में पढ़ने वाले बहुसंख्यक होंगे। भारतीय साहित्य मानव संस्कृति की विशद धारा प्रवाहित करने में नवीन योगदान देगी। अर्थात् लेखक का साहित्यिक विकास के प्रति आशावादी दृष्टिकोण है।
प्रश्न 2. जातीय और राष्ट्रीय अस्मिताओं के स्वरूप का अंतर करते हुए लेखक दोनों में क्या समानता बताता है ?
उत्तर ⇒ लेखक ने जातीय अस्मिता एवं राष्ट्रीय अस्मिता के स्वरूप का अन्तर करते हुए दोनों में कुछ समानता की चर्चा की है। समय राष्ट्र के सभी तत्वों पर मुसीबत आती है, तब राष्ट्रीय अस्मिता का ज्ञान अच्छा हो जाता है। उस समय साहित्य परम्परा का ज्ञान भी राष्ट्रीय भाव जागृत करता है। जिस समय हिटलर ने सोवियत संघ पर आक्रमण किया, उस समय यह राष्ट्रीय अस्मिता जनता के स्वाधीनता संग्राम की समर्थ प्रेरक शक्ति बनी । इस युद्ध के दौरान खासतौर से रूसी जाति ने बार-बार अपनी साहित्य परम्परा का स्मरण किया। समाजवादी व्यवस्था कायम होने पर जातीय अस्मिता खण्डित नहीं होती वरन् और पुष्ट होती है।
प्रश्न 3. साहित्य सापेक्ष रूप में स्वाधीन होता है। इस मत को प्रमाणित करने के लिए लेखक ने कौन-से तर्क और प्रमाण उपस्थित किए हैं ?
उत्तर ⇒ साहित्य सापेक्ष रूप में स्वाधीन होता है इसे प्रमाणित करने हेतु लेखक ने कहा है कि गुलामी अमरीका और एथेन्स दोनों में थी किन्तु एथेन्स की सभ्यता – ने सारे यूरोप को प्रभावित किया और गुलामों के अमरीकी मालिकों ने मानव संस्कृति को कुछ भी नहीं दिया । पूँजीवादी विकास यूरोप के तमाम देशों में हुआ पर रैफेल, लेओनार्दो दा विंची और माइकेल एंजेलो इटली की देन है। अंततः यहाँ प्रतिभाशाली मनुष्यों की भूमिका देखी जा सकती है। जब हम विचार करें तो पाते हैं कि साहित्य के निर्माण में प्रतिभाशाली मनुष्यों की भूमिका होते हुए भी साहित्य वहीं तक सीमित नहीं है । साहित्य के क्षेत्र में हमेशा कुछ नया करने की गुंजाइश बनी रहती है । अतः साहित्य सापेक्ष रूप में स्वाधीन होता है।
प्रश्न 4. लेखक मानव चेतना को आर्थिक संबंधों से प्रभावित मानते हुए भी उसकी सापेक्ष स्वाधीनता किन दृष्टांतों द्वारा प्रमाणित करता है ?
उत्तर ⇒ लेखक के अनुसार आर्थिक सम्बन्धों से प्रभावित होना एक बात है, उनके द्वारा चेतना का निर्धारित होना और बात है। अमरीका और एथेन्स दोनों में गुलामी थी किन्तु एथेन्स की सभ्यता से यूरोप प्रभावित हुआ और गुलामों के अमरीकी मालिकों ने मानव संस्कृति को कुछ भी नहीं दिया । सामान्तवाद दुनिया भर में कायम रहा पर इस सामन्ती दुनिया में महान कविता के दो ही केन्द्र थे – भारत और ईरान । पूँजीवादी विकास यूरोप के तमाम देशों में हुआ पर रैफेल, लेओनार्दो दा विंची और माइकेल एंजोलो इटली की देन हैं। इन दृष्टांतों के माध्यम से कहा गया है कि सामाजिक परिस्थितियों में कला का विकास सम्भव होता है साथ ही यह भी देखा जाता है कि समान सामाजिक परिस्थितियाँ होने पर भी कला का समान विकास नहीं होता।