नागरी लिपि
नागरी लिपि
Hindi ( हिंदी )
लघु उतरिये प्रश्न |
प्रश्न 1. गुर्जर प्रतिहार कौन थे ?
उत्तर ⇒ विद्वानों का विचार है कि गुर्जर-प्रतिहार बाहर से भारत आए थे। ईसा की आठवीं सदी के पूवार्द्ध में अवंती प्रदेश में इन्होंने अपना शासन स्थापित किया और बाद में कन्नौज पर भी अधिकार कर लिया था । मिहिरभोज, महेन्द्रपाल आदि प्रख्यात प्रतिहार शासक हुए।
प्रश्न 2. लेखक ने पटना से नागरी का क्या संबंध बताया है ?
उत्तर ⇒ पादताडितकम् नामक एक नाटक से जानकारी मिलती है कि पाटलिपुत्र (पटना) को नगर कहते थे। यह असंभव नहीं कि यह बड़ा नगर प्राचीन गुप्तों की राजधानी पटना को देवनगर चंद्रगुप्त (द्वितीय) विक्रमादित्य का व्यक्तिगत नाम देव पर आधारित था। देवनगर की लिपि होने से भारत की प्रमुख लिपि को बाद में देवनागरी नाम दिया गया होगा।
प्रश्न 3. देवनागरी लिपि में कौन-कौन सी भाषाएँ लिखी जाती हैं ?
उत्तर ⇒ देवनागरी लिपि में मुख्यतः नेपाली, मराठी, संस्कृत, प्राकृत और हिन्दी भाषाएँ लिखी जाती हैं।
प्रश्न 4. नागरी लिपि कब एक सार्वदेशिक लिपि थी ?
उत्तर ⇒ ईसा की 8वीं-11वीं सदियों में नागरी लिपि पूरे देश में व्याप्त थीं। अतः उस समय यह एक सार्वदेशिक लिपि थी।
प्रश्न 5. नागरी को देवनागरी क्यों कहते हैं ? लेखक इस संबंध में क्या बताता है?
उत्तर ⇒ नागरी नाम की उत्पत्ति तथा इसके अर्थ के बारे में विद्वानों में बड़ा मतभेद है। एक मंत के अनुसार गुजरात के नागर ब्राह्मणों ने पहले-पहल नागरी लिपि का इस्तेमाल किया । इसलिए इसका नाम नागरी पड़ा। एक दूसरे मत के अनुसार बाकी नगर सिर्फ नगर है, परन्तु काशी देवनगरी है। इसलिए काशी में प्रयुक्त लिपि का नाम देवनागरी पड़ा।
प्रश्न 6. देवनागरी लिपि के अक्षरों में स्थिरता कैसे आयी है ?
उत्तर ⇒ करीब दो सदी पहले पहली बार देवनागरी लिपि के टाइप बने और इसमें पुस्तकें छपने लगीं। इस प्रकार ही देवनागरी लिपि के अक्षरों में स्थिरता आयी है।
प्रश्न 7.लेखक ने किन भारतीय लिपियों से देवनागरी का संबंध बताया है ?
उत्तर ⇒ लेखक ने गुजराती, बँग्ला और ब्राह्मी लिपियों से देवनागरी का संबंध बताया है।
प्रश्न 8. उत्तर भारत में किन शासकों के प्राचीन नागरी लेख प्राप्त होते हैं ?
उत्तर ⇒ विद्वानों का विचार है कि उत्तर भारत में मिहिरभोज, महेन्द्रपाल आदि गुर्जर प्रतिहार राजाओं के अभिलेख में पहले-पहल नागरी लिपि के लेख प्राप्त होते हैं।
प्रश्न 9. नागरी लिपि के साथ-साथ किसका जन्म होता है ? इस संबंध में लेखक क्या जानकारी देता है?
उत्तर ⇒ नागरी लिपि के साथ-साथ अनेक प्रादेशिक भाषाओं ने भी जन्म लिया है। 8वीं-9वीं सदी से आरंभिक हिन्दी का साहित्य मिलने लग जाता है। इसी काल में आर्य भाषा परिवार की आधुनिक भाषाएँ मराठी, बँगला आदि जन्म ले रही थीं।
प्रश्न 10. नंदिनागरी किसे कहते हैं ? किस प्रसंग में लेखक ने उसका उल्लेख किया है ?
उत्तर ⇒ दक्षिण भारत की यह नागरी लिपि नंदिनागरी कहलाती थी। कोंकण के शिलाहार, मान्यखेत के राष्ट्रकूट, देवगिरि के यादव तथा विजयनगर के शासकों के लेख नंदिनागरी लिपि में हैं। पहले-पहल विजयनगर के राजाओं के लेखों की लिपि को ही नंदिनागरी लिपि नाम दिया गया था।
प्रश्न 11. ब्राह्मी और सिद्धम लिपि की तुलना में नागरी लिपि की मुख्य पहचान क्या है ?
उत्तर ⇒ गुप्तकाल की ब्राह्मी लिपि तथा उसके बाद की सिद्धम लिपि के अक्षरों के सिरों पर छोटी आड़ी लकीरें या छोटे ठोस तिकोन हैं। लेकिन नागरी लिपि की मुख्य पहचान यह है कि इसके अक्षरों के सिरों पर पूरी लकीरें बन जाती हैं और ये सिरोरेखाएँ उतनी ही लम्बी रहती हैं जितनी की अक्षरों की चौड़ाई होती है।
प्रश्न 12. नागरी लिपि के आरंभिक लेख कहाँ प्राप्त हुए हैं ? उनके विवरण दें।
उत्तर ⇒ विद्वानों के अनुसार नागरी लिपि के आरंभिक लेख विंध्य पर्वत के नीचे के दक्कन प्रदेश से प्राप्त हुए हैं।
दीर्घ उतरिये प्रश्न |
प्रश्न 1. नागरी की उत्पत्ति के संबंध में लेखक का क्या कहना है ? पटना से नागरी का क्या संबंध लेखक ने बताया है ?
उत्तर ⇒ यह मान्य है कि नागरी लिपि किसी नगर अर्थात् किसी बड़े शहर से संबंधित है । ‘पादताडितकम्’ नामक एक नाटक से जानकारी मिलती है कि पाटलीपुत्र अर्थात् पटना को नगर नाम से पुकारते थे । अतः हम यह भी जानते हैं कि स्थापत्य की उत्तर भारत की एक विशेष शैली को नागर शैली कहते हैं । अतः नागर या नागरी शब्द उत्तर भारत के किसी बड़े नगर से संबंध रखता है। विद्वानों के अनुसार उत्तर भारत का यह बड़ा नगर निश्चित रूप से पटना ही होगा। चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य का व्यक्तिगत नाम देव था। इसलिए गुप्तों की राजधानी पटना को देवनगर भी कहा जाता था। देवनगर की लिपि होने से उत्तर भारत की प्रमुख लिपि को बाद में देवनागरी नाम दिया गया था।
प्रश्न 2. निबंध के आधार पर काल-क्रम से नागरी लेखों से संबंधित प्रमाण प्रस्तुत करें।
उत्तर ⇒ निबंध के आधार पर कालक्रम से नागरी लेखों से संबंधित प्रमाण इस प्रकार मिलते हैं-11वीं सदी में राजेन्द्र जैसे प्रतापी चेर राजाओं के सिक्कों पर नागर अक्षर देखने को मिलते हैं। 12वीं सदी के केरल के शासकों के सिक्कों पर ‘वीर केरलस्य’ जैसे शब्द नागरी लिपि में अंकित हैं । दक्षिण से प्राप्त वरगुण का पलयम ताम्रपत्र भी नागरी लिपि में 9वीं सदी की है। 1000 ई. के आस-पास मालवा नगर में नागर लिपि का इस्तेमाल होता था । विक्रमादित्य के समय पटना में देवनागरी का प्रयोग मिलता है। ईसा की 8वीं से 11वीं सदियों में नागरी लिपि पूरे भारत में व्याप्त थी। 8वीं सदी में दोहाकोश की तिब्बत से जो हस्तलिपि मिली है, वह नागरी लिपि में है। 754 ई. में राष्ट्रकूट राजा दंतिदुर्ग का दानपत्र नागरी लिपि में प्राप्त हुआ है। 850 ई. में जैन गणितज्ञ महावीराचार्य के गणित सार-संग्रह की रचना मिलती है जो नागरी लिपि में है।