धातु एवं अधातु Metal and Non-metal

धातु एवं अधातु  Metal and Non-metal

 

धातु एवं इसके भौतिक गुणधर्म
♦ अपने शुद्ध रूप में धातु की सतह चमकदार होती है। धातु के इस गुणधर्म को धात्विक चमक कहते हैं।
♦ धातुएँ सामान्यतः कठोर होती हैं। प्रत्येक धातु की कठोरता अलग-अलग होती है।
♦ कुछ धातुओं को पीटकर पतली चादर बनाया जा सकता है। धातु के इस गुण को आघातवर्ध्यता कहते हैं (सोना तथा चाँदी सर्वाधिक आघातवर्ध्य धातुएँ हैं।)
♦ धातु के पतले तार के रूप में खींचने की क्षमता को तन्यता कहा जाता है। सोना सबसे अधिक तन्य धातु है । एक ग्राम सोने से 2 किमी लम्बा तार बनाया जा सकता है।
♦ धातु ऊष्मा के सुचालक होते हैं तथा इनका गलनांक बहुत अधिक होता है।
♦ जब धातुएँ किसी कठोर सतह से टकराती हैं तो आवाज उत्पन्न होती है, जिसे ध्वानिक कहते हैं।
अधातु एवं इसके भौतिक गुणधर्म
♦ ऐसे तत्त्व जो भौतिक गुणों में धातुओं से अलग होते हैं, अधातु कहलाते हैं। कार्बन, ऑक्सीजन, हाइड्रोजन, गंधक जैसे तत्त्व अधातु के उदाहरण हैं।
♦ अधातुओं में कोई विशेष चमक नहीं पाई जाती। ग्रैफाइट एवं आयोडीन इसके अपवाद हैं।
♦ अधातु सामान्यतः भंगुर होती हैं और हथौड़े से पीटने पर चूर-चूर हो जाती हैं। ये न तो आघातवर्ध्य होती हैं और न ही तन्य ।
♦ अधातु ऊष्मा की कुचालक होती हैं।
♦ अधातुओं का आपेक्षिक घनत्व कम होता है, अर्थात् ये हल्की होती हैं।
♦ कार्बन ऐसी अधातु है जो विभिन्न रूपों में विद्यमान रहती है। प्रत्येक रूप को अपरूप कहते हैं। हीरा कार्बन का एक अपरूप है। यह सबसे कठोर प्राकृतिक पदार्थ है एवं इसका गलनांक तथा क्वथनांक बहुत अधिक होता है।
♦ कार्बन का एक अन्य अपरूप ग्रेफाइट, विद्युत का सुचालक है।
♦ क्षारीय धातु ( लीथियम, सोडियम, पोटैशियम) इतनी मुलायम होती हैं कि उनको चाकू से भी काटा जा सकता है। इनके घनत्व तथा गलनांक कम होते हैं।
धातुओं के रासायनिक गुणधर्म
♦ लगभग सभी धातुएँ ऑक्सीजन के साथ मिलकर संगत धातु के ऑक्साइड बनाती हैं।
♦ धातु ऑक्सीजन → धातु ऑक्साइड, उदाहरण के लिए, जब कॉपर को वायु की उपस्थिति में गर्म किया जाता है तो यह ऑक्सीजन के साथ मिलकर काले रंग का कॉपर ऑक्साइड बनाता है।
                   2Cu + O2 → 2CuO
♦ इसी प्रकार एल्युमीनियम ऑक्साइड प्रदान करता है ।
                 4AI + 3O2 → 2AI2O3
♦ धातु ऑक्साइड की प्रकृति क्षारकीय होती है। लेकिन एल्युमीनियम ऑक्साइड, जिंक ऑक्साइड जैसे कुछ धातु ऑक्साइड अम्लीय तथा क्षारकीय दोनों प्रकार के व्यवहार प्रदर्शित करते हैं। ऐसे धातु ऑक्साइड जो अम्ल तथा क्षारक दोनों से अभिक्रिया करके लवण तथा जल प्रदान करते हैं, उभयधर्मी ऑक्साइड कहलाते हैं।
♦ अधिकांश धातु ऑक्साइड जल में अघुलनशील हैं लेकिन इनमें से कुछ जल में घुलकर क्षार प्रदान करते हैं।
♦ जल के साथ अभिक्रिया करके धातुएँ हाइड्रोजन गैस तथा धातु ऑक्साइड उत्पन्न करती हैं। जो धातु ऑक्साइड जल में घुलनशील हैं, जल में घुलकर धातु हाइड्रॉक्साइड प्रदान करते हैं। लेकिन सभी धातुएँ जल के साथ अभिक्रिया नहीं करती हैं।
♦ अभिक्रियाशील धातु अपने से कम अभिक्रियाशील धातु को उसके यौगिक के विलयन या गलित अवस्था से विस्थापित कर देती है।
सक्रियता श्रेणी
♦ सक्रियता श्रेणी वह सूची है जिसमें धातुओं की क्रियाशीलता को अवरोही क्रम में व्यवस्थित किया जाता है।
♦ पोटैशियम, सोडियम, कैल्शियम जैसे तत्त्व अधिक अभिक्रियाशील होते हैं, जबकि चाँदी, सोना जैसे तत्त्व कम क्रियाशील होते हैं।
♦ सक्रियता श्रेणी में हाइड्रोजन के ऊपर स्थित धातुएँ तनु अम्ल से हाइड्रोजन को विस्थापित कर सकती हैं।
धातुओं की प्राप्ति
♦ पृथ्वी की भूपर्पटी धातुओं का मुख्य स्रोत है।
♦ समुद्री जल में भी सोडियम क्लोराइड, मैग्नीशियम क्लोराइड आदि जैसे कुछ विलेय लवण उपस्थित रहते हैं।
♦ पृथ्वी की भूपर्पटी में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले तत्त्वों या यौगिकों को खनिज कहते हैं।
♦ कुछ स्थानों पर खनिजों में कोई विशेष धातु काफी मात्रा में होती है। जिसे निकालना लाभकारी होता है। इन खनिजों को अयस्क कहते हैं।
धातुओं का निष्कर्षण
♦ कुछ धातुएँ भूपर्पटी में स्वतन्त्र अवस्था में पाई जाती हैं। कुछ धातुएँ अपने यौगिकों के रूप में मिलती हैं। सक्रियता श्रेणी में नीचे आने वाली धातुएँ सबसे कम अभिक्रियाशील होती हैं। ये स्वतन्त्र अवस्था में पाई जाती हैं। उदाहरण के लिए, सोना, चाँदी, प्लैटिनम एवं कॉपर स्वतन्त्र अवस्था में पाए जाते हैं। कॉपर एवं सिल्वर, अपने सल्फाइड या ऑक्साइड के अयस्क के रूप में संयुक्त अवस्था में भी पाए जाते हैं।
♦ सक्रियता श्रेणी में सबसे ऊपर की धातुएँ (K, Na, Ca, Mg, Os AI) इतनी अधिक अभिक्रियाशील होती हैं कि ये कभी भी स्वतन्त्र तत्त्व के रूप में नहीं पाई जातीं। सक्रियता श्रेणी के मध्य की धातुएँ (Zn, Fe, Pb, आदि) की अभिक्रियाशीलता मध्यम होती है। पृथ्वी की भू-पर्पटी में ये मुख्यत: ऑक्साइड, सल्फाइड या कार्बोनेट के रूप में पाई जाती हैं।
♦ कई धातुओं के अयस्क ऑक्साइड होते हैं। ऑक्सीजन की अत्यधिक अभिक्रियाशीलता एवं पृथ्वी पर इसके प्रचुर मात्रा में पाए जाने के कारण ऐसा होता है।
♦ अभिक्रियाशीलता के आधार पर धातुओं को निम्न तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है
(i) निम्न अभिक्रियाशील धातुएँ
(ii) मध्यम अभिक्रियाशील धातुएँ
(iii) उच्च अभिक्रियाशील धातुएँ ।
♦ उपरोक्त प्रत्येक वर्ग में आने वाली धातुओं को प्राप्त करने के लिए विभिन्न तकनीकों का उपयोग किया जाता है।
♦ अयस्क से शुद्ध धातु का निष्कर्षण कई चरणों में होता है।
♦ अयस्कों का समृद्धीकरण पृथ्वी से खनिज अयस्कों में मिट्टी, रेत आदि जैसी कई अशुद्धियाँ होती हैं जिन्हें गैंग (gangue) कहते हैं। धातुओं के निष्कर्षण से पहले अयस्क से अशुद्धियों को हटाना आवश्यक होता है। अयस्कों से गैंग को हटाने के लिए जिन प्रक्रियाओं का उपयोग होता है वे अयरक एवं गैंग के भौतिक या रासायनिक गुणधर्मों पर आधारित होते हैं। इस पृथकन के लिए विभिन्न तकनीक अपनाई जाती है।
♦ सक्रियता श्रेणी में नीचे आने वाली धातुओं का निष्कर्षण सक्रियता श्रेणी में नीचे आने वाली धातुएँ काफी अनभिक्रिय होती हैं। इन धातुओं के ऑक्साइड को केवल गर्म करने से ही धातुओं को प्राप्त किया जा सकता है।
♦ उदाहरण के लिए, सिनाबार (HgS), मर्करी (पारद ) एक अयस्क है। वायु में गर्म करने पर यह सबसे पहले मर्क्यूरिक ऑक्साइड (HgO) में परिवर्तित होता है और अधिक गर्म करने पर मर्क्यूरिक ऑक्साइड मर्करी ( पारद ) में अपचयित हो जाता है।
♦ इसी प्रकार, प्राकृतिक रूप से Cu²S     के रूप में उपलब्ध ताँबे को केवल वायु में गर्म करके इसको अवस्क से अलग किया जा सकता है।
♦ सक्रियता श्रेणी के मध्य में स्थित धातुओं का निष्कर्षण सक्रियता श्रेणी के मध्य में स्थित धातुएँ जैसे—आयरन, जिंक, लेड, कॉपर आदि की अभिक्रियाशीलता मध्यम होती है। प्रकृति में यह प्राय: सल्फाइड या कार्बोनेट के रूप में पाई जाती हैं। सल्फाइड या कार्बोनेट की तुलना में धातु को उसके ऑक्साइड से प्राप्त करना अधिक आसान है। इसलिए अपचयन से पहले धातु के सल्फाइड एवं कार्बोनेट को धातु ऑक्साइड में परिवर्तित करना आवश्यक है। सल्फाइड अयस्क को वायु की उपस्थिति में अधिक ताप पर गर्म करने पर यह ऑक्साइड में परिवर्तित हो जाता है। इस प्रक्रिया को भर्जन कहा जाता है। कार्बोनेट अयस्क को सीमित वायु में अधिक ताप पर गर्म करने से यह ऑक्साइड में परिवर्तित हो जाता है इस प्रक्रिया को निस्तापन कहा जाता है। जिंक के अयस्को के भर्जन एवं निस्तापन के समय निम्न रासायनिक अभिक्रियाएँ होती हैं
भंजन
2ZnS (s) + 3CO2 (g) ताप→ 2Zn0 (s) + 2SO2 (g)  
निस्तापन
ZnCO3 (S) ताप → ZnO (S) + CO2 (g)
♦ इसके बाद कार्बन जैसे उपर्युक्त अपचायक का उपयोग कर धातु ऑक्साइड से धातु प्राप्त किया जाता है। उदाहरण के लिए, जब जिंक ऑक्साइड को कार्बन के साथ गर्म किया जाता है तो यह जिंक धातु में अपचयित हो जाता है।
ZnO(s) + C (s) ताप → Zn (s) + CO (g)
♦ सक्रियता श्रेणी में सबसे ऊपर स्थित धातुओं का निष्कर्षण अभिक्रियाशीलता श्रेणी में सबसे ऊपर स्थित धातुएँ अत्यन्त अभिक्रियाशील होती हैं। इन्हें कार्बन के साथ गर्म करने पर इनके यौगिकों से प्राप्त नहीं किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, कार्बन के द्वारा सोडियम, मैग्नीशियम, कैल्शियम, एल्युमीनियम आदि के ऑक्साइड का अपचयन कर उन्हें धातुओं में परिवर्तित नहीं किया जा सकता है। इन धातुओं की बन्धुता कार्बन की अपेक्षा ऑक्सीजन के प्रति अधिक होती है। इन धातुओं को विद्युत अपघटनी अपचयन द्वारा प्राप्त किया जाता है। उदाहरण के लिए, सोडियम, मैग्नीशियम एवं कैल्शियम को उनके गलित क्लोराइडों के विद्युत अपघटन से प्राप्त किया जाता है। कैथोड (ऋण आवेशित इलेक्टोड) पर धातुएँ निक्षेपित हो जाती हैं तथा ऐनोड ( धन आवेशित इलेक्टोड) पर क्लोरीन मुक्त होती है। अभिक्रियाएँ इस प्रकार होती हैं
कैथोड पर   Na++ e¯→Na
ऐनोड पर  2CI¯→Cl2+2e¯
इसी प्रकार, एल्युमीनियम ऑक्साइड के विद्युत अपघटनी अपचयन से एल्युमीनियम प्राप्त किया जाता है।
♦ धातुओं का परिष्करण ऊपर वर्णित विभिन्न अपचयन प्रक्रमों से प्राप्त धातुएँ पूर्ण रूप से शुद्ध नहीं होती हैं। इनमें अपद्रव्य होते हैं। जिन्हें हटाकर ही शुद्ध धातु प्राप्त की जा सकती है। धातुओं से अपद्रव्य को हटाने के लिए सबसे अधिक प्रचलित विधि अपघटनी परिष्करण है।
♦ विद्युत अपघटनी परिष्करण कॉपर, जिंक, टिन, निकिल, सिल्वर, गोल्ड आदि जैसी अनेक धातुओं का परिष्करण विद्युत अपघटन द्वारा किया जाता है। इस प्रक्रम में, अशुद्ध धातु को ऐनोड तथा शुद्ध धातु की पतली परत को कैथोड बनाया जाता है। धातु विलयन का उपयोग विद्युत अपघट्य के रूप में होता है। विद्युत अपघट्य से जब धारा प्रवाहित की जाती है तब ऐनोड पर स्थित अशुद्ध धातु विद्युत अपघट्य में घुल जाती है। इतनी ही मात्रा में शुद्ध धातु विद्युत अपघट्य से कैथोड पर निक्षेपित हो जाती है। विलेय अशुद्धियाँ विलयन में चली जाती हैं तथा अविलेय अशुद्धियाँ ऐनोड तली पर निक्षेपित हो जाती हैं जिसे ऐनोड पंक कहते हैं।
♦ संक्षारण खुली वायु में कुछ दिन छोड़ देने पर सिल्वर की वस्तुएँ काली हो जाती हैं। सिल्वर का वायु में उपस्थित सल्फर के साथ अभिक्रिया कर सिल्वर सल्फाइड की परत बनने के कारण ऐसा होता है। इसी प्रकार लम्बे समय तक आर्द्र वायु में रहने पर लोहे पर भूरे रंग के पत्र की पदार्थ की परत चढ़ जाती है जिसे जंग कहते हैं। ये दोनों अभिक्रियाएँ संक्षारण के उदाहरण हैं।
♦ संक्षारण से सुरक्षा पेंट करके, तेल लगाकर, ग्रीस लगाकर, यशदलेपन (लोहे की वस्तुओं पर जस्ते की परत चढ़ाकर), क्रोमियम लेपन, एनोडीकरण या मिश्रधातु बनाकर लोहे को जंग लगने से बचाया जा सकता है।
♦ लोहे एवं इस्पात को जंग से सुरक्षित रखने के लिए उन पर जस्ते (जिंक) की पतली परत चढ़ाने की विधि को यशदलेपन कहते हैं । जस्ते की परत नष्ट हो जाने के बाद भी यशदलेपित वस्तु जंग से सुरक्षित रहती है।
♦ धातु के गुणधर्मों को बेहतर बनाने की अच्छी विधि मिश्रात्वन है। इस विधि से हम इच्छानुसार धातुओं के अत्यन्त गुणधर्म प्राप्त कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, लोहा सर्वाधिक उपयोग में आने वाली धातु है। लेकिन कभी भी शुद्ध अवस्था में इसका उपयोग नहीं किया जाता। ऐसा इसलिए क्योंकि शुद्ध लोहा अत्यन्त नर्म होता है एवं गर्म करने पर सुगमतापूर्वक खिंच जाता है। लेकिन यदि इसमें थोड़ा कार्बन (लगभग 0.05%) मिला दिया जाता है तो यह कठोर तथा प्रबल हो जाता है। लोहे के साथ निकिल एवं क्रोमियम मिलाने पर हमें स्टेनलेस इस्पात प्राप्त होता है जो कठोर होता है तथा उसमें जंग नहीं लगता है। इस प्रकार यदि लोहे के साथ कोई अन्य पदार्थ मिश्रित किया जाता है तो इसके गुणधर्म बदल जाते हैं।
♦ कोई अन्य पदार्थ मिला कर किसी भी धातु के गुणधर्म बदले जा सकते हैं। यह पदार्थ धातु या अधातु कुछ भी हो सकता है। दो या दो से अधिक धातुओं के समांगी मिश्रण को मिश्रधातु कहते हैं। इसे तैयार करने के लिए पहले मूल धातु को गलित अवस्था में लाया जाता है एवं तत्पश्चात दूसरे तत्त्वों को एक निश्चित अनुपात में इसमें विलीन किया जाता है। फिर इसे कमरे के ताप पर शींतलीकृत किया जाता है।
♦ यदि कोई एक धातु पारद है तो इसके मिश्र धातु को अमलगम कहते हैं। शुद्ध धातु की अपेक्षा उसके मिश्र धातु की विद्युत चालकता तथा गलनांक कम होता है। उदाहरण के लिए, ताँबा एवं जस्ते की मिश्रधातु पीतल तथा ताम्र एवं टिन की मिश्र धातु काँसा विद्युत के कुचालक हैं, लेकिन ताम्र का उपयोग विद्युतीय परिपथ बनाने में किया जाता है सीसा एवं टिन की मिश्रधातु सोल्डर है जिसका गलनांक बहुत कम होता है इसका उपयोग विद्युत तारों की परस्पर वेल्डिंग के लिए किया जाता है।
♦ शुद्ध सोने को 24 कैरट कहते हैं तथा यह काफी नर्म होता है इसलिए आभूषण बनाने के लिए यह उपयुक्त नहीं होता है। इसे कठोर बनाने के लिए इसमें चाँदी या ताँबा मिलाया जाता हैं। भारत में अधिकांशतः आभूषण बनाने के लिए 22 कैरट सोने का उपयोग होता है इसका तात्पर्य यह है कि 22 भाग शुद्ध सोने में 2 भाग ताँबा या चाँदी का मिलाया जाना।
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