दुनिया ने पहली बार देखा ‘ब्लू स्क्रीन ऑफ डेथ’ का काला चेहरा, ये छोटी सी चूक बनी डिजिटल पैंडेमिक की वजह

नई दिल्ली. माइक्रोसॉफ्ट के सर्वर में आयी तकनीकी दिक्कत ने दुनिया को हिलाकर रख दिया है. इस समस्या से दुनियाभर की हजारों कंपनियों के कंप्यूटर सिस्टम अचानक से बेकार पड़ गए. इस तकनीकी खामी का असर हर तरह की सेवाओं पर पड़ा जो इंटरनेट से जुड़े थे और माइक्रोसॉफ्ट के कंप्यूटर सर्विस का इस्तेमाल कर रहे थे. दुनिया भर में ट्रेन, फ्लाइट, रेस्टोरेंट, डिजिटल पेमेंट, आईटी, बैंकिंग और मेडिकल जैसी कई आवश्यक सेवाओं पर इसका असर दिखा. इससे खासतौर पर फ्लाइट सर्विस प्रभावित हुईं और दुनियाभर में 4,500 से ज्यादा उड़ानें रद्द कर दी गईं.

दुनियाभर के लोगों ने कल पहली बार “ब्लू स्क्रीन ऑफ डेथ” (Blue Screen of Death) का नाम सुना. कई आईटी विशेषज्ञों ने कहा कि ये एक बड़े साइबर अटैक के चलते हुआ, लेकिन इसके पीछे की क्या सच्चाई है और “ब्लू स्क्रीन ऑफ डेथ” क्या है? आइये आपको बताते हैं.

सिस्टम एरर है “ब्लू स्क्रीन ऑफ डेथ”
ब्लू स्क्रीन ऑफ डेथ (BSOD) एक एरर मेसेज है जो माइक्रोसॉफ्ट विंडोज (Microsoft Windows) ऑपरेटिंग सिस्टम में किसी दिक्कत का संकेत देता है. यह एरर तब आता है जब विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम (OS) किसी ऐसी स्थिति का सामना करता है जिसे संभाल नहीं पाता और सिस्टम क्रैश हो जाता है. पहले BSOD को ‘ब्लैक स्क्रीन ऑफ डेथ’ के नाम से जाना जाता था, क्योंकि पुराने विंडोज वर्जन्स में एरर मेसेज काले रंग के बैकग्राउंड पर सफेद कलर के टेक्स्ट में दिखता था.

BSOD की स्थिति में क्या होता है?
कंप्यूटर अचानक बंद हो जाता है या फिर रीस्टार्ट हो जाता है, जिसके बाद स्क्रीन नीली हो जाती है और एरर मेसेज दिखने लगता है. एरर मेसेज में तकनीकी जानकारी होती है और एरर का नाम और कोड बताया जाता है. इस स्थिति में कंप्यूटर क्रैश हो जाता है और कुछ भी काम नहीं करता. यानी कि आप अपना कोई काम नहीं कर पाते.

कंप्यूटर अचानक बंद हो जाता है या फिर रीस्टार्ट हो जाता है, जिसके बाद स्क्रीन नीली हो जाती है और एरर मेसेज दिखाई देता है. इसके अलावा एरर मेसेज में तकनीकी जानकारी होती है और एरर का नाम और कोड बताया जाता है. इसके अलावा कंप्यूटर क्रैश हो जाता है और कुछ भी काम नहीं करता. यानी कि आप अपना कोई काम नहीं कर पाते.

किस गलती के वजह से बनी ये स्थिति?
इसके पीछे क्राउडस्ट्राइक (Crowdstrike) के क्रिटिकल अपडेट को बताया जा रहा है. ये कंपनी माइक्रोसॉफ्ट के सर्वर सिस्टम को सिक्योरिटी प्रदान करती है. कंपनी ने अपने अपने एंटी-वायरस सॉफ्टवेयर ‘फाल्कन’ (Falcon) को अपडेट कर दिया था जिसके वजह से दुनियाभर में माइक्रोसॉफ्ट के सर्वर और सर्विस पर काम करने वाले कंप्यूटर और लैपटॉप क्रैश हो गए और उनमें एरर मैसेज दिखने लगा.

इस घटना को आसान भाषा में समझें. मान लें कि किसी सिस्टम या सर्वर से अनेक कर्मचारी जुड़े हुए हैं. वहां इतनी जटिलता रहती है कि एक को दूसरे का पता नहीं रहता. हालांकि, उनके बीच सेंट्रल लेवल पर तालमेल होता है. इस सर्वर में अगर बदलाव हुआ तो यह उससे जुड़े सभी कंप्यूटर पर दिखेगा और उनमें भी बदलाव होगा. बदलाव से जुड़ा फाइल सर्वर से जुड़े सभी सिस्टम में अपडेट होता है. अपडेट के दौरान कोई छोटी सी चूक हो गई और पकड़ में नहीं आई तो इससे सभी सिस्टम प्रभावित होंगे और ‘एरर’ भी बढ़ता चला जाएगा. पिछले दिनों माइक्रोसॉफ्ट सिस्टम के साथ कुछ ऐसा ही हुआ. एंटी-वायरस अपडेट में एरर के वजह से माइक्रोसॉफ्ट सर्वर से जुड़े सभी कंप्यूटर-लैपटॉप बंद पड़ने लगे.

खुद के ऑपरेटिंग सिस्टम की जरूरत
माइक्रोसॉफ्ट आउटेज ने बता दिया है कि इंटरनेट पर चलने वाली सेवाएं अगर अचानक से ठप पड़ गईं तो हम कितनी मुश्किल में फंस सकते हैं. इसने हमें यह भी बताया कि डेटा पर खुद का नियंत्रण होना कितना जरूरी है. अब समय आ गया है कि देश में वैकल्पिक ऑपरेटिंग सिस्टम के विकास को गंभीरता से लिया जाए. सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट और यूपीआई जैसे वित्तीय टेक्नोलॉजी सिस्टम बनाना हमारी क्षमता बताता है. दुनिया में 95% कंप्यूटर माइक्रोसॉफ्ट के ऑपरेटिंग सिस्टम से चलते हैं और यह ‘मोनोपॉली’ खतरनाक है. भारत को इसका विकल्प ढूंढ़ने की जरूरत है.

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