टायपिंग गलती से पैसा दूसरे के बैंक खाते में चला गया, बैंक नहीं सुनी, फिर कोर्ट ने जो किया सब हैरान रह गए

Bank Refund Policy: पीरजादिगुड़ा (तेलंगाना) के 69 साल के वंगा कृष्णा रेड्डी सोचे थे कि हेल्थ इंश्योरेंस का रिन्युअल दो क्लिक में हो जाएगा. लेकिन एक छोटी सी गलती ने उन्हें दो साल तक बैंकों और कोर्ट के चक्कर कटवा दिए. एक डिजिट की टाइपिंग मिस्टेक ने उनके ₹52,659 अटका दिया और शुरू हुई कानूनी लड़ाई.

एक गलत ट्रांसफर, दो पेमेंट और जीरो जवाबदारी

जून 2023 में कृष्णा रेड्डी ने अपने बैंक के मोबाइल ऐप से हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमियम जमा किया. पॉलिसी की आखिरी तारीख बस तीन दिन दूर थी. जल्दी में उन्होंने लाभार्थी (beneficiary) के अकाउंट नंबर में एक अंक गलत टाइप कर दिया. पैसे चले गए गलत खाते में और बीमा कंपनी तक पहुंचे ही नहीं. इस गलती को समझते ही उन्होंने तुरंत सही डिटेल से दोबारा ₹52,659 का पेमेंट किया ताकि पॉलिसी एक्टिव रहे. लेकिन जो पहली ट्रांजैक्शन थी, वो तो डिजिटल भंवर में फंस गई.

बैंक बोले – “देखते हैं” (Bank Refund Policy)

गलती पकड़ में आते ही कृष्णा रेड्डी ने अपने बैंक को सूचना दी. बैंक ने कहा कि वे मामला देखेंगे. शुरुआती जवाब मिला, और बैंक ने रिसीविंग बैंक को चार्जबैक रिक्वेस्ट भेजी. पर वहां से जवाब आया “कस्टमर से संपर्क नहीं हो पाया, इसलिए डेबिट कन्फर्मेशन नहीं मिल सका.” मतलब जिसने गलती से पैसे पाए, उससे बैंक बात तक नहीं कर पाए. निराश होकर रेड्डी मई 2024 में रंगा रेड्डी जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (Consumer Court) पहुंचे. वहां सुनवाई शुरू हुई. उनके बैंक ने कहा कि हमने पूरी प्रक्रिया फॉलो की, हमारी गलती नहीं. रिसीविंग बैंक तो पेश ही नहीं हुआ.

कोर्ट ने सुनाया फैसला – “दोनों बैंक जिम्मेदार”

आयोग ने दोनों बैंकों को “सेवा में कमी” (deficiency in service) का दोषी माना. कोर्ट ने कहा कि ग्राहक ने गलती की, लेकिन बैंकों की ये जिम्मेदारी थी कि वो अकाउंट नंबर और नाम में मेल ना खाने पर ट्रांजैक्शन रोकें या अलर्ट करें. इस उपभोक्ता मामले में कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए आदेश दिया कि दोनों बैंक मिलकर ₹52,659 की पूरी राशि उपभोक्ता को लौटाएं.

इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि इस रकम पर 10% सालाना ब्याज भी दिया जाए. इसके अलावा, उपभोक्ता को हुई मानसिक पीड़ा और परेशानी को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने अलग से मुआवजा और अदालती खर्च (कोर्ट फीस) भी देने का आदेश सुनाया.

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