ज्यामिति Geometry

ज्यामिति    Geometry

 

ज्यामितीय विचार(Geometrical Thinking)-समतल ज्यामिति की अवधारणा का उद्भव प्राचीन काल में हुआ था। मानव को अपने जीवन की समस्याओं का समाधान करने के लिए ज्यामिति के विकास की आवश्यकता हुई। इस क्रम में मिस्र के निवासियों ने सर्वप्रथम ज्यामिति का प्रयोग विभिन्न वस्तुओं की लम्बाई तथा क्षेत्रफल ज्ञात करने के लिए किया। प्राचीन काल में भारतीयों ने इसका प्रयोग विभिन्न प्रकार की वेदियों और अग्नि कुण्डों के निर्माण के लिए किया था। बाद में यूनानियों ने ज्यामिति के तार्किक या निगमनिक पक्षों की रचना करके, ज्यामिति को एक अध्ययन के रूप में विकसित किया।
हम अपने दैनिक जीवन में ज्यामिति का अनेक प्रकार से उपयोग करते हैं। चित्र बनाने तथा आकृति रचना करने में ज्यामिति से सम्बन्धित कुछ प्रमुख विचार निम्नवत् हैं
समतल (Plane)-किसी सपाट (Flat) तल में बनी आकृति को समतल (Plane) कहते हैं। समतल में बनी द्वि-विमीय (2-D) आकृतियाँ, समतल आकृतियाँ कहलाती हैं। त्रिभुज, चतुर्भुज, आयत, वर्ग एवं वृत्त समतल आकृतियों के उदाहरण हैं। रेखाओं या वक्रों (Curves) या दोनों से बनी समतल आकृतियों में, यदि सिरे मुक्त न हों, तो ऐसी आकृतियाँ, बन्द आकृतियाँ कहलाती हैं।
समतलीय क्षेत्र (Plane Field)-किसी सरल संवृत्त अथवा बन्द आकृति से घिरा तल का भाग समतलीय क्षेत्र कहलाता है।
वक्र (Curve)-कागज से बिना पेन्सिल उठाए बनाई गई कोई भी आकृति (सीधी या टेढ़ी) वक्र कहलाती है। यदि कोई वक्र स्वयं को न काटे, तो वह सरल वक्र कहलाता है।
बिन्दु (Point)-बिन्दु वह है, जिसमें न लम्बाई हो, न चौड़ाई हो और न मोटाई हो अर्थात् किसी लेखनी से एक समतल पटल पर दबाने पर जो चिह्न बनता है, बिन्दु कहलाता है।
रेखा (Line)
♦ रेखा वह है, जिसमें केवल लम्बाई हो, चौड़ाई और मोटाई न हो।
♦ एक रेखा में असंख्य बिन्दु होते हैं।
♦ एक रेखा में कम-से-कम दो बिन्दु अवश्य होंगे।
♦ रेखा असीमित हैं।
♦ दो भिन्न-भिन्न रेखाएँ अधिक-से-अधिक एक बिन्दु पर कटती हैं।
♦ दो बिन्दुओं से एक और केवल एक रेखा गुजरती है।
रेखा दो प्रकार की होती हैं
1. सरल रेखा (Straight line) 2. वक्र रेखा (Curved line)
सरल रेखा (Straight Line)-वह रेखा, जो एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक बिना बदले जाती है, सरल रेखा कहलाती हैं।
यहाँ AB एक सरल रेखा है।
वक्र रेखा (Curved Line)-वह रेखा, जो एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक टेढ़ी-मेढ़ी दिशा में बदलती हुई जाती है, वक्र रेखा कहलाती है।
प्रतिच्छेद बिन्दु (Intersection Point)-जब दो या दो से अधिक रेखाएँ किसी एक बिन्दु से होकर जाती हैं, तो उस बिन्दु को प्रतिच्छेद बिन्दु कहते हैं। चित्र में प्रतिच्छेद बिन्दु है।
समांगी रेखाएँ (Concurrent Lines)-जब दो या दो से अधिक रेखाएँ किसी एक बिन्दु से आती हैं, तो उन रेखाओं को संगामी रेखाएँ कहते हैं। चित्र में, AB, PQ तथा RS रेखाएँ बिन्दु 0 से होकर जा रही हैं, इसलिए तीनों रेखाएँ संगामी रेखाएँ हैं।
समान्तर रेखाएँ (Parallel Lines)-जब दो रेखाओं के बीच की दूरी सदैव बराबर होती है, तो उन दोनों रेखाओं को समान्तर रेखा कहते हैं। चित्र में, AB और RS रेखाएँ समान्तर रेखाएँ हैं।
तिर्यक् रेखा (Transverse Line)-वह रेखा, जो दो या दो से अधिक रेखाओं को काटे, तिर्यक् रेखा कहलाती है। चित्र में, AB तिर्यक् रेखा है।
कोण (Angle)-किसी बिन्दु पर दो आसन्न रेखाओं के मिलने से जो झुकाव पैदा होता है, उसे कोण कहते हैं। चित्र में, AB और BC रेखाओं से बना कोण ABC है। सांकेतिक रूप से इसे ∠B या ∠ABC या ∠CBA से व्यक्त किया जाता है।
समकोण (Right Angle)-वह कोण, जिसका मान 90° होता है, समकोण कहलाता है। चित्र में, ∠ABC समकोण है।
न्यून कोण (Acute Angle)-वह कोण, जिसका मान 0° से अधिक और 90° से कम होता है, उसे न्यून कोण कहते हैं। चित्र में, ∠ABC न्यून कोण है।
अधिक कोण (Obtuse Angle )-वह कोण, जिसका मान 90° से बड़ा और 180° से छोटा होता है, उसे अधिक कोण कहते हैं। चित्र में, ∠ABC अधिक कोण है।
ऋजु कोण (Straight Angle )-वह कोण, जिसका मान 180° होता है, ऋजु कोण कहलाता है। चित्र में, ∠ABC ऋजु कोण है।
वृहत् कोण (Reflex Angle)-वह कोण, जिसका मान 180° से अधिक और 360° से कम होता है, उसे वृहत् कोण कहते हैं। चित्र में, ∠ABC वृहत् कोण है।
आसन्न कोण (Adjacent Angle)—दो कोण आसन्न कोण होंगे, यदि
(i) उनका एक ही शीर्ष बिन्दु हो । (ii) उनकी एक उभयनिष्ठ रेखा हो। चित्र में, ∠AOB व ∠BOC आसन्न कोण हैं।
कोटिपूरक कोण (Complementary Angle)—जब दो कोणों का योग 90° होता है, तो प्रत्येक कोण एक-दूसरे के कोटिपूरक कोण कहलाते हैं। चित्र में,  ∠ABD का कोटिपूरक ∠DBC और ∠DBC का कोटिपूरक ∠ABD है।
सम्पूरक कोण (Supplementary Angle)—जब दो कोणों का योग 180° होता है, तो प्रत्येक कोण एक-दूसरे के सम्पूरक कोण कहलाते हैं। चित्र में, ∠ABD का सम्पूरक∠CBD और ∠CBD का सम्पूरक∠ABD है।
शीर्षाभिमुख कोण (Vertically Opposite Angle)— जब दो रेखाएँ एक-दूसरे को किसी बिन्दु पर प्रतिच्छेदित करती हैं, तब इस प्रकार आमने-सामने बने कोण शीर्षाभिमुख कोण कहलाते हैं। चित्र में, ∠AOC और ∠BOD शीर्षाभिमुख कोण हैं तथा ∠AOD और ∠BOC भी शीर्षाभिमुख कोण हैं। अतः ∠AOC = ∠BOD तथा ∠AOD = BOC होगा।
संगत एवं एकान्तर कोण (Adjacent and Alternate Angles)—जब दो समान्तर रेखाओं को कोई तिर्यक् रेखा काटती है, तो इस प्रकार संगत एवं एकान्तर कोण बनते हैं। चित्र में, 1 और 5; 2 और 6; 3 और 7; 4 और 8 संगत कोण हैं तथा 3 और 5; 4 और 6 एकान्तर कोण हैं।
त्रिभुज (Triangle)-तीन रेखाखण्डों से घिरी हुई समतलीय आकृति त्रिभुज कहलाती है। त्रिभुज को 4 से निरूपित करते हैं तथा इसमें तीन भुजाएँ और तीन कोण होते हैं।
भुजाओं के आधार पर त्रिभुजों के प्रकार(Types of Triangles on the Basis of Sides)
भुजाओं (विमाओं) के आधार पर त्रिभुज के निम्न प्रकार हैं
विषमबाहु त्रिभुज (Scalene Triangle)- वह त्रिभुज जिसकी सभी भुजाएँ भिन्न-भिन्न लम्बाइयों की होती हैं, विषमबाहु त्रिभुज कहलाता है।
समद्विबाहु त्रिभुज (Isosceles Triangle )-वह त्रिभुज जिसकी दो भुजाएँ बराबर हों, समद्विबाहु त्रिभुज कहलाता है।
समबाहु त्रिभुज (Equilateral Triangle)- वह त्रिभुज जिसकी तीनों भुजाएँ बराबर हों, समबाहु त्रिभुज कहलाता है।
♦ समबाहु त्रिभुज के प्रत्येक कोण की माप 60° होती है।
कोणों के आधार पर त्रिभुजों के प्रकार (Types of Triangles on the Basis of Angles)
कोणों के आधार पर त्रिभुज के निम्न प्रकार हैं
समकोण त्रिभुज (Right Angled Triangle)-जिस त्रिभुज का एक कोण समकोण अर्थात् 90° का हो, उसे समकोण त्रिभुज कहते हैं। चित्र में, ABC एक समकोण त्रिभुज है, जिसमें ∠ABC=90° है।
न्यूनकोण त्रिभुज (Acute Angled Triangle)- जिस त्रिभुज के तीनों कोण न्यून कोण अर्थात् 90° से कम हों, उसे न्यूनकोण त्रिभुज कहते हैं। चित्र में,ABC एक न्यूनकोण त्रिभुज है, जिसमें प्रत्येक कोण की माप 90° से कम है।
अधिककोण त्रिभुज (Obtuse Angled Triangle)-जिस त्रिभुज का एक कोण अधिककोण अर्थात् 90° से अधिक हो, उसे अधिककोण त्रिभुज कहते हैं। चित्र में, ABC एक अधिककोण त्रिभुज है, जिसमें∠ABC की माप 90° से अधिक है।
त्रिभुजों से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण तथ्य (Important Facts Related to Triangle)
♦ तीन भुजाओं से घिरा समतल क्षेत्र त्रिभुज कहलाता है।
♦ त्रिभुज के तीनों अन्तः कोणों का योग 180° होता है।
♦ त्रिभुज में तीन भुजाएँ होती है।
♦ किसी त्रिभुज में कम से कम दो न्यून कोण हो सकते हैं।
♦ किसी त्रिभुज में अधिक-से-अधिक एक अधिक कोण या एक समकोण हो सकता है।
♦ त्रिभुज की समान भुजाओं के सम्मुख बने कोण एक समान होते है। यदि किसी त्रिभुज के दो कोण बरावर हों, तो उनकी सम्मुख भुजाएँ भी बराबर होती हैं।
♦ किसी भी त्रिभुज की दो भुजाओं का योग तीसरी भुजा से अधिक होता है।
♦ किसी भी त्रिभुज की दो भुजाओं का अन्तर तीसरी भुजा से कम होता है।
♦  किसी भी त्रिभुज की परिमिति तीनों भुजाओं का योगफल होता है।
♦ यदि एक त्रिभुज को दूसरे त्रिभुज पर रखने से दूसरा उसे पूरा-पूरा ढक ले, तो दोनों त्रिभुज प्रत्येक दशा में बराबर होंगे।
♦ संगत भुजाओं के सामने के कोण बर बर होते हैं।
♦ समद्विबाहु त्रिभुज में दो भुजाएँ आपस में बराबर होती हैं। बराबर भुजाओं के सामने के कोण भी बराबर होते हैं।
♦ समबाहु त्रिभुज में तीनों भुजाएँ बराबर होती हैं तथा इसके तीनों कोण बराबर यानि प्रत्येक कोण 60° का होता है।
♦ यदि दो या दो से अधिक त्रिभुजों के कोण आपस में अलग-अलग बराबर हों, तो त्रिभुजों को समान कोणिक त्रिभुज कहते हैं।
चतुर्भुज (Quadrilateral)-किसी समतल पर चार रेखाखण्डों से निर्मेत बन्द आकृति चतुर्भुज कहलाती है। चतुर्भुज विभिन्न प्रकार के होते है; जैसे समलम्ब, समान्तर चतुर्भुज, समचतुर्भुज, आयत और वर्ग।
♦ एक चतुर्भुज के सभी कोणों का योग 360° होता है।
♦ चतुर्भुज में चार भुजाएँ एवं चार अन्तः कोण होते हैं।
♦ चतुर्भुज में अधिकतम दो विकर्ण होते हैं।
चतुर्भुज के प्रकार (Types of Quadrilateral)
समान्तर चतुर्भुज (Parallelogram)- एक चतुर्भुज, जिसकी आमने-सामने की भुजाएँ (सम्मुख भुजाएँ, बराबर और समान्तर हों, समान्तर चतुर्भुज कहलाता है।
समान्तर चतुर्भुज के गुण (Properties of Parallelogram)
♦ सम्मुख भुजाएँ  बराबर होती है।
♦ सम्मुख कोण बराबर होते हैं।
♦ विकर्ण एक-दूसरे को समद्विभाजित करते हैं।
♦ विकर्ण बराबर नहीं होते हैं।
वर्ग (Square)- वह समान्तर चतुर्भुज, जिसकी सभी भुजाएँ समान हों, वर्ग कहलाता है। इसकी आसन्न भुजाओं के बीच बना प्रत्येक कोण 90° का होता है।
वर्ग के गुण (Properties of Square)
♦ चारों भुजाएँ बराबर होती हैं।
♦ प्रत्येक अन्त: कोण समकोण होता है।
♦ विकर्ण बराबर होते हैं।
♦ विकर्ण एक-दूसरे को 90° पर समद्विभाजित करते हैं।
♦ विकर्ण एक-दूसरे पर लम्बवत् होते हैं।
आयत (Rectangle)- वह समान्तर चतुर्भुज, जिसकी सम्मुख भुजाएँ बराबर व समान्तर हों और आसन्न भुजाओं के बीच का कोण 90° हो, आयत कहलाता है।
आयत के गुण (Properties of Rectangle)
♦ सम्मुख भुजाएँ बराबर होती है।
♦ प्रत्येक अन्तः कोण समकोण होता है।
♦ विकर्ण बराबर होते हैं।
♦ विकर्ण एक-दूसरे को समद्विभाजित करते हैं।
समचतुर्भुज (Rhombus)
वह समान्तर चतुर्भुज जिसकी चारों भुजाएँ बराबर हों, समचतुर्भुज कहलाता है।
समचतुर्भुज के गुण (Properties of Rhombus)
♦ चारों भुजाएँ बराबर होती हैं।
♦ विकर्ण एक-दूसरे को 90° पर समद्विभाजित करते हैं।
♦ विकर्ण बराबर नहीं होते हैं।
♦ भुजाओं के वर्गों का योग विकर्णों के वर्गों के योग के बराबर होता है।
अर्थात् AB² + BC² + CD² + DA² = AC² + BD²
समलम्ब (Trapezium)- वह चतुर्भुज जिसकी दो सम्मुख भुजाएँ समान्तर हों तथा शेष दो सम्मुख भुजाएँ असमान्तर हों, समलम्ब कहलाता है।
यहाँ पर AB | | DC, DM ⊥ AB
वृत्त (Circle)- वृत्त एक ऐसी बन्द एवं गोल आकृति है जिसका केन्द्र बिन्दु उसकी परिधि से समान दूरी पर स्थित होता है। इस दूरी को त्रिज्या कहते हैं, जिसे संकेत (r) से प्रदर्शित करते हैं।
दिए गए वृत्त के चित्र में,
♦ AB वृत्त का व्यास है।
♦ CD वृत्त की जीवा है।
♦ OP वृत्त की त्रिज्या है।
♦ CQD वृत्त का चाप है।
वृत्त के गुण (Properties of Circle)
♦ एक वृत्त में, केन्द्र से जीवा पर डाला गया लम्ब जीवा को समद्विभाजित करता है।
♦ एक वृत्त में, जीवा के मध्य बिन्दु को केन्द्र से मिलाने वाली रेखा जीवा पर लम्ब होती है।
♦ वृत्त की समान जीवाएँ केन्द्र से समदूरस्थ होती
♦ केन्द्र से समदूरस्थ जीवाएँ समान होती हैं।
♦ वृत्त की समान जीवाएँ केन्द्र पर समान कोण बनाती हैं।
♦ वृत्त की वे जीवाएँ, जो केन्द्र पर समान कोण बनाती हैं, समान होती हैं।
♦ तीन असंरेखीय बिन्दुओं से होकर के एक और केवल एक ही वृत्त खींचा जा सकता है।
संकेन्द्रीय वृत्त (Concentric Circle)- ऐसे दो वृत्त जिनका एक ही केन्द्र हो तथा दोनों वृत्तों की अलग-अलग त्रिज्याएँ हों, संकेन्द्रीय वृत्त कहलाता है।
जहाँ r1 अन्तः वृत्त की त्रिज्या है, r2 बाह्य वृत्त की त्रिज्या है तथा r2 > R1
सतह (Surface )- ठोस वस्तुओं के पृष्ठों या तलों के फैलाव को सतह कहते हैं।
घनाभ (Cuboid)-छ: पृष्ठों से घिरी वह आकृति जिसमें प्रत्येक पृष्ठ एक आयत होता है और सम्मुख (आमने-सामने के) पृष्ठ बराबर होते हैं, घनाभ या आयताकार पिण्ड कहलाता है।
जैसे पुस्तक, ईंट, सन्दूक, माचिस आदि ।
चित्र में, छ: पृष्ठों से घिरी आकृति है। जिसकी
लम्बाई AB = EF = HG = DC = 1
चौड़ाई DA = BC = HE = GF = b
तथा ऊँचाई AE = BF = DH = CG = h
∴ आमने-सामने के पृष्ठ बराबर और समानान्तर हैं अर्थात्
                       ABCD = EFGH
                      AEHD = BFGC
                      AEFB = DHGC
पृष्ठ ABCD को आधार (base) तथा अन्य सभी पृष्ठों को पार्श्व पृष्ठ (Lateral face) कहते हैं । BH, DF, AG तथा EC, जो आयताकार ठोस के विपरीत कोणों को मिलाती हैं, विकर्ण कहलाते हैं।
घन (Cube)- ऐसा घनाभ जिसकी लम्बाई, चौड़ाई तथा ऊँचाई समान हों अर्थात् प्रत्येक पृष्ठ एक वर्ग हो, घन कहलाता है।
चित्र में, छ: पृष्ठों से घिरी आकृति है जिसमें सभी भुजाएँ
AB = BC = CD = AD = AE = DH = BF = EF = FG     =EH=HG=CG=a (कुल 12 )
तथा सभी पृष्ठ बराबर हैं अर्थात्
ABCD = EFGH = AEHD = BFGC = DHCG =AEFB (कुल छ:)
घन/ घनाभ के रूप में अन्य आकृतियाँ (Other Figures in the Form of Cube / Cuboid)
बेलन (Cylinder)- यह वह समपार्श्व आकृति है जिसका आधार एक वृत्त होता है। इसका निर्माण समान त्रिज्या वाले कई वृत्तों को एक-दूसरे के ऊपर रखकर किया है।
दिए गए चित्र में,
(i) r बेलन की त्रिज्या
(ii) h बेलन की ऊँचाई
शंकु (Cone)- यह एक ऐसा पिरामिड है जिसका आधार एक वृत्त है। इसका निर्माण एक समकोण त्रिभुज की समकोण बनाने वाली भुजाओं में से किसी एक के परित: घुमाने पर होता है।
दिए गए चित्र में,
(i) शंकु की त्रिज्या
(ii) h शंकु की ऊँचाई
(iii) ∫ शंकु की तिर्यक ऊँचाई
गोला (Sphere)- यह एक ऐसी ठोस अथवा खोखली आकृति है जिसकी सतह का प्रत्येक बिन्दु, एक निश्चित बिन्दु, केन्द्र से समान दूरी पर होता है। इसका निर्माण एक वृत्त को उसके व्यास के इर्द-गिर्द घुमाने पर होता है। दिए गए चित्र में,
   (i) r गोले का अर्द्धव्यास r              (ii) r गोले की ऊँचाई
अर्द्धगोला (Hemisphere)- एक सम्पूर्ण गोले को बीच से काट देने के बाद बनी आकृति अर्द्धगोला कहलाती है।
दिए गए चित्र में,
(i) r अर्द्धगोले की त्रिज्या है
(ii) r ही अर्द्धगोले की ऊँचाई है
                                                            महत्त्वपूर्ण तथ्य
♦वृत्त, वर्ग, आयत, चतुर्भुज और त्रिभुज समतल आकृतियाँ हैं जबकि घन, घनाभ, बेलन, शंकु व गोला ठोस आकृतियाँ हैं।
♦सभी समतल आकृतियाँ द्विविमीय (2-D) आकार की होती हैं जबकि ठोस आकृतियाँ त्रिविमीय (3-D) आकार की होती हैं।
♦ठोस आकार के कोने उसके शीर्ष, उसके ढाँचे के रेखाखण्ड,उसके किनारे तथा उसके सपाट पृष्ठ उसके फलक कहलाते हैं।
♦वृत्त या गोले की त्रिज्या तथा उसकी ऊँचाई समान होती हैं। +
♦प्रत्येक आयत एक समान्तर चतुर्भुज होता है।
♦ प्रत्येक समचतुर्भुज एक समान्तर चतुर्भुज होता है।
♦ प्रत्येक वर्ग एक समचतुर्भुज होता है।
♦ आयत का प्रत्येक कोण 90° होता है।
♦ समचतुर्भुज की सभी भुजाओं की लम्बाइयाँ बराबर होती प्रत्येक वर्ग एक आयत होता है।
♦ आयत के दो विकर्ण होते हैं।
♦ समान्तर चतुर्भुज के आमने-सामने की भुजाएँ समान्तर होती हैं।
♦ वर्ग की प्रत्येक भुजा बराबर होती है।
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