…जहां हर साल माॅनसून में केले का रॉफ्ट बनता है मरीजों का सहारा

प्रतिनिधि, बशीरहाट

राज्य में बारिश का कहर जारी है. महानगर से सटे कई जिलों की स्थिति काफी बदतर हो गयी है. उत्तर 24 परगना जिले के बशीरहाट के कुछ ऐसे क्षेत्र हैं, जहां बारिश कहर बनकर टूट पड़ी है. ऐसे में बीमार लोगों को अस्पताल ले जाने के लिए कोई साधन तक नहीं मिल पा रहा है. वजह है भारी जल जमाव व सड़कों की बदहाली. ऐसी ही स्थिति हिंगलगंज के गोविंदा काटी गांव की है, जहां पानी से लबालब सड़कों से बीमार लोगों को लकड़ी पर बंधे झूले की मदद से अस्पताल पहुंचाते देखा गया. इसी तरह से बादुरिया स्थित चतरा पंचायत के मिर्जापुर, पपीला, कोटलबेरिया, रसुई और पोटापारा गांव में इन दिनों जल दुर्ग बन गये हैं. लगातार कई दिनों से हो रही भारी बारिश ने गांव की तस्वीर पूरी तरह बदल दी है. कहीं घुटनों तक, तो कहीं कमर तक पानी भर गया है. सड़कें, खेत, घर सब कुछ पानी में डूबा हुआ है. स्थिति इतनी गंभीर है कि बीमार मरीजों को अस्पताल तक ले जाने के लिए अब केले के राॅफ्ट का सहारा लिया जा रहा है.

स्थानीय लोगों का कहना है कि यह कोई नयी समस्या नहीं है. हर साल माॅनसून में यही हालत होती है, लेकिन इस बार हालात अधिक बदतर हैं. बारिश से खेतों में तैयार फसल पूरी तरह नष्ट हो चुकी है. ग्रामीणों के मकान पानी में डूब चुके हैं और लोगों को सुरक्षित स्थानों पर शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ा है. बच्चों की पढ़ाई भी प्रभावित हो रही है. स्कूल तक पहुंचने के लिए बच्चों को कंधों पर उठा कर ले जाना पड़ रहा है. एक स्थानीय ग्रामीण ने बताया कि कई बार पंचायत और विधायक को स्थिति से अवगत कराने के बाद भी आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला.

लोगों के घर में सांप और कीड़े-मकोड़े तक घुस आ रहे हैं. स्थानीय लोगों की मांग है कि प्रशासन तुरंत राहत और स्थायी समाधान की दिशा में कदम उठाये. लोगों का कहना है कि अगर इस समस्या का समय रहते हल नहीं निकाला, तो आने वाले वर्षों में हालात और बदतर हो सकते हैं.

चतरा पंचायत के प्रधान असलमुद्दीन ने कहा कि यह स्थिति इच्छामती, जमुना और पद्मा नहरों में भारी गाद जमने की वजह से उत्पन्न हुई है, जिससे जलधारण क्षमता बेहद कम हो गयी है. उन्होंने जानकारी दी कि इच्छामती नदी के पुनरुद्धार का काम शुरू हो गया है और जल्द ही जमुना और पद्मा नहरों पर भी काम शुरू होगा. उनका दावा है कि इन परियोजनाओं के पूरा होते ही ग्रामीणों को हर साल इस त्रासदी से छुटकारा मिल जायेगा. लेकिन जब तक यह काम पूरा होता है, तब तक गांव के लोगों को परेशानी झेलनी पड़ रही है.

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