ऐसा क्यों और कैसे होता है -34
ऐसा क्यों और कैसे होता है -34
पेट में कीड़े क्यों होते हैं?
कुछ बच्चों के पेट में कीड़े हो जाते हैं। ये कीड़े आमतौर पर केंचुए के आकार के होते हैं। इन्हें गोल कृमि कहते हैं। क्या आप जानते हैं कि ये कीड़े पेट में क्यों होते हैं? इन कीड़ों के अंडे आमतौर पर फलों, सब्जियों, खुली मिठाई और बाजार में बिकने वाली खुली खाद्य वस्तुओं में होते हैं। फलों, सब्जियों को बिना धोए खाने पर और खुली मिठाई व बाजारू चीजें खाने पर ये अंडे हमारे शरीर में पहुंच जाते हैं। पेट में इन अंडों से केंचुए के आकार के कीड़े हमारी आंतों में पैदा हो जाते हैं। आंतों में ये कीड़े बड़े आनंद के साथ रहते हैं, क्योंकि वहां इन्हें हमारा खाया हुआ भोजन मिल जाता है। जो भोजन हमारे शरीर को मिलना चाहिए, उसका बहुत सारा अंश ये कीड़े खा जाते हैं। परिणाम यह होता है कि इनकी उपस्थिति के कारण आदमी दिन-प्रतिदिन कमजोर होता जाता है। इन कृमियों की त्वचा काफी मोटी और सख्त होती है, जिस पर हमारे पेट में उपस्थित पाचक रसों और अम्लों का कोई प्रभाव नहीं होता । गोल कृमि मनुष्य और पशुओं की आंतों में रहते हैं। मादा गोल कृमि 30 सेमी तक बढ़ती है, जबकि नर इससे कुछ छोटा होता है। गोल कृमि पैदा न हों इसके लिए यह आवश्यक है कि हम साफ और स्वच्छ पदार्थ ही खाएं | “
हम नमक क्यों खाते हैं?
हमारे शरीर में लगभग 65 प्रतिशत पानी है। कुछ अंगों में तो इससे अधिक पानी है। उदाहरण के लिए मांसपेशियों में 75 प्रतिशत, लीवर में 70 प्रतिशत, मस्तिष्क में 79 प्रतिशत और गुर्दों में 83 प्रतिशत पानी है। शरीर में उपस्थित यह पानी शुद्ध अवस्था में नहीं है, बल्कि इसमें नमक घुला हुआ है। इस घोल में नमक की मात्रा को संतुलित करने के लिए नमक खाना जरूरी है। क्या आप जानते हैं कि नमक हमारे शरीर के लिए क्यों जरूरी है? विज्ञान के एक सिद्धांत के मुताबिक मनुष्य और जमीन पर रहने वाले सभी जानवरों को समुद्र के प्राणियों की तुलना में नमक की जरूरत अधिक होती है। थलीय प्राणियों के शरीर में अधिकतर नमक त्वचा में रहता है और उनके रक्त से विसर्जन क्रियाओं द्वारा नमक कम होता रहता है । यदि हम बिना नमक का भोजन करें तो रक्त का नमक कम होता जाएगा। ऐसी स्थिति में नमक की पूर्ति त्वचा में जमा नमक भंडार से होती है। नमक का विर्सजन मुख्य रूप से गुर्दों और पसीने द्वारा होता है। शरीर को सुचारू रूप से चलाने के लिए नमक बहुत जरूरी है। हमारा शरीर भली प्रकार कार्य कर सके, इसके लिए नमक की पर्याप्त मात्रा भोजन में होना जरूरी है ।
सामान्य बालू के बजाय बालू के दलदल में भारी वस्तुएं क्यों डूब जाती हैं?
सामान्यतः बालू का नाम सुनते ही ऐसा लगता है कि यह तो बिखरे हुए कण हैं। इसमें पैर रखते ही अंदर चले जाएंगे और भारी वस्तुएं तो तुरंत ही इसमें धंस जाएंगी। लेकिन ऐसा नहीं होता, बल्कि बालू दलदल में भारी वस्तुएं भीतर धंस जाती हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि बालू के कणों के बीच संसंजक बल, अर्थात् कोहेसिब फोर्स होने के कारण घर्षण अवरोध पैदा हो जाता है, जिसके कारण भारी वस्तुएं इनमें से होकर नीचे की ओर अंदर नहीं जा पाती हैं। लेकिन बालू- दलदल में ऐसा नहीं होता क्योंकि बालू- दलदल एक तरह से बालू और पानी का मिश्रण होता है। अतः इसमें पानी के अणु बालू के कणों के चारों तरफ होने से उनके बीच घर्षण अवरोध को कम कर देते हैं। इसलिए बालू- दलदल भारी वस्तुओं को अपने में नीचे धंसने की क्रिया में किसी भी प्रकार का अवरोध नहीं कर पाते और परिणामस्वरूप भारी वस्तुएं बालू- दलदल में अंदर धंस जाती हैं।
बहरापन क्यों होता है ?
बहरापन और कम सुनाई देना दो अलग-अलग बातें हैं। बहरेपन में आवाज बिल्कुल सुनाई नहीं देती और कम सुनाई देने में केवल ऊंची आवाजें ही सुनाई देती हैं। बहरापन दो प्रकार का होता है । पहला जन्म से और दूसरा कानों के किसी रोग या दुर्घटना से | पैदायशी बहरापन कई कारणों हो सकता है। जैसे गर्भाधान के तीन महीने तक यदि महिला को खसरा हो जाता है तो पैदा होने वाला बच्चा बहरा हो सकता है। ऐसी महिलाओं से पैदा होने वाले 50 प्रतिशत बच्चे बहरे पाए गए हैं। जन्म के बाद के बहरेपन के बहुत से कारण हो सकते हैं। एक प्रकार के बहरेपन में ध्वनि तरंगें कान के पर्दे तक नहीं पहुंच पातीं। इस प्रकार का बहरापन कानों के पर्दो पर मैल के जम जाने से होता है।
कानों में सदा ही मोम जैसा भूरे रंग का पदार्थ बनता रहता है और यह छोटे-छोटे टुकड़ों के रूप में कान से बाहर आता रहता है। यह पदार्थ कुछ लोगों के कान के पर्दे पर जम जाता है, जिससे ध्वनि तरंगें इसी से टकराकर रह जाती हैं और पर्दे तक नहीं पहुंच पातीं। दूसरे प्रकार के बहरेपन में आतंरिक कान की नाड़ियां किसी चोट या अधिक तीखी आवाजों के कारण फट जाती हैं, जिससे आवाज सुनाई नहीं देती।
पेंट ब्रुश के बाल पानी में अलग-अलग और बाहर निकालने पर एक साथ क्यों रहते हैं?
चित्रकारी आदि के ब्रुश में जो बाल लगे होते हैं उनका घनत्व पानी के घनत्व के लगभग बराबर होता है। इसलिए जब ऐसे ब्रुश को पानी में डुबोया जाता है तो पानी के उत्प्लावन बल के कारण ब्रुश के बाल पानी में ऊपर की ओर उठ जाते हैं और अलग-अलग हो जाते हैं। लेकिन जब इस ब्रुश को पानी से बाहर निकाला जाता है तो पानी का उत्प्लावकता बल तो समाप्त हो जाता है और पानी के अणुओं तथा ब्रुश के बालों के बीच चिपकनेवाला आसंजक बल कार्य करने लगता है। इसलिए पानी से बाहर लाने पर ब्रुश के बाल इसी आसंजक बल के कारण आपस में मिलकर एक साथ हो जाते हैं।
लोहे पर जंग क्यों लगता है ?
लोहे की चीजों को किसी नमी वाले स्थान पर कुछ दिन रख दिया जाए तो इन चीजों पर कत्थई रंग की एक परत सी जम जाती है, इसी को जंग लगना कहते हैं। जंग वास्तव में लोहे का ब्रुश के बाल पानी में अलग-अलग और बाहर निकालने पर एक साथ क्यों रहते हैं? 335. पेंट चित्रकारी आदि के ब्रुश में जो बाल लगे होते हैं उनका घनत्व पानी के घनत्व के लगभग बराबर होता है। इसलिए जब ऐसे ब्रुश को पानी में डुबोया जाता है तो पानी के उत्प्लावन बल के कारण ब्रुश के बाल पानी में ऊपर की ओर उठ जाते हैं और अलग-अलग हो जाते हैं। लेकिन जब इस ब्रुश को पानी से बाहर निकाला जाता है तो पानी का उत्प्लावकता बल तो समाप्त हो जाता है और पानी के अणुओं तथा ब्रुश के बालों के बीच चिपकनेवाला आसंजक बल कार्य करने लगता है। इसलिए पानी से बाहर लाने पर ब्रुश के बाल इसी आसंजक बल के कारण आपस में मिलकर एक साथ हो जाते हैं।
ऑक्साइड है। जब लोहे के परमाणु ऑक्सीजन से मिलते यानी संयोग करते हैं, तो लोहे का ऑक्साइड बनता है। लोहे के परमाणुओं का ऑक्सीजन से मिलना ऑक्सीकरण की क्रिया कहलाती है। लोहे पर जंग लगने के लिए ऑक्सीजन और नमी का होना अत्यंत आवश्यक है। नमी और ऑक्सीजन की उपस्थिति में लोहे के परमाणु धीरे-धीरे ऑक्सीजन से मिलकर लोहे का आक्साइड बनाते रहते हैं और जंग लगने की क्रिया जारी रहती है। जंग लगने से ठोस लोहे की सतह झड़ने लगती है और कमजोर पड़ जाती है। जंग लगने को रोकना वैज्ञानिकों के लिए एक बहुत बड़ी समस्या रही है। लोहे पर जंग लगने को पेंट या प्लास्टिक की पतली परत चढ़ाकर कुछ हद तक रोका जा सकता है। पेंट या प्लास्टिक की पतली परत के कारण लोहे के परमाणु पानी के संपर्क में नहीं आ पाते हैं इसलिए आक्सीजन लोहे के साथ संयोग नहीं कर पाती है और जंग नहीं लगता है।
फाउंटेन पेन के पूर्ण खाली होने पर उससे लिखते समय कुछ स्याही क्यों निकल पड़ती है ?
लिंखने पर कलम से स्याही तो निकलती ही है, लेकिन पेन में स्याही समाप्त होने पर यह अधिक मात्रा में निकलने लगती है। इसका कारण पेन के अंदर स्याही बाहर फेंकनेवाले दबाव का अधिक हो जाना होता है।
हम जानते हैं कि पेन में एक निब, एक फीडर और एक स्याही का भंडार-स्थल होता है। स्याही भंडार से स्याही फीडर के द्वारा निब में आती है। जब हम लिखते हैं तो निब चौड़ी जाती है और उससे स्याही कागज पर निब के साथ चलने लगती है। जब स्याही भंडार से स्याही बाहर निकलती है तो उसका स्था लेने हवा अंदर चली जाती है और भीतर तथा बाहर का दबाव बराबर हो जाता है। इस हवा के बहाव को नियंत्रित करने के लिए निब के बीच में एक छंद होता है। जैसे-जैसे स्याही बाहर आती हैं. स्याही भंडार में हवा का दबाव बढ़ता जाता है। जब हम लिखते हैं तो कलम को हाथ से पकड़े होते हैं। इस तरह हमारे हाथ की उष्मा स्याही भंडार में पहुंचने लगती है। जब स्याही भंडार भरा होता है तो इस उष्मा का प्रभाव बहुत कम होता है लेकिन जब स्याही भंडार-स्थल में हवा की मात्रा अधिक हो जाती है तो यह हाथ की उष्मा से फैलना प्रारंभ कर देती है। इस तरह जो दबाव बढ़ता है, वह स्याही को खासतौर पर उस समय, जब पेन खाली- सा हो जाता है, बाहर धकेल देता है और ऐसी स्थिति में लिखते समय बची-खुची स्याही बाहर निकल पड़ती है।
स्पेक्ट्रोग्राफ का उपयोग क्यों किया जाता है ?
मास स्पेक्ट्रोग्राफ पदार्थों के विश्लेषण के लिए काम आने वाला बहुत उपयोगी उपकरण है। इससे किसी पदार्थ में उपस्थित विभिन्न प्रकार के अणुओं और परमाणुओं का तो पता चलता ही है, उनकी मात्रा का भी पता लग जाता है। विद्युत और चुंबकीय बलों द्वारा इस यंत्र में विभिन्न द्रव्यमानों के आयनों को अलग कर लिया जाता है। मास स्पेक्ट्रोग्राफ से किसी पदार्थ का अध्ययन करने के लिए पहले उसे गर्म करके गैस में बदला जाता है। इस गैस को एक निर्वात कक्ष से गुजारा जाता है। गैस पर यहां इलेक्ट्रानों की बौछार की जाती है, जिससे पदार्थ के परमाणु और अणु आयनों में बदल जाते हैं। इन आयनों को विद्युत क्षेत्र से गुजार कर त्वरित किया जाता है। इसके बाद चुंबकीय क्षेत्र से गुजारा जाता है। चूंकि ये आयन आवेशित होते हैं, अतः ये चुंबकीय क्षेत्र द्वारा अपने रास्ते से विचलित हो जाते हैं। धनात्मक आवेशित आयन एक ओर विचलित होते हैं, तो ऋणात्मक दूसरी ओर। इस प्रकार अलग-अलग द्रव्यमान को आयन एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं। इन आयनों को एक फोटोग्राफिक प्लेट पर डाला जाता है। इस फोटो प्लेट से यह पता लगा लिया जाता है कि कितने आयन हैं। मास स्पेक्ट्रोग्राफ का प्रयोग भूगर्भशास्त्र, रसायनशास्त्र, जीवविज्ञान तथा नाभिकीय भौतिकी में हो रहा है।
ट्रैफिक लाइट्स कैसे / क्यों काम करती हैं ?
नगरों में सड़कों के चौराहों तथा उन स्थानों पर जहां सड़कें एक-दूसरे से मिलती हैं, ट्रैफिक लाइट्स लगी रहती हैं। ये एक खंभे पर एक-दूसरे के ऊपर कांच के आवरण के अंदर लगी रहती हैं। ये लाइट्स तीन भिन्न-भिन्न रंगों की होती हैं लाल, हरी और नारंगी । लाल रुकने का संकेत देती है, नारंगी रंग की लाइट का अर्थ होता है आगे के संकेत के लिए तैयार रहो। उसके बाद रुकने का संकेत देने वाला लाल प्रकाश या जाने का संकेत देने वाला हरा प्रकाश संकेत हो सकता है। आधुनिक ट्रैफिक लाइट्स कम्प्यूटर द्वारा नियंत्रित होती हैं और उनका समय पहले से निश्चित न होकर वाहनों की उपस्थिति पर निर्भर करता है। इस विधि में एक इलेक्ट्रिक तार सड़क के नीचे दबा दिया जाता है। इस तार में एक चुंबकीय क्षेत्र होता है। इसमें सड़क पर चलने वाले वाहनों की धातु के प्रति संवेदनशीलता होती है। कम्प्यूटर द्वारा चलने वाला एक नियंत्रण बाक्स तार के द्वारा वाहनों के प्रति सचेत रहता है। यदि चौराहे की अन्य सड़कों से कोई वाहन नहीं आ रहा हो तो ये चौराहे पर आने वाली गाड़ी को हरा प्रकाश संकेत दे देता है। यही कम्प्यूटर ट्रैफिक लाइट को जरूरत के मुताबिक बदलता भी रहता है। एक केंद्र से नियंत्रित यातायात व्यवस्था में सभी ट्रैफिक लाइट्स को एक साथ नियंत्रित करना संभव होता है।
किनारों की अपेक्षा नदी के बीच में पानी का बहाव अधिक क्यों होता है?
पानी ऊंचाई से नीचाई की ओर बहना प्रारंभ कर देता है और अवरोध आने पर रुकने लगता है। वैसे भी पानी एक तरह से लसीला द्रव है। इस तरह के द्रवों का बहाव विशेष प्रकार का होता है। ऐसे द्रव यदि किसी पाइप में बह रहे हैं तो उन्हें पानी के अणुओं की परतों के चट्टे के रूप में बहता माना जा सकता है। जब पानी नदी में बहता तो नदी के किनारों पर घर्षण अवरोध के कारण किनारे के संपर्क में आनेवाली पानी की परतें लगभग गतिशून्य – सी हो जाती हैं। लेकिन नदी के बीच में बहनेवाले पानी पर इसका असर बेमालूम-सा पड़ता है, अतः नदी के किनारों पर बहनेवाले पानी की अपेक्षा नदी के बीच में बहनेवाले पानी का बहाव अधिक होता है।
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