ऐसा क्यों और कैसे होता है -12
ऐसा क्यों और कैसे होता है -12
रैकून खाना धोकर क्यों खाता है ?
अमेरिकी महाद्वीप में पाया जाने वाला रैकून एक अत्यंत मनोरंजक जीव है। यह अपना भोजन धोकर खाता है। यदि धोने के लिए पानी नहीं मिले, तो यह भोजन नहीं करता है। यह तो अभी पूरी तरह स्पष्ट नहीं है कि रैकून अपना भोजन क्यों धोता है, लेकिन वैज्ञानिक शोधों से यह स्पष्ट हो चुका है कि यह अपने भोजन को कम से कम साफ करने के लिए तो नहीं धोता है, क्योंकि यह भोजन को बहुत गंदे पानी में भी धोता है। दूसरे यह पानी में से पकड़े गए भोजन, जैसे- मछली, झींगा, सीप और मेंढक को भी धोता है, जिन्हें धोने की जरूरत नहीं होनी चाहिए। इसलिए वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यह शायद इसलिए अपने भोजन को धोता है कि इससे उसे अपना भोजन और अधिक स्वादिष्ट लगता हो। रैकून अखरोट, फल और अनाज भी खाते हैं और अपने पंजों का इस्तेमाल भोजन ढूंढ़ने के लिए करते हैं। इस आकर्षक जीव की दो प्रजातियां पाई जाती हैं। उत्तरी रैकून कनाडा, अमेरिका और सेंट्रल अमेरिका में पाए जाते हैं। केकड़े खाने वाले रैकून दक्षिण अमेरिका में पाए जाते हैं। इस किस्म के रैकूनों के दूसरे रैकूनों से बाल छोटे और टांगें लंबी होती हैं।
बस के भीतर रेडियो ठीक से स्टेशन क्यों नहीं पकड़ता?
चारों तरफ से बंद धातु के बक्से को ‘फैराडे बक्स’ कहा जाता है। इसके अंदर विद्युत् चार्ज अथवा रेडियो तरंगें प्रवेश नहीं कर पाती हैं, बल्कि वे इसके बाहर की दीवारों तक ही सीमित रह जाती हैं। यह एक ऐसी युक्ति है जिसकी सहायता से उन यंत्रों आदि को, जो अधिक संवेदनशील होते हैं. बिजली एवं रेडियो तरंगों से होने वाली खराबी से बचाने के लिए उन्हें शील्ड कर दिया जाता है।
बस, ट्रक तथा रेल के डब्बे आदि भी लगभग चारों तरफ से बंद धातु के डब्बे ही होते हैं। अतः ये भी फैराडे बक्स की तरह ही कार्य करने लगते हैं। इसलिए विभिन्न रेडियो स्टेशनों से प्रसारित हो रहे कार्यक्रमों की रेडियो तरंगें इन डब्बों के बाहर ही रह जाती हैं, अंदर प्रवेश नहीं कर पातीं। इसीलिए बस आदि में रेडियो-ट्रांजिस्टर आदि रेडियो स्टेशनों को ठीक से पकड़ नहीं पाते हैं। परंतु यदि इन रेडियो या ट्रांजिस्टर आदि के एंटीना को इनकी खिड़की से बाहर निकाल दें, या सैट को खिड़की के पास बाहर की ओर रख दें, तो वे स्टेशन ठीक से पकड़ सकते हैं। –
दूरबीन से दूर की वस्तुएं साफ क्यों दिखती हैं ?
दूरबीन एक प्रकार से दूरदर्शियों का जोड़ा होता है। इससे दूर की वस्तुओं को नजदीक और बड़ा करके देखा जा सकता है। इसमें लगे दोनों दूरदर्शी एक जैसे व कीप के आकार की नली जैसे होते हैं। इसमें एक अभिदृश्यक लैंस और एक नेत्रिका लैंस लगा होता है। अभिदृश्यक लैंस वस्तु की ओर और नेत्रिका लैंस आंखों के पास लगा होता है। परार्वन का प्रभाव कम करने के लिए लैंसों पर विशेष पदार्थ की पतली परत चढ़ाई जाती है। दोनों लैंसो के बीच में दो प्रिज्म लगे होते हैं। ये प्रिज्म उल्टे प्रतिबिंब को सीधा करने का काम करते हैं। वस्तु से आने वाली प्रकाश की किरणें अभिदृश्यक लैंस पर पड़ती हैं और वस्तु का उल्टा प्रतिबिंब बनाती हैं। इस प्रतिबिंब को सीधा करने का काम दो प्रिज्म करते हैं। इस प्रतिबिंब को नेत्रिका लैंस बड़ा करके दिखाता है। अधिकांश दूरदर्शियों में फोकस करने के लिए एक गोल पेंच भी होता है। दूरदर्शी के बॉक्स पर दो संख्याएं लिखी होती हैं। इनमें से पहली यह बताती है कि वस्तु को कितने अधिक गुना बड़ा दिखाया जाएगा और दूसरी संख्या अभिदृश्यक लैंस का व्यास बताती है ।
शरीर में धमनियां और शिराएं क्यों जरूरी हैं?
शरीर में अंगों का वह समूह जो रक्त संचार व्यवस्थित करता है, ‘रक्त संचार’ संस्थान कहलाता है। पूरे शरीर तक भोजन और ऑक्सीजन पहुंचाने और अनुपयोगी पदार्थ हटाने का काम, हृदय से रक्त ले जाने वाली और हृदय तक दूषित रक्त लाने वाली नलिकाएं करती हैं। ये नलिकाएं अगर न हों, तो व्यक्ति बीमार हो जाए और उसके जिंदा रहने की संभावना भी काफी कम हो जाए। ये नलिकाएं ही धमनियां और शिराएं हैं, जिनके बिना न तो शरीर को शुद्ध आँक्सीजन युक्त रक्त मिल सकता है और न ही गंदा रक्त फिर शुद्ध होने के लिए हृदय तक पहुंच सकता है। धमनी एक बड़ी नलिका होती है, जो शुद्ध चमकीले लाल रक्त को हृदय से शरीर के अन्य अंगों की तरफ ले जाती है। धमनी से ही धमनिकाएं और कोशिकाएं फूटती हैं। ये शरीर के सभी कोनों तक रक्त जरिये ग्लूकोज और ऑक्सीजन पहुंचाती हैं। वहीं शरीर भर में एकत्रित हुए गंदे हलके बैंगनी रक्त को फिर से हृदय तक पहुंचाने का काम शिराएं करती हैं।
ज्वलनशील पदार्थों को ले जानेवाले वाहनों में सड़क से रगड़ती धातु की जंजीरें क्यों लटकी होती हैं?
जब हमारे बाल सूखे होते हैं और हम उनमें कंघी करते हैं तो हमें कभी-कभी चटर-पटर की-सी आवाज सुनाई पड़ती है। यदि कमरे में पूरा अंधेरा हो और यह क्रिया हम शीशे के सामने खड़े होकर कर रहे हों, तो शीशे में हमें छोटी-छोटी चिनगारियां आवाज के साथ होती दिखाई देती हैं। ये चिनगारी और आवाजें हमारे सूखे बाल और कंधे के बीच होने वाले घषर्ण के कारण पैदा हुई स्थिर विद्युत् की वजह से होती हैं। इसी तरह की विद्युत् चल रहे वाहनों में भी पैदा हो जाती है। वाहनों के टायर धरती और वाहन के बीच बिजली कुचालक का कार्य करते हैं, अतः वाहनों में पैदा हुई स्थिर विद्युत् का चार्ज कहीं न जाकर, वहीं का वहीं वाहन पर रह जाता है। इससे चिनगारी पैदा होकर वाहन में भरे ज्वलनशील पदार्थ को आग लगा सकती है, जिससे भारी नुकसान और दुर्घटना होने की आशंका रहती है।
अतः स्थिर विद्युत् के बने चार्ज को वाहन से धरती में चले जाने के लिए सुरक्षा के तौर पर इन वाहनों में धरती, अर्थात् सड़क से रगड़ती हुई धातु की जंजीरें लटकती रहती हैं।
मिर्च की जलन मीठा खाने पर बंद क्यों हो जाती है ?
इस क्रिया की सही जानकारी नहीं है कि ऐसा क्यों होता है; लेकिन फिर भी जो कारण अनुमान किए गए हैं वे इस प्रकार हैं: जब हम मिर्च खाते हैं, तो हमारी जीभ की स्वाद कलिकाएं मिर्च खाने की सूचना मस्तिष्क को देती हैं कि तीखी मिर्च खाई गई है, और परिणामस्वरूप हमें जीभ में जलन-सी होने लगती है। जब हम इसके बाद मीठी चीज खाते हैं तो मीठे स्वाद की भी सूचना स्वाद कलिकाएं मस्तिष्क को पहुंचाती है। यह सूचना पिछली सूचना को दबा देती है, इससे हमें जलन कम और मिठास अधिक मालूम पड़ने लगती है, जो धीरे-धीरे जलन को समाप्त करके केवल मिठास के रूप में ही रह जाती है। इसके अतिरिक्त जीभ पर जलन पैदा करनेवाले रसायन मिठाई खाने पर और पानी, दूध, दही तथा कोई अन्य तरल पदार्थ लेने पर जीभ से हटकर इन पदार्थों के साथ घुलकर पेट में चले जाते हैं। इससे जलन के मूल स्रोत के कम हो जाने से जलन का प्रभाव कम होकर शून्य हो जाता है। अतः मिर्च खाने से हुई जलन मिठाई खाने पर बंद हो जाती है।
यकृत शरीर का महत्वपूर्ण अंग किस प्रकार है ?
यकृत हमारे शरीर का महत्वपूर्ण अंग है। यह महत्वपूर्ण इसलिए है, क्योंकि इसमें सौ से अधिक रासायनिक प्रक्रियाएं चलती रहती हैं। इसीलिए इसे शरीर की दिन-रात चलने वाली प्रयोगशाला कहा जा सकता है। यकृत का काम मूल रूप से खाना पचाना, मलोत्सर्जन, भोजन सामग्री का संचयन, रक्तनिर्माण की प्रक्रिया को बनाए रखना तथा विषैले तत्वों को नष्ट करना आदि है। यकृत का महत्व इसी से पता चलता है कि यदि यह किसी के शरीर ही में काम करना बंद कर दे, तो कुछ घंटों में ही आदमी की मृत्यु हो जाएगी। यकृत खून के साथ आए भोज्य पदार्थ में उपस्थित शक्कर, ग्लूकोज और अमीनोअम्ल पर रासायनिक क्रिया करता है। यकृत में शक्कर ‘ग्लाइकोजीन’ के रूप में संचित होती है। शरीर की कोशिकाओं को जब भी ईंधन की आवश्यकता होती है, ग्लाइकोजीन यहां से मुक्त होकर अपनी पूर्ति करता है।
टाइपराइटर कीबोर्ड एलफाबेटिक क्रम में क्यों नहीं होता ?
किसी भी भाषा के अक्षरों का एलफाबेटिक क्रम और उनके उपयोग की बारंबारता के क्रम में फर्क होता है। कोई अक्षर बहुत अधिक उपयोग होते हैं, तो कोई बहुत कम और कोई अक्षर तो यदा-कदा ही उपयोग में आते हैं। अतः टाइपराइटर पर टाइप करते समय टाइपिस्ट की उंगलियों के पास वे ही अक्षर अधिक होने चाहिए, जिनका उपयोग टाइप करते समय बार-बार करना पड़ता है। यदि एलफाबेटिक क्रम के अनुसार कीबोर्ड होगा, तो टाइपिस्ट को टाइप करने और टाइप की स्पीड बढ़ाने में कठिनाई आ सकती है। इसलिए कीबोर्ड के अक्षर एलफाबेटिक क्रम में न रखकर अक्षरों के बार-बार उपयोग में आने की सहूलियत के अनुसार रखे जाते हैं। इस क्रम के अनुसार सबसे अधिक उपयोग वाले अक्षर बीच की लाइन में, जहां टाइपिस्ट की उंगलियां रखी रहती हैं, रखे जाते हैं और बाकी अक्षर ऊपर एवं नीचे की लाइन में रखे जाते हैं। संख्याएं सबसे ऊपर की लाइन में होती हैं।
हालांकि टाइपराइटर के कीबोर्ड में सुधार होते रहते हैं; लेकिन पुराने कीबोर्ड की तुलना में उन्हें सफल मान्यता नहीं मिल सकी है। जो भी हो टाइपराइय का कीबोर्ड भाषा के एलफाबेटिक क्रम की बजाय टाइपिस्ट की सहूलियत के अनुसार ही रखा जाना उपयोगी रहता है।
वर्षामापी का उपयोग क्यों किया जाता है?
किसी स्थान पर होने वाली वर्षा को मापने के लिए जिस यंत्र को काम में लाया जाता है, उसे ‘वर्षामापी’ कहते हैं। वर्षा का परिमाण इंचों या मिलीमीटरों में मापा जाता हैं। वर्षामापी में पैमाना लगी कांच की बोतल लोहे के बेलनाकार डिब्बे में रखी जाती है। बोतल के मुंह पर एक कीप रख दिया जाता है, जिसका व्यास बोतल के व्यास से दस गुना अधिक होता है। इसे खुली जगह पर रखा जाता है। पानी की बूंदें कीप में गिरती रहती हैं और पानी बोतल में इकट्ठा होता है। 24 घंटे के बाद बोतल में एकत्र पानी को पैमाने की सहायता से माप लेते हैं। होने वाली वर्षा इस माप का दसवां हिस्सा होती है, क्योंकि कीप का व्यास बोतल के व्यास से दस गुना अधिक होने के कारण इकट्ठा होने वाला पानी भी दस गुना अधिक होता है। यदि किसी स्थान पर साल भर की औसत वर्षा 254 मिमी (10 इंच) से कम होती है, तो उस स्थान को रेगिस्तान कहा जाता है। 254 मिमी से 508 मिमी (10 से 20 इंच) प्रति वर्ष वाले क्षेत्रों में कुछ हरियाली रहती है, लेकिन सफल खेती के लिए 508 मिमी (20 इंच) से अधिक वर्षा का होना जरूरी है।
अचानक ठंडा पानी पड़ने पर लोग सांस लेते क्यों हैं? हुए हांफते
हमारी त्वचा के नीचे ठंडक संवेदी तंत्रिकाएं होती हैं। संवेदी तांत्रिकाएं अधिक ठंड होती है, तो ये मस्तिष्क को उसकी सूचना देती हैं। मस्तिष्क इनकी सूचना पर सीने की पेशियों और डाइफ्राम को संकुचित होने का आदेश देता है। यह संकुचन सामान्य से कुछ अधिक होता है। अतः लोग ठंडा पानी पड़ने पर सांस लेने के लिए हांफने लगते हैं। वैसे यह एक सामान्य क्रिया है; जिसके अनुसार कड़ी ठंडक होने पर लोग सांस लेने के लिए हाफने लगते हैं। ठंडे पानी के अतिरिक्त जब सामान्य पानी अचानक डाला जाता है, तो भी शरीर इस क्रिया को अपनाने लगता है। इसका कारण यह है कि ऐसा होने पर बहुत अधिक संख्या में हमारी ठंडक संवेदी तंत्रिकएं अचानक संकुचित हो जाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप मस्तिष्क यह समझ लेता है कि कड़ाके की ठंडक आ गई है। अतः डाइफ्राम संकुचित हो जाता है, जिससे लोग सांस लेने के लिए हांफने लगते हैं। थोड़ी देर बाद जब स्थिति का सही पता चलता है, तो सब कुछ सामान्य हो जाता है।
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