अर्थव्यवस्था और आजीविका
अर्थव्यवस्था और आजीविका
History [ इतिहास ] लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. औद्योगिकीकरण ने मजदूरों की आजीविका को किस तरह प्रभावित किया ?
उत्तर ⇒ औद्योगिकीकरण के कारण घरेलू उद्योगों के मालिक अब मजदूर बन गए। इनकी आजीविका उद्योगपतियों के द्वारा दिए गए वेतन पर निर्भर थी। उस समय इंगलैण्ड में कानून मिल-मालिकों के समर्थन में था । औरतों एवं बच्चों से 16 से 18 घंटे तक काम लिया जाता था। मशीनों एवं यंत्रों के सामने घरेल हस्तनिर्मित उद्योगों का विकास संभव नहीं था। इन्हीं कारखानों ने उन्हें बेरोजगार बना दिया था। फैक्टियों में काम करने वाले मजदरों का जीवन कष्टमय था । औद्योगिकीकरण ने मजदूरों की आजीविका के साधनों को समाप्त कर दिया था। ये दैनिक उपभोग की वस्तुओं को भी खरीदने की स्थिति में नहीं थे।
प्रश्न 2. न्यूनतम मजदूरी कानून कब पारित हुआ और इसके क्या उद्देश्य थे ?
उत्तर ⇒ 1948 ई. में ‘न्यूनतम मजदूरी कानून’ पारित हुआ जिसमें कुछ उद्योगों में मजदूरी की दरें तय की गई। पहली पंचवर्षीय योजना में न्यूनतम मजदूरी कानून को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया। द्वितीय पंचवर्षीय योजना में यह कहा गया कि न्यूनतम मजदूरी ऐसी होनी चाहिए कि जिससे मजदूरों की स्थिति उनके अपने गजर-बसर के स्तर से अधिक हो । तीसरी पंचवर्षीय योजना में मजदरी बोर्ड की स्थापना हुई तथा बोनस देने के लिए बोनस आयोग की नियुक्ति हुई।
प्रश्न 3. कोयला एवं लौह उद्योग ने किस प्रकार औद्योगिकीकरण को गति प्रदान की ?
उत्तर ⇒ ब्रिटेन में कोयले एवं लोहे की खानें थीं। वस्त्र उद्योग की प्रगति कोयले एवं लोहे के उद्योग पर निर्भर कर रही थी । वाष्प के इंजन बनने के बाद रेलवे इंजन बनने लगे जो कारखाना के लिए कच्चा माल लाने तथा तैयार माल ले जाने में सहायक सिद्ध हुआ। 1815 ई० में हम्फ्री डेवी ने खानों में काम करने के लिए ‘सेफ्टी लैम्प’ (Sefty Lamp) का आविष्कार किया। 1815 ई. में हेनरी बेसेमर ने लोहा को गलाने की भट्ठी का आविष्कार किया। नई-नई मशीनों को बनाने के लिए लोहे की आवश्यकता बढ़ती गई। नवीन आविष्कारों के कारण लोहे का उत्पादन बड़े पैमाने पर होने लगा जिससे आने वाले युग को ‘इस्पात युग’ भी कहा गया। इस प्रकार कोयला एवं लौह उद्योग ने औद्योगिकीकरण को गति प्रदान की।
प्रश्न 4. औद्योगिकीकरण से आप क्या समझते हैं ? अथवा, औद्योगिक क्रान्ति क्या है ?
उत्तर ⇒ औद्योगिकीकरण औद्योगिक क्रांति की देन है, जिसमें वस्तुओं का उत्पादन मशीनों के द्वारा होता है। इसमें उत्पादन वृहत् पैमाने पर होता है और उत्पादन के खपत के लिए बड़े बाजारों की आवश्यकता होती है। औद्योगिकीकरण नये-नये मशीनों का आविष्कार एवं तकनीकी विकास पर निर्भर करता है। औद्योगिकीकरण के प्रेरक तत्व के रूप में मशीनों के अलावा पूँजी निवेश एवं श्रम का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। अतः, औद्योगिकीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें उत्पादन मशीनों के द्वारा कारखानों में होता है । इस प्रक्रिया में घरेलू उत्पादन पद्धति का स्थान कारखाना पद्धति ले लेता है।
प्रश्न 5. स्लम से आप क्या समझते हैं ? इसकी शुरुआत क्यों और कैसे हुई ?
उत्तर ⇒ छोटे, गंदे और अस्वास्थकर स्थानों में आवासीय स्थल ‘स्लम’ कहलाते हैं। औद्योगिकीकरण के दौरान शहर में रहने वाले श्रमिकों के लिए आवास की समस्या उत्पन्न हुई और उन्हें नारकीय स्थितियों में रहने को विवश होना पड़ा। इस प्रकार ‘स्लम’ क्षेत्रों की शुरुआत हुई।
प्रश्न 6. घरेलू और कुटीर उद्योग को परिभाषित करें।
उत्तर ⇒ लघु उद्योग : वैसे उद्योग जो छोटे पैमाने पर किया जाता है। जो स्वयं एवं कुछ लोग मिलकर चलाते हैं उसे लघु उद्योग कहते हैं। लघु उद्योग देश की अर्थव्यवस्था के रीढ़ हैं। देश की औद्योगिक उत्पादन में इसका अंशदान 35 प्रतिशत है। देश के निर्यात में 40% का योगदान है।
कुटीर उद्योग : कुटीर उद्योग का अर्थ ऐसे उद्योग से है जिनका स्वतंत्र कारीगर स्वयं तथा अपने परिवार की सहायता से अपनी पूँजी एवं साधारण औजारों से छोटे पैमाने पर चलाता है उसे कुटीर उद्योग कहते हैं।
प्रश्न 7.औद्योगिक आयोग की नियुक्ति कब हुई ? इसके क्या उद्देश्य थे ?
उत्तर ⇒ औद्योगिक आयोग की नियुक्ति 1916 ई. में हुई। इसका उद्देश्य भारतीय उद्योग एवं व्यापार. का पता लगाकर उसे सरकारी सहायता देना था।
प्रश्न 8. फैक्ट्री प्रणाली के विकास के लिए उत्तरदायी किन्हीं दो कारणों का उल्लेख करें। अथवा, फैक्ट्री प्रणाली के विकास के किन्हीं दो कारणों को बताएँ।
उत्तर ⇒ औद्योगिकीकरण के कारण फैक्ट्री प्रणाली का विकास हुआ। फैक्ट्री प्रणाली ने उद्योग एवं व्यापार के नये-नये केन्द्रों को जन्म दिया। जैसे-लंकाशायर सती वस्त्र उद्योग केन्द्र ।
प्रश्न 9. बुर्जुआ वर्ग की उत्पत्ति कैसे हुई ?
उत्तर ⇒ औद्योगिकीकरण के परिणामस्वरूप ही बुर्जुआ वर्ग की उत्पत्ति हुई। इसे ही मध्यम वर्ग कहा जाता है जिसने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में अंग्रेजों की शोषणमूलक नीति के खिलाफ सक्रिय भूमिका निभाई।
प्रश्न 10. उद्योगों के विकास ने किस प्रकार मजदूरों को प्रभावित किया ? उनपर पड़ने वाले प्रभावों पर आपकी क्या राय है ?
उत्तर ⇒ उद्योग के विकास ने सामाजिक भेदभाव में वृद्धि की। समाज में पूँजीपति वर्ग, बुर्जुआ वर्ग और श्रमिक वर्ग का उदय हुआ । उद्योगों के विकास के फलस्वरूप पूँजीपति वर्ग ने उत्पादन एवं वितरण पर अधिकार कर श्रमिकों का शोषण भी किया, जिससे वर्ग संघर्ष की शुरुआत हुई।
प्रश्न 11. 18वीं शताब्दी में भारत के मुख्य उद्योग कौन-कौन-से थे ?
उत्तर ⇒ 18वीं शताब्दी में वस्त्र, धातु, चीनी तथा चमड़ा आदि भारत के प्रमुख उद्योग थे। सूती वस्त्र उद्योग के क्षेत्र में भारतीय उपमहाद्वीप विश्व का सर्वश्रेष्ठ उत्पादक क्षेत्र था।
प्रश्न 12. निरुद्योगीकरण से आपका क्या तात्पर्य है ?
उत्तर ⇒ औद्योगीकरण के कारण भारत में कुटीर उद्योगों का ह्रास होने लगा। उद्योगों के इसी हास को निरुद्योगीकरण कहते हैं।
प्रश्न 13. गुमाश्ता कौन थे ?
उत्तर ⇒ अंग्रेज व्यापारी एजेंट की मदद से भारतीय कारीगरों को पेशगी की रकम देकर उनसे उत्पादन करवाते थे। यहीं एजेंट गुमाश्ता कहलाते थे।
प्रश्न 14. बाड़ाबंदी अधिनियम क्या है ?
उत्तर ⇒ ब्रिटेन में बाड़ाबंदी अधिनियम 1792 ई. से लागू हुआ। बाड़ाबंदी प्रथा के कारण जमींदारों ने छोटे-छोटे खेतों को खरीदकर बड़े-बड़े फार्म स्थापित किये। इसके कारण छोटे किसान भूमिहीन मजदूर बन गये ।
प्रश्न 15. 1850-60 के बाद भारत में बगीचा उद्योग के विषय में लिखें।
उत्तर ⇒ 1850-60 के बाद भारत में बगीचा उद्योग में नील, चाय, रबड़, कॉफी और पटसन मिलों की शुरुआत हुई ।
इन उद्योगों पर अधिकतम विदेशी उद्योगपतियों का प्रभाव था तथा इन्हें सरकार द्वारा प्रोत्साहन दिया जाता था।
प्रश्न 16. औद्योगिकीकरण के कारण क्या थे ?
उत्तर ⇒ औद्योगिकीकरण के कारण थे – आवश्यकता आविष्कार की जननी, नई-नई मशीनों का आविष्कार, कोयले एवं लोहे की प्रचुरता, फैक्ट्री प्रणाली की शुरुआत, सस्ते श्रम की उपलब्धता, यातायात की सुविधा तथा उपनिवेश स्थापित करने की होड़।
प्रश्न 17. 1813 ई० का चार्टर ऐक्ट क्या था ?
उत्तर ⇒ 1813 ई० का चार्टर ऐक्ट ब्रिटिश संसद द्वारा पारित अधिनियम था जिसमें व्यापार पर से ईस्ट इंडिया कंपनी का एकाधिपत्य समाप्त कर दिया गया तथा एकाधित्य के स्थान पर मुक्त व्यापार की नीति (Policy of Free Trade) का अनुसरण किया गया ।
प्रश्न 18. 1881 के प्रथम कारखाना अधिनियम (फैक्ट्री ऐक्ट) का परिचय दें।
उत्तर ⇒ 1881 में पहला ‘फैक्ट्री ऐक्ट’ (कारखाना अधिनियम) पारित हुआ। इसके द्वारा 7 वर्ष से कम आयु के बच्चों को कारखाना में काम करने पर प्रतिबंध लगाया गया, 12 वर्ष से कम आयु के बच्चों के काम के घंटे तय किये गए. तथा महिलाओं के भी काम के घंटे एवं मजदूरी तय की गई।
प्रश्न 19. विश्वव्यापी आर्थिक मंदी (1929-33) का भारतीय उद्योगों पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर ⇒ 1929-33 की विश्वव्यापी आर्थिक मंदी का भारतीय उद्योगों पर गहरा प्रभाव पड़ा । भारत प्राथमिक सामग्री के लिए आत्म-निर्भर था, जिसका मूल्य घटकर आधा हो गया था । निर्यात किए जाने वाले सामानों का भी मूल्य घट गया था । इस तरह उद्योग पर निर्भर जनता की दिनों-दिन क्षति होने लगी।
प्रश्न 20. द्वितीय विश्वयुद्ध के समय भारतीय उद्योगों की क्या स्थिति थी ?
उत्तर ⇒ द्वितीय विश्वयुद्ध के समय मिलों द्वारा उत्पादित सूती कपड़ों की संपूर्ण मांग भारतीय मिलें ही पूरा कर रही थीं। भारतीय मिल-मालिकों ने इस अवसर का लाभ उठाया और विदेशी बाजारों में प्रवेश करना शुरू कर दिया। युद्ध के समय भारत का अपनी कोई इंजीनियरिंग उद्योग नहीं था और न ही मशीनों या यंत्रों के निर्माण करने का उद्योग था। केवल वे उद्योग ही स्थापित हो सके जो ब्रिटेन या अमेरिका में बनाई जाने वाली मशीनों का गठन करते थे।
प्रश्न 21. यातायात की सुविधा ने औद्योगिकीकरण की गति को किस प्रकार तीव्र किया ?
उत्तर ⇒ यातायात की सुविधा ने फैक्ट्री से उत्पादित वस्तुओं को एक जगह से दूसरी जगह पर ले जाने तथा कच्चा माल को फैक्ट्री तक लाने में सहायता की । रेलमार्ग शुरू होने से पहले नदियों एवं समुद्र के रास्ते व्यापार होता था। जहाजों के द्वारा माल को तटों पर पहुँचाया जाता था। रेल के विकास ने औद्योगिकीकरण की गति को तीव्र कर दिया। रेलों द्वारा कोयला, लोहा एवं अन्य औद्योगिक उत्पादनों को कम समय में और कम खर्च पर ले जाना संभव हुआ । अतः यातायात की इन सविधाओं ने औद्योगिकीकरण की गति को तीव्र कर दिया।
प्रश्न 22. सस्ते श्रम ने किस प्रकार औद्योगिकीकरण को बढ़ावा दिया ? अथवा, औद्योगिकीकरण के विकास में सस्ते श्रम की भूमिका क्या रही ?
उत्तर ⇒ सस्ते श्रम की उपलब्धता औद्योगिकीकरण के विकास के लिए आवश्यक थी। ब्रिटेन में बाड़ाबंदी अधिनियम, 1792 ई. से लागू हुआ। बाड़ाबंदी प्रथा के कारण जमींदारों ने छोटे-छोटे खेतों को खरीदकर बड़े-बड़े फार्म स्थापित किये । किसान, भूमिहीन मजदूर बन गए । बाड़ाबंदी कानून के कारण बेदखल भूमिहीन किसान कारखानों में काम करने के लिए मजबूर हुए । अतः ये कम मजदूरी पर भी काम करने को बाध्य थे। इस सस्ते श्रम ने उत्पादन को बढ़ाने में सहायता की । परिणामस्वरूप, औद्योगिकीकरण का मार्ग प्रशस्त हुआ।
प्रश्न 23. प्रथम विश्वयुद्ध से पहले यूरोपीय तथा भारतीय उद्योगों को वित्तीय व्यवस्था (पूँजी) ने किस प्रकार सहायता की ?
उत्तर ⇒ प्रथम विश्वयुद्ध से पहले यूरोप की बड़ी कंपनियों, जैसे बर्ड हिगलर्स एण्ड कंपनी, एंड्रयूयूल और जार्डीन स्किनर एण्ड कंपनी व्यापार में पूँजी लगाती थी। यह प्रबंधकीय एजेंसियों के द्वारा होता था, जो उद्योगों पर नियंत्रण भी रखती थीं। यद्यपि भारत में 1895 में पंजाब नेशनल बैंक, 1906 में बैंक ऑफ इंडिया, 1907 में इंडियन बैंक, 1911 में सेंट्रल बैंक, 1913 में द बैंक ऑफ मैसूर तथा ज्वाइंट स्टॉक बैंकों की स्थापना हुई। ये बैंक भारतीय उद्योगों के विकास में सहायक थे।
प्रश्न 24. भारत में सूती वस्त्र उद्योग के विकास को लिखें। अथवा, 1850 से 1914 तक भारत में सूती वस्त्र उद्योग का विकास लिखें।
उत्तर ⇒ भारत में कुटीर उद्योग के पतन के बाद देशी एवं विदेशी पूँजी लगाकर वस्त्र उद्योग की कई फैक्ट्रियाँ खोली गई। 1851 में बम्बई में सर्वप्रथम सूती कपड़े की मिल खोली गई। 1854 में पहला वस्त्र उद्योग का कारखाना कावसजी नानाजी दाभार ने खोला। सन् 1854 से 1880 तक 30 कारखानों का निर्माण हुआ। 1880 से 1895 तक सूती कपड़ों की मिलों की संख्या 39 से भी अधिक हो गई। इस समय सस्ता मशीनों का आयात करके भारत में सूती वस्त्र उद्योग को बहुत बढ़ाया गया । 1895 से 1914 तक के बीच सूती मिलों की संख्या 144 तक पहुँच गई थी और भारतीय सूती धागे का निर्यात भी होने लगा।
प्रश्न 25. भारत की आजादी के बाद कुटीर उद्योग के विकास में भारत सरकार की नीतियों को लिखें।
उत्तर ⇒ भारत की आजादी के बाद कुटीर उद्योगों के विकास हेतु भारत सरकार की नीतियों में निम्नलिखित परिवर्तन हुए –
(i) 6 अप्रैल, 1948 की औद्योगिक नीति द्वारा लघु एवं कुटीर उद्योग को प्रोत्साहन दिया गया।
(ii) 1952-53 ई० में पाँच बोर्ड बनाये गए, जो हथकरघा, सिल्क, खादी, नारियल की जटा तथा ग्रामीण उद्योग से जुड़े थे।
1956 एवं 1977 ई. की औद्योगिक नीति में इनके प्रोत्साहन की बात कही गई।
(iii) आगे 23 जुलाई, 1980 को औद्योगिक नीति घोषणा-पत्र जारी किया गया, जिसमें कृषि आधारित उद्योगों की बात कही गई एवं लघु उद्योगों की सीमा भी बढ़ायी गई।
History ( इतिहास ) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. औद्योगिकीकरण का भारत पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर ⇒ औद्योगिकीकरण का भारत पर व्यापक पड़ा। औद्योगिकीकरण के भारत पर प्रभाव निम्नलिखित हुए –
(i) उद्योगों का विकास – औद्योगिकीकरण के विकास के पूर्व भारत मा उत्पादन का कार्य छोटे गह उद्योगों में होता था। अब उत्पादन कारखानों में होने लगा। कपड़ा बुनन, सूत कातने के लिए मिल स्थापित हुए। इस प्रकार औद्योगिकीकरण से भारतीय उद्योगों का विकास हुआ।
(ii) नगरीकरण को बढ़ावा- औद्योगिकीकरण ने नगरीकरण को बढ़ावा दिया। औद्योगिक केंद्र नगर के रूप में परिवर्तित हए। वहाँ बाहर के लोगों को आकर बसने से जनसंख्या में वृद्धि हुई। औद्योगिकीकरण के कारण पुराने नगरों जैसे बंबई, कलकत्ता की समृद्धि में वृद्धि हुई तो नए नगर भी विकसित हुए जैसे जमशेदपुर, बोकारो, सिंदरी, धनबाद, डालमियानगर इत्यादि।
(iii) कुटीर उद्योगों की अवनति – कारखानों की स्थापना ने परंपरागत कुटीर एवं लघु उद्योगों का पतन कर दिया। इसका एक मुख्य कारण था, कारखानों में उत्पादित सामान सस्ते थे जबकि कुटीर उद्योगों में उत्पादित सामान महंगे होते थे। इसलिए बाजार में इनकी माँग घट गई। सरकारी नीतियों के कारण कुटीर उद्योगों को कच्चा माल मिलना भी दुर्लभ हो गया। फलत: वे बंद प्राय हो गए।
(iv) सामाजिक विभाजन – ‘भारत में औद्योगिकीकरण के विकास के साथ ही नए-नए सामाजिक वर्गों का उदय और विकास हुआ। कल-कारखानों के विकास के कारण समाज में पूँजीपति वर्ग तथा श्रमिक वर्ग का उदय हुआ।
2. कुटीर उद्योग के महत्त्व एवं उपयोगिता पर प्रकाश डालें।
उत्तर ⇒ भारत में औद्योगिकीकरण ने कुटीर उद्योगों को काफी क्षति पहुँचाई परंतु दस विषम परिस्थिति में भी गाँवों में यह उद्योग फल-फूल रहा था, जिसका लाभ आम जनता को मिल रहा था महात्मा अनुसार लघु एवं कुटीर उद्योग भारतीय सामाजिक दशा के अनकल हैं। कटीर उद्योग उपभाक से अत्यधिक संख्या में रोजगार उपलब्ध कराने में तथा रा. जैसे महत्त्व से जुड़ा है। सामाजिक तथा आर्थिक समस्या स्याओं का समाधान कुटीर उधागों द्वारा ही होता है। कटीर उद्योग में बहत कम पूँजी का अ जी की आवश्यकता होती है। कुटीर उद्योग में वस्तुओं के उत्पादन करने की क्षमत असर उद्योग में वस्तुओं के उत्पादन करने की भापता कछ लोगों क हाथ म न रहकर बहुत से लोगों के हाथ में रहती है। कटीर उद्योग जनसंख्या का या को बड़े शहरों में पलायन को रोकता है। कुटीर उद्योग गाँवों को आत्मनिर्भर बनाने का एक औजार है। आद्यागिकीकरण के विकास के पहले भारतीय निर्मित वस्तुओं का विश्वव्यापी बाजार था। भारतीय मलमल तथा छींट सती कपड़ों की माँग पूरे विश्व में थी। ब्रिटेन भारतीय हाथों से बनी हई वस्तओं का ज्यादा महत्त्व दिया जाता था। हाथों से बन महीन धागों के कपडे तसर मिल्क बनारसी तथा बालुचेरी साड़िया तथा बने हुए बॉडर वाली साडियाँ एवं मद्रास की लंगियों की मांग ब्रिट अधिक थी। चूंकि ब्रिटिश सरकार की नीति भारत में विद बाटश सरकार की नीति भारत में विदेशी निर्मित वस्तओं आयात एवं भारत के कच्चा माल के निर्यात को प्रोत्साहन देना था, इसलिए ग्रामीण उद्योगों पर ध्यान नहीं दिया गया। फिर भी स्वदेशी आंदोलन के समय खादी जैसे वस्त्रों की माँग नं कुटीर उद्योग को बढ़ावा दिया।
3. औद्योगिकीकरण के कारणों का उल्लेख करें।
उत्तर ⇒ औद्योगिकीकरण के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे-
(i) स्वतंत्र व्यापार एवं अहस्तक्षेप की नीति- ब्रिटेन में स्वतंत्र व्यापार और अहस्तक्षेप की नीति ने ब्रिटिश व्यापार को बहुत अधिक विकसित किया। जिसके कारण उत्पादित वस्तुओं की मांग में काफी वृद्धि हुई।
(ii) नय-नये मशीनों का आविष्कार- अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में ब्रिटेन में नये-नये यंत्रों एवं मशीनों के आविष्कार ने उद्योग जगत में ऐसी क्रांति का सूत्रपात किया, जिससे औद्योगिकीकरण का मार्ग प्रशस्त हुआ। 1770 ई० में जेम्स हारग्रीब्ज ने सूत काटने की एक अलग मशीन ‘स्पिनिंग जेनी’ बनाई। सन् 1773 में जॉन के ने फ्लाइंग शदल’ बनाया जिसके द्वारा जुलाहे बड़ी तेजी से काम करने लगे तथा धागे की माँग बढ़ने लगी। टॉमस बेल के ‘बेलनाकार छपाई’ के आविष्कार ने तो सूती वस्त्रों की रंगाई एवं छपाई में नई क्रांति ला दी।
(iii) कोयले एवं लोहे की प्रचुरता – चूँकि वस्त्र उद्योग की प्रगति कोयले एवं लोहे के उद्योग पर बहुत अधिक निर्भर करती है, इसलिए इन उद्योगों पर बहुत अधिक ध्यान दिया गया। ब्रिटेन में कोयल एवं लोहे की खाने प्रचूर मात्रा में थी। 1815 ई० में हेनरी बेसेमर ने एक शक्तिशाली भट्टी विकसित करके लौह उद्योग को और भी बढ़ावा दिया।
(iv) उद्योग तथा व्यापार के नये-नये केंद्र- फैक्ट्री प्रणाली के कारण उद्योग एवं व्यापार के नये-नये केंद्र स्थापित होने लगे। लिवरपुल में स्थित लंकाशायर तथा मैनचेस्टर सूती वस्त्र उद्योग का बड़ा केंद्र बन गया। न्यू साउथ वेल्स ऊन उत्पादन का केंद्र बन गया।
(v) सस्ते श्रम की उपलब्धता – औद्योगिकीकरण में ब्रिटेन में सस्ते श्रम की आवश्यकता की भूमिका भी अग्रणी रही। बाड़ाबंदी प्रथा की शुरुआत के कारण जमींदारों ने छोटे-छोटे खेतों को खरीदकर बड़े-बड़े फार्म स्थापित कर लिए। जमीन बेचनेवाले छोटे किसान भूमिहीन मजदूर बन गए। मशीनों द्वारा फैक्ट्री में काम करने के लिए असंख्य मजदूर कम मजदूरी पर भी तैयार हो जाते थे।
(vi) यातायात की सुविधा- फैक्ट्री में उत्पादित वस्तुओं को एक जगह स दसरे जगह पर ले जाने तथा कच्चा माल की फैक्ट्री तक लाने के लिए ब्रिटेन म यातायात की अच्छी सुविधा उपलब्ध थी। रेलमार्ग शुरू होने से पहले नदियों एवं समुद्र के रास्ते व्यापार होता था। जहाजरानी उद्योग में यह विश्व का अग्रणी देश था और सभी देशों के सामानों का आयात-निर्यात मुख्यतया ब्रिटेन के व्यापारिक जहाजी बेड़े से ही होता था, जिसका आर्थिक लाभ औद्योगिकीकरण की गति का तीव्र करने में सहायक बना।
(vii) विशाल उपनिवेश – औद्योगिकीकरण की दिशा में ब्रिटेन द्वारा स्थापित विशाल उपनिवेशों ने भी योगदान दिया। इन उपनिवेशों से कच्चा माल सस्ते दामा में प्राप्त करना तथा उत्पादित वस्तुओं को वहाँ के बाजारों में महँगे दामों पर बेचना आसान था।
4. उपनिवेशवाद से आप क्या समझते हैं ? औद्योगिकीकरण ने उपनिवेशवाद को कस जन्म दिया ?
उत्तर ⇒ किसी शक्तिशाली साम्राज्यवादी देशों द्वारा किसी दूसरे कमजोर देशों पर अधिकार कर उसकी सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं उसके शासन प्रबंध पर नियंत्रण कर लेने की प्रक्रिया को ही उपनिवेशवाद कहते हैं। अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में नये-नये यंत्रों एवं मशीनों के आविष्कार ने उद्योग जगत में ऐसे क्रांति का सूत्रपात किया जिससे औद्योगिकीकरण एवं उपनिवेशवाद दोनों का मार्ग प्रशस्त हुआ। मशीनों का आविष्कार तथा कारखानों की स्थापना से उत्पादन में काफी वृद्धि हुई। इसकी खपत किसी एक देश में होना संभव नहीं था। अतः सामानों की बिक्री के लिए तथा कच्चे माल की प्राप्ति के लिए यूरोप के बड़े-बड़े देश बाजार और उपनिवेश खोजने लगे। यूरोप के नई राष्ट्रों ने अमेरिका, एशिया, अफ्रीका इत्यादि महादेशों में अपने-अपने उपनिवेश स्थापित किए। इसी क्रम में एशिया में भारत ब्रिटेन के एक विशाल उपनिवेश के रूप में उभरा। भारत सिर्फ प्राकृतिक एवं कृत्रिम संसाधनों में ही सम्पन्न नहीं था, बल्कि यह उनका एक वृहत बाजार भी साबित हुआ। इस तरह हम कह सकते हैं कि औद्योगिकीकरण ने उपनिवेशवाद को बढ़ावा दिया।
5. औद्योगिक क्रांति सर्वप्रथम इंगलैंड में ही क्यों हुई ?
उत्तर ⇒ औद्योगिक क्रांति सबसे पहले इंगलैंड में हुई। इसके प्रमख कारण निम्नलिखित थे
(i) इंगलैंड की भौगोलिक स्थिति उद्योग धंधों के विकास के अनुकूल थी। उसके पास अच्छे समुद्री बंदरगाह एवं प्रचुर मात्रा में कोयला और लोहा जैसे खनिज पदार्थ उपलब्ध थे।
(ii) 18 वीं शताब्दी में इंगलैंड में कृषि क्रांति हुई जिससे सस्ते मजदूर बड़ी संख्या में उपलब्ध हो गए।
(iii) उपनिवेशों से व्यापारिक संबंध स्थापित कर व्यापारियों ने कारखानों को चलाने के लिए कच्चा माल तथा उत्पादित वस्तुओं की बिक्री के लिए बड़ा बाजार . सुनिश्चित कर लिया।
(iv) मुक्त व्यापार और अहस्तक्षेप की नीति अपनाकर ब्रिटिश सरकार ने व्यापार और उद्योगों के विकास को बढ़ावा दिया।
(v) औद्योगिक क्रांति लाने में इंगलैंड के वैज्ञानिकों का भी महत्त्वपूर्ण योगदान था जिन्होंने नए-नए मशीनों का आविष्कार किया।
(vi) भारत जैसे संपन्न उपनिवेशों से इंगलैंड को उद्योगों के लिए कच्चा माल एवं उत्पादित वस्तुओं के लिए बाजार भी उपलब्ध हो गया।
उपरोक्त कारणों के चलते ही औद्योगिक क्रांति सर्वप्रथम यूरोप में हुई।
6. औद्योगिक क्रांति का इंगलैंड पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर ⇒ औद्योगिक क्रांति ने व्यापक रूप से इंगलैंड के आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन को प्रभावित किया। इंगलैंड में औद्योगिक क्रांति के निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण परिणाम हुए –
(i) कारखानेदारी प्रथा का विकास – औद्योगिक क्रांति के कारण इंगलैंड में बड़ी संख्या में विशाल कारखाने खुले जिनमें बड़े स्तर पर उत्पादन होने लगा।
(ii) नगरों के स्वरूप में परिवर्तन – कारखानों की स्थापना से तत्कालीन नगरों का स्वरूप बदल गया। अब आधुनिक नगरों का उदय हुआ। अनेक नगर औद्योगिक केन्द्र बन गए।
(iii) पूँजीपति वर्ग का विकास – औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप इंगलैंड में पूंजीपति वर्ग का विकास हुआ। कुलीन, सम्पन्न एवं व्यापारी अपनी अतिरिक्त पूँजी उद्योगों में निवेश करने लगा।
(iv) श्रमिक वर्ग का उदय – औद्योगिक क्रांति के कारण कारखानों में काम करने वाले श्रमिक वर्ग का उदय हुआ। ये अपना घर-गाँव छोड़कर शहरों में आकर कारखानों में काम करने लगे। परंतु इनकी स्थिति शोचनीय थी। वे शोषण, गरीबी और भूखमरी के शिकार थे।
(v) बाल श्रम की प्रथा का विकास – कारखानेदारी प्रथा के विकास ने बाल श्रम की प्रथा को भी बढ़ावा दिया। उद्योगपति इन्हें कम मजदूरी पर ही बहाल कर इनसे कारखानों में काम लेते थे जिससे उन्हें मुनाफा होता था।
(vi) स्त्री-श्रम का विकास- बच्चों के समान स्त्रियों को भी कारखानेदारों ने कम मजदूरी पर काम में लगाया। इनका भी जीवन कष्टदायक था।
(vii) उपनिवेशवाद का विकास- औद्योगिक क्रांति ने उपनिवेशवाद को बढ़ावा दिया। कारखानों को चलाने के लिए कच्चे माल की आपूर्ति एवं उत्पादित : सामान की खपत के लिए बाजार की खोज के लिए एशिया और अफ्रीका में उपनिवेश स्थापित किए गए।
7. औद्योगिकीकरण के परिणामस्वरूप होने वाले परिवर्तनों पर प्रकाश डालें।
उत्तर ⇒ औद्योगिकीकरण के प्रभाव से यहाँ के आर्थिक एवं सामाजिक जीवन में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए। ये परिवर्तन निम्नलिखित हैं
(i) साम्राज्य-राष्ट्रवाद का विकास – औद्योगिकीकरण के कारण भारी मात्रा में कच्चे माल तथा उत्पादों की खपत हेतु बाजार की आवश्यकता थी। उपनिवेशों में ये दोनों ही उपलब्ध थे। उपनिवेशों की होड़ ने साम्राज्यवाद को जन्म दिया।
(ii) कुटीर उद्योगों का पतन – बड़े-बड़े कारखानों की स्थापना से प्राचीन लघु एवं कुटीर उद्योग का पतन हो गया। कुटीर उद्योग में तैयार माल महंगा तथा कारखाने में उत्पादित सामान सस्ता था। नतीजा यह हुआ कि कुटीर उद्योग समाप्त होने लगे क्योंकि बाजार में इसकी माँग घट गयी थी।
(iii) समाज में वर्ग विभाजन – औद्योगिकीकरण के फलस्वरूप समाज म तीन वर्गों का उदय हुआ.पूँजीपति, बुर्जुआ तथा मजदूर वर्ग।
(iv) स्लम पद्धति की शुरुआत – औद्योगिकीकरण के परिणामस्वरूप नवोदित फैक्ट्री मजदूर वर्ग शहर में छोटे-छोटे घरों में रहने लगे। जहाँ किसी प्रकार की सुविधा नहीं थी। इस प्रकार स्लम पद्धति की शुरुआत हुई।
(v) उद्योगों का विकास –औद्योगिकीकरण के कारण भारत में कारखानों की स्थापना एवं नये-नये यंत्रों का आविष्कार हुआ। विभिन्न उद्योगों से संबद्ध कारखाने खुले और उद्योगों का बड़े स्तर पर विकास हुआ। लोहा एवं इस्पात, कोयला, सीमेंट, चीनी, कागज, शीशा और अन्य उद्योग स्थापित हुए जिनमें बड़े स्तर’ पर उत्पादन हुआ।
8. ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारतीय बुनकरों से सूती और रेशमी वस्त्र नियमित आपूर्ति के लिए क्या व्यवस्था की ?
उत्तर ⇒ सूती वस्त्र उद्योग में व्याप्त प्रतिद्वंद्विता को समाप्त कर उस पर अपना एकाधिकार स्थापित करने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी ने नियंत्रण एवं प्रबंधन की नई नीति अपनाई जिससे उसे वस्त्र की आपूर्ति लगातार होती रही। इसके लिए कंपनी ने निम्नलिखित व्यवस्था की –
(i) गुमाश्तों की नियुक्ति – कपड़ा व्यापार पर एकाधिकार स्थापित करने के लिए बिचौलियों को समाप्त करना एवं बुनकरों पर सीधा नियंत्रण स्थापित करना आवश्यक था। इसके लिए कंपनी ने अपने नियमित कर्मचारी नियुक्त किए जो “गुमाश्ता” कहे जाते थे। इनका मुख्य काम बुनकरों पर नियंत्रण रखना, उससे कपड़ा इकट्ठा करना तथा बुने गए वस्त्रों की गुणवत्ता की जाँच करना था।
(ii) बुनकरों को पेशगी की व्यवस्था – बनुकरों से स्वयं तैयार सामान प्राप्त करने के लिए कंपनी ने उन्हें अग्रिम पेशगी देने की नीति अपनाई। अग्रिम राशि या पेशगी प्राप्त कर बुनकर अब सिर्फ कंपनी के लिए ही वस्त्र तैयार कर सकते थे। वे अपना माल ईस्ट इंडिया कंपनी के अतिरिक्त अन्य किसी कंपनी या व्यापारी को नहीं बेच सकते थे। बुनकरों को कच्चा माल खरीदने के लिए ऋण भी उपलब्ध कराया गया। अग्रिम राशि और कर्ज से कपड़ा तैयार कर बुनकरों को माल गुमाश्तों को सौंपना पड़ा।
9. प्रथम विश्वयुद्ध के समय भारत का औद्योगिक उत्पादन क्यों बढ़ा ? व्याख्या कीजिए।
उत्तर ⇒ प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान और उसके बाद भारत के औद्योगिक । उत्पादन में काफी तेजी आई जिसके निम्नलिखित प्रमुख कारण थे –
(i) प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटेन में सैनिक आवश्यकता के अनुरूप अधिक सामान बनाए जाने लगे जिससे मैनचेस्टर में बननेवाले वस्त्र उत्पादन में गिरावट आई। इससे भारतीय उद्यमियों को अपने बनाए गए वस्त्र की खपत के लिए देश में ही बहत बड़ा बाजार मिल गया।
(ii) विश्वयुद्ध के लंबा खींचने पर भारतीय उद्योगपतियों ने भी सैनिकों की आवश्यकता के लिए सामान बनाकर मुनाफा कमाना आरंभ कर दिया। सैनिकों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए देशी कारखानों में भी सैनिकों के लिए वर्दी, जूते, जूट की बोरियाँ, टेन्ट, जीन इत्यादि बनाए जाने लगे। इससे देशी कारखानों में उत्पादन बढ़ा।
(iii) युद्ध काल में कारखानों में उत्पादन बढाने के अतिरिक्त अनेक नये-नय कारखाने खोले गए। मजदूरों की संख्या में भी वृद्धि की गयी। फलस्वरूप प्रथम विश्वयुद्ध के समय भारत के औद्योगिक उत्पादन में तेजी से वृद्धि हुआ।
10. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत सरकार ने मजदूरों की स्थिति म सधार के क्या प्रयास किए ?
उत्तर ⇒ स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत सरकार ने मजदूरों की स्थिति में सुधार लाने के लिए कुछ सराहनीय प्रयास किया। मजदूरों की आजीविका एवं उनके अधिकारों को ध्यान में रखते हुए सरकार ने सन् 1948 में न्यूनतम मजदूरी कानून पारित किया जिसके द्वारा कुछ उद्योगों में मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी देना आवश्यक बना दिया गया। प्रथम पंचवर्षीय योजना में इसे महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया तथा दूसरी योजना में तो यहाँ तक स्पष्ट किया गया कि श्रमिकों को इतनी मजदूरी अवश्य मिलनी चाहिए जिससे वह अपना गुजारा कर सकें तथा साथ ही अपनी कार्यकुशलता बनाए रख सकें। तीसरी पंचवर्षीय योजना में मजदूरी वार्ड स्थापित किया गया और बोनस आयोग भी स्थापित किया गया। मजदूरों की स्थिति में सुधार हेतु सन् 1962 में केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय श्रम आयोग स्थापित किया। इसके द्वारा मजदूरों को रोजगार उपलब्ध कराया गया तथा उनकी मजदूरी को सुधारने का प्रयास किया गया।
इस तरह स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत सरकार ने उद्योग में लगे मजदूरों की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए कई कदम उठाए हैं, जिसके कारण श्रमिकों की स्थिति में काफी सुधार आया है।
11. 18 वीं शताब्दी तक अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारतीय वस्त्रों की माँग बने रहने का क्या कारण था ?
उत्तर ⇒ प्राचीन काल से ही भारत का वस्त्र उद्योग अत्यंत विकसित स्थिति में था। यहाँ विभिन्न प्रकार के वस्त्र बनाए जाते थे। उनमें महीन सूती (मलमल) और रेशमी वस्त्र मुख्य थे। उनकी माँग अंतर्राष्ट्रीय बाजार में काफी थी। कंपनी सत्ता की स्थापना एवं सुदृढीकरण के आरंभिक चरण तक भारत के वस्त्र निर्यात में गिरावट नहीं आई। भारतीय वस्त्रों की माँग अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बनी हुई थी जिसका मुख्य कारण था कि ब्रिटेन में वस्त्र उद्योग उस समय तक विकसित स्थिति में नहीं पहुँचा था। एक अन्य कारण यह था कि जहाँ अन्य देशों में मोटा सूत बनाया जाता था वहीं भारत में महीन किस्म का सूत बनाया जाता था। इसलिए आर्मीनियन और फारसी व्यापारी पंजाब, अफगानिस्तान, पूर्वी फारस और मध्य एशिया के मार्ग से भारतीय सामान ले जाकर इसे बेचते थे। महीन कपड़ों के थान ऊँट की पीठ पर लादकर पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत से पहाड़ी दरों और रेगिस्तानों के पार ले जाए जाते थे। मध्य एशिया से इन्हें यूरोपीय मंडियों में भेजा जाता था।
12. औद्योगिकीकरण ने सिर्फ आर्थिक ढाँचे को ही प्रभावित नहीं किया बल्कि राजनैतिक परिवर्तन का भी मार्ग प्रशस्त किया, कैसे ?
उत्तर ⇒ औद्योगिकीकरण वास्तव में न सिर्फ आर्थिक ढाँचे को प्रभावित किया वरन इसने राजनैतिक परिवर्तन के मार्ग को भी प्रशस्त कर दिखाया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत सरकार ने जहाँ एक तरफ कुटीर उद्योग को बढ़ावा दिया वहीं दूसरी तरफ औद्योगिकीकरण प्रक्रिया भी आगे बढ़ने लगी। अब रसायन एवं बिजली जैसे औद्योगिक क्षेत्रों का विस्तार होने लगा तथा विद्युत् इलेक्ट्रॉनिक एवं स्वचालित मशीनों का प्रयोग किया जाने लगा। उन्नीसवीं शताब्दी में ब्रिटेन की औद्योगिक नीति ने जिस तरह औपनिवेशिक शोषण की शुरुआत की, भारत में राष्ट्रवाद की नींव उसका प्रतिफल था। यही कारण था कि जब महात्मा गाँधी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की तो राष्ट्रवादियों के साथ अहमदाबाद एवं खेड़ा मिल मजदूरों ने उनका साथ दिया। महात्मा गाँधी ने विदेशी वस्तुओं को बहिष्कार एवं स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने पर बल डालते हुए कुटीर उद्योग को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया तथा उपनिवेशवाद के खिलाफ उसका प्रयोग किया। पूरे भारत के मिलों में काम करनेवाले मजदूरों ने भारत छोड़ो आंदोलन में उनका साथ दिया। अतः औद्योगिकीकरण में जिसकी शुरुआत एक आर्थिक प्रक्रिया के तहत हुई थी, भारत में राजनैतिक एवं सामाजिक परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त हुआ।
13. 19 वीं शताब्दी में यूरोप में कुछ उद्योगपति मशीनों के बजाए हाथ से काम करनेवाले श्रमिकों को प्राथमिकता देते थे। इसका क्या कारण था ?
उत्तर ⇒ 19वीं शताब्दी में औद्योगिकीकरण के बावजद हाथ से काम करने वाले श्रमिकों की माँग बनी रही। अनेक उद्योगपति मशीनों के स्थान पर हाथ से काम करने वाले श्रमिकों को ही प्राथमिकता देते थे। इसके प्रमख कारण निम्नलिखित थे –
(i) इंगलैंड में कम मजदूरी पर काम करने वाले श्रमिक बड़ी संख्या में उपलब्ध थे। उद्योगपतियों को इससे लाभ था। मशीन लगाने पर आने वाले खर्च से कम खर्च पर ही इन श्रमिकों से काम करवाया जा सकता था।
(ii) मशीनों को लगवाने में अधिक पँजी की आवश्यकता थी। साथ ही मशीन के खराब होने पर उसकी मरम्मत कराने में अधिक धन खर्च होता था। मशीने उतनी अच्छी नहीं थी, जिसका दावा आविष्कारक करते थे।
(iii) एक बार मशीन लगाए जाने पर उसे सदैव व्यवहार में लाना पड़ता था, परंतु श्रमिकों की संख्या आवश्यकतानुसार घटाई-बढ़ाई जा सकती थी। उदाहरण के लिए इंगलैंड में जाडे के मौसम में गैसघरों और शराबखानों में अधिक काम रहता था। बंदरगाहों पर जाड़ा में ही जहाजों की मरम्मत तथा सजावट का काम किया जाता था। इसलिए उद्योगपति मशीनों के व्यवहार से अधिक हाथ से काम करने वाले मजदूरों को रखना ज्यादा पसंद करते थे।
(iv) विशेष प्रकार के सामान सिर्फ कुशल कारीगर ही हाथ से बना सकते थे। मशीन विभिन्न डिजाइन और आकार के सामान नहीं बना सकते थे। .
(v) विक्टोरियाकालीन ब्रिटेन में हाथ से बनी चीजों की बहुत अधिक माँग थी। । हाथ से बने सामान परिष्कृत, सुरुचिपूर्ण, अच्छी फिनिशवाली, बारीक डिजाइन और विभिन्न आकारों की होती थी। कुलीन वर्ग इसका उपयोग करना गौरव की बात मानते थे।
इसलिए आधुनिकीकरण के युग में मशीनों के व्यवहार के बावजूद हाथ से काम करनेवाले श्रमिकों की माँग बनी रही।