अणु विस्फोट- इतिहास का एक स्वर्णिम पृष्ठ
अणु विस्फोट- इतिहास का एक स्वर्णिम पृष्ठ
प्रस्तावना—संसार की गतिशीलता, परिवर्तनशीलता, नित-नित नवीनीकरण में अन्तिर्निहत है। आदि सृष्टि से ही अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अन्वेषण, आविष्कार प्रारम्भ कर दिए थे । स्पष्ट हैं— Necessity is the mother of invention, अर्थात् आवश्यकता आविष्कार है, प्रतिक्षण कुछ न कुछ नया करने के लिए उसकी बुद्धि तीव्रगति आवश्यकताओं की पूर्ति, सुरक्षा की पूर्ति सुचारु रूपेण करता वैज्ञानिक युग है, विज्ञान के माध्यम से ही उसने जूलवायु, पृथ्वी, आकाश सभी को प्रतिबंधित कर लिया है। इस प्रगति ने उसे अपनी सुरक्षा का मार्ग भी बताया है। सदैव यह अवलोकनीय है, कि जब-जब आसुरी शक्तियाँ सिर उठाती हैं, तब-तब उनके संहार के लिए प्रयास करने ही पड़ते हैं, चाहे वह छद्म प्रक्रिया ही क्यों न हो । इतिहास इसका साक्षी है–
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानम धर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
परमाणु बम क्या है ? — युग के स्वरानुकूल मानव सुरक्षा के प्रबंध करता आया है कर रहा है, और करता रहेगा। वर्तमान स्वर अणुबम् हैं। वास्तव में अणुबम है क्या ? मानव ने सृष्टि के प्रारंभ से ही ऊर्जा शक्ति का प्रयोग किया है, वह है सूर्य से प्राप्त ऊर्जा शक्त् । परन्तु आज मानव के पास एक अन्य ऊर्जा स्रोत है वैज्ञानिकी । यह ऊर्जा उसे आंतरिक अणु से प्राप्त होती है, उसे ही अणु शक्ति या परमाणु शक्ति कहते हैं ।
अणुबम को मूल रूप देने हेतु इस ट्रैकराया जाता है । (10n) यह बेरियम प्रक्रिया में यूरेनियम् अणु को विखंडित करने के लिए से और क्रिप्टन में विभक्त हो जाते हैं। ये न्यूट्रॉन अणुओं को विखण्डित कर देते हैं। इनकी विपरीत प्रक्रिया से अत्यधिक ऊर्जा उत्पन्न होती । इसी से परमाणु ऊर्जा की संरचना होती है ।
92U + 10n → 36Kr + 56Ba + 301n + Energy
परीक्षण – विश्व के महान् राष्ट्र अमेरिका, रूस, ब्रिटेन फ्रांस और चीन अणु शक्ति र एकाधिकार स्थापित किए हुए है, वे नहीं चाहते कि अन्य देश भी उस पंक्ति में आसीन हो जाएँ । हमारा देश प्रगतिशील राष्ट्र है, वह भी स्वावलम्बी बनना चाहता है । इस पथ पर किचित् प्रयास भारत ने सन् १९७४ में भी किया था ।
अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त डा० भाभा के संरक्षण में ज्वाहरलाल नेहरू द्वारा स्थापित अणुअनुसंधान के वैज्ञानिकों ने इन्द्रा गांधी के प्रधान मंत्रित्व काल में डा० सेठना की अध्यक्षता में, डा० रामन्ना के निर्देशन में १५ किलो टी, एन. टी. की प्रातः ८ बजकर ५ मिनट पर बुद्ध पूर्णिमा के शुभ पर्व के दिन ही किया गया था। जिसका उद्देश्य शान्तिपूर्ण कार्यों के लिए अणु शक्ति का प्रयोग था । यह प्रगति शांत नहीं थी शनैः शनैः भारत को पुनः इसे क्षेत्र में उपलब्धि की आवश्यकता पड़ी।
नाभिकीय परीक्षण – सूर्य अपनी प्रचंड रश्मि कोष को दोपहर के समय पोखरन पर समर्पित करता हुआ शांत रूप से पश्चित दिशा की ओर विश्राम करने जा रहा था, दिनकर की उष्णता का सफल प्रदर्शन करते हुए भारतीय वैज्ञानिकों ने पुनः २४ वर्ष पश्चात् पुनः बुद्ध पूर्णिमा के ही शुभ अवसर पर ११ मई सन् १९९८ को दोपहर ३ बजकर ४५ मिनट पर राजस्थान के पोखरन क्षेत्र में क्रमानुसार उत्तरोत्तर उच्चतर तकनीक के तीन सफल भूमिगत परीक्षण किए I
इसका नेतृत्व करने वाले भारत माँ के सपूत वैज्ञानिक रक्षा मंत्री जार्ज फर्नाडीज के वैज्ञानिक स्लाहकार डा० ए० पी० जे० अब्दुल कलाम तथी शीर्ष वैज्ञानिक डा० आर० चिदम्बरम थे । भारत को इन पर गर्व है । डा० कलाम ने कहा – “पोखरन रेंज में ११-१३ मई को पाँच परर्माणु परीक्षणों की प्रक्रिया परमाणु ऊर्जा विभाग और रक्षा अनुसंधान व विकास संगठन द्वारा सालों से किए जा अग्रणी कार्य को परिणति है।” उन्होंने यह भी कहा कि जब परमाणु और रक्षा तकनीक आपस मिलते हैं, तब वे परमाणु अस्त तकनीक में बदल जाते हैं।
११ मई के दिन भूमिगत परमाणु विस्फोट की तीव्रता ४७ मापी गई है। इन परीक्षणों में (विखंडन) परमाणु विस्फोट, दूसरा कम शक्ति वाला परमाणु विस्फोट, तथा तीसरा थर्मोन्स क्लियर परमाणु विस्फोट था। यह विस्फोट भूमि के लगभग सौ मीटर अन्दर किए गए हैं। इन भूमिगत विस्फोटों से वातावरण में रेडियो धर्मिता नहीं फैली है। यह पूर्व में हुए विस्फोटों की भाँति पूर्णतः नियन्त्रित विस्फोट थे। है एक फिशन
डा. चिदम्बरम् ने स्पष्ट किया कि पोखरन परीक्षणों में प्रयुक्त विखंडनीय सामग्री (फिसाइल मैटिरियल) पूर्ण रूपेण स्वदेश निर्मित थी । इन परीक्षणों की शक्ति नापने के लिए एक विशेष सोफ्टवेयर पैकेज परमाणु ऊर्जा विभाग ने विकसित किया था। इसके परीक्षण में कौन सी विखंडनीय सामग्री व उपक्रण-भूमिँ में कितनी गहराई तक लगाए गए, इस तथ्य को उन्होंने गुप्त ही रखा। परमाणु विस्फोटों का विवरण डा० चिदम्बरम ने इस इस प्रकार दिया –
क्रम परिक्षण के प्रकार समय व तिथि ऊर्जा उत्सर्जन
१. थर्मोन्यूक्लियर डिवाइस १५.४५ ११.५. ९८ ४५ किलोटन
२. किसन डिवाइस १५.४५ ११.५. ९८ १५ किलोटन
३. लो यील्ड वाले डिवाइस १५.४५ ११.५. ९८ ०.२ किलोटन
४. लो यील्ड डिवाइस १२.२१ १३.५. ९८ ०.५ किलोटन
५. लो यील्ड डिवाइस १२.२१ १३.५. ९८ ०.३ किलोटन
इसका प्रभाव – ११ मई ९८ को तीनों उपकरणों का विस्फोट ठीक एक ही क्षण बटन दबाकर किया गया था । परीक्षित ताप परमाणविक (थर्मोन्यूक्लियर) उपकरण का निर्माण इस सीमा में रखते हुए किया गया कि परीक्षण के स्थल के नजदीक बसे गाँवों में किसी प्रकार हो । यह व्यवस्था उन्होंने पहले ही करली थी, परीक्षण स्थल से पाँच मील तक कोई भी न हो । डा० चिदम्बरम् ने यह भी स्पष्ट किया कि आस-पास में स्थित गाँवों की कम से कम क्षति सुनिश्चित् करने के लिए इसकी तीव्रता को नियंत्रित कर दिया गया था ।
बम क्यों बनाना पड़ा— सच्चा देश भक्त देश की सुरक्षा को ही सर्वोपरी मानता हैं उसी के अनुकूल किसी की भी चिंता न करते हुए वह कार्य करता रहता है। वैज्ञानिक तो सैनिक है, सेनापति की आज्ञा बिना सैनिक आगे नहीं बढ़ता । प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी का संकेत हुआ आगे बढ़ने के लिए, हरी झंडी दिखा दी गई, और वैज्ञानिकों ने प्रशस्त पथ अवलोकित कर विजय श्री प्राप्त की ।
प्रधानमन्त्री ने इन परीक्षणों के विषय में कहा कि ये परीक्षण इस लिए करने पड़े क्योंकि भारत के आस-पास की सीमाओं का परमाणु वातावरण बहुत खरतनाक था । इसीलिए अपनी सुरक्षा हेतु तथा परमाणु आक्रमण के परिप्रक्ष्य में ये परीक्षण किए गए । रक्षा मन्त्री जार्ज फर्नाडीज ने कहा कि केवल मात्र परमाणु हथियार देश की स्वतंत्रता की रक्षा नहीं कर सकते । बल्कि देश के प्रत्येक व्यक्ति को यह बात समझ लेनी चाहिए, कि भारत कभी भी अपना उत्पीडन् सहन नहीं करेगा ।
कारण—कोई भी राष्ट्र अपनी प्रभुसत्ता अखंडता को गंभीर खतरे में नहीं डाल सकता । तीव्रता से बढ़ते हुए खतरों से सावधान हो जाना और प्रति रक्षा की समुचित व्यवस्था करना अनिवार्य हो चुका था । केवल शक्तिशाली राष्ट्र बनकर ही भारत अपनी सुरक्षा कर सकता है, यह स्पष्ट है कि यदि एक कायर और दुर्बलु राष्ट्र के रूप में भारत शान्ति की माला फेरता रहे तब न तो वह सम्मान प्राप्त कर सकता है, और न ही अपनी सुरक्षा कर सकता है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण था, पाकिस्तान द्वारा छोड़ा गया गौरी प्रक्षेपास्त्र ।
भारत मौन था, परन्तु सिंह को वह अधिक समय तक शान्त न देख सका । गीदड़ी भमकियों के रूप में पाकिस्तान, उधर चीन भी अप्रत्यक्ष रूप में भारत को धमकियाँ देने लगा । २४ साल की गंभीर शांति को सिंह ने पलक उठा कर देखा ।
भारत को इसी हेतु अपनी प्रतिरक्षा, सुरक्षा सम्बन्ध में ऐसी कोई ठोस रणनीति अपनाना आवश्यक हो गया था, जिससे सेनाओं के मनोबल की वृद्धि के साथ-साथ सामाजिक शक्ति के विकास के नए मार्ग भी खुलते हैं। तथा केवल विदेशी सहायता के लोभ में भारत अपनी प्रभुसत्ता अखण्डता और प्रतिष्ठा को उपेक्षा नहीं कर सकता । जहाँ तक परमाणु निशास्त्रीकरण की बात है, भारत परमाणु निशास्त्रीकरण का पक्ष धर था और रहेगा। परन्तु इसका यह तात्पर्य नहीं, कि विश्व के कुछ राष्ट्र परमाणु हथियारों का जखीरा बढ़ाते चले जाएँ और भारत हाथ पर हाथ धरा बैठा रहे। इस तापीय परमाणु परीक्षण से भारत परमाणु क्षमता में अमेरिका और रूस के बाद तृतीय स्थान पर आसीन हो गया । यह वास्तव में महान् देश की महान् उपलब्धि है।
ज्ञान विज्ञान का अग्रणी मानव कैसे रह सकता है मौन ।
कुछ न कुछ कर सकने को वह रहता है बेचैन ।।
शांति का वह अग्रदूतु शांति पथ पर रहा अग्रसर।
शांति प्रिय, वह फहराता है, शांति अग्रसर । सुर्वत्र ।।
किसी भी लकीर को मोडूने इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। भारत के विकसित देशों को लगा, जो संपूर्ण विश्व को अपने सम्मुख असहाय के प्रयास में कुष्ट परमाणु परीक्षणों पताका यत्र-तत्र सहना ही से सबसे गहरा पड़ता है। ईसा, सुकरात आदि आघात विश्व के उन महान (लाचार) देखना चाहते हैं । ही सर्वेसर्वा बनना चाहते हैं। इसमें अमेरिका, जर्मनी फ्रांस ब्रिटेन विशेष हैं। आज भारतीय जन मानस के साथ ही हमारी सेना के जवानों में एक नए उत्साह का संचार हुआ है। १९६२ में चीन का जब आक्रमण हुआ था, तब हमारे सैनिकों की यह शिकायत थी कि उनके पास पूर्णरूप से अस्त्र-शस्त्र नहीं थे। वस्तुतः चीन और पाकिस्तान को बोलने की कोई आवश्यकता नहीं । अमेरिका ने इन परीक्षणों के पश्चात् भारत पर प्रतिबन्ध लगाने की घोषणा की। अमेरिका पाकिस्तान की सहायता कर इसे भारत के विरोध में खड़ा करने का प्रयत्न करता रहता । क्योंकि अमेरिका किसी अन्य देशों को उन्नति पथ पर जाते हुए नहीं देख सकता ।
विचार धाराएँ– प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा कि पोखरन भारत को सुरक्षित, आत्म निर्भर, और समृद्ध राष्ट्र बनाने में विज्ञान महान् संभावनाओं का प्रतीक बन गया है। वैज्ञानिकों का कथन है कि परमाणु हथियार की क्षमता के लिए उसे और परीक्षण करने होंगे। रूस के विशेषज्ञ ने ‘कोमरसेट डेली’ समाचार पत्र के माध्यम से बताया कि “परमाणु हथियारों को विकसित करने के लिए भारत को कम से कम चार और परमाणु विकसित करने होंगे। तथा भारत ने कम्प्यूटर नमूनों और मानकों में पर्याप्त सफलता प्राप्त की है।” कोल्म्बिया विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफैसर श्री जगदीश भगवती ने कहा ” भारत के लिए परमाणु परीक्षण एक प्रकार से आवश्यक था। सहायता राशि रोकने से भारत कोई चितिंत नहीं है।”
प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधान सचिव श्री ब्रजेश मिश्र ने कहा – “पड़ौस में भारत के अनेक मित्र हैं जिनसे हमारे प्रगाढ़ सम्बन्ध हैं इस परीक्षण का लक्ष्य किसी एक देश या उनके जिनसे हुमारे प्रगाढ़ सम्बन्ध हैं इस तरह के परीक्षणों से राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति हितों पर चोट पहुँचाना नहीं है । इस तरह के परीक्षणों से राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति हमारे देश की जनता का विश्वास बढ़ा है। हमारे आने वाली पीढ़ी को भी स्वतन्त्रता की ५० वीं वर्ष गाँठ के मौके पर यह विश्वास दिलाना आवश्यक है कि देश के पास नाभिकीय तकनीक का ठोस आधार है ।” हम अपने देश की सुरक्षा के लिए, समुचित कदम उठाने के लिए सक्षम हैं। जिस प्रकार अमेरिका आदि अपनी सुरक्षा के लिए कर रहे हैं ।
लेफ्टिनेंट जनरल एम० एम० लखेड़ा ने कहा – “यह भारत के लिए गर्व की बात थर्मोन्यूक्लियर टैस्ट करके भारत विश्व का छठा देश हो गया है । यह, आधुनितम प्रौद्योगिकी जहाँ तक अमेरिका द्वारा नाराज होने की बात है, वह चीन को परमाणु उपकरणों की बिक्री करता है, वह किस मुँह से भारत पर प्रतिबन्ध लगाएगा ।” रक्षा विशेषज्ञ डा० श्री उदय भास्कर ने भारत की सामरिक क्षेत्र की वृद्धि पर प्रकाश डाला । डा० आयंगर पोखरन में सन् १९७४ में प्रथम परीक्षण से सम्बन्ध ने कहा कि ‘भारत एक नाभिकीय देश के रूप में उभर आया है। नाभिकीय वैज्ञानिक राजा रमन्ना ने कहा – सफल नाभिकीय परीक्षण देश की नाभिकीय क्षमता में बहुत बड़ी छलांग है।
साहा इन्स्टीट्यूट आफू न्यूक्लियर फिजिक्स प्रोफेसर प्रशान्त सेन के अनुसार विकसित नाभिकीय क्षमता पर र्देश के वैज्ञानिक प्रसन्न है। भाजपा ने इन परीक्षणों को राष्ट्र की शान बढ़ाने वाला सही दिशा में साहसिक कदम बताया, तथा पूर्व प्रधानमन्त्री एच० डी० देवगौड़ा, अकाली दल नेता सुरजीत सिंह बरनाला, अन्नाद्रुमक नेता सुश्री जयललिता ने भी इसका स्वागत किया ।
आलोचना – अमेरिका, चीन और पाकिस्तान की निद्रादेवी उनका परित्याग, सहनशीलता का अभाव मानव को निंदा पथ पर ले जाता है यही कारण है वैज्ञानिकों व जनता के उत्साह वर्धन पर वे कटूक्तियाँ करने लगते हैं। पूर्व रक्षामन्त्री मुलायम सिंह ने कहा कि मोर्चा सरकार परमाणु परीक्षण किए थे, परन्तु उसने उन्हें गोपनीय रखा, जबकि भाजपा सरकार ने परमाणु अवश्यंभावी है । स्पष्ट है कि के स्थान ने भी कई परीक्षण की घोषणा के साथ-साथ उनकी डिवाइस बताकर देश के साथ विश्वास घात किया है।
जनता पार्टी अध्यक्ष डा० सुब्रमण्यम् की मस्तिष्क विचार धारा का अवलोकन कीजिए, उनका कहना है कि, परमाणु परीक्षण राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कहने पर राजनीति लाभ तथा मध्यावधि चुनावों में बहुमत प्राप्त करने के लिए किए गए हैं। कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गाँधी ने भी इसे राजनीतिक लाभ की संज्ञा दी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी दोनों को आपत्ति रही कि ऐसी क्या आवश्यकता थी कि परमाणु विस्फोट किए गए ।
विदेशी राष्ट्र की कोमल वाणी से भी परिचित होना अवश्यंभावी है।
पाकिस्तान के विदेश मन्त्री गौहर अयूब खाँ ने इन परीक्षणों की निंदा की। पेइचिंग में चीन भी चैन की नींद नहीं सो पा रहा है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव कोफिअन्नान ने भी अप्रसन्नता प्रगट की। उन्होंने न्यूयार्क में कहा कि सितम्बर सन् १९९६ में व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध सन्धि (CTBT) पर हस्ताक्षर होने के बाद उक्त सन्धि में भारत के साझीदार नहीं होने के अपेक्षाकृत परमाणु प्रक्षेपों पर लगी रोक को भारत ने तोड़ दिया है ।
यह बात स्पष्ट है कि –
“जब हम दूसरे को चोर बताएंगे तभी तो हम ईमानदार नजर आएँगे ।।”
पाकिस्तान, चीन-अमेरिका की कठपुतली है। उसने भी प्रत्युत्तर में परीक्षण किए। परन्तु भारत स्थिर है। वह स्वयं सोचे –
” है घर तुम्हारे काँच के, पत्थर उछालो सोचकर ।
है काठ की हंडिया जरा, पानी उबालो सोचकर ॥”
प्रतिबन्ध – अमेरिका एकाधिकार की भावना से लिप्त है इसी कारण पद्मसिंह ‘पद्म’ अमरीकी सीनेट द्वारा नया निर्णय लिया गया, और भारत पर उसने आर्थिक प्रतिबन्ध लगाने की घोषण की। पर वीर साहसी किसी की धमकियों से भयभीत नहीं होता ।
डा० चिदम्बरम ने स्पष्ट किया कि कोई भी देश प्रतिबन्धों के माध्यम से भारत के परमाणु और वैज्ञानिक विकास में विघ्न नहीं डाल सकता । डा० कलाम ने भी निर्भीक स्वर में कहा कि प्रतिबन्धों से भारत और भी अधिक शक्तिशाली व आत्म निर्भर होगा। केन्द्रीय ऊर्जा मन्त्री आर० कुमार मंगलमू ने भी कहा कि आर्थिक प्रतिबन्धों से ऊर्जा क्षेत्र की परियोजनाएँ किसी भी प्रकार बाधित नहीं होगी ।
जनता ने भी इसका सहर्ष स्वागत किया, व्यापारिक वर्ग ने भी सरकार का सहयोग करते हुए, परीक्षण का स्वागत करते हुए कहा कि प्रतिबन्धों की कोई चिंता नहीं है यहाँ तक कि कुछ संस्थाओं ने राष्ट्र कोष में धन देना भी प्रारम्भ कर दिया यहाँ तक कि विदेशी भारतीय भी इसमें सहयोग देने के लिए तत्पर है। वास्तव में, वह दिन दूर नहीं जब अमेरिका प्रतिबन्धों की धज्जियाँ उड़ जाएँगी ।
आवश्यकता—सर्वप्रथम देशवासी का कर्त्तव्य देश विरोध क्यों? रणक्षेत्र में वीर जाता है, यह जानता है कि धारण करता है। सिख बंधु कृपाण धारण करते हैं, रात-दिन हिंसा तो नहीं करते, देश की सुरक्षा का चिन्ह् है। राजपूत नारी कटार रखती थी मान-मर्यादा संस्कृति, देश की रक्षा के लिए।
इसी प्रकार देश करता है, तब अन्य देशों को बेचैनी क्यों परीक्षण पर परीक्षण करते है, मौन रूप से रहे। भारत की पुनः आत्म निर्भर होना चाहता है । की शक्ति सामर्थ्य पूर्ण बनाने तथा सुरक्षा हेतु अणु परीक्षण यदि भारत ? भारत अब इतना भोला नादान नहीं कि अन्य देश भारत को नष्ट करने की प्रक्रिया करते रहे, वह दुर्बल बना रहे । भारत की पुनः आत्म निर्भर होना चाहता है ।
उपसंहार — अन्त में सिंहावलोकन करते हुए यही कहना समीचीन है, कि नाभिकीय परिक्षण परिस्थितियों के अनुकूल उचित है । अपने भारत-वासियों के ह्रदय भी पक्षपात की भावना से सदैव दूर रहने चाहिए। वैज्ञानिकों का, सेना का मनोबल समाज की एकता से ही बढ़ता है। और हमारा कर्त्तव्य है इसका स्वागत करना । दीपंकर जी के शब्दों में ही कह सकते हैं –
“विश्व शान्ति, और पड़ौसी देशों से सौहार्द की भावना रहे। तब जो देश खुद सैकडों परमाणु व हाइड्रोजन जखीरा अपने पास रखे हुए है, वही उपदेश दे रहे हैं, वे अपने बम समुद्र परमाणु का में फेंक दे, तो हम भी फेंक देंगे । वस्तुतः नाभिकीय परीक्षण देश हित के लिए आवश्यक है देश की रक्षा ही मानव का प्रथम कर्त्तव्य है ।
इस विस्फोट की सूचना प्राप्त करते ही भारतीयों का हृदय प्रसन्नता से भर गया वह स्वयं को ऐसा अनुभव करने लगें कि मानों वे पूर्ण रूपेण सुरक्षित हैं ५० वर्ष पूर्व जो दासता के शिकंजे टूटने पर भारतीयों में जो हर्षोल्लास व उत्साह था, वह आज पुनः उनके कीर्तिमान चेहरों पर प्रतिबिंबित हो रहा था । परमाणु क्षेत्र में आत्म निर्भर होने के साथ शताब्दियों तक परतन्त्रता अब किसी विदेशी कोने में ही आश्रय प्राप्त करेगी। यह स्वर्णिमक्षण भारतीय कदापि बिस्मृत नहीं कर सकते। भारतीय सदैव इन वैज्ञानिकों का आभारी रहेगा ।
और इस प्रयास को देखते हुए भारतीय वैज्ञानिक निरन्तर कदम से कदम मिलाते हुए प्रगति के प्रशस्त पथ पर आरुढ़ होते रहें, वह दिन दूर नहीं, जब वैज्ञानिकी सूर्य पूर्व दिशा से पुनः प्रकाशित होने लगेगा तथा भारत एक गगन चुंबी राष्ट्र होगा । अस्तु
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