Bharat Bandh: कर्मचारियों के समर्थन में उतरे किसान संगठन, मिलकर करेंगे चक्का जाम
Bharat Bandh: देशभर में 8 जुलाई 2025 को 25 करोड़ से अधिक श्रमिक सरकार की नीतियों के खिलाफ हड़ताल पर जा रहे हैं. ये श्रमिक केंद्रीय और क्षेत्रीय संगठनों से जुड़े हैं और उनका विरोध नए श्रम कानूनों, निजीकरण, और ठेका प्रथा के खिलाफ है. इस हड़ताल से बैंकिंग, डाक, बीमा, खनन, राजमार्ग और निर्माण जैसे प्रमुख क्षेत्रों की सेवाएं प्रभावित हो सकती हैं. संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) और नरेगा संघर्ष मोर्चा जैसे क्षेत्रीय संगठनों ने भी इस हड़ताल को अपना समर्थन दिया है.
न्यूनतम वेतन और पुरानी पेंशन बहाली की मांग
श्रमिक संगठनों की हड़ताल की मुख्य मांगों में न्यूनतम मासिक वेतन 26,000 रुपये निर्धारित करना और पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) की बहाली शामिल है. श्रमिक संगठनों का कहना है कि सरकार लगातार श्रमिक हितों की अनदेखी कर रही है, जिससे देश के करोड़ों कामगारों की स्थिति दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है.
किसानों का समर्थन और संयुक्त कार्रवाई
संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) और नरेगा संघर्ष मोर्चा जैसे किसान संगठन भी इस हड़ताल का समर्थन कर रहे हैं. एसकेएम ने 9 जुलाई को तहसील स्तर पर विरोध रैलियों की घोषणा की है, जबकि नरेगा संघर्ष मोर्चा ने मनरेगा मजदूरों से 800 रुपये दैनिक मजदूरी और पश्चिम बंगाल में योजना की बहाली की मांग की है.
रेल रोको और चक्का जाम
सीटू के राष्ट्रीय सचिव एआर सिंधु ने कहा कि यह हड़ताल सिर्फ संगठित क्षेत्र तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को भी शामिल करने का प्रयास किया जाएगा. सिंधु ने बताया कि ‘रेल रोको’, सड़क बंद और औद्योगिक क्षेत्रों में विरोध प्रदर्शन भी किए जाएंगे.
राजनीतिक मतभेद और संगठन
जहां एक ओर अधिकतर श्रमिक संगठन हड़ताल में शामिल हैं, वहीं आरएसएस से जुड़ा भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) इस हड़ताल से अलग है. बीएमएस ने इसे राजनीति से प्रेरित बताते हुए समर्थन देने से इनकार किया है. हड़ताल में भाग लेने वाले प्रमुख संगठनों में इंटक, एटक, एचएमएस, सीटू, एआईयूटीयूसी, टीयूसीसी, सेवा, एआईसीसीटीयू, एलपीएफ और यूटीयूसी शामिल हैं.
नव-उदारवाद के खिलाफ 22वीं हड़ताल
संगठनों का कहना है कि 1991 से लागू नव-उदारवादी नीतियों के खिलाफ यह 22वीं देशव्यापी हड़ताल है. पहले यह हड़ताल 20 मई को प्रस्तावित थी, लेकिन पहलगाम आतंकी हमले और ऑपरेशन सिंदूर के कारण इसे स्थगित कर दिया गया था. अब इसे और व्यापक समर्थन के साथ 10 जुलाई से पहले आयोजित किया जा रहा है.
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मजदूर-किसान एकता की ओर एक और कदम
यह हड़ताल न केवल श्रमिकों की मांगों को लेकर है, बल्कि मजदूर-किसान एकता को भी मजबूत करती है. संगठनों का मानना है कि सरकार को दबाव में लाने और नीतियों में बदलाव लाने के लिए ऐसे समन्वित आंदोलनों की आवश्यकता है.
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